कुछ कहा अनकहा
 कभी-कभी कुछ चीजें आपके बस में नहीं होती ,कोशिश करते हैं आप संवारने की ,मगर चीजें कुछ ज्यादा ही उलझ जाती है ,और आप हार मान लेते हैं ॥शायद  मेनें  भी  हार  मान ली थी॥
 अलार्म बज बज कर खुद ही सो चुका था ,इस बार अलार्म का काम मां की आवाज ने किया-
" पिया उठ बेटा देख समय क्या हो गया है ,दामाद जी के आने का वक्त हो रहा है ,तैयार भी तो होना है  चल जल्दी कर"॥
 यह अलार्म कुछ अलग था आंखों की नींद के साथ  थोड़ा सा जो सुकून इन 2 दिनों में दिल को मिला था वह भी ले  गया॥
 मां दामाद जी के लिए मनपसंद खाना बनाने की तैयारी में किचन  मे मोर्चा संभाल चुकी थी॥
 अब हम चारो ही थे ॥ मैं ,मेरी चाय की प्याली और बालकनी , साथ में चमकता हुआ सूरज। बस कुछ पल और थे हमारे साथ के।
 "अरे पिया तुम !कब आई ?सब कैसे हैं ?खुश तो हो ?"॥
 सामने शर्मा अंकल के ढेर सारे सवाल और मेरा सिर्फ एक जवाब -
-" सब ठीक है अंकल"।
 होता है ना कभी ऐसा जिससे आप बातें करना चाहो ढेर सारी ,मगर! वही कुछ ना कहें ।जिसके सामने आप दिल खोलना चाहो और वह चुपचाप आप को निहारता रहे,
 बस फिर किसी और से बात करने की ज्यादा इच्छा नहीं होती॥ कितनी सारी बातें करने थी  मां से ,कितना कुछ था बताने को मगर ! मां ने  तो कुछ पूछा ही नहीं ॥
क्या मेरा चेहरा पढ़ना वह भूल गई है?।
 प्याली में रखी जाए ठंडी हो चुकी थी मगर मेरे विचार उबले रहे थे।
  शादी के इन डेढ़ वर्षो में कितना कुछ बदल गया है। सौरभ के पास कहां है वक्त अब मेरे लिए ,सिर्फ ऑफिस का काम ,उसके दोस्त उसका परिवार। उसमें मैं तो शायद कहीं हु ही नहीं। सिर्फ उसकी पसंद और उसका नजरिया, जो उसे भाऐ वही हो ,लगता है जैसे मेरा कोई वजूद ही नहीं है।
 उबलते हुए विचार आंखों से लावा बनकर बह रहे थे।
 बस अब और नहीं ।नहीं रहना मुझे सौरभ के साथ और मां से भी अब सीधे सीधे बात करूंगी।
 "जरा चख कर  बता कचोरिया कैसी बनी है"? कहते  हुए माँ  ने कचोरी का टुकड़ा मुंह में डाल दिया।
 "मां तुम  ना! बेठो मुझे कुछ कहना है ।"
"बातें बाद में ढेर सारा काम पड़ा है अभी किचन में ,और तू भी तैयार हो वक्त हो गया है ।"
मां मेरी बातों को अनसुना कर  बाकी तैयारियों में जुट गई।
 मेरा दिल अब और भर आया था। क्या सच में माँ चेहरा पढ़ना भूल गई है॥
 सौरभ आ चुका था और मैं उसके सामने जाने से बच रही थी ,या शायद अपने आप से ही भाग रही थी !!
 "पिया आजा बच्चा खाना ठंडा हो रहा है"। पापा की आवाज को अनसुना करना मेरे लिए नामुमकिन था।
 डाइनिंग टेबल पर बातों का शौर  था मगर मेरे दिल में सन्नाटा पसरा हुआ था।
 माँ ने दिल के सन्नाटे को तोड़ने की पूरी कोशिश की -"और बताइए दामाद जी आगे का क्या प्लान है"।
" बस मम्मी जी यहां से सीधा मनाली"। 
मैंने चौक कर सौरभ की तरफ देखा "-मनाली"।
 "हां ऑफिस से छुट्टी ली है एक हफ्ते की ,तुम्हें चलना है  तो बोलो वरना मैं और मम्मी जी चले जाएंगे "।सौरभ ने मुस्कुराते हुए कहा॥
 मैं अब भी  सौरभ के कहने पर विश्वास करने की कोशिश कर रही थी।
 "पर इतनी जल्दी !तुमने बताया नहीं ,पैकिंग वगैरह कुछ भी "।मैं कुछ हड़बड़ा  गई थी॥
 "तुम फिकर मत करो ,वह काम मैंने कर दिया है ,बैग तैयार है।" मां ने जैसे कोई रहस्य उद्घाटन किया।
 मैं कुछ और कहती तभी सासू मां का फोन आ गया-
" तुम लोग निकले कि नहीं दो घंटे  में फ्लाइट है।"
  अब मैं कभी मां को देख रही थी कभी सौरभ को॥
 "तुम रुको हम  सामान लेकर आते है "।कहकर मां और पापा चले गए।
 अब कमरे में सिर्फ मैं और सौरभ और मेरे अनगिनत सवाल थे।
" पिया तुम्हारे घर आने के बाद  मम्मी जी ने मां को फोन किया था , उनकी क्या बातें हुई पता नहीं पर माँ ने तुरंत  छुट्टी लेने को कहा और यह प्रोग्राम बनाया॥  साथ ही तुम को लेकर कुछ हिदायतें भी दी। जो एक तरह से सच भी है ,मानता हूं तुम्हें उतना वक्त नहीं दे पाया जितनी जरूरत थी और ना ही वह विश्वास और सम्मान जिसकी तुम हकदार हो। माफ कर दो पिया, क्या फिर से एक नई शुरुआत करें।" 
 सब कुछ साफ हो चुका था ,मन का सन्नाटा भी दूर हो गया ,आंखों में प्यार भरी नमी लिए सौरभ के गले लग गई।
 मैं भी ना बिल्कुल पागल हूं कैसे भूल गई 'मां बच्चों का चेहरा पढ़ना कभी नहीं भूल सकती,आखिरकार मां है।
©®टीना सुमन