प्रश्न : क्या उस दिन मैंने, प्रेम से प्रेम को, लिखवा दिया था ??
उस दिन मेरे पास एक फ़ोन आया, उधर से वीरेंद्र सिंह भदौरिया जी बोल रहे थे, मैं उसे प्यार से वीरू कहता हूँ, मेरा भाई जैसा दोस्त है, बोला कि मेरी सगाई हो रही है, कल चलना है लड़की से मिलने और वहीं सगाई भी है, मैंने उससे कहा कि भाई जब सगाई ही है, तो लड़की से मिलने का क्या मतलब है..तो बोला मुझे नहीं पता, बस कल 11 बजे आ जाना तैयार होके घर पे..
एकदम से ऐसा लगा कि जो बंदा MBA हो, वो ऐसा कैसे कर सकता है, दिमाग सुन्न सा हो गया क्योंकि वीरेंद्र की मेरी जिंदगी में इम्पोर्टेंस कुछ दूसरे किस्म की है, वो भाई जैसा है, उसके सपने और पसंद मुझे पता थी..अगले दिन में तैयार होके उसके घर पहुँच गया, हम कार में बैठे थे, तो एकदम रुआँसा सा था, मुझे लगा कि मामला गड़बड़ है, गाड़ी में हमारे साथ वीरेंद्र की बुआजी भी थीं, सो मैंने उनसे पूछा कि बुआजी ये रुआँसा क्यों है ? तो बुआजी बोलीं कि हमारे भाईसाहब ने फरमान दे दिया है कल, कि शादी इसी लड़की से करनी है, लड़की के पिताजी शादी में डेढ़ करोड़ तक देने को तैयार हैं, गाँव के सरपंच हैं, और नेतागिरी में अच्छा रसूख है उनका, पर कल पता चला कि लड़की हमेशा ही गाँव में रही है, ज्यादा पढ़ी लिखी भी नहीं है, और शायद थोड़ा रंग भी साँवला है, सो कल से ही तुम्हारे दोस्त ने खाना नहीं खाया है, भाभी ने अपनी कसम दी है कि भाईसाहब की बात मान ले, वरना बहुत क्लेश होगा सो ये बात है..
सब सुनकर मुझे बहुत देर तक कुछ भी सूझा ही नहीं क्योंकि मुझे पता था कि हमारे चम्बल रीजन में आज भी बच्चों की इच्छा से ज्यादा जरूरी रसूखों का मैच होना होता है, और फिर पैसे, वो तो मिठाई बनने के बाद उसके ऊपर से गोल्डन बर्क का काम करते हैं, आप कैसे मना कर सकते हो..सोचते सोचते हमारी गाड़ी उस दिन लड़की वालों के घर तक पहुँच गयी..
सब लोग बैठ गए हमसे कहा गया कि जाओ आप लोग एक दूसरे कमरे में लड़की और उसकी कुछ दोस्त हैं, उनसे मिल लो..सो वीरेंद्र और मैं, उठकर चले गए.. जब उस कमरे में पहुँचे तो कुछ लड़कियाँ बैठीं थीं पर शायद वो लड़की नहीं थी, जिसे हम देखने आए थे, उन लड़कियों ने शायद लड़के का फोटो देख रखा था, सो उनमें से एक लड़की, वीरेंद्र से बोली कि आप ऊपर चले जाओ, नियति वहीं हैं, जी हाँ, उस लड़की का 'नियति' था..
वीरेंद्र ने उस लड़की से कहा कि मैं नहीं पहले ये मिलेगा नियति से, सो लड़कियों ने एकदम से वीरेंद्र की तरफ देखा और खुद मैंने भी, फिर मैंने उससे कहा, कि भाई तू जा, मैं यहीं बैठा हूँ, तो रुआँसा तो वीरेंद्र था ही, बोला तू मिल पहले, फिर मैं मिलूँगा, मुझे लगा कहीं रो ना दे, इज्जत का कचरा ना हो जाये, तो मैंने कहा, चल बैठ मैं मिलके आता हूँ उससे, सभी लड़कियाँ देख रहीं थीं सो उनमें से एक ने शायद ये खबर लड़की को देने के लिए दौड़ी लगा दी, सो मैं गया उस लड़की से मिलने ऊपर एक दूसरे कमरे में, ऊपर पहुँचा तो एक आंटी थीं उस लड़की के पास सो जैसे ही मैं पहुँचा, उसके कुछ मिनिट बाद ही वो चलीं गयीं और जाते हुए बोलीं, बात कर लो..
मैंने उस लड़की को देखा तो वो बहुत ज्यादा साँवली थी, चेहरे में भी कोई खास बात नहीं, ऊपर से चम्बल रीजन के गाँवों में जो लड़की को बेवजह सजा दिया जाता है, सो ओवर मेकअप लगा हुआ था, जो अलग ही दिख रहा था..मैंने उसके कहा कि whats ur qualification ?? सो उसने मेरी तरफ यूँ देखा जैसे उसे कुछ समझ नहीं आया सो मैंने उससे हिंदी में पूछा, आप कहाँ तक पढ़ी हो ? सो बोली, पिताजी ने कभी स्कूल जाने नहीं दिया, बस पेपर देने जाते थे, 12वीं की, फिर ऐसे ही MA कर लिया, सो मैंने उससे कहा कि पढ़ने में रुचि है ?? सो बोली कि कभी थी, पर अब नहीं है.. मैंने उससे पूछा कभी कोई किताब, नॉवेल, या कुछ साहित्य पढ़ा है, तो बोली हम रोज बस शुक्रवार को दुर्गा सप्तशती पढ़तें हैं, बाकी कभी कुछ नहीं पढ़ा..
सो मुझे लगा कि ना शक्ल में दम है ना अक्ल में दम है, क्योंकि शादी के लिए जीवन में इनमें से एक पहलू होना मैंने उस समय तक सबसे ज्यादा जरूरी माना था, सो दो पल के लिए तो मुझे लगा कि क्या यही वीरेंद्र की होने वाली 'नियति' है, नियति का एक मतलब भाग्य भी होता है, सो मुझे लगा मेरे भाई के साथ ये नहीं होना चाहिए, सो मैं फिर उससे ये कहके कि मैं अब जा रहा हूँ वीरेंद्र को भेज देता हूँ नीचे से, उठ गया, मैं नीचे वीरेंद्र के पास आया और उससे धीरे से कान में कहा कि भाई मैं तो गाड़ी में बैठा हूँ, मना कर दे, मुझे कुछ भी ठीक नहीं लगा, ये सुनकर वीरेंद्र और भी रोने वाले मूड में आ गया, और ऊपर अपनी नियति से मिलने पहुँच गया, मैं सीधा कार में गया और AC चलाकर गाने सुनने लगा क्योंकि मुझे सारे ही रीति रिवाजों और लोगों के झूठे दिखावों पे उस समय भारी गुस्सा आ रहा था..
कुछ देर बाद मुझे कोई बुलाने आया कि भैया आपको, आपके दोस्त बुला रहे हैं, खाने के लिए, मैंने उससे कहा कि भैया से कह देना कि मेरे हिस्से का भी वही खा लें, और कार का गेट लगा लिया, फिर वीरेंद्र के कॉल आये, तो मैंने गुस्से के मारे मोबाइल ऑफ कर दिया, फाइनली लगभग 4 घंटे बाद वो सब लोग आए, मैं कार में ही था, सो वीरेंद्र और बुआजी भी आकर बैठ गए, वीरेंद्र गाड़ी चलाने लगा, तो बुआजी मुझसे बोलीं कि जब अँगूठी पहना रहे थे, तो तुम कहाँ थे, मैं बोला कि कार में, तो बोलीं कि कार में बैठने आये थे क्या ? बुआजी से मेरी अच्छी बनती थी सो मैंने उनसे कहा कि मेरे भाई के साथ ये सब तमाशा हो, मैं ये भी देखने नहीं आया था..सो समझ गयीं वो कि मैं गुस्से में हूँ सो फिर कुछ नहीं कहा, वीरेंद्र तो शायद किसी दूसरी ही दुनिया में था..खामोशी के साथ उस दिन हम घर पहुँचे, मैं भी अपने घर निकल गया, अगले दिन शाम को मैं वीरेन्द्र से मिलने गया तो बोला चल डैम पे चलते हैं, वहीं बैठेंगे.. सो हम दोनों गाड़ी उठाकर डैम पहुँचे..
रास्ते भर मुझसे कुछ बोला नहीं वो, वहाँ डैम पे पहुँचकर भी हम लोग दूर पानी को देखते हुए खामोश एक पत्थर पे बैठ गए, मुझे भी समझ नहीं आ रहा था कि क्या बोलूँ, सो कुछ सोचकर कहा कि अभी भी समय निकला नहीं है, मना कर सकता है तू, तो मेरी तरफ देख के बोला कि मेरी शादी में डांस तो करेगा ना, तू अब तो रेडी हो ले, मना नहीं कर सकता यार, मैंने कहा भाई तू लंदन जाना चाहता है, और उसे ठीक से हिंदी भी नहीं आती, मैचिंग नहीं है, बोला कि पता नहीं यार क्या है..पर अब नियति यही है, फिर कुछ सोचकर बोला कि मैं डैम में कूद जाऊँ अगर तू कहे, मैं जीना नहीं चाहता यार, पूरी जिंदगी बस लोगों को फॉलो किया है और आज तो हद ही हो गयी, मैं उसके पागलपन को जानता था मुझे लगा ये सच में ना कूदी मार दे, सो उसके पास आके बैठ गया और बोला कि घर पे एक बार बात करके देख फिर से तो बोला पिताजी नहीं मानेंगे, फिर हम दोनों ही खामोश हो गए.. मुझे लगा यहाँ बैठे रहे तो कहीं इसका मूड ना बिगड़ जाए सो मैंने कहा कि कुछ काम है घर पे, मुझे जाना है, तो बोला, ज्यादा जरूरी है तो मैंने कहा हाँ.. तो बोला चल फिर छोड़ देता हूँ तुझे घर..हम मेरे घर पहुँचे, मैंने उससे एक बार फिर कहा, कि भाई हो सके तो मना कर दे, तो बिना कुछ बोले चला गया..
मैं भी कुछ दिनों के लिए उन दिनों असम और पूर्वांचल के टूर पे कुछ दोस्तों के साथ चला गया, वीरेंद्र से कहा नहीं, क्योंकि शादी भी जल्दी ही एक महीने में करनी थी, सो उसे काम थे, मुझे पता नहीं क्यों लग रहा था कि वीरेंद्र, मंगल पांडे की तरह विद्रोह करेगा और शादी कैंसिल हो जाएगी पर जब मैं लौट के आया तो पता चला, कि शादी अगले हफ्ते है.. मुझे वीरेन्द्र पे भारी गुस्सा आयी और मैंने यहाँ तक मन बना लिया कि अगर शादी हुई तो मैं शादी में नहीं जाऊँगा..
मैं घर आ गया हूँ जब वीरेन्द्र को ये पता चला तो वो मेरे घर आया, पर संयोग से मैं मिला नहीं, कॉल लगाए उसने तो मैंने रिसीव नहीं किये, वो समझ गया कि मैं गुस्सा हूँ, फाइनली शादी के दिन सुबह कॉल फिर आया पर मैंने फिर भी रिसीव नहीं किया, शाम को मन हुआ कि, मुझे जाना चाहिए, शादी जिंदगी में एक बार ही तो होती है, कम से कम हम जैसे इमोशनल लोगों के लिए, पर कहते हैं क्रोध बुरी चीज है, सो मन ने कहा कि, भाई के साथ बुरा हो रहा है, मत जा, सो उस दिन नहीं गया..
फिर महीनों वीरेंद्र के भी कॉल नहीं आये, कभी आये तो मैंने रिसीव नहीं किए और मैंने तो यहाँ तक मन बना लिया था कि अब दोस्ती ही खत्म, बात ही नहीं करूँगा कभी, फिर मैं इंदौर चला गया..
एक बार छुट्टियों में अपने घर आया था, बाजार कुछ सामान लेने चला गया, रास्ते में मन हुआ कि कुछ खाया जाए सो एक होटल था, जहाँ मैं और वीरेन्द्र अक्सर गप्पे लगाने और खाने पीने बैठते थे सो पहुँच गया..इन सालों में कई बार वीरेन्द्र ने मुझे कॉल लगाए थे, पर मैंने रिसीव नहीं किये, मेरे घर भी आया, पर मैं मिला नहीं, उस दिन संयोग से वो नियति के साथ वहाँ पहुँचा था और मैं भी पहुँच गया सो मिलना हो गया.. दोनों लोग मेरे सामने खड़े थे, मन ने कहा, इग्नोर कर, सो मैंने हैडफ़ोन के म्यूजिक का साउंड थोड़ा लाउड करके मस्ती में अपना सर झूमते हुए दिखाते हुए, आँखों को थोड़ी मस्ती से बंद करते हुए उनके बगल से निकलने की कोशिश की, तो नियति बोल पड़ी, ये तो मनोज भैया हैं ना, सो वीरेन्द्र का ध्यान मुझ पे गया ( वीरेन्द्र कॉल पे था ) सो उसने मेरा हाथ पकड़के मेरे कान में से हैडफ़ोन निकाल कर कहा कि, जगजीत सिंह को तो रोज सुनते हो कभी हमारी भी सुन लिया करो, जब आमना सामना हो ही गया तो लगा अब मिलना ही पड़ेगा तो मैंने भी बनकर कहा, यार देख नहीं पाया था, वो हल्का सा मुस्कुराया और कहा, चल मंचूरियन खाते हैं, नियति की तुझसे बहुत इच्छा है मिलने की..
मैं मना नहीं कर सका और हम तीनों वहीं एक टेबल पे बैठ गए, तभी वीरेन्द्र का फिर से कॉल आया और बात करते हुए बाहर चला गया, बोला आप लोग बात करो, मैं आता हूँ, अब मैं और दुविधा में फँस गया, इतने टाइम बाद मिले थे, तो समझ ही नहीं आ रहा था, क्या बोलूँ, तो नियति बोली आप इनको माफ कर दो ना, मैं इनसे कहूँगी कि ये लंदन चले जाएं कुछ सालों के लिए, आपको बहुत याद करते हैं, आपको पता है हमारी शादी की वीडियो कैसेट में आपका नाम भाईयों में डाला है, और तो और कहते हैं अपने लड़के का नाम भी मनोज ही रखेंगे, अब लंदन को लेके इनसे नाराजगी छोड़ दीजिए ना, आपको मेरी कसम, मैं आपको भाई बोलती हूँ, दोस्त भी मानती हूँ आज से, बस आप उनको माफ कर दीजिए..
नियति से ये सब सुनके मेरा दिमाग सा सुन्न हो गया था वो बोले जा रही थी, और मैं बस उसकी तरफ देखके सुने जा रहा था.. मैंने वीरेन्द्र के साथ कितना गलत कर दिया था और वो था कि आज भी मुझसे उतनी ही मोहब्बत करता था, जिसने मुझे अपनी शादी होने वाली लड़की से पहले मिलने भेज दिया था, मैं रोने जैसा हो गया था, जैसा अक्सर मैं भावुक अवस्था में हो जाता हूँ, तभी वीरेन्द्र आ गया, मैं जल्दी से उठा और बोला घर से कॉल है, मिलता हूँ फिर, मेरी आँखों में आँसू भर आये थे, वीरेन्द्र शायद समझ गया बोला जा, पर कल एक प्रोग्राम है, एक कॉलेज में तुझे आना है, मैंने ओपन किया है, तभी नियति बोली, भैया आपको मेरी कसम और इनकी कसम है, कल आपको आना है..
मैंने डबडबी आँखों से ही सहमति दी कि आऊँगा, तो नियति ने कहा भैया 7 बजे आना है शाम को, खाना भी वहीं खाना है, आपको..शादी पे दोस्तों के साथ पहला खाना उधार भी है, आप आये जो नहीं थे.. मैं फिर से आँखों से हाँ कहकर निकल आया..
मुझे महसूस हुआ कि मैं बहुत ही हल्के किस्म का इंसान हूँ, रोले, रोसा, चेखव, बर्न्स, सॉल्टयर, पुश्किन, शेक्सपियर आदि मेरा सब पढ़ना ही बेकार है, टैग लिए हैं मिस्टर फिलॉसफर का और जिंदगी का 'ज' भी नहीं समझ पाया हूँ..
अगले दिन प्रोग्राम में पहुँचा, तो एक सीट पे जाकर बैठ गया, वीरेन्द्र आने जाने वाले मेहमानों को देख रहा था, बाकी सब काम में लगे हुए थे, तभी स्टेज पे अनाउंसमेन्ट हुई कि नियति जी आयेंगी और एक स्पीच देंगी, मैं ताज्जुब में पड़ गया कि, क्या ये वही नियति है, जिसे मैं पहली बार मिला था, जब नियति स्टेज पे आयी तो वही साड़ी औऱ अपने पुराने अंदाज में ओवर मेकअप करके आई, तो मुझे लगा कि मैं सही हूँ, कुछ नहीं बदला, वो स्टेज पे आयी तो थोड़ा काँप रही थी, कुछ बोलना शुरू किया और अटक गई, शायद भूल गयी, फिर सभी लोगों का ध्यान केवल उसपे ही था, मैं कुर्सी पे थोड़ा टिककर बैठ गया कि आज वीरेन्द्र को समझ आएगा कि उससे गुस्सा क्यों था, पर फिर नियति ने वीरेन्द्र की तरफ देखा और वीरेन्द्र ने उसे आँखों से ही कुछ इशारा किया, पता नहीं फिर क्या जादू हुआ, नियति ने अपनी आँखें बंद कीं और फिर जो वो बोली पूरे 15 मिनिट नॉन स्टॉप बोल गई, सबने ताली बजा दीं, बस एक मुझे छोड़कर, क्योंकि मनुष्य का दंभ इतनी आसानी से हार नहीं मानता है..
पूरा प्रोग्राम एंड हुआ, खाना भी खाया, नियति ने कुछ मीठा जबरन मुझे अपने हाथों से खिला दिया, वीरेन्द्र मेहमानों को विदाई देने लगा, तो वीरेंद्र की मम्मी जी ने कहा कि अब नियति को घर छोड़ आओ, उसका काम हो गया और घर भी सूना होगा, तो वीरेन्द्र बोला कि कार पापा ने ड्राप करने किसी के साथ भिजवा दी, लोग जा रहे थे सो सभी यारों दोस्तों की गाड़ियाँ कुछ लोग जिनके पास साधन नहीं था घर वापस जाने को, उनकी सेवा में लगे हुए थे, तो वीरेन्द्र बोला, कि मनोज तू नियति को घर छोड़ आ, इच्छा तो बिल्कुल भी नहीं थी मेरी पर उसने आंटी और इतने लोगों के सामने कहा कि मुझे कहना पड़ा ठीक है, मैं जाता हूँ.. सो मैं नियति को अपनी बाइक से वीरेन्द्र के घर ड्राप करने निकल पड़ा..
उस रात, मैं साक्षात् प्रेम को देख लूँगा मैं नहीं जानता था, कुछ दूर गाड़ी आगे बड़ी तो नियति बोली कि भैया आपको मेरी आज की स्पीच कैसी लगी, मैंने बेमन से कहा, अच्छी थी..
फिर बोली भैया, आज मेरा एक सपना और पूरा कर दिया आपके भाई ने, एक स्पीच देना चाहती स्टेज पे, फिल्मों में देखा था, फिर सब ताली बजाएं सो आपके भैया ने स्पीच लिखी फिर पिछले कई दिनों से मुझे याद कराई, फिर उनके खुद के सामने प्रैक्टिस कराई तब जाकर आज मैं ये कर पाई, मेरे मन का दंभ अभी मरा नहीं था सो मैं बोला फिर भी तो आज आप भूल गयीं तो बोली इन्होंने कहा था कि अगर कभी कुछ भूल जाओ तो अपनी आँखें बंद करना और जिससे सबसे ज्यादा मोहब्बत हो उसको अपने माइंड में लाना और जो दिल कहे बोल देना, दिल से निकला हर शब्द प्रेम ही होता है, ऐसा मेरे भाई की एक गुरु है, जीनियस, वो कहती है.. मैंने उनसे कई बार पूछा भी कि, ये जीनियस है कौन तो बोले ये अपने भैया से पूछना, तो क्या आप मुझे नहीं बताओगे कि जीनियस कौन है ??
सच कहूँ तो वीरेन्द्र और उसकी सीख, नियति की नेक नीयत और सीरत देखकर अब मेरी आँखों में आँसू भर आये थे..मैं चुप हो गया एकदम..कुछ देर कुछ भी नहीं बोला, फिर वही बोली पता है भैया जब मैं गाँव में रहती थी, तो कभी किसी दुकान पे एक समोसा तक नहीं खाया था, पिताजी कहीं जाने ही नहीं देते थे, कभी जाते भी थे कहीं, तो बस गए और अनुशासन में रहे और वापस आ गए, कपड़े तक, जो घर में बड़े लोग ला देते थे उनकी ही पसंद के पहन लेते थे, जो भी चाहिए होता था घर पे ही मिलता था..
स्कूल कभी ज्यादा गए नहीं, सो ज्यादा पढ़ नहीं सके, घर पे TV देखते थे तो शहर देखने का भारी मन होता था..
बड़े छोटे छोटे सपने थे मेरे कि कभी शहर की लड़कियों की तरह अपने बाल बॉय कट टाइप करवाऊँ, किसी मॉल में ट्रॉली लेके जैसे बड़े लोग शॉपिंग करते हैं, मैं भी करूँ, मुझे समंदर देखना था, जीन्स और शर्ट पहनने थे ( हालांकि मुझे अच्छे नहीं लगते ) , किसी थियेटर में कोई फ़िल्म देखनी थी..
आपके दोस्त ने मेरे ये सब सपने पूरे किए हैं, और भी पता नहीं उन्होंने मेरे लिए क्या क्या किया है, मैं मर भी जाऊँ ना तो उनके प्यार का एक अंश भी उन्हें लौटा नहीं सकती..
उस दिन फक्र हुआ खुद पे कि मैंने कार चलाना नहीं सीखी थी क्योंकि कार चलाते में मेरे गिरते आँसू शायद वो देख लेती पर बाइक पे मेरा चेहरा सामने था सो मेरे आँसू उसने नहीं देखे..
वो बोले जा रही थी, मैं सुने जा रहा था, मेरा सारा शरीर ठंडा हो गया था, मैं सुन्न था बस, वो कह रही थी, ये मुझे गोवा ले गए एक बार जहाँ मैंने समंदर देखा, मैंने उसकी रेत से इनके पैर छुए तो बोले इसकी जरूरत नहीं अब..
वहीं हम एक महीने रुके तो मेरे बाल बॉय कट टाइप करवाये, मुझे महीने में दो बार समोसा या कुछ भी खाने बाहर ले जाते हैं, आपके भैया बहुत अच्छे हैं..
और आपको पता है आप उनसे भी अच्छे हो और मुझे नहीं पता ये जीनियस कौन है, ना उन्होंने मुझे कभी बताया, ना अभी आपने बताया पर मेरे लिए आप ही जीनियस हो..
फिर बोली आप गाड़ी रोकिए अभी, मेरे आँसू बह रहे थे, सो मैं गाड़ी रोकता कैसे, मैंने कहा कि क्या हुआ, तो बोली रोकिए तो सही, मैंने कुछ गाड़ी को आगे बढ़ाया फिर अपने आँसू रोके और गाड़ी रोक दी..फिर बोली अब गाड़ी से उतरिये तो मैं गाड़ी से उतर गया, सो उसने मेरे पैर छू लिए, मैं जब तक कुछ समझ पाता तब तक वो पैर छू चुकी थी, मैं सन्न था एकदम, फिर बोली आपको पता है शादी के कई महीनों तक आपके भैया मुझसे बोले नहीं, फिर एक दिन पता नहीं, मैं कमरे में लेटी हुई चादर के अंदर रो रही थी सो मुझे रोते देखकर चादर हटाई और बस उस दिन से उनके नेचर में एक अजीब चेंज सा गया..
धीरे-धीरे हम अच्छे दोस्त बन गए और अब सबसे अच्छे दोस्त हैं, पर अब भी वो आपको अपना बेस्ट फ्रेंड कहते हैं, एक बार मैंने उनसे पूछा भी था कि जब भैया मुझसे मिलने आये थे तो सबसे पहले अंग्रेजी में बोले कुछ, मुझे समझ नहीं आया, फिर जो भी पूछा उसका मैंने ठीक से जबाब भी नहीं दिया, फिर उन्होंने नीचे आके आपसे ये सब क्यों नहीं कहा कि मैं आपके लायक नहीं बिल्कुल भी, तो आपके भैया बोले, वो जीनियस का शिष्य है, अल्टीमेट पीस हैं जीनियस, वो इंसान को पढ़ ले
लेतीं हैं, किताबें बहुत पीछे हैं, सो उस दिन तुम ये मान लो तुम्हारे भैया ने तुम्हें पढ़ लिया था.. सो मैं उसी दिन से आपसे और जीनियस से मिलना चाहती थी, और अकेले में आपके पैर भी छूना चाहती थी क्योंकि जिसने मुझे आपके भैया जैसा साथी दे दिया हो, मैं उसके अहसानों को पता नहीं कभी उतार भी सकूँगी या नहीं, पर मेरे दिल ने मुझसे ये करने को कहा, सो मैंने कर लिया, आप अपनी बहन को आशीर्वाद दीजिये, कि आपके भैया के साथ हमेशा यूँ ही खुश रहूँ..
उससे ये सब सुनकर उस दिन जिंदगी में दूसरी बार किसी लड़की के सामने रोया था.. मेरे आँसू गिर रहे थे, और नियति भी रोने लगी थी, हम दोनों एक दूसरे को चुप भी कर रहे थे और रोये भी जा रहे थे..जैसे तैसे नियति को घर छोड़ा उस रात, सीधा वापस वीरेन्द्र के पास वापस गया, वो कुछ लोगों के साथ खड़ा था, मैंने आव देखा ना ताव सीधा जाकर उसे गले लगकर रोने लगा, मुझे रोता देखकर वो मुझे एक तरफ वहीं खाली जगह में ले गया और पूछा क्या हुआ, मैं कुछ बोल नहीं पा रहा था, मेरा गला रुंध गया था, मैंने बस इतना कहा, भाई मुझे माफ़ कर दे, वो भी रोने लगा था, दोनों भाई बैठकर बहुत देर रोये उस दिन, पुरानी यादें ताजा कीं और बोला अबे तेरी फीलिंग्स समझता हूँ, जीनियस के शिष्य हम भी हैं, घास नहीं काटी, पर यार यकीन मान, एक दिन उसे रोता देखा, वो बहुत अच्छी है यार, हर दम मेरे बारे में सोचती है, कपड़े मेरे लिए पहले, कुछ खाने बनाये तो तुम खाओ पहले, मेरा बहुत खयाल रखती है, व्रत रखती है हर शुक्रवार को माता रानी का मेरे लिए, माना दिखती थोड़ी अच्छा नहीं है, पढ़ी लिखी नहीं है, पर यार जीनियस ही तो हमसे कहती थी कि----
( जो दिल में एक दिल सा रखे वो इंसान हैं, वरना धड़कते हुए टुकड़े तो सभी लिए फिरते हैं..)
यार दिल के अंदर एक दिल रखती है वो, जिसमें सिर्फ मैं रहता हूँ, ये मैं महसूस कर पाया हूँ, मोहब्बत हो गयी यार उससे, और फिर वो बहुत रोया, मैं भी रोया.. वजह पता नहीं..
अगले दिन मुझे वापस इंदौर निकलना था सो मैं देर रात निकल गया वीरेन्द्र के पास से, वो बोला सुबह मिलके निकलना इंदौर, मैंने कहा हाँ ठीक है..
रात को घर पहुँचा, बिस्तर पे गिरा तो नियति और वीरेन्द्र दोनों की ही बातें सोच सोचकर बहुत रोया, पता नहीं कब नींद लग गयी, सुबह मेरे मन कुछ विचार आया तो मैं तैयार होके सीधे वीरेन्द्र के घर पहुँचा, वो दोनों अपने रूम में थे, सो मैंने वीरेन्द्र से कहा, जल्दी से होम थियेटर ऑन कर और गाना लगा कि..
( सपने में मिलती है, वो कुड़ी मुझे सपने में मिलती है )
नोट :- इस गाने पे हम दोनों ने बड़ी बारातों में डांस किया था, सो वादा इसी गाने पे डांस का था..
वीरेन्द्र बोला हुआ क्या, मैंने उससे कहा तू लगा तो पहले, उसने गाना ऑन कर दिया..नियति भी वहीं थी, मैंने उसका हाथ पकड़ा और वीरेन्द्र के पास लाकर खड़ा कर दिया, फिर कहा कि अब बैठ जाओ दोनों तुम, वो बेड पर बैठ गए, फिर मैंने डांस करना शुरू किया, हालांकि मुझे डांस का भी 'ड' नहीं आता पर, मैंने वीरेन्द्र से वादा किया था कि उसकी बारात में डांस करूँगा..जब उल्टा सीधा डांस करके थक गया तो उन दोनों को भी डांस करवाया, वो खूब हँसे दोनों..बहुत बहुत बहुत..
फिर मैंने एक सफेद रुमाल निकाला और एक रेड मार्कर नियति को दिया और उससे कहा कि इस पर Love is life लिख दो.. तो बोली भैया लिखूँ कैसे मुझे स्पेलिंग नहीं आती तो मैंने कहा तुम इधर आओ मेरे पास, मैंने नियति का हाथ पकड़ा और उसका हाथ पकड़कर अपने हाथों से उससे, उस रूमाल पे Love is life लिखवा लिया..जब लिखवा रहा था तो सच में यूँ लगा जैसे मैंने--
( प्रेम से प्रेम को लिखवा लिया हो..)
फिर उस रूमाल को अपने पास रख लिया और नियति से कहा कि कल तुमने मेरे पैर छुए थे और आज मैं तुम्हारे पैर छूना चाहता हूँ पर मैं परमिशन के साथ छूना चाहता हूँ, जो तुमने नहीं किया था, तो बोली आप भाई भी हो और आपको दोस्त भी कह दिया है सो भाई होने के नाते कह भी देती पर दोस्त होने के नाते नहीं कह सकती, तो मैं बोला कि मैं आपको छूना चाहता हूँ, उसने वीरेन्द्र की तरफ देखा, तो वीरेन्द्र ने आँखों से हामी उसे दे दी...
मैंने नियति से हाथ मिलाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया, हालांकि मैं उसका हाथ पहले पकड़ चुका था पर वो एक भाई के हक से था, अब जो था वो एक मुसाफिर की हैसियत से था, जो प्रेम का खोजी है, जो प्रेम को छूना चाहता है..नियति ने उस दिन मुझसे हाथ मिलाया, उसे छूकर ऐसा लगा कि जैसे मैंने प्रेम को ही छू लिया है..
फिर मैं वापस अपने घर चला गया, शाम को इंदौर के लिए ट्रेन में बैठ गया, खिड़की की सीट पे हवा खाते खाते सोचने लगा, कि हर लड़की चाहे वो, गोरी हो, काली हो, साँवली हो, पढ़ी लिखी हो, कम पढ़ी लिखी हो, या अनपढ़ ही हो, सुंदर हो या ना हो..पर यार हर लड़की का एक दिल होता है, उसके कुछ दर्द होते हैं, उसके कुछ अहसास होते हैं जिन्हें मेरे जैसा ठस बुद्धि वाला लड़का आसानी से नहीं समझ सकता..इस शरीर की खूबसूरती तो समय के साथ घट जाती है पर दिल की खूबसूरती कभी कम नहीं होती..शायद हर लड़की की एक नियति ही तो, होती है, जो किसी ना किसी के जीवन की मंजिल बन ही जाती है..
( उस दिन जिंदगी में एक तीसरा फैक्टर सीखा कि अक्ल और शक्ल के अलावा दिल पे भी भरोसा किया जा सकता है, बल्कि सबसे ज्यादा भरोसेमंद बस दिल ही है..)
सोचते सोचते मंथन करते करते नींद लग गयी, सुबह इंदौर पहुँचा, ट्रेन से उतरा तो नियति का कॉल था, पूछ रही थी भैया पहुँच गए आप ठीक से, तो मैंने कहा, बस जस्ट स्टेशन पे ही उतरा हूँ, फ्री होके बात करूँगा..
जब अपना बैग टाँगकर चलने लगा तो दिल ने जोर से कहा----
( पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया ना कोय..
ढाई आखर प्रेम के, पढ़े सो पंडित होय..)
सो मेरे मुँह से जोर निकल गया..
कबीरारारारारारा ( संत कबीरदास )..... तू सही है यार..
स्टेशन पे सब मुझे देखने लगे, तो मैं थोड़ा चेतना में आया और मुस्कराया, संभला और अपने घर चला गया..
---- मनोज शर्मा