Journey to the center of the earth - 29 in Hindi Adventure Stories by Abhilekh Dwivedi books and stories PDF | पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 29

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 29

चैप्टर 29

पानी पर - बेड़े की नाव।

अगस्त के तेरहवें दिन हम यथासमय उठ गए थे। समय बिल्कुल नहीं गंवाना था। अब हमें एक नए प्रकार की सवारी से शुरुआत करनी थी, जिससे कि बिना थकावट के तेजी से आगे बढ़ने में सहायता हो।
लकड़ी के दो टुकड़ों से बना एक मस्तूल था जिसे अतिरिक्त ताकत देने के लिए एक और वैसा ही बनाया गया और हमारे बिस्तर की चादर से बाँध दिया गया था। सौभाग्य से हमें मस्तूल की ज़रूरत नहीं थी, और इन सारी कोशिशों से सब पूरी तरह से ठोस और योग्य दिख रहा था।
सुबह छह बजे, जब उत्सुक और उत्साही प्रोफेसर ने चलने का संकेत दिया, तो सारे रसद, सामान, हमारे सभी उपकरण, हमारे हथियार और पीने के लिए भरपूर पानी, जो हमने चट्टानों के फव्वारों से एकत्र की थी, सब बेड़ा पर रख दिया गया।
हैन्स में काफी सरलता थी शायद इसी वजह से वो एक पतवार के सहारे इस तैराकी उपकरण को आसानी से खे रहा था। हैन्स जैसा योग्य आदमी उतना ही अच्छा नाविक भी था जितना वह एक मार्गदर्शक और बतख शिकारी था। फिर मैंने उस चित्रमय किनारे को पीछे छोड़ दिया जहाँ हम पहले थे, पाल को हवा में लाया गया, और आगे बढ़ने के लिए हमने तेजी से रास्ता बनाया।
हमारी समुद्री यात्रा की शुरुआत हो गई थी; और एक बार फिर से हम दूर और अज्ञात क्षेत्रों के लिए आगे बढ़ रहे थे।
जैसे ही हम उस छोटे बंदरगाह को छोड़ने वाले थे, जहाँ पर इस नाव का निर्माण किया गया था, मेरे मौसाजी, जो भूगौलिक नामकरण में बहुत माहिर थे, इसे एक नाम देना चाहते थे, और अन्य नामों में मेरा नाम भी सुझाया।
"अच्छा," मैंने कहा, "फैसले से पहले मैं एक और नाम सुझाना चाहता हूँ।"
"अच्छा। तो बताओ।"
"मैं इसे ग्रेचेन का नाम से पुकारना चाहूँगा। हमारे भविष्य के मानचित्र पर ग्रेचेन बंदरगाह नाम बहुत अच्छा लगेगा।"
"फिर ठीक है, ग्रेचेन बंदरगाह ही रखते हैं।" प्रोफ़ेसर ने कहा।
और इस प्रकार मेरी प्रेयसी की याद हमारे इस साहसिक और यादगार अभियान से जुड़ गयी थी।
जब हमने किनारे को छोड़ा था तब हवा उत्तर और पूर्व की ओर से बह रही थी। इस बेड़ा से उम्मीद की तुलना में भी हम बहुत अधिक गति से हवा के साथ चले जा रहे थे। उस गहराई में भी वायुमंडल की घनी परतों में प्रणोदी शक्ति थी और इस नाव पर काफी बल के साथ काम कर रहे थे।
एक घंटे के बाद, मेरे मौसाजी, जो कि सावधानीपूर्वक निगरानी कर रहे थे, उस वेग को समझने में कामयाब हुए जिस तेजी से हम आगे बढ़ रहे थे। यह ऊपरी दुनिया में देखी गई किसी भी चीज़ से बहुत परे था।
"अगर," उन्होंने कहा, "हम अपने वर्तमान वेग से आगे बढ़ना जारी रखते हैं, तो चौबीस घंटों में हम कम से कम तीस लीग की यात्रा कर चुके होंगे। एकमात्र इस बेड़ा के साथ यह लगभग अविश्वसनीय वेग है।"
मैं निश्चित रूप से आश्चर्यचकित था, और बिना कोई जवाब दिए बेड़े पर आगे बढ़ गया। उत्तरी तट क्षितिज रूपी किनारे से पहले ही दूर जा चुका था। दोनों किनारे हमारे प्रस्थान के लिए एक विस्तृत और खुली जगह छोड़कर, खुद से अधिक और अलग होते से दिखने लगे। इससे पहले मैं इस विशाल और स्पष्ट रूपी असीम समुद्र पर कुछ भी नहीं देख सकता था, जिसपर हम सवार थे और एकमात्र जीवित प्राणी थे।
विशाल और काले बादलों ने अपनी धूसर छाया नीचे डाली - ऐसी छाया जो अपने वजन से उस रंगहीन और खारे पानी को कुचल रही थी। उदासीनता के लिए ऐसा सुझाव और भय के लिए इस क्षेत्र के अंधेरे जैसा माहौल मैंने कभी नहीं देखा था। यहाँ-वहाँ पानी के कुछ छींटों पर विद्युत प्रकाश की किरणें चमकती और परिवर्तित होती रहती थीं और इसी तरह बेड़ा की छाल को भी कुछ समय तक चमकदार बनाये रखते थे। वर्तमान में हम भूमि की दृष्टि से पूरी तरह से बाहर थे: न तो कोई भंवर देखा जा सकता था, न ही कोई संकेत कि हम कहाँ जा रहे थे। हम इतने स्थिर और गतिहीन थे कि अपनी आँखों से और कुछ नहीं देख पा रहे थे, जब फॉस्फोरिक प्रकाश पर नज़र पड़ी जो इस बेड़ा के तीव्र होने पर निकल रहे थे तब मुझे समझ में आया कि अभी तक हम ज़्यादा स्थिर और गतिहीन थे।
लेकिन मुझे पता था कि हम बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे थे।
दिन के करीब बारह बजे समुद्री शैवाल के विशाल संग्रह की खोज हमारे चारों तरफ की गई थी। मुझे इन पौधों की असाधारण शक्तियों के बारे में पता था, जो विशाल महासागरों के तल में लहरों के साथ रेंगने के लिए जाने जाते हैं, और बड़े जहाजों की गति को रोकते हैं। लेकिन कभी भी ऐसे विशाल और बेमिसाल समुद्री शैवाल नहीं देखे गए थे जैसा इस मध्य सागर में मिले थे। मैं अच्छी तरह से समझ सकता हूँ कि, जो एक दूरी से देखा जा सकता है, लहरों के शिखर पर जिस तरह से शैवाल उछल रहे हैं, तैर रहे हैं और उनकी एक लंबी कतार किसी जीवित प्राणी की तरह दिखती है, इन्हीं से समुद्री नागों के होने का विश्वास उपजा होगा।

हमारा बेड़े ने उन समुद्री शैवाल जैसे कुछ नमूनों को पार किया जो तीन-चार हजार फीट में अविश्वसनीय रूप से लंबे थे, जो हमारे क्षितिज से बहुत दूर तक फैले हुए सांपों की तरह दिखते थे। इससे मुझे इस वानस्पतिक पट्टी, जिसमें अंतहीन लंबाई थी, पर टकटकी लगाने का मौका मिला और शानदार मनोरंजन हुआ। घण्टे भर का समय बीतने के बाद भी इन तैरते शैवालों का अंत नहीं दिख रहा था। जैसे मेरी विस्मय में वृद्धि हुई थी, वैसे ही मेरा धैर्य भी अच्छी तरह से समाप्त हो गया था।
किस प्राकृतिक बल ने संभवतः ऐसे असामान्य और असाधारण पौधों का उत्पादन किया होगा? शताब्दियों से पहले अपने गठन के दौरान, गर्मी और आर्द्रता की संयुक्त कार्रवाई के तहत, जब वानस्पतिक साम्राज्य ने अपने विशाल सतह के लिए बाकी सभी चीजों पर कब्जा कर लिया था, तब पृथ्वी का रूप क्या रहा होगा?
ये कभी न खत्म होने वाले विचार थे जो भूविज्ञानियों और दार्शनिकों के हित के लिए थे।
इस दौरान हम अपनी यात्रा पर आगे बढ़ रहे थे; और रात लंबी आ गई थी: लेकिन जैसा कि मैंने शाम को टिप्पणी की थी, वातावरण की चमक में ज़रा भी कमी नहीं थी। जो भी कारण रहा हो, यह एक ऐसी घटना थी जिस पर हम निश्चितता के साथ गणना कर सकते हैं।
जैसे ही सबने मिलकर भोजन निपटाया, और कुछ छोटे-मोटे वार्तालाप में लिप्त हुए, मैंने खुद को मस्तूल के किनारे तक फैला लिया, और वहीं सो गया।
हैन्स पतवार के साथ स्थिर था, जिससे कि ये नाव लहरों पर खुद उठ और गिर रहे थे। हवा पिछाड़ी थी, और पाल वर्गाकार, इसलिए उसे पतवार को सिर्फ केंद्र में रखना था।
जब से हमने नव नामित पोर्ट ग्रेचेन से अपनी विदाई ली थी, मेरे योग्य मौसाजी ने मुझे अपने दिन के दिशाज्ञान का एक नियमित रोजनामचा रखने के लिए आदेश दिया था, साथ ही सबसे दिलचस्प पल, हर दिलचस्प और उत्सुक घटना को लिखने के लिए निर्देश दिए थे, हवा की दिशा, नौकायान के वेग, दूरी जितनी पूरी की; संक्षिप्त में कहूँ तो हमारे असाधारण यात्रा की हर घटना का विवरण उसमें लिखना था।
इसलिए रोजनामचा से ही मैं मध्य सागर पर हमारे यात्रा की कहानी बताता हूँ।
शुक्रवार, 14 अगस्त। उत्तर पश्चिम से एक स्थिर हवा। हमारा नाव चरम उग्रता के साथ आगे बढ़ते हुए पूरी तरह से सीधे जा रहा था। तट अभी भी लगभग तीस लीग की दूरी पर दिखाई दे रहा था। सामने क्षितिज के पार कुछ भी नहीं दिखाई पड़ रहा था। प्रकाश की असाधारण तीव्रता ना तो बढ़ती है और ना ही कम होती है। यह विलक्षण रूप से स्थिर है। मौसम उल्लेखनीय रूप से ठीक है; कहने का तात्पर्य यह है कि, बादल बहुत ऊँचाई पर हैं, हल्के हैं और क्षणभंगुर हैं, और जिस वायुमंडल से घिरे हैं वो संलयन में चांदी जैसा दिखता है।
थर्मामीटर, +32 डिग्री सेंटीग्रेड।
दिन के बारह बजे हमारे गाइड हैन्स ने एक हुक तैयार किया और उसे भूमिगत पानी में डाल दिया। हुक में जिस चारा का उपयोग किया गया था वह मांस का एक छोटा सा टुकड़ा था, जिसे उसने अपना हुक में छुपाया हुआ था। मैं जो एक लंबे समय से निराशा में था, अचानक से बेचैन हो गया। क्या इस पानी में मछली भी हैं? यह महत्वपूर्ण प्रश्न था। नहीं - यह मेरा तय जवाब था। फिर वहाँ अचानक से उसमें कठिन खिंचाव आया। हैन्स ने शांत रूप से इसे बाहर निकाल लिया, और इसके साथ एक मछली निकली, जो भागने के लिए हिंसक रूप से संघर्ष कर रही थी।
"मछली!" मेरे मौसाजी चहके।
"यह एक स्टर्जन (समुद्री मछली) है!" मैं भी चीखा, "निश्चित रूप से एक छोटा सा स्टर्जन।"
प्रोफ़ेसर ने मछली को सावधानीपूर्वक जांचा, हर विशेषता पर ध्यान दिया: और वह मेरी राय से मेल नहीं खाता था। मछली का एक सपाट सिर, गोल शरीर और निचले हिस्से पर अस्थिमय तराजू का ढकाव था: इसका मुँह पूरी तरह से बिना दाँत के था, इसके पंखुड़ीनुमा पंख जो अत्यधिक विकसित थे, शरीर से सीधे अंकुरित हुए थे, और सही मायने में इसकी कोई पूँछ नहीं थी। जानवर निश्चित रूप से उस क्रम से संबंधित था जिसमें प्रकृतिवादी स्टर्जन को एक खास श्रेणी में रखते हैं, लेकिन यह कई आवश्यक विवरणों में उस मछली से भिन्न था।
मेरे मौसाजी आख़िरकार ग़लत नहीं थे। एक लंबे और धैर्यपूर्वक परीक्षण के बाद, उन्होंने कहा:
"यह मछली, मेरे प्रिय भांजे, एक ऐसे परिवार से है जो सदियों से विलुप्त है, और जिसके कोई भी निशान अभी तक धरती पर नहीं मिले हैं, सिवाय जीवाश्म के जो देवोनियन स्तर में हैं।" "कहीं आपके के कहने का मतलब यह तो नहीं है," मैं भावुक था, "कि हमने विलुप्त होती प्रजातियों से संबंधित किसी मछली के एक जीवित नमूने पर कब्जा कर लिया है, जो कभी जलप्रलय से पहले मौजूद था?"
"हमारे पास है," प्रोफेसर ने कहा, जो इस समय भी अपने निरीक्षण को जारी रखे हुए थे, "और तुम इसे सावधानीपूर्वक जांच करके देख सकते हो कि इन जीवाश्म मछलियों की मौजूदा प्रजातियों के साथ कोई पहचान नहीं है। इसलिए, एक हाथ में जो पकड़ा है वो एक जीवित नमूना है जो जीवन में किसी प्रकृतिवादी को खुश करने के लिए पर्याप्त है।"
"लेकिन," मैं अधीर था, "यह किस परिवार से है?"
"गनोइड्स की मान्यता अनुसार - मछली का एक कोणीय तराजू है, जो चमकीले तामचीनी से ढका हुआ है, इस हिसाब से ये सेफलस्पाइड्स के परिवार में से एक होगा, या प्रजाति का -"
"ठीक है," मैंने टिप्पणी की, क्योंकि मैंने अपने मौसाजी को निष्कर्ष निकालने में संकोच करते देख लिया था।
"हाँ, र्टिकटिस प्रजाति से। मैं इसके बारे में निश्चित हूँ। हालाँकि मैं अपने अनुमान को लेकर आश्वस्त हूँ, फिर भी यह मछली हमारे ध्यान आकृष्ट करने के लिए एक उल्लेखनीय विशिष्टता दिखा रही है, जिसे किसी अन्य मछलियों में नहीं पाया गया है, खासकर उनमें जो ऐसे भूमिगत जल, कुएँ, झील, गुफाओं में और इस तरह के छिपे हुए ताल में विचरते हैं।
"और वह क्या हो सकता है?"
"वह अंधा है।"
"अंधा!" मैं आश्चर्य से चीख पड़ा।
"सिर्फ अंधा ही नहीं," प्रोफ़ेसर ने कहना जारी रखा, "देखने के लिए वो अंग ही नहीं है।"
अब मैंने इस खोज का खुद निरीक्षण किया। एक बार के लिए मान सकता था लेकिन ये वाक़ई सच में ऐसा ही था। मैंने सुझाव दिया कि ये एक अपवाद भी हो सकता है। एक बार फिर से मछली पकड़ने वाले कांटा डाला गया। इस भूमिगत समुद्र में बहुसंख्य मछलियाँ थीं क्योंकि मात्र दो ही घण्टे में हमने र्टिकटिस और दूसरी विलुप्त प्रजाति - डिप्टेराइड्स ( ऐसी मछलियाँ जिनके सिर्फ दो ही पंख होते हैं) मछलियों को काफी मात्रा में इकट्ठा कर लिया था, हालाँकि मौसाजी उन्हें किसी श्रेणी में बांट नहीं पा रहे थे। जबकि सारी मछलियाँ असाधारण तरीके से अंधी थीं। इस अचानक की जीत से हमारे रसद में पर्याप्त मात्रा की बढ़त हो गयी थी।
अब हमें यकीन हो गया था कि इस भूमिगत सागर में वही मछलियाँ थीं जिन्हें जीवाश्म नमूनों के जरिये जाना गया था - और मछली, सरीसृप, अपने मूल काल से ही एक समान रूप में होकर अधिक परिपूर्ण थे।
अब हमें उम्मीद थी कि हमें छिपकली की प्रजाति से भी कुछ मिलने चाहिए जिसे विज्ञान ने हड्डियों या उपास्थि के माध्यम से संगठित कर एक सफलता हासिल की है।
मैंने दूरबीन उठाकर बारीकी से क्षितिज का निरीक्षण शुरू किया - समुद्र के चारों ओर देखा, वो हर तरफ से निर्जन था। इसमें कोई संदेह नहीं था कि हम अभी भी तट के बहुत करीब थे।
महासागर का निरीक्षण करने के बाद, मैंने ऊपर अजीब और रहस्यमय आकाश की ओर देखा। क्या इस भूमिगत हवा के सुस्त स्तर में अनश्वर क्यूवियर द्वारा नव निर्मित पक्षियों में से किसी एक को अपने शानदार पंखों को फैलाना नहीं चाहिए? बेशक उन्हें इस समुद्र में मछली से काफी पर्याप्त भोजन मिल जाएगा। मैं ऊपर शून्य को देखते हुए कुछ समय के लिए चकित था। यह उतना ही मौन और उतना ही निर्जन था जितना कि वो किनारा जिसे हमने हाल ही में छोड़ दिया था।
फिर भी, मैं ना तो देख सकता था और ना ही कुछ खोज सकता था, मेरी कल्पनाओं ने मुझे किसी अनियंत्रित परिकल्पनाओं में जकड़ लिया था। मैं एक तरह के जाग्रत सपने में था। मुझे लगा कि मैंने पानी की सतह पर द्वीपों जितने बड़े विशाल एंटीडिल्यूवियन (प्राचीन काल के) कछुओं को तैरते हुए देखा था। उन निराश और सुस्त तटों पर, शुरुआती दिनों के स्तनधारियों की एक वर्णक्रमीय पंक्ति गुज़री थी, जिसमें महान लिप्टोथेरियम जो ब्राजील की पहाड़ियों की गुफाओं में पाये जाते हैं, मेसिकोथेरियम, साइबेरिया के हिमनदों के मूल निवासी थे।
आगे बढ़ने पर दृढ़ त्वचीय प्राणी लोफ़रोडन, विशालकाय टैपिर (सुअर की प्राजित का) जैसा, जो चट्टानों के पीछे छुपा हुआ था, अपने शिकार के लिए अनोप्लोथेरियम से लड़ाई करने के लिए तैयार था, जो गैंडे, घोड़े, दरियाई घोड़े और ऊंट की प्रकृति का एक विलक्षण जानवर है।
वहाँ एक विशालकाय मस्टोडन था, जो अपनी डरावनी सूँड़ को घुमा रहा था, जिससे उसने किनारे की चट्टानों को कुचल कर धूल बना दिया था, जबकि मेगथेरियम - उसकी पीठ ऐसे उठी जैसे कोई जुनूनी बिल्ली हो, अपने विशाल पंजे फैलाकर, भोजन के लिए धरती को खोदते हुए उसी समय उस मनोरम स्थान को उसने अपनी भयानक गर्जन से हिला दिया।
ऊपरी तरफ भी, दुनिया में देखा जाने वाला पहला बंदर उन ग्रेनाइट की पहाड़ियों पर उछल कूद, कलोल करते खेलता दिख रहा है। एक विशालकाय चमगादड़ की तरह एक पक्षी-सर्प अपने पंख वाले हाथ से इस तेज दबी हवा के माध्यम से भागा था, जो अब काफी दूर है।
सबसे ऊपर, मुख्यतः ग्रेनाइट रूपी आकाश के पास, दुनिया भर के पक्षी थे जो कैसोवरी और शुतुरमुर्ग की तुलना में अधिक शक्तिशाली थे और अपने शक्तिशाली पंखों को फैलाते हुए इस अंतः समुद्र के विशाल पत्थर की छत के सामने फड़फड़ा रहे थे।
मैंने सोचा, यह सिर्फ मेरी कल्पना का प्रभाव था कि मैंने एंटीडिल्यूवियन जीवों की इस पूरी जमात को देख लिया। मैं अपने आप को वापस उन युगों तक ले गया, जब मनुष्य का अस्तित्व नहीं था, वास्तव में उस काल से भी पहले, जब उनके लिए पृथ्वी रहने के लिए सही नहीं थी।
मेरा सपना मनुष्य के अस्तित्व से पहले अनगिनत युगों वाला था। जब सबसे पहले स्तनधारी गायब हो गए, फिर शक्तिशाली पक्षी, फिर द्वितीयक काल के सरीसृप, वर्तमान में मछली, कड़े खोल वाले जानवर, घोंघे और अंत में कशेरुकी जंतु। पारगमन की अवधि के दौरान पादप प्राणी बदलते हुए विनाश में डूब गए।
ऐतिहासिक काल से पहले की दुनिया के जीवन का संपूर्ण चित्रण फिर से बनता हुआ दिख रहा था, और मेरा एकमात्र मानव हृदय था जो इस अमानवीय दुनिया में धड़क रहा था! यहाँ मौसम अधिक नहीं थे: जलवायु अधिक नहीं था; विश्व की प्राकृतिक गर्मी बेतहाशा बढ़ गई थी, और उस महान सूर्य की बेअसर हो गई थी।
वनस्पति को असाधारण तरीके से अतिरंजित किया गया था। मैं छाया की तरह उन झाड़ियों के बीच से गुज़रा, जो कैलिफोर्निया के विशाल पेड़ों की तरह बुलंद थे और विभिन्न वनस्पतियाँ यहाँ की सिली हुई नमी युक्त मिट्टी में कुचले हुए थे जिनसे लगातार दुर्गंध आ रहे थे।
मैंने विशाल पेड़ों के तनों के सहारे टेक लिया, जो दिखने में कनाडा के फ़र्न जैसे थे। एक दिन में ऐसा लगा जैसे पूरी उम्र बीत गई, सैकड़ों साल निकल गए हैं।
अगला पल, मेरे सामने स्थलीय परिवर्तनों की महान और चमत्कारिक श्रृंखला आयी जो किसी चित्रमाला से कम नहीं लग रहा था। अब पौधे गायब हो गए; ग्रेनाइट के दानेदार चट्टानों के ठोसपन से बने सभी निशान गुम थे; पुराने अस्तित्व को बदल कर अचानक तरल अस्तित्व को इसके लिए प्रतिस्थापित किया गया था। यह पृथ्वी के जैविक पदार्थों पर तीव्र गर्मी के कारण होता था। भूमण्डल पर हर कहीं पानी बह रहा था; जो उबले; फिर वाष्पीकृत हो गए जिससे एक प्रकार का वाष्प बादल पृथ्वी के भूमण्डल से लिपट गया, इस वजह से भूमण्डल अपने आप गैस का एक विशाल गोला बन रहा था जिसके रंग अवर्णनीय हैं, ताप के साथ सफेद और लाल रंग के बीच, सूर्य जितना बड़ा और शानदार दिख रहा था।
इस विलक्षण पिंड के केंद्र में, मैं ऐसे घुमा जैसे पृथ्वी के चौदह सौ हज़ार बार चक्कर लगाकर, अंतरिक्ष में ग्रहों के सबसे करीब आ गया हूँ। मेरा शरीर ऐसे उड़ रहा था जैसे, अस्थिर होकर, परमाणु वाष्प की स्थिति में विलक्षण बादलों के साथ अनंत अंतरिक्ष में एक शक्तिशाली धूमकेतु की तरह आगे बढ़ा जा रहा हो!
कितना असाधारण सपना है! यह आखिर मुझे कहाँ ले जाएगा? मेरे कमज़ोर हाथों ने इन लुभावने विवरणों को लिखना शुरू किया - वो विवरण जो वास्तविक और जीवित होने के बजाय पागलपन की हद तक काल्पनिक थे। इस मतिभ्रम अवस्था के दौरान मैं सबकुछ भूल चुका था - प्रोफ़ेसर, हैन्स, वो नाव जिसपर हम सवार थे। मैं उस समय अधविस्मृति अवस्था में था।
"क्या बात है हैरी?" मेरे मौसाजी ने अचानक पूछा।
मेरी आँखें, जो उस वक़्त किसी निद्राचारी की तरह खुली हुई थीं, उनपर स्थिर हो गयी, लेकिन ना तो मैंने उन्हें देखा और ना ही मैं स्पष्ट रूप से अपने आसपास कुछ भी समझ पा रहा था।
"ध्यान रखो, मेरे बच्चे," मेरे मौसाजी ने फिर भावुकता से कहा, "तुम समुद्र में गिर जाओगे।"
जैसे ही उन्होंने ये शब्द कहे, मुझे लगा जैसे हमारे समर्पित मार्गदर्शक के दृढ़ हाथ ने मुझे दूसरी तरफ पकड़ लिया था। यदि यह हैन्स के दिमाग की उपज नहीं होती, तो मैं अवश्य ही लहरों में गिरकर डूब जाता।
"क्या तुम पागल हो गए हो?" मेरे मौसाजी ने भावुकता के साथ मुझे झकझोरा।
"क्या? क्या बात है?" होश में आने के दौरान मैंने पूछा।
"क्या तुम बीमार हो हेनरी?" चिंतित स्वर में प्रोफेसर ने अपना सवाल जारी रखा।
"नहीं-नहीं। लेकिन मैंने एक असाधारण सपना देखा है। हालाँकि, अब यह टूट गया है। अब सब ठीक है।" मैंने अजीब सी हैरान आँखों से अपने चारों ओर देखते हुए कहा।
"फिर ठीक है।" मेरे मौसाजी ने कहा: "एक सुंदर हवा, एक शानदार समुद्र। हम तेजी के साथ आगे जा रहे हैं, और अगर मैं अपनी गणना में ग़लत नहीं हूँ, तो हम जल्द ही ज़मीन को देखेंगे। मुझे भूमिगत समुद्र के रहस्यमय तट के लिए इस सीमित संकरे नाव से समझौता करने में कोई अफसोस नहीं होगा।"
जैसे ही मेरे मौसाजी ने इन शब्दों को कहा, मैंने उठकर ध्यान से क्षितिज का निरीक्षण किया। लेकिन पानी की रेखा अभी भी छोटे बादलों के साथ उलझी हुई थी जो ऊपर से लटके हुए थे और दूर से पानी के किनारे को छूते दिख रहे थे।