loc -love oppos crime - 4 in Hindi Crime Stories by jignasha patel books and stories PDF | एलओसी- लव अपोज क्राइम - 4

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एलओसी- लव अपोज क्राइम - 4



नंदिनी के दर्द को दो और आंखें भी महसूस कर रही थी। वे आंखें भी रो रही थीं। वो दिल भी नंदिनी के साथ सिसकियां ले रहा था। ये थी रीनी। दर्द उसके पास भी था- प्यार में थोखा खाने का दर्द। इस पीड़ा को उससे बेहतर कौन समझ सकता है! उस दर्द से वो गुजर चुकी थी और उस वक्त यदि नंदिनी रीनी की सहायता नहीं करती तो शायद आज रीनी इस दुनिया में नहीं होती। उसका जीवन बचाने वाली, उसे एक नया जीवन देने वाली नंदिनी ही थी।
फिर आज रीनी कैसे नंदिनी के आंसू बर्दाश्त कर सकती थी? उसकी बेनूर जिंदगी में रोशनी लाने वाली नंदिनी आज रो रही थी और वो चाहकर भी उसका गम दूर नहीं कर पा रही थी।
' आज जिंदगी ने मुझे किस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया? मैं इतनी मजबूर क्यों बन गई हूं? मेरी जीवनदाता दुख के समंदर में डूबी है और मैं कुछ नहीं कर पा रही हूं! हे भगवान! क्यों मुझे इतना लाचार बना दिया?' रीनी का मन नंदिनी के पास जाने के लिए तड़प रहा था।
एक पल के लिए तो रीनी का मन हुआ कि नंदिनी के पास जाकर उसे हिम्मत बंधाए, पर दूसरे ही पल उसे उस ख्याल को झटकना पड़ा। वो इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाई। ऐसा नहीं था कि वो डर गई थी, पर वो नंदिनी को कमजोर नहीं देखना चाहती थी। उसने हमेशा नंदिनी को हिम्मतवर, तूफानों से टकरा जाने वाली, पहाड़ों का सीना चीरने की ताक़त रखने वाली, किसी भी परिस्थिति में न डरने वाली के रूप में देखा था, पर आज नंदिनी की सिसकियों ने उसे व्यथित कर दिया था। लिहाजा नंदिनी के कमरे में जाने का विचार उसने त्याग दिया। किंकर्तव्यविमूढ़ होकर वह थोड़ी देर तक यूं ही बैठी रही। बस बैठी रही। फिर वॉशरूम जाकर उसने मुंह धोया। ठंडे पानी ने उसे थोड़ी राहत दी। पर वह पानी उसकी आँखों के पानी को नहीं रोक सका। वह वॉशरूम के आईने में अपने को देखती रही।

* * *


नंदिनी की आंखों से बहते हुए आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। तकिया भीगता जा रहा था। वैसे, रोना- धोना, आंसू- निराशा, दर्द- निरुत्साह नंदिनी की पर्सनालिटी से बिल्कुल उलट बात थी।
पर्सनालिटी में एक प्रकार की मजबूती, औसत से कुछ ज्यादा लंबा कद, छरहरा बदन पर भरे हुए अंग, खूब साफ खुला हुआ रंग, नाक- नक्श तीखे पर इतने नहीं कि आंखों में चुभें, इसके विपरीत एक सहज कोमलता का अहसास होता जब लोग उसे देखते। रसभरे होंठ और बड़ी- बड़ी आंखें जिधर देखती उधर जैसे सरसता का सागर लुढ़का देती, पर आज इन आँखों से आंसुओं का दरिया बह रहा था।
नंदिनी का मन तकिए को बांहों में भींचकर जोर- जोर से रोने का हो रहा था। पर इंसान जो चाहता है, वो कहां कर पाता है?
नंदिनी की सोचों का क्रम कमरे के बाहर से आती आवाज से टूट गया। गैलरी में शायद कोई गाना सुन रहा था। नंदिनी की सिसकियों में उस ग़ज़ल की आवाज एकाकार होने लगी-

सिसक रही है मेरी जिंदगी गुनाहों में,
तड़प रही है मेरी आस इन पनाहों में।
तुम्हीं ने दी थी कभी रोशनी जमाने को,
मगर दे न सके अब ताब इन निगाहों में।
समझ न पाओगे तुम दर्द मेरे गीतों का,
छिपा है प्यार मेरा रागिनी के फाहों में।
मुझे भी चाहने वाला है कोई क्या प्रीता,
ये किसने फूल बिछाए हैं मेरी राहों में।
नंदिनी की सिसकियां धीरे-धीरे रुक गई। खामोश सन्नाटे ने पूरे कमरे पर कब्जा कर लिया था। इस खामोशी को घड़ी के कांटे की टिक-टिक की आवाज डिस्टर्ब कर रही थी। अपने आंसू पोछकर नंदिनी उठी, उसने वॉशरूम जाकर मुंह धोया और आईने में अपनी सूरत देखती रही। बिल्कुल रीनी की तरह......।

* * *


नंदिनी आईने को देखती रही। देखती रही। फिर अचानक चौंक पड़ी!..... उसे लगा कि आईने के भीतर कोई है? यह उसका भ्रम है क्या? आईने में कौन हो सकता है? ऐसी तो वो नहीं थी? और न ही उसने ऐसी जिंदगी की कल्पना की थी।
तो फिर ऐसा क्यों हुआ? उसके सिवा यहां पर कोई और तो हैं नहीं!.... एक बार उसने आईने की तरफ गौर से देखा।.... एक परछाई सी नजर आई उसे! अपरिचित। आईने के सामने वो है तो उसकी ही छवि दिखनी चाहिए? पर आईने के भीतर वाली परछाई उसे अजनबी क्यों लग रही है? अगर आईने के अंदर मान लिया जाए कि वही है तो फिर बाहर कौन है?
बाहर- भीतर की कशमकश में नंदिनी खुद से प्रश्न- प्रति प्रश्न करने लगी। बिना उत्तर के प्रश्न।..... उत्तर उसे कौन देता? परछाइयाँ कब से उत्तर देने लगी? पर नंदिनी को तो उत्तर चाहिए! उत्तर मिल नहीं रहा था। वह एक के बाद एक प्रश्न किए जा रही थी। इससे पहले कि प्रश्न व उत्तर के बीच की जंग का खामियाजा आईने को भुगतना पड़ता, नंदिनी ने अपने आप को संभालने की कोशिश की, लेकिन इस प्रक्रिया में उसका हाथ यंत्रवत आईने पर पड़ा और आईना नीचे गिरकर टूट गया।
आईने की टूटी हुई किरचों से खुद को बचाती हुई नंदिनी बाहर आई। पर्स से लक्की स्ट्राइक का पैकेट निकाल कर एक सिगरेट जलाया और उसके कश लेने लगी। सिगरेट के धुएं के छल्लों को देखकर सोचने लगी- ' काश, इस धुएं की तरह उसके सारे गम भी उड़ जाते!'
पर क्या यह मुमकिन था! अभिनव की यादों ने फिर से उस पर अपना घेरा बनाना शुरू कर दिया था। वो जितना भूलने की कोशिश करती, उतनी तेजी से यादें उस पर तारी हो जातीं। दिन तो जैसे- तैसे कट जाता था, पर रातें अभिनव की यादों से भरी होतीं, अभिनव ने उसे धोखा दिया, यह बात उसे हजम नहीं हो रही थी। वो कैसे धोखा दे सकता है?
नंदिनी को अल्फा में अभिनव के साथ डिनर करते समय की एक- एक बात याद है। तब अभिनव ने वही शर्ट पहनी थी जो उसने सहारागंज के एफबीबी से खरीदकर उसे दी थी। अभिनव की किसी बात पर नंदिनी ने उससे कहा था-
" मुझे देखो, सब चीजें हैं मुझमें। तुमसे मिलकर मैं मुकम्मल हो गई। मेरे पास फूलों के रंग हैं, भँवरों का गुनगुनाना है। सूर्योदय व सूर्यास्त की लालिमा है। नदियों की लहरें हैं, झीलों की शांति है। समंदर की खूबसूरती है, आसमान की असीमता है। बादल है, हिरन है, झरनों के गीत हैं। बारिश का संगीत है।
शरद का सौंदर्य है, इंद्रधनुष की गोलाइयाँ और उसकी शोखियां हैं। मेरे पास ताजिंदगी रहो। मेरे पास तुम्हारे लिए बहुत कुछ है। देखो, यह कैसा खजाना है जो खुदबखुद चलकर तुम पर समर्पित होने आया है।'तब मंत्रमुग्ध होकर अभिनव ने उसे चूमते हुए कहा था- " रानी, मैं हमेशा तुम्हारा हूं।" ऐसा अभिनव उसे कैसे धोखा दे सकता है?
नंदिनी को कहां मालूम था कि अल्फा की मुलाकात आखिरी साबित होने वाली है। अगर पता होता तो वह अभिनव को अपनी पलकों में कैद कर लेती। अपने से जुदा करती ही नहीं। उस मुलाकात की सारी बातें उसे याद आने लगी। फिर उसकी रुलाई फूट पड़ी।
अब नंदिनी को याद आया कि उस मुलाकात में उसने अभिनव की आंखों में एक अजीब सा डर नजर आया था। वह कुछ परेशान दिखा था। उसकी आँखों में क्यों और किसका डर था?...... एक दो बार उसने अजीब सी बातें भी की थी....। कहीं वो डर बिछुड़ने का तो नहीं था? विदाई के वक्त भी उसने वापस आकर नंदिनी को जोर से अपनी बांहों में जकड़ लिया था।
उस जकड़न का सुख नंदिनी कई- कई घण्टे तक महसूस करती रही थी। क्या अभिनव जानता था कि वह आलिंगन आखिरी था?
उस समय नंदिनी ने कहा भी था- " तुम तो ऐसे जकड़े हुए हो जैसे फिर कभी नहीं मिलेंगे?" तो अभिनव चौंक गया। उसने अपने को संभालते हुए कहा- अरे...नहीं रानी। ऐसी बात नहीं है।...कल मिल रहे हैं। टेक केयर। आई लव यू।" कहते हुए उसके गालों पर प्यार भरी थपकी देकर निकल गया। नंदिनी को बार- बार पीछे मुड़कर देखते हुए।..... नंदिनी छटपटा उठी। ऐसा तो अभिनव ने कभी नहीं किया था फिर उस दिन इस तरह का व्यवहार क्यों किया? क्या हो गया था उसे? क्या वो पहले से जानता था? क्या उसने बिछुड़ने का फैसला कर लिया था? या फिर अनजाने में ऐसा हुआ?
अगर उस दिन अभिनव ने जानबूझकर ऐसा बर्ताव किया था तो इसका मतलब यह कि उस दिन जरूर कुछ हुआ था जिससे वो अनजान थी!
पर क्या हुआ था उस दिन....???

* * *