काफी देर से रिया के रोने की आवाज सुन किरण परेशान हो गई। पहले तो उसने सोचा, शायद किसी बात पर जिद कर रो रही होगी। फिर उसने सोचा शायद दीदी यहां से गुस्से में गई थी इसलिए परेशानी में रिया को डांट दिया हो लेकिन काफी देर तक जब वह चुप नहीं हुई तो उससे रुका नहीं गया । उसे अपने आप पर भी गुस्सा आ रहा था कि उसकी वजह से मां बेटी दोनों ही परेशान हो गई है और वह शिवानी से माफी मांगने के लिए वहां आई तो शिवानी की हालत देख वह घबरा गई। उसे समझ नहीं आया क्या करें। पहले तो उसने रिया को गोद में ले चुप कराया और उससे बोली "बेटा, आप चुप करो। मम्मी सही हो जाएगी। मैं अभी डॉक्टर को बुलाती हूं।"
किरण की बात सुनकर छोटी रिया चुप हो गई और प्यार से अपनी मम्मी के माथे पर हाथ फेरने लगी ।
किरण रसोई से पानी लेकर आई और शिवानी के चेहरे पर दो-चार छींटे डाले और उसके सिर को सहलाने लगी। पानी की बूंदे पडते ही शिवानी को थोड़ा होश आ गया और उसने आंखें खोली।
यह देख कर रिया खुशी से अपनी मम्मी के गले लग गई और किरण को भी थोड़ी तसल्ली मिली।
" दीदी डॉक्टर को बुलाऊं क्या! आपको दर्द है क्या बताइए!"
"नहीं किरण मैं ठीक हूं। कबर्ड से मेरी बीपी की दवाइयां दे दो और चाय बना दो।"
किरण ने जल्दी से दवाई व पानी लाकर शिवानी को दी और उसे दवाई खिलाकर वह उसके लिए चाय बना लाई।
चाय पीने से शिवानी को काफी राहत मिली। फिर वह बैठने की कोशिश करते हुए बोली "मेरी वजह से तुम बेकार में परेशान हो गई किरण!"
"दीदी, परेशान तो मैंने आपको कर रखा है। मुझे पता है हमारे झगड़े के कारण ही आपको टेंशन हुई होगी और आपकी तबीयत बिगड़ी होगी। सच में दीदी मैं कितनी बदकिस्मत हूं। जिसकी जिंदगी में जाती हूं उसको तकलीफ ही देती हूं। देखो ना आप तो मेरा भला ही चाहती थी और मेरे कारण आपको कितना दुख उठाना पड़ा। बस अब मैं यहां ज्यादा दिन नहीं रहूंगी। चली जाऊंगी यहां से।" कहकर किरण रोने लगी।
"अरे, पगली! इतनी छोटी सी बात से घबरा गई। अरे तेरे कारण से नहीं मुझे बीपी अक्सर हो जाता है और खबरदार जो तूने आगे से जाने की बात कही। मुझे तेरी जरूरत है। यही रह मेरे पास। मेरी नजरों के सामने रहेगी तो कम से कम मुझे तो तसल्ली रहेगी। कहीं दूसरी जगह चली गई तो मेरा बीपी यह सोच सोच कर और ज्यादा बढ़ जाएगा कि पता नहीं तू वहां कैसी होगी।" शिवानी उसके आंसू पोंछते हुए बोली।
"दीदी, क्यों मेरे लिए आप इतना परेशान होते हो। मेरी किस्मत में जो दुख तकलीफ लिखी है, आप मुझे कब तक उनसे बचाओगे। मेरे कारण आपको बिना मतलब में इतना सुनना पड़ जाता है। जितना आप मेरे लिए सोच रहे हो इतना तो कोई सगा भी ना सोचे और एक मैं अभागी इस अवस्था में आपकी सहायता करने की बजाय आपकी
तकलीफ और बढ़ा रही हूं । "
"हां ,यह बात तो तूने सही कही कि तेरा मेरा कोई रिश्ता नहीं है लेकिन पता नहीं जब से तुझे देखा है अपनी सी लगी है तू। तेरी दुख तकलीफ अपनी लगती है मुझे इसलिए तुझे अपने से दूर नहीं भेजना चाहती । तुझसे पता नहीं एक अजीब सा रिश्ता जुड़ गया है। जिसे मैं नहीं समझ पा रही हूं। चल छोड़ इन सब बातों को। मैंने उस दिन भी कहा था ना बड़ी बहन हूं तेरी। तू माने या ना माने। मैंने तो तुझे अपनी छोटी बहन मान लिया है। हां यह तो मुझे पता है तू मुझे दीदी कहती जरूर है लेकिन मन से नहीं। वरना अपनी बड़ी बहन को अपने दिल की बात नहीं बताती। यह तो मुझे पता है कि अंदर ही अंदर तुझे कोई बात खाए जा रही है । पर तू उसे बताना नहीं चाहती। मैं भी जबरदस्ती नहीं करती। जब तुझे मैं अपनी सी लगू तब कह देना। "
सुनकर किरण कुछ नहीं बोली। उसने फिर से चुप्पी की चादर ओढ़ ली। शिवानी बात को बदलते हुए बोली "अरे बातों बातों में तुम्हारी चाय तो बिल्कुल ठंडी हो गई। जाओ इसे गर्म कर लो और रिया को भी थोड़ा दूध गर्म करके दे देना। "
"हां दीदी मैं अभी लाती हूं।" कहकर वह रसोई में चली गई।
शाम को जब दिनेश ऑफिस से आया तो रिया ने अपनी तोतली बोली में दिनेश को सारी बातें बताई। सुनकर वह घबरा गया और शिवानी के पास जाकर बोला "शिवानी यह मैं क्या सुन रहा हूं। क्या तुम बेहोश हो गई थी दिन में! तुमने मुझे फोन क्यों नहीं किया!"
"आप भी किसकी बातों में आ रहे हो। यह भी पक्की आपकी जासूस बन गई है।" शिवानी हंसते हुए बोली।
"शिवानी बात को टालो नहीं। मुझे बताओ क्या हुआ था!"
"अरे, कुछ नहीं बस थोड़ा सा बीपी हाई हो गया था। जो थोड़ी सी देर में सही भी हो गया ।आप तो छोटी-छोटी बातों पर घबरा जाते हो।"
"यह छोटी बात नहीं शिवानी! प्रेगनेंसी के टाइम बीपी हाई होना तुम्हारे व बच्चे के लिए सही नहीं। वैसे मैं तो था नहीं।
फिर तुम्हारा किसको देख कर बीपी हाई हो गया।" दिनेश ने चुटकी लेते हुए कहा।
"अच्छा जी, अब आप यह कहना चाहते हो कि आपको देखकर मेरा बीपी हाई होता है। वैसे कुछ कुछ तो सही भी है!"" शिवानी जोर से हंसते हुए बोली।
दिनेश भी उसकी हंसी में शामिल हो गया और मम्मी पापा को हंसते हुए देखकर रिया भी खिलखिला कर हंस पड़ी।
चाय पीते हुए दिनेश ने कहा "देखो शिवानी हंसी की बात हंसी में लेकिन अब मैं सीरियसली कह रहा हूं। तुम अपनी सेहत पर ध्यान दो। तुम्हें पता है ना डॉक्टर ने तुम्हें कितनी एहतियात बरतने के लिए कहा था। अगर तुम ध्यान नहीं रखोगे तो फिर मुझे मां को बुलाना पड़ेगा। फिर वही तुम्हारा रूटीन सैट करेगी।"
"अरे ना बाबा ना। सासु मां को तो बिल्कुल भी नहीं। वह तो
मुझे खिला खिला कर मोटा कर देगी। देखा था ना रिया के समय हर वक्त मेरे पीछे खाने के लिए हाथ धोकर पड़ी जाती थी।"
"हां तो सही है ना! जब तुम बच्चों की तरह हरकतें करोगी तो उन्हें तो सख्ती दिखानी ही पड़ेगी।"
"वैसे दिनेश मैं मजाक कर रही थी। सचमुच मैं कितनी भाग्यशाली हूं। जो आप जैसा पति और मां समान सास मिली है। जो बेटी की तरह मेरा ध्यान रखती है। आपके कहने से मां आ तो जाएगी लेकिन आपको तो पता है ना मां की तबीयत कहां सही रहती है। यहां उनका मन भी थोड़ा कम ही लगता है। गांव की खुली हवा में रहने वालों को यहां की हवा कहां भाती है। तो उन्हें परेशान मत करो। मैं अपना ध्यान रखूंगी। वैसे भी डिलीवरी के बाद तो मां आएंगी ही। "
"मैं तुम्हारी बात समझता हूं लेकिन अभी डिलीवरी में काफी समय है । मैं ज्यादा छुट्टियां ले नहीं ले सकता। आज की तरह से फिर तुम्हारी तबीयत बिगड़ गई तो। पीछे से संभालने वाला भी तो कोई होना चाहिए ना इसलिए कह रहा था मैं। "
"आप फिकर मत करो। मैं अकेली कहां! रिया है ना मेरे साथ। मैं उसे अच्छे से समझा दूंगी सारी बातें। फिर किरण भी आजकल मेरे पास आ जाती है और मेरे साथ घर के 1 -2 काम भी करवा देती है। वह तो कहती है दीदी बस आप आराम करो। मैं कर दूंगी काम लेकिन मैंने उसे रोक देती हूं। सच- बहुत ही सीधी लड़की है। उसके साथ मन लगने लगा है मेरा और रिया का तो वह मुझसे ज्यादा ध्यान रखती है।"
"यह तो अच्छी बात है लेकिन शिवानी उससे ज्यादा मेलजोल बढ़ाना सही है क्या!"
"क्या मतलब मैं समझी नहीं! " शिवानी हैरानी से दिनेश की ओर देखते हुए बोली।
"बस मेरे कहने का मतलब यह है कि तुम ही कह रही थी ना उसके व उसके पति में बनती नहीं। लड़ाई झगड़ा रहता है। उसके पति का स्वभाव भी सही नहीं। ऐसा ना हो किसी दिन किरण के हमारे यहां आने जाने पर ही झगड़ा करने लग जाए। वैसे भी किरायेदारों से ज्यादा मेलजोल मुझे तो पसंद नहीं। आगे तुम्हारी मर्जी।"
"हां, मैं भी तुम्हारी बातों से सहमत हूं लेकिन जब उस मूक गाय जैसी लड़की को देखती हूं तो सारी बातें भूल जाती हूं। पता नहीं उसे क्या दुख है। जिसे वह कहती ही नहीं। इतना मुझे पता है रिया के साथ खेलकूद और मेरे पास बैठ उसे
काफी सुकून मिलता है और उसके चेहरे पर मुस्कान दिखाई देती है। मैं उससे उसके सुकून के पल नहीं छीनना चाहती।"
काश! उस दिन मैंने दिनेश की बात मान ली होती तो मेरी जिंदगी का सुकून ना छिनता। सोचते हुए शिवानी ने ठंडी आह भरते हुए करवट बदली।
क्रमशः
सरोज ✍️