कांच का आदमी in Hindi Children Stories by SAMIR GANGULY books and stories PDF | कांच का आदमी

Featured Books
  • ओ मेरे हमसफर - 12

    (रिया अपनी बहन प्रिया को उसका प्रेम—कुणाल—देने के लिए त्याग...

  • Chetak: The King's Shadow - 1

    अरावली की पहाड़ियों पर वह सुबह कुछ अलग थी। हलकी गुलाबी धूप ध...

  • त्रिशा... - 8

    "अच्छा????" मैनें उसे देखकर मुस्कुराते हुए कहा। "हां तो अब ब...

  • Kurbaan Hua - Chapter 42

    खोई हुई संजना और लवली के खयालसंजना के अचानक गायब हो जाने से...

  • श्री गुरु नानक देव जी - 7

    इस यात्रा का पहला पड़ाव उन्होंने सैदपुर, जिसे अब ऐमनाबाद कहा...

Categories
Share

कांच का आदमी


हमारी इलेक्ट्रानिक जीप रेगिस्तान के गर्म सीने में तेजी से दौड़ रही थी. आज चौथा दिन था और हम उत्तर पश्चिमी दिशा में घूम रहे थे. राडार का पर्दा कहीं प्राणी होने का कोई संकेत नहीं दे रहा था, जबकि चीफ को पूरा विश्वास था कि बाबू हरिहर यहीं कहीं छिपकर अपनी खोजों और प्रयोगों में व्यस्त है.बाबू हरिहर के बारे में जानने के लिए हमें आज से नौ वर्ष पीछे लौटना पड़ेगा. नौ वर्ष पहले 16 मार्च को अखबारों ने एक विचित्र समाचार प्रकाशित किया था. समाचार कुछ इस प्रकार था-राजधानी की प्रसिद्ध खिलौनों की दुकान ‘जॉय विद टॉय’ के सभी खिलौने आश्चर्यजनक रूप से टूटे पाए गए. जबकि रूपए-पैसों की कोई चोरी नहीं हुई है. ज्ञात हो, ‘जॉय विद टॉय’ प्रतिवर्ष लाखों रूपयों के खिलौने विदेश भेजती है.

दरअसल यह खबर पूरी तरह से सही नहीं थी. कंपनी ने सही बात जानबूझकर या अनजाने में छिपाई थी. असलियत तो यह थी कि इस तोड़फोड़ में भी एक खिलौने जिसका नाम ‘ऊर्जा-मानव’ था, पूरी तरह से सही सलामत था और इसी खिलौने ने सभी दूसरे खिलौनों को तोड़ा था.

अरब के एक शाही परिवार के लिए विशेष रूप से बनाया गया यह खिलौना ऊर्जा के परिवर्तन के नियम पर कार्य करता था. और उसके सिर में कंप्यूटर जैसा कुछ फिट था. जिस दिन यह दुर्घटना घटी, उससे एक दिन पहले ही यह खिलौना कंपनी के शो-रूम में लाकर रखा गया था. इस खिलौने के मुंह के भीतर पानी डालने पर पांच मिनट तक यह जीवित मनुष्यों जैसे कार्य करने लगता था. इस खिलौने के आविष्कर्ता ही हरिहर बाबू थे. जो इससे पहले देहरादून के एक स्कूल में विज्ञान के अध्यापक थे. और अब नौ वर्ष से लापता थे.

एक बाल पत्रिका में संपादक की हैसियत से दस ग्यारह वर्ष पूर्व मैंने बाबू हरिहर से उसके द्वारा आविष्कृत नए-रोचक खिलौनों के बारे में इंटरव्यू लिया था जो हमारी पत्रिका में छपने के बाद खूब प्रशंसित भी हुआ था. और यही सूत्र था जिसकी बदौलत सुरक्षा पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी मेरे पास पहुंचे थे. उन्होंने चौंकाते हुए बताया था कि आजकल हरिहर बाबू जल से ऊर्जा प्राप्त करके चलने वाले मनुष्यों को निर्माण में जाथर रेगिस्तान में कहीं व्यस्त हैं. कुछ वायुयान चालकों ने सात-आठ फुट लंबे एक कांच के आदमी को रेगिस्तानी इलाकों में घूमते और छिपते देखा भी है. चूंकि उन्होंने हरिहर बाबू को कभी देखा नहीं, दूसरे उनकी कोई फोटो भी कहीं से प्राप्त नहीं हो सकी है. अत: यदि मैं उनके साथ जाथर रेगिस्तान चलू तो वे हरिहर बाबू को खोजकर उन्हें एक प्रकार के दैत्य बनाने से रोक सकते हैं.

अक्सर मनुष्य जब किसी विशेष गुण से संपन्न होता है तो इसमें स्वार्थ की भावना भी खूब आ समाती है. संभवतया यही बात हरिहर बाबू के साथ थी. खिलौनों की कंपनी में कांच के आदमी का निर्माण करने में सफलता मिलने पर उन्होंने सोचा होगा क्यों न कांच के मनुष्यों का निर्माण करके उन पर हुक्म चलाकर मनचाहा कार्य कराया जाए.

चीफ ने मुझसे सहायता मांगी थी. और मैं तो ऐसे मौकों की तलाश में सदा से तत्पर रहा हूं. अत: फौरन तैयार हो गया. अगले ही दिन हम चारों यानी चीफ, मैं, एक वैज्ञानिक और एक अन्य पुलिस अधिकारी अपने अभियान पर रवाना हो गए.

और आज यह चौथा दिन था जब हम असफल और व्यर्थता का बोध लिए रेगिस्तान की लंबाई- चौड़ाई नाप रहे थे तथा उष्णता को झेल रहे थे.

शाम को छ: बजे के लगभग हम एक मरूभूमि में जा पहुंचे. जहां एक सरोवर को देखकर मन खिल उठा. पसीने से तर- बतर हम चारों ने कपड़े उतार फेंके और सरोवर में उतरना चाहते ही थे कि तभी जल में हलचल हुई और कांच की एक खोपड़ी ने अपनी भयानक उपस्थिति का अहसास कराया.

हम अपने मेजवान से इस रूप में मेजवानी की आशा में नहीं थे सो चीफ सहित चारों कांप उठे. फिर तुरंत ही कपड़ों को उठाकर जीप की ओर दौड़े. इस बीच वह वीभत्स दैत्य भी अपनी दस फीट की लंबाई का परिचय देते हुए तेजी से हमारी तरफ बढ़ रहा था.जीप के स्टार्ट होते ही वह खूंखार सरोवर से बाहर निकल अपनी रोशनी फैलाने वाली आंखों को मिचमिचाते हुए अपनी ओर कूदा था. तुरंत ही टेलीस्कोप निकालकर मैंने उसको फोकस में ले लिया था. सचमुच श्रेष्ठ लचीले , पारदर्शी कांच से वह निर्मित था. इसके शरीर के भीतर का एक-एक पुर्जा नजर आ रहा था. अब वह हमारी जीप के पीछे तेजी से दौड़ रहा था. इसी बीच चीफ ने निशाना लेकर उस पर गोली चला दी. पर यह क्या गोली के शरीर में धंसते ही उसकी गति और तेज हो गई और दूसरी गोली खाकर तो वह बिजली की तरह हमारे पीछे लपका.

इससे पहले कि चीफ तीसरी गोली चलाते, वैज्ञानिक ने उनकी राइफल झटक दी और चिल्लाते हुए कहा, ‘‘ चीफ बेवकूफी मत करो.ऐसा करके तुम उसकी ऊर्जा बढ़ा रहे हो.’’ और तब उन्होंने जीप चलाते पुलिस अधिकारी से जाने क्या कहा कि फौरन ही एक झटका खाकर जीप ऊपर उड़ने लगी और मैं तो मैं, हमें अब पकड़ूं तब पकड़ूं की स्थिति में आ पहुंचा कांच का मनुष्य भी विस्मित हो हतप्रभ सा खड़ा देखता रह गया.

हमारी जीप अब हेलीकॉप्टर थी. चूंकि यह अणुशक्ति से चल रही थी. अत: ईंधन के खत्म होने का कोई भय ही नहीं था. हम लगभग छ: घंटे तक आकाश में बिना आवाज किए उड़ते रहे.

अर्धरात्रि के पश्चात टेलिस्कोप से कांच के मनुष्य पर नजर रखते हुए पीछा करते-करते हम अचानक ही हरिहर बाबू का ठिकाना खोज पाने में सफल हो गए.

उस समय एक टेलिस्कोप से नीचे का नजारा मैं देख रहा था. हालांकि नीचे घना अंधेरा था, पर हम अपने विशेष प्रकार के टेलिस्कोपों से नीचे के दृश्य स्पष्ट देख सकते थे. एकाएक हमने देखा कि कांच-पुरूष ने हाथ-पैर झटक कर क्रुद्ध होने की घोषणा की . और तभी बीस मीटर व्यास का वृत्त आग की दस फुट ऊंची लपटों की दीवार में घिर गया. उस आग के घेरे के अंदर छोटा सा एक टैन्ट का मकान दिखाई दिया और बाहर खड़े चिन्तित हरिहर बाबू को पहचानने में मैंने कोई भूल नहीं की. मैंने वैज्ञानिक को बताया कि हालांकि वे काफी कमजोर हो गए हैं लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि हैं वे हरिहर ही .

इस पर वैज्ञानिक ने गंभीरता से कहा, ‘‘ यदि हम तुरंत कोई उपाय न सोचे तो यह कांच का दैत्य आज उन्हें खत्म करके ही छोड़ेगा.

आग के पास खड़े होने से उसकी ऊर्जा बढ़ जाती है. जिससे बाद में वह दीवार को कूद कर जाने की शक्ति पा जाएगा.

इसी तरह चीफ ने पुलिस अधिकारी को आदेश दिया कि जीप को हरिहर बाबू के टैन्ट के ठीक ऊपर ले जाया जाए और रस्सीवाली सीढ़ी लटका दी जाए.

ऐसा ही किया गया.

जब जीप काफी नीचे उतर आई तब चीफ ने हरिहर बाबू को संबोधित करते हुए कहा, कि हम सब उनको बचाने के लिए आए हैं. अत: फौरन वे सीढ़ी की सहायता से ऊपर जीप पर आ जाएं.

हरिहर बाबू ने एक पल भी देर नहीं की सीढ़ी लपकने में. ऊपर चढ़ते हुए वे जीप पर आ गए. और तभी हमने देखी कांच के आदमी की वह ऊंची कुदान. एक ही कूद में आग के घेरे को लांघ टेंट के ऊपर, आ झपटा तथा, एक-एक चीज की उठापटक करने लगा.

हमें कांच के आदमी के बारे में हरिहर बाबू से कोई पूछताछ नहीं करनी पड़ी. स्वयं ही अफसोस भरे शब्दों में उन्होंने सब कुछ बता दिया. वे बोले, ‘‘ आज से तीन वर्ष पूर्व मैंने इस कांच के दैत्य का निर्माण किया था. तब यह भालू के बच्चे सा छोटा था मैंने इसके शरीर को अनन्त खिंचाव सहन करने वाले नए प्रकार के कांच से बनाया था. मेरा उद्‍देश्य था कि ऐसे दस-बीस कांच के गुलाम बनाकर रेगिस्तान के सारे खनिजों को ऊपर लाकर तहलका मचा दूंगा. लेकिन तब तक मैं समझ नहीं सका था कि कांच क्रोधी पदार्थों की श्रेणी में आता है जो किसी क्रिया की तिगुनी से अनन्त गुणी तक प्रतिक्रिया दे सकता था. पहले यह सिर्फ़ पानी पीकर ऊर्जा लेता था. यह प्रबंध ऑटोमैटिक था यानी प्यास लगने पर वह सरोवर की ओर या नदी-तलैयों की ओर खिंचा चला जाता था. और यहीं से मेरा दुर्भाग्य शुरू हुआ. पानी के साथ-साथ इसने मछली-मेंढक आदि जीवों का भी निगला और महसूस किया कि पानी से अधिक ऊर्जा देते हैं. बस तभी से पानी को छोड़कर यह अन्य जीवों पर झपटने लगा. मुझे लगता है कि सरोवर के जीव समाप्त हो चुके हैं. तभी यह रोज मेरी खोज में आता है और उड़ते हुए पक्षियों पर झपटता है.

हरिहर बाबू की बातें, उसकी चिन्ता भविष्य में आने वाले अनिष्ट की ओर इशारा कर रही थी. इसलिए मैंने पूछा, ‘‘ लेकिन अध्यापक आपने इसे नष्ट करने का प्रयत्न क्यों नहीं किया?’’

इस पर हरिहर बाबू दुखी होकर बोले, ‘‘ किया क्यों नहीं.’’ सब कुछ करके देख लिया. अंत में अपने चारों ओर आग की दीवार खड़ी करके ही समाधान पाया. बनाते समय नष्ट करने का ख्याल भी नहीं था मेरे मन में. अत: कोई प्रबंध भी नहीं किया इसको नष्ट करने का. लेकिन अब तो लगता है कि यदि इसे शीघ्र ही नष्ट न किया गया तो यह शहरों और गांवों में पहुंचकर सारी मानवता को नष्ट न किया गया तो यह शहरों और गांवों में पहुंचकर सारी मानवता को नष्ट कर देगा. धीरे-धीरे इसका अकार भी हाथी और हवेल से बड़ा होता जाएगा. हालांकि इसे नष्ट करना भी आसान नहीं, गोली खाने से इसकी ऊर्जा और बढ़ जाती है.

‘‘ मिस्टर हरिहर इसे बहत्तर घंटे के अंदर नष्ट करना होगा. फिलहाल इस हेडक्वार्टर लौट रहे हैं.’’ यह चीफ थे.

इसके बाद की छोटी सर कहानी कांच के आदमी को नष्ट करने की कहानी है. हेडक्वार्टर ने अत्यंत बुद्धिमत्तता का परिचय देते हुए पूरी कार्यवाही दो चरणों में की थी. पहले चरण में हेलिकॉप्टर द्वारा दो बोरी मछलियों का चूर्ण सरोवर में छिटका गया. जिसका फल यह हुआ कि कांच का आदमी सरोवर में आ घुसा और पानी पी-पीकर अपने शरीर को बढ़ाने लगा.

और दूसरे चरण में सुरक्षा पुलिस के तेज जेटों ने काले रंग के चूर्ण से सरोवर के ऊपरी सतह को काला कर डाला. चूर्ण पड़ते ही सरोवर से धुंआ निकल कर आकाश तक छाने लगा. चारों धुंआ ही धुंआ.

थोड़ी देर बाद जब धुंआ छटा, तब तक सरोवर का सारा जल जम चुका था और कांच मानव किनारे पर आधा गढ़ा लटका था. वह निष्क्रिय हो चुका था. तुरंत ही हरिहर बाबू और अन्य सुरक्षा सैनिकों ने कांच-मानव के दिमागी पुर्जों को अलग-अलग कर डाला और मौत के मुंह में जाती मानवता को बचते देख राहत की सांस ली.