कहानी
मॉल
रह-रहकर बच्चे का चेहरा उसकी आँखों के सामने आ रहा था। कैसे वह दुपट्टे को पकड़कर उससे रुकने का आग्रह कर रहा था। उम्र ही क्या है उसकी ... अभी वो ढाई साल का ही तो है। इस उम्र में तो वैसे भी बच्चे माँ का सान्निध्य चाहते हैं तिस पर वो बीमार भी है। उसकी ममता बेबस हो रही थी। उसका मन कर रहा था कि एक झटके में नौकरी छोड़ दे पर....पति को जब तक नौकरी नहीं मिलती उसकी मजबूरी है कि वो इस नौकरी को करती रहे।
‘‘संध्या...! ’’ रुको मैं भी आ रही हूँ
अपना नाम सुनकर वह चौंक गयी। उसने देखा बगल की शॉप पर काम करने वाली विनीता उसे रोक रही थी। वह शान्त निर्विकार भाव से उसके पास आने का इन्तजार करने लगी। विनीता ने मजाकिया लहजे मे पूछा, ‘‘ कहाँ खोयी हो..़़? क्या जीजाजी केे मायाजाल से अभी मुक्त नहीं हो पायीं.ं..’’
‘‘नहीं ...वो बात नहीं बेटू की तबियत खराब है, उसे तेज फीवर आ रहा है.. वो आने नहीं दे रहा था... उसे रोता छोड़कर आयी हूँ तो मन बेचैन हो रहा है।’’ उसने मायूसी से कहा
‘‘तो छुट्टी ले लेती न’’
‘‘मैं इस माह तीन छुट्टी ले चुकी हूँ...तुझे तो पता है हम लोगों को हर माह एक ही छुट्टी मिलती है।’’
‘‘हाँ ये तो है और फिर हम लोगों को तो दोहरी भूमिका अदा करनी होती है। घर और बाहर दो पाटों में पिसना होता है’’ - विनीता ने उदास होते हुए कहा। फिर कुछ रुककर बोली- ‘‘जीजाजी को कोई नौकरी मिली ?’’
‘‘नहीं वो छोटी-मोटी नौकरी नहीं करना चाहते... अर्जुन एम बी ए हैं पर आजकल उसकी भी कोई बखत नहीं। टेलेन्ट की हर जगह दरकार है।’’
वो दोनों लिफ्ट के पास आ गयीं। वो दोनों अब तक मॉल में प्रवेश कर चुकी थीं।
सौ बाइ सौ वर्ग फीट के दायरे में फैला बहुमंजिला मॉल उपभोक्ता को लुभाने के लिये बाजारवाद की नयी नीति के आयाम प्रस्तुत कर रहा था। अण्डरग्राउण्ड गैरेज था, जहाँ सैकड़ों गाड़ियों का मेला... तरह-तरह के रंगीन चार पहिया वाहन अलग-अलग कम्पनी के ....भाँति-भाँति के मॉडल ...। दो पहिया वाहनों के अलग पार्किंग गेट और अलग पार्किंग स्थान। मोहल्ले जैसी बसावट...ठाकुर मोहल्ला,बामन मोहल्ला, बनिया मोहल्ला आदि आदि। सायकल सवार की तो कोई बखत ही नहीं है।
बड़े गेट से अन्दर प्रवेश कर गाड़ी जब ढलान पर उतरती ...बुकिंग ऑफिस के बाहर खड़ा चपरासी गाड़ियों में विराजे मालिक से पचास रुपये लेता और फिर एक पीली स्लिप थमा देता।इस प्रक्रिया में गाड़ियों की लम्बी कतारें लग जातीं। आदमी की जगह गाड़ी की लाइन .....ठीक ही तो है....आजकल रैली भी तो आदमियों की जगह गाड़ियों की निकलती है। फुर्र-फुर्र करती जब गाड़ियाँ अपनी भरभराहट और हॉर्न के आवेग से, स्पीड के साथ गतिमान होती है तो अपने पीछे काला धुँआ छोड़ जाती हैं वातावरण मे, जैसे व्यक्ति के जाने के बाद पीछे छूटा पाप-पुण्य....लम्बी कतारों में कनफोड़ू हॉर्न का शोर दम घोंट देता। मॉल की रंगीन दुनिया सबका मन मोह रही थी।लुभावने बोर्ड सबका ध्यान आकर्शित कर रहे थे। मॉल और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स किसी हाट या कस्बाई मेले से कम नहीं थे जहाँ एक ही स्थान पर कई वस्तुओं की विभिन्न बैरायटी उपलब्ध थीं।
पुरुश बाजार लेडीज कॉर्नर, बाल विहार सब अलग अलग माले में बसे थे। चौथे माले पर टॉकीज और रेस्तराँ थे। पुरुश के जूते, टाई, वेलेट, जीन्स, टी शर्ट ,सूट और स्वेटर की दुकानें। कई तरह के गेम्स, पेय पदार्थ और फास्ट फूड...।दुकान के गेट पर शीशे का गेट जिसमें से अन्दर की खूबसूरती दिखाई दे रही थी। अन्दर प्रवेश करते ही बला की रेडीमेड ठण्डक चेहरे को तरोताजा कर देती। सौन्दर्य की आभा बिखेरती युवतियाँ विभिन्न स्टॉल सहेजे हेैं। हर जगह महिला की उपस्थिति अनिवार्य कर दी गयी है।
जब भी नयी भर्ती होती उनकी पाँच दिन की ट्रेनिंग होती विज्ञापन में सुन्दर और आकर्शक व्यक्तित्व की डिमांड रखी थी और अविवाहित को प्राथमिकता दी जानी थी। संध्या पुरुश बाजार की एक शॉप में अटेण्डर थी, जहाँ रेडीमेड कपड़े बिकते थे। ट्रेनिंग में ग्राहकों को आकर्शित करने के गुेर सिखाये गयेे। उनके मन में वस्तु के प्रति आकर्शण कैसे पैदा करना है, वस्तु को खरीदने के लिये किस प्रकार प्रोत्साहित करना है, साथ ही यह भी कि ग्राहक को टच करने और उसके द्वारा टच किये जाने पर परहेज नहीं होना चाहिये। ग्राहक किसी दूसरी दुकान की ओर रुख न करे। सब कुछ बाजारवाद की नीति के अन्तर्गत ....उपभोग और उपभोक्ता की रुचि के अनुसार। सब कुछ समय के साथ चलने को बेलगाम...। स्टॉल पर उसका नाम संध्या से बदलकर सिद्धि कर दिया था। नये ज़माने में नया नाम होना चाहिये जो स्टाइलिश हो। मालिक की सलाह थी कि संध्या के मंगलसूत्र पहनकर और मांग भरकर न आये।जहाँ तक हो जीन्स टॉप या सलवार सूट पहनकर आये।
दुकान के अन्दर लिखा था-‘‘रंग, डिजाइन और बैरायटी चयन करने में सहयोग को तत्पर ’’...‘‘ग्राहक की संतुश्टि हमारा लक्ष्य’’
सिद्धि पुरुशों के रेडीमेड कपड़ों के स्टॉल पर तैनात थी। ग्राहको का आना शुरु हो गया.....सिद्धि मेम इन्हें कपड़े दिखाइये...। मालिक की आवाज ने उसे चौंका दिया। वह मुस्कान बिखेरकर कस्टमर की तरफ मुखातिब हुयी- ‘‘ कहिये मैं आपकी क्या मदद कर सकती हूँ ? ’’मुझे एक सूट खरीदना है आप कलर व डिजाइन पसन्द करने में मेरी मदद करेंगी ?’’उसने फिर से मुस्कराकर कहा ‘‘ व्हाय नोट ...श्योर...’’। वह कई कम्पनी के सूट दिखाना शुरु कर देती है ...ये देखिये ये रंग और डिजायन आप पर खूब फबेगा।’’
‘‘....इसकी क्वालिटी देखिये...’’
‘‘...ये न्यू पैटर्न का सूट है...’’ उसने मुस्कराते हुए कहा।
ग्राहक ने एक कोट उठाया तो उसने आदमकद शीशे की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘इधर आइये...’’ ग्राहक कोट शरीर से लगाकर देखने लगा। वह अपने स्टाल पर लौट आयी तब मालिक ने इशारा करके कहा कि वो ग्राहक की मदद करे। वह ग्राहक के पास आकर बोली, ‘‘लाइये मैं मदद करती हूँ’’ वह कोट पकड़कर खड़ी हो गयी... ग्राहक ने बाहें डालीं ...जब संध्या का सहयोग मिला तो ग्राहक ने कई कोट पहनकर देखे। शुरु-शुरु में उसे इन सब कामों में बहुत अटपटा लगा।
एक ग्राहक को स्वेटर खरीदना था ...उसने स्वेटर गले में डाला और बोला, ‘‘मैडम हैल्प प्लीज..’’ संध्या ने उसे स्वेटर पहनाया जैसे किसी बच्चे को पहना रही हो ....इस प्रक्रिया में संध्या के हाथ उसके शरीर को स्पर्श कर रहे थे...उसकी सांसें संध्या के नथुनों में समाती जा रही थीं। उस दिन संध्या ने घर आकर अर्जुन से कहा-‘‘मुझे नहीं करना ये नौकरी... मर्दों की गन्दी नजरों और गलत इरादों का सामना करना पड़ता है।’’
‘‘अरे तुमने दस हजार का बॉन्ड तीन साल के लिये भरा है। यदि इसके पहले नौकरी छोड़ोगी तो दस हजार बेकार चले जायेंगे।’’ अर्जुन ने दलील दी।
थोड़ा रुककर बोला, ‘‘कोई बात नहीं लौटकर नहा लिया करो सब पाप धुल जायेंगे।’’
संध्या खीझकर बोली, ‘‘ मैं मजाक के मूड में नहीं हूँ’’
उसका ध्यान फिर से बेटू की ओर खिंच गया। पता नहीं उसकी तबियत कैसी होगी। उसका मासूम चेहरा और बुखार से तपता बदन याद आ रहा था। चाहकर भी वो घर पर फोन लगाकर उसका हाल नहीं जान पा रही थी। दुकान में आते ही उसका मोबाइल काउन्टर पर रखवा लिया जाता। आज उसने मोबाइल स्विच्ड ऑफ नहीं किया था, बल्कि सायलेन्ट मोड पर रख छोड़ा था। अब तो लन्च टाइम में हीं देखना सम्भव हो सकेगा। लन्च टाइम भी पता नहीं कब मिल पायेगा। जिस दिन ज्यादा भीड़ होती लन्च टाइम देर से होता। उसमें भी जल्दी से लन्च फिनिश करके आना होता था।
वह बी. ए. ही कर पायी थी कि उसकी शादी हो गयी। फिर घर गृहस्थी में ऐसी रमी कि आगे पढ़ने का मंसूबा धरा रह गया। वह बिना झिझक थ्रो आउट इंग्लिश बोलती थी , इसी हुनर की वजह से उसे ये नौकरी मिल गयी थी। वह ग्राहक देखकर भाशा के अनुप्रयोग करती थी।
कोट वाले ग्राहक ने और सूट देखना चाहे। संध्या को खीझ आ रही थी वह चाहती थी यह ग्राहक जल्दी निबटे और वह लंच टाइम में मोबाइल देख ले। अभी वह उस ग्राहक को ही नहीं निबटा पायी थी कि ग्राहको की भीड़ आ गयी। सहालग का टाइम था। ये कुछ अवसर दुकान वालों के लिये सीजन होते हैं, जिनमें मुनाफा होता है। इन दिनों में दुकान वालों की भूख-प्यास सब गायब हो जाती है। कमीशन रखकर और कई तरह की लुभावनी स्कीम रखकर कस्टमर का ध्यान आकर्शित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते ये लोग। दुकानदारों में गलाकाट आपसी स्पर्द्धा समायी रहती।
जेैसे तैसे संध्या को लंच टाइम मिला। सबसे पहले उसने पर्स में से मोबाइल निकालकर चैक किया। उसमें घर के चार मिस्ड कॉल पड़े थे। उसने जल्दी से घर फोन लगाया। उसके हाथ कांप रहे थे सर्दी में भी उसके माथे पर पसीना आ रहा था। उसे पता चला कि बेटू को तेज बुखार है, वो लगातार उसे याद कर रहा है। ज्यादा रोने से उसे उल्टी भी हो गयीं। हो सके तो वो आधी छुट्टी लेकर आ जाये।
संध्या ने खाना भी नहीं खाया और मालिक के पास आकर बोली, ‘‘ सर मुझे छुट्टी चाहिये ...बेटा बहुत बीमार है। स्टॉल में दूसरी लड़की रानी से भी उसने बात कर ली कि वह उसका स्टॉल देख लेगी।रानी का नाम भी स्टॉल में प्रिंसी था। मालिक ने बेरुखी से कहा-‘‘ अभी सारग की भीड़ है इस भीड़ का हम साल भर इन्तजार करते हैं...तुम पहले भी काफी छुट्टी ले चुकी हो...तुम्हारे यहाँ रोज कोई न कोई बीमार बना रहता है...।’’
संध्या झल्लाकर स्टॉल पर आ गयी। इन लोगों ने काम करने वाला रोबोट समझ रखा है जिनकी भावनाओं और इच्छाओं का कोई मोल नहीं है। उत्पाद बेचना है ये तुम्हारी कला है हुनर है जैसे भी हो बेचना है ध्यान रहे कोई ग्राहक खाली हाथ वापस नहीं जाये।
ग्राहक के आते ही उसने बनावटी मुस्कराहट से उसका स्वागत किया। ग्राहक को इनर और लोअर चाहिये थे इनर का ऊपरी हिस्सा पहनकर जब ग्राहक ने दिखाया तो उसने अपनी स्वीकृति दे दी कि ये रंग ठीक है। ट्रायल रूम में वह लोअर पहनने गया। लौटकर उसने आँखें तिरछी करके संध्या से कहा, ‘‘ इसके बारे में आपकी क्या राय है ?’’ उसका इशारा समझकर संध्या अपना आपा खो बैठी। वह लोअर की तरफ इशारा न करके अपने उभरे अंग की ओर इशारा कर रहा था। संध्या ने उस ग्राहक से कहा- ‘‘आप कहना क्या चाहते हैं ? आपको लगता है हम यहाँ सब कुछ दाँव पर लगाकर बैठी हैं....’’ ‘‘अरे मॅैने ऐसा क्या कह दिया ?’’ कहा तो कुछ नहीं पर इशारा गलत था।’’ ‘‘नहीं मैने ऐसा कुछ नहीं किया आप मुझ पर आरोप लगा रही हैं’’ दोनों की बहस सुनकर मालिक पास आ गया। बिना कुछ माजरा जाने वह संध्या से बोला-‘‘ सिद्धि ! साहब को कुछ और माल दिखाओ ।’’ संध्या का दिमाग वैसे भी बेकाबू हो रहा था। बेटे का बीमार चेहरा आँखों के सामने घूम रहा था। उसके मन में द्वंद्व चलने लगा...ये सब मैं किसलिये कर रही हूँ, अपने घर, अपने परिवार और विशेशकर अपने बच्चे के लिये। जब बच्चे की परेशानी में वो उसके साथ नहीं रह पायेगी तो ऐसी कमाई किस काम की...? उसका क्रोध उफन पड़ा- ‘‘ सर! मैं आपको पहले भी सूचित कर चुकी हूँ कि पुरुश कस्टमर किस तरह से हम महिला अटेण्डर के साथ अश्लील व्यवहार कर रहे हैं... आपने ध्यान नहीं दिया। आज तो सारी हदें पार हो गयीं....यह मेरा अपमान है ...मेरे अस्तित्व का सवाल है। नारी जाति के गौरव का अपमान है। अभी तक तो अन्य लोगों की छोटी-मोटी हरकतें हुयी थीं पर आज जो इन्होंने किया है उससे मर्यादा की सारी सीमाएँ पार हो गयीं। आप लोग हम लोगों की इज्जत आबरू की रक्षा नहीं कर सकते तो उसके साथ खिलबाड़ तो मत होने दीजिए।’’
अब तक कई लोग वहाँ जमा हो चुके थे। संध्या के मन को ठण्डक मिल रही थी। उसने अपना बैग उठाया और बोली- ‘‘ संभालिये अपना राज काज ...मैं जा रही हूँ ...और हाँ मेरे बॉण्ड के रुपये डकारने की कोशिश मत करना । ’’ कहकर वह आवेश में शॉप से बाहर निकल गयी।
पद्मा शर्मा
एफ-1 प्रोफेसर कॉलोनी,
शिवपुरी म. प्र. 473551
9406980207