Karmaa - 3 in Hindi Adventure Stories by Sushma Tiwari books and stories PDF | कर्मा - 3 - भागता जाए समय का पहिया

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कर्मा - 3 - भागता जाए समय का पहिया

भागता जाए ये समय का पहिया...
(गतांक से आगे)

जसपाल! क्या तुम मुझे साफ-साफ बताओगे कि सिद्धार्थ कहां है? अगर तुम जानते हो तो प्लीज मुझे बता दो.. इस तरह से मुझे जीते जी मत मारो.. " पूनम ने रोते हुए कहा।

" पुन्नी में पहले से बहुत परेशान हूं और उस पर तुम ऐसी बातें मत करो.. हां मैं जानता हूं यह मेरी गलती है पर मुझे क्या पता था कि वह लोग सिद्धू को उठा लेंगे?.. और तुम पुलिस में जाने की बात कर रही हो? "

" हां तो पुलिस में नहीं जाए तो क्या करें? तुम बताओ ऐसे ही छोड़ दे.. पता नहीं तुमने क्या और कितने का लेनदेन बाकी रखा है? .. कहां से ला कर दोगे?... मैंने पहले ही तुमसे मना किया था छोड़ दो यह सब, पर तुम्हारा लालच है कि बढ़ते ही जा रहा है.. ऐसा ना हो कि तुम्हारा लालच मेरे बच्चे की जान लेकर खत्म हो.. " पूनम बिफर पड़ी थी।
पूनम की बात जसपाल गरज पड़ा।

" कैसी बात करती है पुन्नी? क्या सिद्धू मेरा बच्चा नहीं है? तेरी ऐसे बोलने की हिम्मत भी कैसे हुई.. मैं अपनी जान पर खेलकर भी उसे वापस लगाऊंगा.. पर तुझे पता है उन्हें मेरी जान नहीं चाहिए.. उन्हें उनके पैसे चाहिए "
जसपाल ने पूनम को सहारा देते हुए समझाया।

" तो हम पुलिस के पास क्यों नहीं जाते हैं? "
पुन्नी ही रोते हुए जसपाल के पैर के पास बैठ गई
" पुन्नी तू समझ नहीं रही है.. पुलिस में जाने से मामला और बिगड़ जाएगा। तुझे तो पता ही है यह सब काम बिल्कुल भी कानूनी नहीं है.. वह मुझे अंदर डाल देंगे और सिद्धू को भी हम हमेशा के लिए खो देंगे.. क्या तू ऐसा चाहती है? नहीं ना.."
पूनम का रोते हुए ना के इशारे में सर हिलाती है।
" सुन मेरे पास अभी एक आईडिया है.. क्यों ना हम महेंद्र भाई साहब से मदद ले ले? "

" क्या कहोगे तुम भाई साहब से? बताओ.. "
पूनम ने पूछा क्योंकि पूनम के बड़े भाई महेंद्र जो एक अच्छे खासे कंस्ट्रक्शन बिजनेस में थे और शुरू से ही चाहते थे कि जसपाल उससे ज्वाइन कर ले। पूनम ने कभी भी अपने भाई की मदद नहीं ली थी। उसने अपने पति के आत्मसम्मान को हमेशा अपनी जरूरतों से ऊंचा रखा था और जसपाल के तो ख्वाब बड़े बड़े ही थे। शायद इसीलिए मेहनत का काम छोड़कर वह शॉर्टकट के रास्ते में उतर आया था। पूनम सोच में पड़ जाती है
" भाई साहब से क्या कहकर मदद लेंगे? अगर हम उनको बताएंगे कि सिद्धू किडनैप हो गया है तो वह पुलिस को तो बताएंगे ही ना?"

" नहीं पुन्नी! हम उन्हें सिद्धू के बारे में कुछ नहीं बताएंगे.. मैं.. मैं कह दूंगा कि मुझे कोई नया बिजनेस शुरू करना है और मुझे यकीन है वह मान जाएंगे "

" तो ठीक है तुम बात करो "

" अरे मेरे कहने का मतलब था पुन्नी की तुम उनसे मेरे तरफ से बात करो "
" नहीं अब बस हो गया.. इसके आगे मैं तुम्हारी एक नहीं सुनूंगी.. तुम खुद बात करोगे और आगे के मामले भी तुम खुद निपटाओगे.. यही तुम्हें कसम है मेरी और सिद्धू की कि इस धंधे में तुमने फिर आगे हाथ बढ़ाया तो.. "

" हां मैं वादा करता हूं.. अब से यह सब छोड़ दूंगा "
उसके बाद जसपाल पूनम के भाई महेंद्र से मिलने उनके ऑफिस चला जाता है। महेंद्र जसपाल को देख कर बहुत खुश होता है।
" अरे आओ आओ जस्सी भाई! तुम्हें देखे जमाना हो गया.. तुम तो गायब ही हो गए और बताओ कैसा चल रहा है तुम्हारा नया बिजनेस? "
जसपाल ने सबको एक्सपोर्ट इंपोर्ट की किसी बिजनेस के बारे में बता रखा था।
" भाई क्या बताऊं? बहुत बड़ी मुसीबत में हूं.. मेरा बहुत बड़ा नुकसान हो गया है और अभी के अभी मुझे क्लाइंट को दो लाख देने हैं वरना वह मेरे खिलाफ कंप्लेंट कर देगा या हो सकता है मेरी जान को भी खतरा हो " जसपाल एक कहानी गढ़ता है।

" तुम मत घबराओ जसपाल अगर चाहो तो मैं तुम्हारी तरफ से उस क्लाइंट से बात कर सकता हूं.. धंधे में विश्वास होना जरूरी है यहां तो करोड़ों में उधारी का लेनदेन चलता है "

" हां जानता हूं भाई साहब पर अभी मेरा शुरुआत है और मैं चाहता हूं इसे अपने तरीके से निपटा लूं.. आप बस मेरी इतनी मदद कर दो मुझे दो लाख दे दो.. मैं आपको जल्द से जल्द लौटा दूंगा कैसी बात करते हो जस्सी मैं दो लाख के लिए नहीं कह रहा.. मैं तो कब से पूनम भी कहता हूं कि तुम और पूनम मेरे बिजनेस में हाथ बटाओ. आखिर परिवार ही परिवार के काम में आता है.. ठीक है अगर तुम नहीं चाहते कि मैं इस मामले में आगे दखल दूं तो मैं नहीं दखल देता हूं "
महेंद्र तिजोरी से पैसे निकालकर जसपाल को दे देता है। जसपाल खुशी-खुशी जाने लगता है।
" सुनो जस्सी! यह ऑफर अभी भी है मेरे तरफ से, तुम जब चाहो आकर मेरे बिजनेस को ज्वाइन कर सकते हो "

" हां भाई साहब जरूर मैं बताता हूं "
कह कर तेज कदमों से वहां से निकल गया।

जसपाल पीसीओ पर जाकर एक फोन लगाता है और कुछ देर बाद एक बड़ी सी काली गाड़ी आकर रूकती है जिसमें से सिद्धू को वह लोग बाहर छोड़ते हैं और पैसों का बंडल जसपाल से ले लेते हैं। जसपाल सिद्धू को गले लगा लेता है और उसे घर लेकर जाता है। पूनम सिद्धू को दौड़ देखते ही दौड़ कर आती है और उसे बाहों में भर लेती है।
" मेरा बच्चा कहां चला गया था "
उसे बेहिसाब चूमने लगती है। पूनम एक गहरी सांस भरकर महेंद्र की तरफ देखती है और कहती है
" अपना वादा याद रखना "
उस घटना के बाद से जसपाल पूनम से बताता है कि उसने एक दोस्त के साथ पार्टनरशिप में काम शुरू किया है जहां लागत उसकी रहेगी और मेहनत जसपाल का। वह उन्हीं के ऑफिस में बैठेगा और वहीं से काम करेगा। पूनम खुश हो जाती है। ज्यादा पूछताछ वो कभी करती नहीं क्योंकि जानती है कि जसपाल जो बोलेगा उस पर यकीन करना ही पड़ेगा। इसके आगे उसके पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है। पूनम अपना पूरा ध्यान सिद्धार्थ के पालन पोषण और उसकी पढ़ाई लिखाई पर लगाने लगती है हधीरे-धीरे समय बीतने लगता है। बीते समय के साथ जसपाल और परिवार के बीच में दूरियां बढ़ती जाती हैं। जसपाल अपने बिजनेस में बहुत ज्यादा व्यस्त रहने लगता है। वह तभी देर तक घर पर रहता अगर क्रिकेट मैच आता रहता। सिद्धू के संग भी अब वह कम समय बिताता था। हां जितना भी समय बिताता सिद्धू को ज्यादा से ज्यादा क्रिकेट खेलने के लिए ही प्रोत्साहित करता। बड़े होते सिद्धू को उसने क्रिकेट कोचिंग सेंटर भी ज्वाइन करवा दी थी जो सिद्धू को बिल्कुल पसंद नहीं था। पूनम में एक दो बार इनकार किया लेकिन उसके बाद उसने भी सोचा कि खेल ही तो है क्या हर्ज है और सिद्धार्थ को समझा दिया कि पापा कहते हैं तो खेल लो इससे तुम्हारा स्वास्थ्य ही तो ठीक रहेगा। धीरे-धीरे सिद्धू के क्रिकेट में इंटरेस्ट लेने लगा। अब जब बड़े क्रिकेट मैच होते तो टीवी पर बाप-बेटे साथ बैठकर मैच देखते। सिद्धू जब कभी बोलता " देखना पापा यह अगले ओवर में आउट हो जाएगा" या फिर " यह इतने रन बनाकर रहेगा " और जब सच में वैसा ही होता तो जसपाल गदगद हो जाता "देखा मेरा बेटा है हिसाब किताब और आंकड़े एकदम बाप पर गया है "
पूनम देखकर सहम जाती। उसे ऐसा लगता जैसे इतिहास खुद को दोहरा रहा है। वह तुरंत टीवी बंद कर देती और सिद्धार्थ को अंदर पढ़ने जाने के लिए बोल देती। यूं ही बीते समय के साथ में बच्चा सिद्धार्थ जवान सिद्धार्थ में बदल चुका था। जसपाल का बिजनेस चल पड़ा था और वह उस काम से अक्सर देश के बाहर भी आता जाता रहता था। पूनम जसपाल के मामलों में ज्यादा दखल नहीं देती थी। हां अब पैसे तो अच्छे खासे आते थे पर पूनम ने तय किया था कि वह संगम विहार में ही रहेगी। वही अपना खुद का एक घर खरीद कर पूनम एक मध्यमवर्गीय परिवार की तरह ही जीना चाहती थी ताकि सिद्धार्थ पर पैसों का कोई गलत प्रभाव ना पड़े। वह सिद्धार्थ के गैर जरूरी खर्चों पर बहुत ध्यान रखती थी। चाहे घर की तिजोरी में पैसे पड़े रहे पर वह गिन गिन कर जरूरत के हिसाब से ही खर्च करती थी।
12वीं की परीक्षा में सिद्धार्थ ने अपने स्कूल में टॉप किया था। शायद पूनम के लिए इससे बड़ा और त्यौहार कोई हो ही नहीं सकता था। शहर के नामी कॉलेज में सिद्धार्थ को आसानी से एडमिशन मिल गया था वह भी स्कॉलरशिप के साथ में।
जसपाल ने कहा भी कि पैसे हैं सिद्धार्थ को विदेश भेज देते हैं पढ़ने के लिए पर पूनम उसे खुद से दूर नहीं करना चाहती थी। सिद्धार्थ कॉलेज जाने लगता है और कॉलेज की रंगीन जिंदगी उसे नए लोगों से मिलवाती है। संगम विहार से दूर मेट्रो सिटी की चकाचौंध के बीच मे सिद्धार्थ के बहुत सारे दोस्त बन जाते हैं। हाँ इतने दिनों में सब बदल चुके थे.. दिल्ली भी और दिल्ली के लोग भी.. भागती दौड़ती शानदार नाइट लाइफ वाली दिल्ली।

कॉलेज में सिद्धार्थ का तीन दोस्तों का एक ग्रुप बन जाता है। यह तीनों ही नए एडमिशन होते हैं और तीनों की केमिस्ट्री बहुत अच्छी जमती। है सिद्धार्थ की तरह वह लोग भी पढ़ाई लिखाई में उतने ही रुचि लेते थे। दरअसल पूनम ने साफ साफ कह रखा था कि
" दोस्ती करते समय सिद्धार्थ यह ध्यान रखना कि तुम्हारी पढ़ाई पर कोई असर ना आए.. मैंने तुम्हारी पढ़ाई के लिए बहुत तपस्या की है बस वह सब बेकार मत होने देना"
उस दिन सिद्धार्थ और उसके दोस्त चंदन और प्रिया कैंटीन में बैठकर कॉफी पी रहे थे। तभी आवाज आई
" स्टुपिड कहीं के! देख के नहीं चल सकते भगवान ने बड़ी-बड़ी भटूरे जैसे दो आंखें दे रखी है फिर भी टकराते हुए चल रहे हो.. "
सिद्धार्थ ने घूम कर देखा वह एक लड़की थी.. ब्लू जींस, मल्टी कलर टॉप पहने, गले में स्टोल लपेटे, खुले बालों को लहराती और गुस्से में तमतमाई हुई... एक लड़का उससे टकरा गया था जिसकी कॉफी उसके ड्रेस पर तो गिरी ही थी साथ-साथ उसके हाथ में पढ़े हुए नोट्स पर भी गिरी थी। इससे शायद उसके नोट्स खराब हो गए थे। इस वजह से वह काफी गुस्से में थी। चंदन ने कहा
" अरे यार! यह लड़के ने जानबूझकर टकराते हैं"
" व्हाट रबिश चंदू! हो सकता है उसका बैलेंस खराब हो गया होगा, वरना इतनी महंगी कॉफी कोई सिर्फ टकराने के लिए कैसे खराब कर सकता है? कुछ लड़कियों के ज्यादा नाटक होते हैं " प्रिया ने सफाई पेश की।
पर इन दोनों की बातों से अनजान सिद्धार्थ की नजर सिर्फ उस लड़की की आंखों पर टिकी हुई थी। उसके होंठ जाने क्या बोल रहे थे पर बिल्कुल उन होंठो से कदमताल मिलाते हुए उसकी आंखें भी बातें कर रही थी। सिद्धार्थ बस खोया खोया सा उसे देखे जा रहा था।

" ओ जनाब! कभी लड़की नहीं देखी क्या?"
वह एक दम सामने आकर खड़ी थी।

क्रमशः....

©सुषमा तिवारी