Bade babu ka pyar - 6 in Hindi Fiction Stories by Swapnil Srivastava Ishhoo books and stories PDF | बड़े बाबू का प्यार - भाग 6 14: ग्यारह बीस की बस

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बड़े बाबू का प्यार - भाग 6 14: ग्यारह बीस की बस


भाग 6/14: ग्यारह बीस की बस

“अरे वाह बड़े-बाबू, दस साल में तो याद न आई....आज हमने बात करा दी तो हम पर ही नाराज़गी....”मंदार चुटकी लेटे हुए बोला|

थोड़ी देर न जाने मोबाइल में क्या ढूढ़ता रहा फिर एक कागज़ पर एक नम्बर नोट करने के बाद मंदार ने अपना ग्लास उठाया और सिगरेट जला कर बाहर गैलरी में चला गया|

उधर दिवाकर पुरानी यादों में खोए रहे, न खाने की सुध थी न पीने की...जलती सिगरेट वैसी की वैसी राख में तब्दील हो गई....शराब का नशा ज़ोरों पर था और प्यार का नशा उससे कहीं ऊपर|

दस-पंद्रह मिनट बाद मंदार सिगरेट बुझाता हुआ कमरे में घुसा और बोला, “चलिए समान पैक करिए, हम पाली जा रहे हैं...”

“पाली...इस समय....पता भी है पाली कहाँ है....अबे चाँदपोल नहीं जाना है....ज्यादा हो गई है क्या मंदार?” दिवाकर चौंकते हुए बोले|

“पता है बड़े-बाबू...हमारा ससुराल है पाली...और यहाँ से लगभग तीन सौ किलोमीटर...अभी की बस पकड़ेंगे तो तड़के पाली में होंगे....आपको पता है पाली मैं कौन है?” मंदार ने दिवाकर की आँखों में देखा फिर बोला, “जी हाँ, आपका दिल लूटने वाली आज कल पाली में हैं|”

दिवाकर का चेहरा और आँखें देखने लायक थीं....बेबसी और कुछ वापस पाने की लालसा का मिला जुला भाव था उनके चेहरे पर|

फिर कुछ सोचते हुए बोले, “मंदार उसकी शादी हो चुकी है..पूरा परिवार होगा....पति... बच्चे....गलत है ये सब, पाप है पाप|”

“काहे का पाप बड़े-बाबू,, आप ने तो तब भी कोई पाप नहीं किया था | जब देखा की उन पर जुल्म हो रहा है, आपने तो अपने प्यार की क़ुरबानी दे दी| और वैसे भी अब कौन सा भगाने की बात कर रहे हैं| बस चलेंगे, दोस्त बन कर मिलेंगे और लौट आएंगे| इसमे पति, बच्चों को क्या एतराज़| आखिर कालेज के पुराने दोस्त यार मिलते ही है ना”, मंदार ने समझाया|

“अरे लेकिन मालूम है ना, पिछली बार मार पीट हो गई थी, अब वापस....”

“अरे चलिए बड़े-बाबू,...पिछली बार हम नहीं थे....इस बार हम हैं| वैसे भी हमारा ससुराल है पाली, पूरा शहर हिला देंगे....अरे हमारे बड़े बाबू का प्यार है...मजाक है क्या| आप तो बस चलिए यह पुण्य का काम आप अपने छोटे भाई के हाथ से होने दीजिए बस|”

वैसे तो दिवाकर मना कर देते पर दिल के हाथों मजबूर थे, ऊपर से शराब का सुरूर, बोले, “चलो फिर जो होगा देखा जाएगा, बस एक बार मिल कर वापस लौट लेंगे|”

मंदार का अलग स्वार्थ था, उसे लगा दिवाकर का सही, इसी काम के बहाने अपनी पत्नी से मिल लेगा और लगे हाथ साथ लौटा भी लाएगा| जितना दिवाकर में अपने प्यार से मिलने की तड़प थी, उतनी ही मंदार में अपनी पत्नी से मिलने की|

“चलेंगे कैसे?” दिवाकर ने पूछा

मंदार पूरे जोश में था, बोला, “वैसे तो 11.20 की जोधपुर की बस है....वो छूट गयी तो ट्रेन पकड़ लेंगे वरना टैक्सी कर लेंगे बड़े बाबू.....आपके प्यार के खातिर ये तो कुछ भी नहीं| चलिए फटाफट अपना ग्लास ख़तम कीजिये और कुछ खा लीजिये....ज्यादा समय नहीं है अपने पास|”

किस्मत अच्छी थी, थोड़ी दौड़ भाग बढ़ी पर 11.20 वाली बस हाथ लग ही गई, दोनों पीछे की सीट पकड़े झूम रहे थे|

“बड़े बाबू, क्या बोलिएगा मिल कर...कुछ सोचें है?” मंदार मुस्कुराते हुए बोला|

दिवाकर बोले कुछ नहीं बस मुस्कुराते रहे, फिर थोड़ा रुक कर बोले, “मंदार ये बताओ, पता कैसे लगा कि वो पाली में है...घर का पता ठिकाना कुछ है?”

“अरे क्या बड़े बाबू....आप की तरह थोड़े है जो दस साल में न ढूंढ पाए.....हमारा नाम मंदार है, जिस काम को हाथ में ले लेते हैं वो पूरा कर के ही छोड़ते हैं....मजाक है क्या...” मंदार गर्व से बोला|

“अरे फिर भी ढूँढा कहाँ से?” दिवाकर कहीं ज्यादा उत्सुक दिखे|

मंदार ने धीरे से प्लास्टिक की ग्लास निकाली फिर कोल्डड्रिंक की बोतल से शराब उड़ेलते हुए बोला, “पकड़िए बतलाता हूँ...”

फिर एक लम्बा घूँट लेने के बाद होंठों को साफ़ करते हुए बोला, “अरे आफिस वाली दिव्या है ना , उसे ही फ़ोन कर के बोल दिए थे कि पहले फ़िरोज़ को फ़ोन करो, मैडम की कुंडली निकालो और फिर बंटी को फ़ोन कर के पता ठिकाना| पता चला आज कल पाली में हैं|”

यह सुन कर मानों दिवाकर को सुकून मिला हो, बोले कुछ नहीं बस अपना ग्लास उठाया और एक घूँट अन्दर उतार लिया|

“अरे लेकिन रहती कहाँ है?.....घर पर कौन- कौन हैं?..मिलेंगे कैसे?” दिवाकर अचानक से बोले|

मंदार नाराज़ होते हुए बोला, “सब कुछ हमसे ही कराइयेगा का बड़े बाबू| अरे इतना बड़ा काम हो गया है...आपकी महबूबा का शहर ढूंढ लाए है, पता भी ढूँढ लेंगे....हैं हमारे भी लोग पाली में| साले साहब और उसके दोंस्तों में बोल देंगे...कही न कहीं तो मिल ही जाएंगी|....कोई फोटो –वोटो है या वो भी दिल में ही छुपा कर रखे हैं|”

दिवाकर कुछ बोल न सके, फोटो तो वाकई न थी, हाँ यादें ज़रूर थीं, जैसा मंदार ने कहा था...दिल में|

मंदार ग्लास को देखते हुए बोला, “परेशान न होइए बड़े बाबू, अपना ससुराल है, पहले चलते हैं, आराम से खातिरदारी कराएंगे, फिर दिल लगा कर भाभी को ढूँढेंगे|

“एक तो तुम भाभी –भाभी कहना बंद करो....शादी शुदा है वो, किसी और की अमानत| वो तो तुमने बोला तो चल रहे हैं वरना.....”

“आय –हाय बड़े बाबू....सारा इलज़ाम मंदार के सर....खैर आपके प्यार के खातिर ये इलज़ाम भी झेल लेंगे| आखिर इसी बहाने सही इतने दिन बाद अपनी मिसेज से मिलने का मौका भी तो मिल रहा है....| चियर्स बड़े बाबू.....ख़तम कीजिए|

फिर थोड़ा रुकते हुए मंदार वापस बोला, “वैसे बड़े बाबू, हम क्या कहते हैं, प्यार अगर दोनों तरफ बराबर है तो उसके पति से बात कर लेंगे....भला आदमी होगा तो समझा देंगे| अगर प्यार करने वाला होगा तो समझ जाएगा|”

दिवाकर डांटते हुए बोले, “पागल हो गये हो क्या? कोई खेल थोड़े है जो समझा दिया...अरे समाज है...मर्यादा है ...लोक लाज है|”

मंदार नाराज होते हुए बोला, “अरे समाज –वमाज सब ढोंग है बड़े बाबू....आपका प्यार सच्चा है तो कोई नहीं रोक सकता, उसका पति भी नहीं| हम समझाएँगे....आप चुप रहिएगा....वरना पहले की तरह गोड़ दीजियेगा| अरे तीन –तीन ज़िन्दगी बर्बाद हो इससे अच्छा है कोई एक क़ुरबानी दे दे, आखिर दो प्यार करने वाले तो मिल जाएंगे| हम संभाल लेंगे बड़े- बाबू...आप बस साथ खड़े रहिएगा|”

दिवाकर बस मंदार को देखते रहे और मन ही मन मना रहे थे, काश ये जो कह रहा है सच हो जाए|
स्वरचित कहानी
स्वप्निल श्रीवास्तव(ईशू)
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भाग 7/14 : तब भी था, आज भी