एक मेंढक था जिसकी पीठ पर लाल धारी थी और गांठ में तांबे का एक गोल पैसा था जो खन-खन बजता था और उसकी जान का जंजाल था.
जान का जंजाल इसलिए क्योंकि मेंढक उस पैसे को खर्च नहीं करना चाहता था, मगर जंगल में दो दुष्टों की नजर हमेशा पैसों पर रहती थी. ये दो दुष्ट थे चूहा और कौवा.
चूहा और कौवा सदा ताक में रहते कि मेंढक से कोई चूक हो और वे पैसा लेकर रफूचक्कर हो जाएं. लेकिन मेंढक बड़ा चतुर था. वह अपने दोस्त कछुवे की मदद से चूहे और कौवे को सदा बेवकूफ बनाता था. उसके ये मित्र कभी अफवाह फैला देते थे कि मेंढक ने अपना पैसा सांप के बैंक में जमा करवा दिया है और फिर चील की लॉटरी में लगा दिया है या फिर कुछ और. इधर मेंढक की एक बड़ी कमजोरी थी उसे फुरसत के समय पैसा उछाल कर खनखनाने में बड़ा मजा आता था. और इसी से चूहें और कौवे को भनक पड़ जाती थी कि पैसा उसी के पास है. बस तब क बार फिर से शुरू हो जाती मेंढक का पैसा हड़पने की चालें.
इस तरह कई साल बीत गए. बार-बार मुंह की खाकर चूहा और कौवा ज़्यादा गुस्से से भर गए. उन्होंने पानी में रहने वाले और तालाब में नंबरी बदमाश केकड़े से दोस्ती की और उसे भी अपने दल में शामिल कर लिया.
अब तीनों ने मिलकर तय किया कि अगर मेंढक का पैसा चुराया नहीं जा सकता तो क्या छीना तो जा सकता है न! तो छीन ही लेना चाहिए. बस फिर क्या था जब देखों तब तीनों मेंढक के पीछे-पीछे चलते रहते. मेंढक रूकता तो वे भी रूक जाते और मेंढक चलता तो वे भी चलने लगते.
मेंढक को भनक हो गई थी कि तीन दुष्ट अब कुछ करके ही दम लेंगे. सो एक दिन वह तेजी से तालाब की ओर बढ़ने लगा ताकि कछुवे से सहायता मांगी जा सके.
इधर मेंढक तालाब पर पहुंचे इससे पहले केकड़ा और चूहा उसे घेरने की कोशिश करने लगे और कौवा ऊपर झपटने की तैयारी करने लगा.
यह देख मेंढक रास्ता बदल तेजी से झाड़ियों की तरफ दौड़ने लगा, ताकि खरगोश से सहायता ली जा सके. पर अफसोस, झाड़ियों में खरगोश का कहीं अता-पता न था. जबकि चूहा, केकड़ा और कौवा उस पर चिल्लाते हुए टूट पड़ना चाह रहे थे.
वह घबरा कर एक बड़े से पत्थर के नीचे जा छिपा. घबराहट में कुछ और न सूझा तो उसने पैसे मुंह में रख लिया. पर हाय रे किस्मत! थूक के साथ पैसा अंदर घूट गया और पैसा गले में फंस गया. मेंढक का दम घुटने लगा.
अब घबराकर मेंढक जोर से चिल्लाया. पर यह क्या? पैसा गले में हिल रहा था और उसके गले से आवाज निकल रही थी. वह फिर जोर से चिल्लाया. अपनी आवाज सुनकर वह खुद भी घबरा गया. उसकी टर-टर्राहट गुर्राहट में बदल गई थी. उसकी आवाज भेड़िए से भी भयंकर थी.
इस भयानक आवाज को सुनकर कौवा, चूहा और केकड़ा दुम दबाकर भागे और उन्होंने दूर तक मुड़कर पीछे नहीं देखा.
इधर उस झाड़ी में एक सांप भी रहता था. जो उस समय अपनी केंचुला उतार रहा था. जब उसने यह आवाज सुनी तो वह भी डरकर केंचुली छोड़ तालाब की ओर भाग लिया.
मेंढक की हालत खस्ता थी. एक तो गले में पैसा अटकने से वह परेशान था, दूसरे उसने सांप देख लिया था. अत: वह बुरी तरह घबरा गया था. घबराहट में वह सांप की केंचुली के अंदर घुस गया. और फन तक जा पहुंचा. संयोग से उसे झाड़ी में ही सेही का एक कांटा मिल गया. जिसे मुंह में डालकर वह पैसा निकालने की कोशिश करने लगा.
भयानक गुर्राहट की खबर तेजी से जंगल भर में फैल गई. फिर तो झुंड के झुंड उस झाड़ी की तेजी से बढ़ने लगे.
इधर खरगोश और कछुवा भी मेंढक को खोजते हुए जब वहां पहुंचे तो फुदकती केंचुली और लंबे डंक वाले गुर्राते जानवर को देखकर उन्हें भी आश्चर्य हुआ.तभी शेर भी वहां आ पहुंचा. सभी जानवर भयभीत थे. सबने समझा कि शेर भी डर कर दूसरी ओर चल देगा. पर शेर तो शेर ही होता है ना! उसने एक दहाड़ लगाई और आगे बढ़कर केंचुली समेत जानवर को हवा में उछाल दिया.
सबने देखा कि केंचुली के हवा में उछलते ही उसमें से छिटककर एक मेंढक धप से जमीन पर गिर पड़ा. और उसके पीठ के बल गिरते ही पैसा निकल कर जमीन पर खन्न से बज उठा. सब हैरान. मगर मेंढक को बड़ा आराम मिला. उसने झट से आगे बढ़कर अपना पैसा उठाया और उसकी धूल झाड़ने लगा.
शेर के पूछने पर मेंढक ने सब कुछ बता दिया सच-सच.
चूहा, कौवा और केकड़ा भी वही खड़े थे. अपना नाम सुनकर खिसकने लगे, पर भीड़ ने उन्हें भागने नहीं दिया.
उन्हें शेर के सामने लाया गया. और फिर उनकी खूब पिटाई हुई. किसी ने एक थप्पड़ मारा तो किसी ने चार.
और जानते हो उस पैसे का क्या हुआ? क्या मेंढक ने उस पैसे से सबको दावत दी? या फिर सांप के बैंक में जमा करा दिया?
जी नहीं, वह पैसा आज भी मेंढक के पास है. मेंढक आज भी मस्त है उसकी खन-खन सुनने में. कभी किसी मोटे लाल धारी वाले मेंढक को देखो तो थोड़ी दुर तक उसके पीछे-पीछे जाना. क्या पता थोड़ी दूर बाद वह अपना पैसा ‘खन्न’ से गिराकर बजा कर दिखा ही दे. हां, अगर वह वही मेंढक हो.
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