loc-love oppose crime - 11 in Hindi Crime Stories by jignasha patel books and stories PDF | एलओसी- लव अपोज़ क्राइम - 11

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एलओसी- लव अपोज़ क्राइम - 11

अध्याय -11

दिनही चढ़े दिन उतरै , सो तो प्रेम न होय
अघट प्रेम पिंजर बसै,प्रेम कहावै सोय
अकथ कहानी प्रेम की, कहू कही न जाई
गूंगे केरी सरकए, जो बैठे मुस्काए
कहना था सो दिया, अब कुछ कहना नाही
एक रही दूजी गई, बैठा दिया मांहि
नर और नारी अपनी प्राकृतिक एवं सांचनात्मक भिन्नता की तरह प्रेम के प्रति अपनी आस्थामें भी भिन्नता रखते हैं । नारी अपनी अतिशय कोमलता, नैसर्गीक संवेदनशीलता एवं अपनी सामाजिक स्थिति के चलते नर की तुलना में प्रेम को कही अधिक गहरे में जीती है । नर की तरह उसका प्रेम छलावा या सिर्फ बाहरी दिखावा मात्र नहीं होता, आवश्यकता पड़ने पर वह प्रेम के नाम पर अपने आप को न्योछावर कर देती है ।
नंदिनी की परेशानी बढ़ती ही जा रही थी । कभी कुछ पता चलने वाला होता है कि कुछ न कुछ समस्या आ ही जाती है ।अब तो उसका शक यकीन मे बदल चुका था कि अभिनव के साथ जरूर कुछ अनहोनी हुई है । अभिनव की चिंता उसे और सताने लगी थी ।
नंदिनी और रीनी कुछ बहाना करके घर से बाहर निकलकर नव्या से मिलने गए । परन्तु नव्या अब भी वहां नहीं थी । उसका फोन भी नहीं लग रहा था । नंदिनी की चिंता बढ़ गई । नव्या की सहेलियां भी कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाई । अब क्या होगा? अब क्या होगा? यह सवाल नंदिनी के सिर पर तलवार की तरह मंडरा रहा था । उलझने सुलझने की बजाय और उलझती जा रही थी ।
घर लौटते ही नंदिनी को लगा कि मां की नजरो के तेवर कुछ बदले बदले से है । ऐसा क्यों है? नंदिनी समझ न पाई ।
* * * * *
"नंदिनी, नंदिनी... उठो... उठो ।" रीनी की आवाज ने नंदिनी को चौका दिया ।
" क्या हुआ...? " नंदिनी घबरा गई ।
"सुनो, मेरे पास अभी -अभी नव्या की दोस्त लावन्या का फोन आया था । वो मिलना चाहती है । अभी! इसी वक़्त ।"
"ओह! पर ऐसा कैसे हो पाएगा? अब क्या बहाना बनाई? "
" आप सोचो? "
" तुम ऐसा करो कि लावन्या को मैसेज कर दो कि हम अभी उससे नहीं मिल सकते । वो हमें कॉल न करें, हम मौका मिलने पर उसे कॉल करेंगे । "
" जी । "
" और हा शायद उसके पास कोई महत्वपूर्ण सुचना हो । उसके कहो कि इस बारेमे किसी को कुछ न बताए । " नंदिनी ने आगे कहा, " रीनी यह एक अच्छी सुचना है । पर हमें बेहद सावधान रहना होगा । "
" हा नंदिनी, तुम ठीक कह रही हो । इस बार बेहद सावधानी से काम लेना होगा । किसी पर भी भरोषा नहीं कर सकते हम । "
" सही है रीनी... और सुनो... तुम चुपके से किशोर से मिलो, उसका फोन लो, उससे लावन्या को फोन करना, अपने फोन से नहीं । " नंदिनीने धीमे स्वर में कहा ।
" हा नंदिनी, यही सही रहेगा । "
* * * * *
रीनी सोच रही थी कि ये दिन नंदिनी की जिंदगी के सबसे दुःखद और वियोगपूर्ण दिन थे । अभी के अचानक गायब होने के बाद चिंता मे नंदिनी आधी होती जा रही थी । खाना -पीना तो उन्होंने जैसे छोड़ ही दिया था । जब मौका मिलता एकांत में बैठकर अभी की तस्वीर को देखते देखते आंसू बहाने के सिवाय उसके पास और कोई काम नहीं रह गया था । बाकी समय अभी के बारेमे पता लगाने में बीतता । रीनी उन्हें अक्सर समझाती, " यह स्थिति बहुत दिनों तक रहने वाली नहीं । अभिनव जरूर वापस आएंगे । भला प्रेम को इस दुनिया में कोई रोक सका है? सच्चे प्रेम की विजय सदियों से होती आई है । फंस गये होंगे अभिनव किसी मुसीबत में । कोई घटना घट गई होंगी उसके साथ! बीच -बीच में आने वाली ये अडचने सच्चे प्रेम की परीक्षा लेती है और उसे अधिक और निखारती है । वह प्रेम ही क्या जिसे वियोग और वेदना की आग में तपाकर चमकाया नहीं गया...। अभिनव सच्चा प्रेमी है । वह मरते दम तक तुम्हे नहीं छोड़ेगा । तुम्हे इस तरह अधीर हो अपना स्वास्थ्य नहीं ख़राब करना चाहिए । वह लौटेगे तो तुम्हारे स्वास्थ्य की यह हालत देखकर बहुत दुखी हो जायेंगे । " पर इतनी सांत्वना के बाद भी नंदिनी पर कोई फर्क नहीं पड़ता ।
* * * * *
टैरेस पर झूले में बैठी नंदिनी विचारों में इतना खोई हुई थी कि उसकी मां कब आकर पास बैठ गई, यह भी उसे पता नहीं चला ।
" बेटा नंदिनी, कॉफी पियोगी? " नंदिनी के विचारो की श्रृंखला टूटी ।
" नहीं मां....! मन नहीं है । और मुझे परेशान न करो । " नंदिनी भड़क गई । मां ने चुप्पी साध ली ।
नंदिनी की नजर मां के चेहरे पर टिक गई । वह देखती रही! बस देखती रही । मां के अनेक रूप उसके मानस पटल पर एक के बाद एक आने लगे । सभी रूप एक दूसरे से एकदम अलग । और अभी का रूप तो पिछले सभी रूपों से एकदम जुदा । नंदिनी को याद आया बचपन में खेलते हुए जब उसे जरा सी भी चोट लग जाती थी तो यही मां तङप उठती थी । उसका रोम -रोम रो उठता था । पर आज इसी मां की वजह से उसका मन घायल है । रोम -रोम दर्द से तड़प रहा है, पर मां एकदम शांत है । मां पर कोई असर नहीं दीखता । फ़िरभी कभी कभी नंदिनी का मन करता था कि मां के गले जोर से लग जाए । मां की गोद में सिर रखकर जोर -जोर से रोए । पर वो ऐसा नहीं कर पाती थी । इस तरह का अपनापन अब मां -बेटी के बीच नहीं रह गया था ।एक समय नंदिनी के घर का माहौल मां की वजह से, कुछ ठीक नहीं था । मां -पिता के सबंधों के मामले मे भी उसने हमेशा एक अजीब प्रकार की दूरिया देखी । कभी भी मां की आंखो में पिता के लिए प्यार नहीं देखा । नंदिनी कभी इसकी वजह समझ नहीं पायी । उसे हर बात पर रोका टोका जाता था । पर रोक लगा देने से इच्छाए समाप्त नहीं होती, बल्कि ज्यादा बढ़ती है और गलत दिशा की और प्रस्थान करती है । मां की यही रोक -टोक नंदिनी को मां से दूर ले जा रही थी ।यही सब बातों की वजह से नंदिनी का घर एक निर्मम जगह बन गया । क्रूर, कठोर व पत्थरदिल जंगल की की तरह और यहां लागू होने वाले कानून भी जंगली बन गए । यहां जो सबसे ज्यादा ताकतवर है, वही जिंदा रहता है । यहां एक शिकारी है दो इसके शिकार । लिहाजा अकेलापन नंदिनी का साथी बन गया ।
वो तो रीनी की वजह से नंदिनी अपने को संभालने में कामयाब हो गई अन्यथा घर के माहोल ने उसे तोड़ने में कोई कसर नहीं छोडी थी । पिता तो ठीक रहे पर मां का प्यार नंदिनी ने खो दिया । मां के प्यार के दो शब्द सुने उसे जमाना हो गया था । जिंदगी की दौड़ में कुछ ज्यादा आगे निकल गई उसे निकाल दिया गया, यह बात वो तय नहीं कर पाई थी, पर यह सच था कि प्यार और अपनेपन के लिए वो तरस जाती थी और यही तड़प व तरस धीरे-धीरे गुस्से का रूप लेने लगी । यह अभाव उसे और पीडा देने लगा । इसने उसे कब कठोर बना दिया, वह जान भी नहीं पाई । रीनी के मामले में हा वो पहले वाली ही नंदिनी थी । प्यार स्नेह से भरपूर क्योंकि एक रीनी ही थी जो नंदिनी को संभालती थी ।
पर आज मां के सामने नंदिनी अपने आप को रोक नहीं पाई । फूट -फूट कर रोते हुए नंदिनी ने मां को गले से लगा लिया ।
मां भी नंदिनी के आसुओं की धारा से भावुक हो गई । नंदिनी के पिता थोड़ी देर पहले ही बाहर गए थे । कई दिनों बाद मां -बेटी सुकून के कुछ पल आसुओं की धारा में सजा रही थी । वे भी बेटी को बाहों से जकड़कर रोने लगी । रोती रही । फिर नंदिनी के आंसू पोंछने लगी ।
अचानक नंदिनी ने मां को अपने से दूर कर दिया,' बस करो मां । बंद करो यह नाटक ।' मां हतप्रभ रह गई । वे कुछ बोल न पाई । दूसरी ओर नंदिनी रोते हुए बोलती रही -' मां क्यों किया मेरे साथ ऐसा? क्यों मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी? क्या कोई अपनी बेटी के साथ ऐसा करता है? बताओ मां! जवाब दो मां?
मां अनुत्तर रही । नंदिनी के एक भी सवाल का उनके पास जवाब नहीं था ।
* * * * *