Mukhauta in Hindi Short Stories by Ratna Raidani books and stories PDF | मुखौटा

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मुखौटा

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आज राजस्थान के एक छोटे से शहर में एक विशाल मंदिर का उदघाटन था। शहर के विख्यात उद्योगपति श्री हीराचंद जी की तरफ से इस मंदिर का निर्माण कराया गया था। संगमरमर से बना नक्काशीदार भव्य मंदिर और देवी देवताओं की सुन्दर सुसज्जित मूर्तियों से आँखें हटना ही नहीं चाहती थीं। उदघाटन और भजन पूजन के बाद लगभग हजार लोगों में प्रसाद वितरित किया गया।

पंडाल में बैठे लोग आपस में बातें कर रहे थे। एक ने कहा - "हीराचंद जी बड़े ही नेक दिल और उदार हैं। कितना सुन्दर मंदिर अकेले ने बनवाया है।"

"हाँ, सही कह रहे हो। आज के ज़माने में इतना धार्मिक व्यक्ति मिलना ही मुश्किल है।" दूसरे ने कहा।

दूसरी तरफ स्त्रियों की मण्डली भी उनकी तारीफों के पुल बाँध रही थी। पहली ने कहा, "शहर की हर सामाजिक संस्थाओं के बोर्ड पर दानदाताओं की लिस्ट में उनका नाम जरूर होता है।

दूसरी ने भी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा, "हाँ, भगवान की कृपा से रुपये पैसे की भी कोई कमी नहीं है। ऐसे यथा नाम तथा गुण महापुरुष हमारे शहर का गौरव हैं।"

ऐसा लग रहा था कि भगवान और देवताओं से ज्यादा गुणगान तो हीराचंद जी का हो रहा था।

लेकिन एक महीने बाद का दृश्य कुछ और ही था। सभी न्यूज़ चैनल्स और अख़बारों की ब्रेकिंग न्यूज़ कुछ ऐसी थी जिसपर विश्वास करना मुश्किल हो रहा था - "शहर के विख्यात उद्योगपति हीराचंद हुए गिरफ्तार। जमानत याचिका हुई नामंजूर। जहरीली शराब से १०० लोगों की मौत के मामले में उन्हें दोषी पाया गया। साथ ही साथ दान की आड़ में अपने काले धन को ठिकाने लगाने का भी मामला सामने आया।"

जैसे जैसे जाँच आगे बढ़ती जा रही थी, और भी कई गैर कानूनी धंधों से पर्दा हटने लगा। सालों से किये जा रहे काले कारनामे सामने आ रहे थे।

आज एक बार फिर मंदिर में नवरात्री जागरण के लिए भक्तों का तांता लगा हुआ था। पर इस बार लोगों की चर्चा ने अलग ही मोड़ ले लिया था।

पहले व्यक्ति ने कहा,"अरे! ये हीराचंद तो नकली हीरा निकला। इधर भगवान को खुश करने के लिए मंदिर बनवाया और उधर कई गैर क़ानूनी धंधे करता रहा।"

दूसरा भी कहाँ पीछे रहता, "हाँ, लेकिन पाप तो पाप ही होता है। उसे दान और धर्म का दिखावा करके छुपाया नहीं जा सकता।"

तीसरे की बात में दम था, "पहले के ज़माने में राम और रावण की अलग अलग पहचान हुआ करती थी लेकिन अब तो राम का मुखौटा लगाए हर जगह रावण घूम रहे हैं, जिन्हे पहचानना मुश्किल है।"

"दस सिर वाले रावण के पुतले तो बहुत जला लिए। अब कुछ ऐसा करने की जरूरत है, जिससे हमारे आस पास में रह रहे रावणों का विनाश हो सके।" स्त्रियों की मण्डली में से एक आवाज़ आयी।

तभी एक बुजुर्ग सज्जन जो बहुत देर से इन सब की बातें सुन रहे थे, उठकर आगे आये, "तुम सब दूसरों की गलतियाँ देख रहे हो, पर क्या तुम लोगों ने कभी खुद के अंदर झाँक कर देखा है? हम सब भी जाने अनजाने में इनका साथ देते हैं, तभी इनके अवैध धंधों को बढ़ावा मिलता है। हम सबकी जिम्मेदारी है कि अपनी सुविधाओं और खुशियों के लिए किसी के भी गलत काम को बढ़ावा नहीं देना चाहिए।"

सबको उन सज्जन की बातें समझ में आ रही थी। खुद की कमियों को समझकर उसे दूर करने का प्रयास ही सच्ची विजयदशमी होगी। इस प्रतिज्ञा के साथ सबने अब नए रूप में विजयपर्व मनाने का निश्चय किया।