रात का समय था। लॉस एंजेलिस की बहती हवा में शांति छाई हुई थी। आसमान में चाँद - तारे और बादलो के बीच लुका छुपी का खेल चल रहा था...और नीचे मुस्कान और उसके पापा निखिलेश के बीच गंभीर चर्चा हो रही थी। कुछ हुआ और मुस्कान दौड़ के छत पे चली गई।
आज तक उसने जो कुछ भी किया वो अपने पिता की खुशी के लिए किया। वो जैसे तैसे खुद को संभाल रही थी मगर आज जो हुआ वो उसकी बर्दाश से बाहर था। वो अब जीना नही चाहती थी। उसने आसमान की ओर देखा और किसीको याद करते हुए कहा कि,
"मुझसे ये नही होगा....अब मैं नही जी सकती...."
वह छत से छलांग लगाने जा ही रही थी कि कहीं से एक गाने की हल्की धुन सुनाई दी...
" तेरे मेरे दरमियाँ है
बातें अनकही,
तू वहाँ है मैं यहाँ क्यों
साथ हम नही,
फ़ैसले जो किये,फासले ही मिले,
राहे जुदा क्यों हो गई,
ना तू गलत, ना मैं सही,
लेजा मुझे, साथ तेरे...
मुझको ना रहेना साथ मेरे..."
इस गाने की हर एक लाइन, हर एक शब्द उसकी जिंदगी की रुह से जुड़ा था। गाने की आवाज सुन वह जोर से चीखी, " अरमान..न...." और सालो से दबाए आँसू के बंध को तोड़कर वह दिल फाड़कर रोने लगी।
मुस्कान की मायूसी को देख चाँद भी बादलों के पीछे छुप गया।
आसमान में चमकते तारो में मुस्कान अपनी जिंदगी की कहानी के बिखरे हुए पन्ने को समेटने लगी।
●●●●●
1. [जब मुलाकात हुई...पहली झलक...]
पाँच साल पहले....
निखिलेश और ज्योति मुस्कान की होस्टेल जाने की तैयारियां कर रहे थे और मुस्कान उदास बैठी थी।
"आप दोनों की वहापे बहोत याद आती है, जाने का बिल्कुल मन नही कर रहा, पापा"
"बस, अब तो दो साल की ही बात है। फ़िर हमारी डॉक्टर बिटिया हमारे साथ ही रहेंगी।"
"ये दो साल कब गुज़रेंगे??"मुस्कान मुह लटकाए कमरे से बाहर चली गई।
(मुस्कान निखिलेश और ज्योति की इकलौती बेटी थी। वह स्वभाव में एकदम शांत थी एवं पढ़ाई में बहोत होशियार थी। टॉप करना उसकी आदत थी।किताबे उसका प्यार थी और मम्मी पापा उसकी जान...और उसी जान मतलब उसके पापा के सपने को पूरा करने के लिए वह उससे दूर रह के शहर में MBBS की पढ़ाई कर रही थी।अब उसकी पढ़ाई पूरी होने में दो साल बचे थे और ये दो साल उसे दो सदी जैसे लग रहे थे।)
उदास बैठी मुस्कान मेगेज़ीन के पन्ने पल्टा रही थी।ऐसे में उसकी नज़र एक पन्ने पर थम गई। उसमें लिखा था,
"इंडिया के सिंगिंग के इतिहास में पहली बार इतनी कम उम्र का सिंगर रियालिटी शो का जज बनेगा। अरमान शेख ने 23 साल की उम्र में इतनी बड़ी कामयाबी हासिल कर अपना नाम इतिहास के पन्नो पर सुवर्ण अक्षरो से लिख दिया।"
"अरमान शेख..."
"मुस्कान, चलो बेटा, खाना खाने।" आवाज़ ने उसे गहरे विचारों में से बाहर खिंचा।
सबने साथ मिलकर खाना खाया और ढ़ेर सारी बाते की। थककर सब टीवी चलाकर बैठे।
"बड़ा सा दरवाजा खुला और कोई स्टेज पर गाना गाते हुए चला आ रहा था। सभी जज स्टेज के सामने ख़ुर्शी पल्टा के बैठे थे। ऐसे में आवाज सुनते ही एक जज ने ख़ुर्शी पलटाई और दौड़कर स्टेज पे जाके अपने पापा के गले लग गया। उसकी आँखें गीली हो गई। शो के पहले ही दिन बाकी तीन जजस ने उसके पापा को स्टेज पर बुलाकर उसे सरप्राइस दिया था। ये उसकी जिंदगी का बहोत बड़ा सरप्राइज था। वह बहोत इमोशनल हो गया और दुनिया के सामने अपने पापा को गले लगाकर वह रो रहा था। उसने अपने पापा को अपनी जज की ख़ुर्शी पे बिठाया और पूरी दुनिया के सामने उसका शुक्रियादा किया और एक गाना भी गाया।
बहोत बुरे दिनों को हराकर मेरे बेटे ने ये कामयाबी हासिल की है। जो मैं अपनी पूरी जिंदगी में नही कर सका वो इसने इतनी छोटी उम्र में कर दिखाया...मेरे सारे सपने पूरे किए है मेरे बेटे ने, मुझे बहोत गर्व है इस पर...."इससे आगे वह कुछ न बोल पाए और दोनों अपने आँसू रोकने लगे। इन दोनों को देख शो पे सभी की आँखे गीली हो गई।
और यहाँ घर पर भी ये सिन देखकर सब इमोशनल हो गए। तभी मुस्कान के दिल में आहट हुई,
"क्या यही है अरमान शेख...???"
हा। ये जज ओर कोई नही बल्कि अरमान शेख था।उसने 23 साल की उम्र में जज बनकर संगीत की दुनियामे धूम मचा दी थी। हमेशा किताबो में खोई रहनेवाली मुस्कान आज किसी ओर में खो गई थी। अंजानेमेही सही अरमान शेखने उसके दिल में दस्तख दे दी थी।
कितना नसिबवाला है वो...सबके सामने उसे अपने पापा को शुक्रियादा करने का मौका मिला,उसने अपने पापा के सारे सपने इतनी कम उम्र में पूरे किए...और ऐसे इंसान को मैंने आज पहली बार देखा?? कहा थी मैं अब तक??
मुस्कान की तो रात की नींद जाने अरमान नामका चाँद उड़ा ले गया...उसने रात भर जागकर अरमान के बारे में सर्च किया...उसके सभी इंटरव्यू, सभी गाने, हर एक छोटी से छोटी चीज जानली...
उसके लिए हेरानीकी बात ये थी कि उसका सबसे पसन्दगीदा गाना " लेजा मुजे साथ तेरे...मुझको न रहना साथ मेरे..." जो उसके दिल के बहोत करीब था वो अरमान ने ही गाया था...दिल के इतने करीब होने के बाद भी उसने कभी भी उस सिंगर के बारे में जानने की कोशिश नही की थी और आज वो इस तरह सामने आया था।
जैसे जैसे वो उसके बारे में जान रही थी उतनी ही वो अरमान के करीब जा रही थी। उसकी सभी बातें मुस्कान जैसी लड़को में रुचि न रखनेवाली लड़की को भी प्रभावित कर रही थी।
मुस्कान भी प्रभावित क्यों न हो? अरमान था ही ऐसा... दुनिया में कुछ लोग ही होंगे जिसे भगवान ने एक साथ इतनी सारी खुबिया दी हो...
अरमान पढ़ाई में भी बहोत होशियार था...दिखने में भी बहोत सुदर था और सबसे खास बात इतनी कम उम्र में उसने पढ़ाई के साथ अपने काम को इम्पोटन्स देकर इतना आगे बढ़ा...फिरभी न कोई अभिमान और न कोई बुरी आदत...नई चीज़े सीखने के लिए वो हमेशा तैयार... यही तो होता है जिंदगी में कामियाब होने के तरीका।
उसके बारे में इतना सब कुछ जानने के बाद मुस्कान इस बात से हैरान थी कि कोई इतना परफेक्ट कैसे हो सकता है??
कल तक जिस नाम का मुस्कान की जिंदगीमें कोई अस्तित्व तक नही था सहसा वह नाम आज उसके दिलो दिमाग में छाया हुआ था।
घड़ी चलती रही...दिन बीतते गए....रातें ढलती रही...और अरमान की बातें, अच्छाइयां और उसकी कामयाबि का जुस्सा सब मुस्कान के खून में घुलता गया। वो अब अरमान को अपना आदर्श मानने लगी थी।
वो भी उसकी तरह अपने पापा का नाम रोशन करना चाहती थी, अपनी पहचान बनाना चाहती थी, पूरी दुनिया घूमना चाहती थी, कई सपने पूरे करने थे उसे....और जब भी वो थक जाती थी या निराश होती थी तब अरमान की तस्वीर देखती थी और उसे याद करते ही उसमे एक नई ऊर्जा सी शक्ति आ जाती...।
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2.[अपने आदर्श को मिलने की कोशिश]
रोज अरमान के बारे में कुछ ना कुछ नया जानते जानते कॉलेज के आखरी दो साल कैसे बित गए ये मुस्कान को पता ही नही चला। समय हवा की तरह उड़ गया और अपना काम कर गया।
इन दो साल में मुस्कान पहले जैसी सिर्फ पढ़ाकू मुस्कान नही रही थी...वो काफी बदल गई थी। अपनी जिंदगी और अपने सपनो को दिल से जीती थी।
मुस्कान ने चौथे साल यूनिवर्सिटी टॉप किया और आज उसकी इंटर्नशिप का आखरी दिन था। घर जानेकी खुशी और कुछ नये सपनों को पूरा करने की आशा उसके चहेरे का निखार बनके झलक रही थी।
वह अपना सामान पैक कर रही थी कि पिछेसे कोई हवा की तरह सामने आया....
"महेर...तूने तो डरा ही दिया मुझे...बता, आज इतनी खुश क्यो है मेरी बेस्ट फ्रेंड?"
"अरे मुस्कान, खुशी की बात है तो में खुश ही होऊँगी ना..."
"अच्छा, पर बता तो सही की बात क्या है?"
"हा... तो ध्यान से सुन....आज मेरे मम्मी पापा मुंबई शिफ्ट हो गए.... येएए....और में कल यहासे सीधा मुंबई जाऊगी अपने नए घर....।"
"वाउ, ये तो बड़िया न्यूज़ है, तो मेरी सहेली चली मुंबई... मुजे यहां अकेला छोड़...।"
"हा... वैसे चाहे तो तू भी मेरे साथ आ सकती है। में तुजे तेरे सपनो के राजकुमार अरमान से मिलवा दूँगी..."
मुस्कान ने जोर से महेर का कान खिंचा और कहा..."तू मुझे उसके साथ चिढ़ाना कब बंध करेगी हा?? मैं उसे अपना आदर्श मानती हूं बस और कुछ नही। और तू मुझे क्या मिलवाएगी??? उससे मिलने की सारी व्यवस्थाए मैंने पहलेसे ही कर रखी है....सो.. मेडमजी आप मुंबई जाए और मेरे स्वागत की तैयारी कीजिए..।"
"पर...तेरे पापा मानेंगे?"
"हा। उसका भी उपाय है मेरे पास....सरप्राइज....
(कहके उसने बैग में से एक लेटर निकाला।)
जब हमारी इंटर्नशिप शुरू हुई तब मैंने एक नूट्रिशनिस्ट के वहां एप्लाय किया था...और उसने मुजे ट्रेनिंग के लिए 6मन्थ बुलाया है। और इसमें सरप्राइज वाली बात ये है कि वह मेम अरमान की भी न्यूट्रिशनिस्ट है।"
"वाह....तू तो बड़ी तेज निकली....अच्छा तो जल्दी आजा मुंबई.... मैं तुम्हारा इंतज़ार करूँगी।"
रात हो गई...कई लड़कियां घर चली गई थी। मुस्कान होस्टेल की छत पर बैठ के सारा केम्पस देख रही थी...बहती ठंडी हवा में पाँच साल की सभी यादे ताजा हो गई...यहाँ की छोटी सी जिंदगी उसने आँख बंध करके खुले आसमान और तारो के बीच फिरसे जी ली। अब उसके चहेरे पर अलग ही चमक थी क्योंकि वह अपना एक सपना पूरा करने मुंबई जाने वाली थी।
दूसरे दिन सुबह की पहली ट्रेन में वो घर गई....सब बहोत खुश थे। उसने अपने पापा को मुंबई जाने वाली बात बताई और वह भी अपनी बेटी की खुशी में राज़ी हो गए।
एक हफ़्ते में मुस्कान चली मुंबई। ये शुरुआत थी उसकी जिंदगी के नए मोड़ की। बड़े उत्साह के साथ वह पहोंची महेर के घर....महेर के कमरे में सामान रख दोनों सहेलियां चली मुंबई की गलियो में....
*****
मुस्कान को मुंबई आए कई दिन हो गए लेकिन उसकी इच्छा अभी तक पूरी नही हुई थी।
"महेर, मुझे यहाँ आए एक महीना हो गया अभी तक मैं अरमान को नही देख पाई...सबसे पॉसिबल रस्ता चुना था मैंने लेकिन मैं अभी तक उनसे नही मिल पाई।"
"हा, तो तुझसे ये किसने कहा कि उसके फेमिली डॉ. के यहाँ काम करने से तू उनसे मिल पाएगी???कभी हॉस्पिटल में से भी बाहर निकल मेरी बहन, तुम पूरा दिन वहापे काम करती हो और रात को दूसरी हॉस्पिटल नाईट शिफ्ट करती हो...ऐसे कैसे अरमान मिलेगा???कभी ख़ुद को भी छुट्टी दो, मेरे साथ घूमो, फ़िरो....शायद वह तुम्हे बाहर ही मिल जाए।"
"देखते है महेर जी....अब सो जा, गुड़ नाईट।"
मुस्कान अपनी मंजिल की राह पर तो थी लेकिन मंज़िल मिलना इतना आसान नही था।
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3.[क्या मैं कभी उसे मिल पाऊँगी???]
एक दिन डॉ. हेमा ने मुस्कान से कहा," मुस्कान, आज दोहपर मैं बाहर जा रही हु। अरमान आएगा अपनी रिपोर्ट्स लेने उसे ये दे देना।"
इस खबर ने तो मानो उसकी दुनिया बदल दी। उसके दो साल का इंतजार आज खत्म होने वाला था। छोटे से गांव से मुंबई तक का सफर सफल होता नजर आ रहा था। अब तो एक एक मिनिट बिताना उसके लिए मुश्किल हो रही थी। नजरें दरवाजे पे पहेरा दिए जमी थी। उसे मिलने की बेताबी बढ़ती जा रही थी। उसने खुशी में महेर को भी कॉल कर के सबकुछ बता दिया।
धीरे धीरे शाम होने को आई, बेताबी उदासी में परिवर्तित हो रही थी। उसी बेताबी के बीच गाड़ी की आवाज सुनाई दी।
वह झट से खड़ी हो गई और तैयार हो गई अपने इंतज़ार तो खत्म करने।
कोई व्हाईट कपड़ों में उसकी ओर कदम बढ़ा रहा था।
पर ये क्या??? ये तो अरमान नही है।
मुस्कान के चहरे की चमक वह इंसान पल भर में निगल गया।
" मेम, मेम.....मैं अरमान सर की रिपोर्ट लेने आया हूं।"उस ड्राइवर ने मुस्कान को खामोशी में से बाहर खिंचा।
मुस्कान के मुह से एक शब्द नही निकला और वह इंसान रिपोर्ट लेके चला गया।
यहाँ महेर घर पे मुलाकात के बारे में सुनने के लिए बेताब थी मगर घर लौटी मुस्कान का मायूस चहेरा देख वह कुछ न बोली और सिर्फ उसे गले लगा लिया।मुस्कान रोना चाहती थी मगर खुद पे काबू कर के वह बोली,
"महेर, कहि यहाँ आ के मैंने गलती तो नही की??क्या मैं कभी उससे नही मिल पाऊँगी??? सिर्फ एक बार देखना, बस यही तो चाहा है मैंने, उससे ज्यादा कहा माँग रही हु??" न चाहते हुए भी आँखों से आँसू बहने लगे।
उस रात मुस्कान यु ही उदास हॉस्पिटल चली गई। आँखों ने जबकी लेना चाही तो नर्स ने आके उठाया,
"मेम, एक पेशंट आया है, सर आई.सी.यु. में है इसलिए उन्होंने आपको दिखाने के लिए कहा है।"
"अच्छा, भेज दो उसे अंदर..."
पेशेन्ट लंगड़ाता हुआ अंदर आया।
पेशेन्ट को देखकर उसकी ज़मीन हिल गई। कहीं वह गिर न जाए उसके डर से उसने कस के टेबल थाम लिया। उसने कभी भी नही सोचा था कि वह अरमान को यहाँ देखेंगी....वो भी इस हालत में। साथ मे उसकी मोम भी आई थी, उसने बताया कि अरमान के पैर में मोच आ गई है।
अरमान को देख वह खुशी से चिल्लाना चाहती थी मगर आवाज़ ने भी उसका साथ छोड़ दीया। उसके हाथ काँप रहे थे और दिल बड़ी तेजी से धड़क रहा था।अरमान को देख मुस्कान का न तो काँपते हाथो पे काबू था और न ही धड़कते दिल पे। कमरे में शांति छाई हुई थी।
बड़ी मुश्किल से उसने पैर का इलाज किया। वह ठीक से मेडिसिन भी न लिख पाई, और दर्द में बैठा अरमान ये सब देख रहा था।आखिर में अरमान को जाते देख बड़ी मुश्किल से बोली,
"ध्यान रखना..."
"जी, शुक्रिया..."कहके वे दोनों वहासे चले गए और यहाँ मुस्कान सीधा महेर के पास.... उसके अंदर मानो नई सी जान आ गई थी।
ये सहसा मुलाकात के बारे में सुन महेर भी बहोत खुश हुई।
"पर पता नही मुझे क्या हो गया था?? मैं कुछ भी बोल न पाई और ऊपर से ये काँपते हाथ, वह मेरे बारे में क्या सोच रहे होंगे??"
"वो सब छोड़, तूने उसे देख लिया न बस।"
"हा, ये तो है....आज मैं बहोत खुश हूँ।"
दूसरे दिन डॉ. हेमा क्लिनिक में नही थी और अरमान उससे मिलने आया, तब वहाँ मुस्कान को देख वह चौंक गया,
अरमान : "तुम?? तुम यहाँ??"
अरमान को देख अपने धड़कते दिल को संभालते मुस्कान बोली, " जी, वो मैं यहाँ रहती हूं....मतलब मैं यहाँ काम करती हूं।"
अरमान : " अच्छा, पर तुम ठीक तो हो??"
मुस्कान : "ह...हा.., मैं तो ठीक ही हूं, आपकी मोच केसी है अब???"
अरमान : "ok... वो कल भी आप...खैर छोड़ो मेरा पैर कल से बहेतर है।"
मुस्कान : "अच्छा, मगर आप यहाँ??"
अरमान : "हा, वो कल मैं रिपोर्ट लेने नही आ सका था इसलिए आज डॉ. हेमा से मिलने आया हूं।"
मुस्कान : "वह तो अभी बाहर गई है, थोड़ी देर में आ जाएगी। आप तब तक यहाँ बैठिये।"
अरमान : " अच्छा..."
(कमरे में फिरसे सन्नाटा छा गया। अरमान अपने फोन में आँखे गड़ाए बैठा था और मुस्कान उस पर।)
थोड़ी देर में डॉ. हेमा आई और उसने क्लिनिक में अरमान और मुस्कान को इस तरह देख कहा,
"अरे मुस्कान, अरमान यहाँ बैठा है और तुम इतनी चुप हो??? तुम्हे बाते नही करनी अरमान से??"
अरमान ये सुन असमंजस में पड़ गया।
डॉ. हेमा : "अरे ये तुम्हे कब से मिलना चाहती थी...."
मुस्कान ने बीच में ही बात काटते कहा , " मेम वो ये कल के रिपोर्ट के बारे में बात करने आए थे।"
अरमान : " एक मिनिट, कहीं कल मुझे देखकर तो तुम्हारे हाथ ....?"
मुस्कान शर्म से कुछ न बोल पाई और सब हसने लगे।
बस, अब क्या??
अब तो उन दोनों की कभी पैर की चोट के लिए तो कभी डॉ. हेमा के क्लिनिक पे मुलाकात हो जाती थी। धीरे धीरे दोनों में दोस्ती हो गई।
अरमान को भी उससे बाते करना अच्छा लगता था। वो हररोज़ कई लोगो से मिलता था, उसके कई चाहक थे, मगर मुस्कान उन सब से थोड़ा अलग थी। अजीब क़िस्म की शांति का समुंदर थी वह, लोगो के गुस्से को सुकून में कैसे बदलना है ये वह अच्छे से जानती थी।सबकी बातों और आदतों को गहराई से समझती थी वो....
बस दोनों की खासियतें ही उसे एक दूसरे के करीब ले आई।वैसे तो अरमान अपने कामों में बहोत व्यस्त रहता था लेकिन कभी न कभी वह कोई बहाने से मुस्कान से बातें कर लिया करता।
समय बीतता गया और दोनों की दोस्ती और गहरी हो गई।
मुस्कान को मुंबई आए 6महीने हो गए....एक दिन डॉ. हेमा ने उसे कहा,"तुम बहोत काबिल डॉ. हो, अब यहाँ रहके अपना समय बर्बाद मत करो। आगे की पढ़ाई करो या अपना क्लिनिक खोलो।"
मुस्कान : "जी मेम, वैसे भी 6 महीने खत्म हो गए है।आपके पास से बहोत कुछ सीखने को मिला, दिल से शुक्रिया मेम।"
डॉ. हेमा : "तुम्हे कभी भी मेरी जरूरत हो तो बेजिजक यहाँ आ जाना। all the best..."
मुस्कान ने क्लिनिक में से अपना सारा सामान पैक कर लिया।
वह कुछ नया सोचती उससे पहले उसके घर से बुलावा आ गया। उसकी मम्मी का फोन था कि निखिलेश की तबियत थोड़ी नर्म हो रही है। इसलिए वे दोनों चाहते थे कि मुस्कान अब उसके साथ रहे।
मुस्कान ने अपना सारा सामान पैक कर लिया। और वह हमेशा के लिए मुंबई छोड़के जा रही थी इसलिए महेर के घर वालो ने उसके लिए छोटी सी फेरवेल पार्टी रखी।
घर पे पार्टी की तैयारिया चल रही थी और यहाँ कमरे में दोनों सहेलिया अपनी पुरानी यादों को तस्वीरों में सहेज कर रख रही थी।
मुस्कान : "मैं तुम सबको बहोत याद करूँगी। खास कर तुझे....कॉलेज से लेके आज तक मेरा साथ देने के लिए शुक्रिया मेरी बहन..."
(दोनों सहेलिया अपनी दोस्ती के रिश्ते को आँसूओ से भीगा रही थी।)
महेर : "मैं वेकेशन्स में तुम्हें मिलने आऊंगी....बस अब रुला मत, मेरा मेकअप बिगड़ जाएगा।"
(दोनों ने आँसू पोछे और महेर आ गई फिरसे अपने मस्ती के मूड में।)
महेर : "वैसे तू सिर्फ मुझे ही याद करोगी की फिर अरमान को भी?? ह ... ह???"
मुस्कान : "उसे भी याद करूँगी पर इसबार दिल में एक तसल्ली है कि मेरा उसे देखने का , उसके लिए कुछ करने का ख्वाब पूरा हो गया....अब मैं खुशी खुशी घर जा सकूँगी।"
महेर : "वैसे आज की पार्टी में हम उसे भी बुला ले तो???"
मुस्कान : "बहोत बढ़िया, इसी बहाने मैं उससे आखरी बार मिल भी लूँगी, जी भरके देख लूँगी।"
महेर : "अच्छा तू उसे बता दे, मैं बाहर तैयारियां देखती हूं।"
मुस्कान अरमान को कॉल कर के सब बताती है।
अरमान : "क्या?? तुम हमेशा के लिए जा रही हो ? मगर तुम अपना क्लीनिक यहाँ भी तो खोल सकती हो... अपने मम्मी पापा के साथ शिफ्ट हो सकती हो।"
मुस्कान : "मगर पापा मुंबई में कभी अपना पाँव नही रखेंगे। पता नही क्यों लेकिन ये पॉसिबल नही। वैसे भी यहाँ पे अब मेरा काम खत्म हो चुका है। शाम को आपका इंतजार रहेगा।"
सामने से सिर्फ हम्म आया और फोन कट हो गया।
अरमान को कुछ अजीब सी बेचैनी हुई। चहेरे पर कुछ नही था लेकिन दिल मायूस हो गया।
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4.[साथ लिए कुछ हसीन यादे खत्म हुआ ये सफ़र]
शाम हो गई। सभी दोस्त और महेमान आ गए।इस छोटी सी पार्टी की शान मिस मुस्कान रेड वनपीस पहनें, अपने घुटनों तक लहराती खुली ज़ुल्फो को सहलाते हुए, हाई हिल्स की टक...टक..आवाज के साथ नीचे आई।अपने सीरियस लुक वाले बड़े चश्मे के बिना वह ज्यादा खूबसूरत लग रही थी। उसका ये रूप सब देखते ही रह गए...सबकी नज़र उस पर थी लेकिन मुस्कान के नजरो की तो एक ही मंजिल थी..'अरमान'।
वह अरमान से मिलने गई। अरमान ने पहना हुआ डार्क ब्ल्यू जैकेट और उसपे लगे छोटे से क्राउन ब्रॉच को देख मुस्कान मुस्कुराई।
अरमान : "बहोत खूबसूरत लग रही हो।"
मुस्कान : "शुक्रिया। आप भी।"
अरमान : "तुम्हारी बहोत याद आएगी। अच्छा वक्त गुजरा तुम्हारे साथ।" अरमान ने अपनी उदासी व्यक्त की...
मुस्कान : "याद तो मैं भी आपको बहोत करूँगी, कितना ये आप कभी नही समझ पाएंगे और वैसे भी यहाँ रुकने की अब कोई वजह नही बची..."
(दोनों में फिरसे चुप्पी छा गई।)
मुस्कान अपने दूसरे दोस्तो को मिलने चली गई और अरमान उसे ऐसे ही देखते रह गया....कुछ अजीब से अहेसास को लेकर।
जैसे ही मुस्कान गई कि महेर ने अरमान को अपनी पकड़ में लिया।
महेर : "ये सब क्या चल रहा है अरमान?? ये जैकेट और ये उदास चहेरा, कहि तुम???"
अरमान : "क्या?? क्या सब??"
महेर : "तुम मुस्कान को आखरी बार मिलने ये जैकेट पहनकर क्यों आए??? कहि आज तुम उसे प्रपोज तो ???"
अरमान : "वोट?? एक...एक मिनिट, तुम कहेना क्या चाहती हो?? ये जैकेट, मुस्कान और प्रपोज़ इन सब का क्या ताल्लुक??"
महेर : "बस..बस, मुझे बुध्धु मत समजो। तुम आज उसका दिया जैकेट पहनकर आए तो मेरा शक जाहिर है।"
अरमान : "क्या ये जैकेट मुस्कान ने भेजा था?? मुझे कुछ समझ में नही आ रहा तुम कहना क्या चाहती हो??
महेर : " तुम्हें अब तक नही पता?? ये जैकेट क्या उसने तो खुद को भी तुम्हारे लिए यहाँ भेज दिया।"
अरमान : "मतलब..."
महेर : " मुस्कान ने तुम्हें मिलने के लिए क्या कुछ नही किया। वो यहाँ आई ही तुम्हारे लिए थी। तुम्हे वो देख सके, तुम्हारे लिए कुछ कर सके इसीलिए उसने तुम्हारे न्यूट्रिशनिस्ट के वहाँ एप्लाय किया था, वरना उसका तो मुंबई के साथ दूर दूर तक कोई नाता नही है।
उसने आखरी साल में यूनिवर्सिटी टॉप किया था वो भी तुमसे मोटिवेट होके, इसीलिए अपनी खुशी तुम्हारे साथ बाटने के लिए उसने खुद ये जैकेट डिज़ाइन किया और तुम्हे भेजा।
अपनी पॉकेटमनी से पैसे बचाकर किताबे खरीदने वाली लड़की वही पैसे से तुम्हारे कॉन्सर्ट की टिकिट खरीदने लगी थी ताकि तुम्हारी आवाज़ को महसूस कर सके, वोट्स उप से भी दूर रहने वाली लड़की ने तुम्हें फॉलो करने के लिए सभी सोशियल मीडिया पे एकाउंट बनाया।
पिछले दो सालों से तुम उसकी दुनिया बन चुके हो और तुम्हें उसकी ही दुनिया के बारे में कुछ नही पता??"
ये सब सुन अरमान हेरान रह गया क्योंकि वह एक साल से ये जैकेट भेजने वाले को ढूंढ रहा था क्योकि ये गिफ्ट सभी चाहक गिफ्ट से अलग था और आज पता चला कि वह ओर कोई नही बल्कि मुस्कान ही थी।
फिर अरमान ने मुस्कान के लिए एक गाना गाया।
पार्टी खत्म हुई। अरमान मुस्कान को गले मिल सब हमेशा के लिए जुदा हुए।
मुस्कान की आँखों मे आँसू देख महेर झपक के बोली,
" मुस्कान आज तू पकड़ी गई, अब मुझसे जुठ मत बोलना। तुम प्यार करती हो अरमान से...राइट??"
मुस्कान : "पता नही। मगर अजीब सा डर लग रहा है। ये सब छूटने का। उसकी दुनिया तो बहोत बड़ी है। कितने चाहक है उसके। उसकी इस बड़ी सी दुनिया में मैं कहीं खो जाउंगी...मेरे सारे सपने पूरे हो गए है फिर मुजे ये डर क्यों लग रहा है??"
महेर : "क्योंकि तुम्हे उससे प्यार हो गया है।"
तभी मुस्कान के फोन की घंटी बजी।
"अरमान का फोन??..." वह आगे कुछ पूछे उसके पहले ही सामने से आवाज़ आई,"क्या तुम एक घंटे के लिए मेरे साथ आ सकती हो?? मैं तुम्हारे घर के नीचे खड़ा हूँ जल्दी आ जाओ।"
मुस्कान के पास ओर कोई चॉइस नही थी। वह उसी कपड़ो में उसके साथ चली गई।
मुस्कान : "आप ठीक तो है? रात के 11 बजे हम कहा जा रहे है?? किसीको कुछ हुआ है क्या??"
मुस्कान के सभी सवालों के जवाब में अरमान ने सिर्फ एक मुस्कान दी और उसने गाड़ी घुमाई वर्सोवा के बीच की ओर, जाके रुके the house कैफ़े में।
बीच के नजदीक बनी ये सुकूनदायक जगह फूलो से सजी और भी सुंदर लग रही थी। कैफ़े में उन दोनों के अलावा और कोई नही था।
अरमान ने धीरे से मुस्कान का हाथ पकड़ा और उसे कहा, " तुम कह रही थी कि यहाँ रुकने की तुम्हारे पास अब कोई वजह नही है। अगर मैं कोई वजह दु तो??"
चारो ओर सजे फूलो की महक और हवा में बह रही शांति के साथ मुस्कान के धड़कनो की आवाज उसके कानों तक गूंज रही थी।
अरमान : "मुझे एक बार देख तुम्हारा सपना पूरा हो गया लेकिन मेरा सपना यही से शुरू होता है, मैं तुम्हे हररोज देखना चाहता हु।क्या तुम मेरा ये सपना पूरा करने में मेरी मदद करोगी?? जब हम साथ थे तब मैं ये नही जान सका, या जानने का समय ही नही था मेरे पास लेकिन आज जब तुम हमेशा के लिए जा रही हो तब ये अहेसास हुआ कि मैं तुमसे प्यार करता हूं। क्या तुम अपनी सारी जिंदगी मेरे साथ बिताना चाहोगी??"
ये सब सुन मुस्कान बेहोश सी हो गई।अचानक ये सब उसे एक सपने जैसा लग रहा था।
मुस्कान : "आप?? ये सब....? आप मुझसे कैसे प्यार कर सकते हो??"
अरमान : " क्यो नही कर सकता।"
मुस्कान : "क्योंकि मैं एक आम लड़की हु और आप.."
अरमान : "क्यों? मैं आम लड़कीं से प्यार नही कर सकता ?? दूसरों के लिए में खास हु, स्टार हु मगर मैं खुद के लिए तो आम ही हु न!!"
मुस्कान : "आपसे ये सुनना मेरे लिए बहोत बड़ी बात है। आप नही जानते मैं आपसे कितना प्यार करती हूं। जिंदगीभर आपका साथ निभाना ये मेरी खुशनसीबी है। आप..."
अरमान ने बीच में ही टोकते हुए कहा, " तुम्हे कुछ कहने की जरूरत नही मैं सब जानता हूं और पहले ये तुम मुझे आप कहना बंध करो..."
उछलते समुंदर और खुले आसमान के नीचे अरमान के गिटार की धुन के साथ रात यूं ही बीत गई। आसमान के चाँद तारे इस शुरू हुई नई कहानी के गवाह बने।
" बातें जरूरी है, तेरा मिलना भी जरूरी,
मैंने मिटा देनी ये जो तेरी मेरी दूरी
जूठी है वो राहे सारी दुनिया की,
इश्क जहाँ ना चले,
तेरा होना, मेरा होना क्या होना,
अगर ना दोनों मिले
तू पहला पहला प्यार है मेरा...
तू पहला पहला प्यार...."
घर जाके मुस्कान ने महेर को सारी बात बताई, दोंनो सहेलिया खुशी से ज़ूम उठी।
महेर : " तेज बारिश में कोई छाता लेकर भले ही निकले लेकिन वह थोड़ा तो भीग ही जाता है,ठीक वैसे ही तुम्हारे इतने प्यार का थोड़ा अहेसास उसे भी तो होना ही था। फाइनली तुम दोनों की कहानी शुरू हुई।"महेर ने चिढ़ाते हुए कहा, " अब तो तुझे रातो को नींद भी नही आएगी, ह..."
मुस्कान : "मैं सोना भी नही चाहती। कहि ये सब सपना हुआ तो?? और अगर ये कोई सपना है तो मैं इसे मन भरके जी लेना चाहती हु"
महेर : "अरे बाबा, ये सपना नही सच ही है, वह सच में तुमसे प्यार करता है। अब सो जा, कल जल्दी निकलना है।"
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5.[ये सब क्या हो गया?? सब बदल क्यों गया??"]
दूसरे दिन मुस्कान घर पहोंची।उसे देख उसके पापा के चेहरे पे चमक आ गई।
" मेरी बच्ची, कितने सालो बाद तू हमेशा के लिए घर लौटी..."
घर का माहौल अच्छा देख एक शाम मुस्कान ने अपने मम्मी पापा को अरमान वाली बात बताई।
निखिलेश : "तो तुमने क्या कहा?"
मुस्कान : "मैं भी अपनी जिंदगी उसके साथ बिताना चाहती हु पापा, मेरे लिए ये सब एक सपना सच होने जैसा है।"
निखिलेश : " आदर्श को आदर्श ही रहने दो बेटा, उसे प्यार समझने की भूल मत करो। अब तू यहाँ आ चुकी हो थोड़े दिनों में तुम ये सब भूल जाओगी।"
मुस्कान ये सुन हेरान रह गई, " मैं नही भूल सकती पापा, और न ही अरमान भूलेगा..."
निखिलेश : "तुम नही समजोगी।जो लड़का चार दिन तुम्हारे साथ बिताके तुमसे प्यार कर सकता है वह कल कोई तुमसे अच्छी लड़की मिलने पर उससे भी प्यार करने लगेगा। उन लोगो पे अंधा भरोसा मत करो"
मुस्कान : " समझ आप नही रहे पापा, आप एक बार उससे मिलेंगे तो आपकी सारी परेशानी दूर हो जाएगी।"
ये बात सुन निखिलेश गुस्से से तिलमिला उठा,
"मैंने यूं ही धूप में बाल सफेद नही किये है, तुमने सिर्फ दुनिया देखी है और मैंने इस दुनिया को समजा है, सबको समझता हूं मैं। ये सब जवानी का जोश है और चार दिन की बातें... तुम इन सब चक्करो में मत उलजो...दूर रहो इन सबसे।"
मुस्कान : "दूर नही रह सकती पापा, हम सच मे एक दूसरे से प्यार...."
निखिलेश के लिए आगे का सुन पाना नामुनकिन था, " बंध करो ये सब। तुम अब उसका नाम नही लोगी। वहां तुम ये सब करने गई थी??"
मुस्कान : "पापा प्लीज़,...एक बार शांति से मेरी बात तो सुनिए। वो सब जैसा नही है..."
"बस.." निखिलेश का गुस्सा अब सारी हदें पार कर गया, "मैंने एक बार ना कहा तो वह ना ही रहेगा, मैं जब तक जिंदा हु तब तक तुम्हें ये करने नही दूंगा।अपने पिता को मार के अगर तुम ये शादी कर सकती हो तो मार दो मुझे..."
ज्योति ने मुश्किल से निखिलेश को शांत किया मगर मुस्कान की आँखे दरिया बनके बहने लगी, "प्लीज़ पापा, आप ऐसा मत बोलिए, मैं आपको हानि पहोंचा कर कभी खुश नही रह पाऊँगी, आप जान हो मेरी..."
ज्योति ने मुस्कान को अंदर भेज दिया और बाहर निखिलेश को समजाने लगी।
ज्योति : "आप इतने नाराज क्यो हो गए?? गुस्से में आपने कितना भला बुरा कह दिया उसे..."
निखिलेश : "मैं नाराज नही, डरा हुआ हूं, जो मेरे साथ हुआ वो कहि मेरी फूल सी बच्ची के साथ न हो। उसका दिल टूटेगा वो मुझसे बर्दाश नही होगा..."
ज्योति : "लेकिन कैसा डर??"
निखिलेश : "तुम नही जानती ज्योति, मुंबई एक माया नगरी है। वहाँके लोगो को समझने में हम अक्सर धोखा खा जाते है। 18 साल की उम्र में मैं भी इससे आकर्षित होके घर के ख़िलाफ़ जाके भाग आया था मुंबई। सपनो की नगरी कहलाने वाली उस नगरी ने मुझसे मेरा सब कुछ छीन लिया और जब मैं खाली निकम्मा हो गया तो मुझे फेक दिया उस नगरी से। बहोत बुरी तरह से हार कर मैं घर पहोंचा था। मैं ये बिल्कुल नही चाहता कि मेरी बेटी ऐसा कोई धोखा सहन करे..."
"और तू ही बता, हम जानते कितना है उस लड़के को? हमारी बेटी को हम ऐसे कैसे उसके हवाले कर दे और फिर उसकी तो जात भी अलग। वो मुसलमान खाने में मास मच्छी खायेंगे और उसी टेबल पर बैठके मेरी ब्राह्मण बेटी कैसे खाना खा पाएगी?? ये सब दूर से अच्छा लगता है, निभाना बहोत मुश्किल है! "
ये सब सुन ज्योति भी कुछ न बोल पाई।
मुस्कान अंदर कमरे में दबी आवाज़ से रो रही थी, "ये सब क्या हो गया?? मुझे तो लगा था पापा आसानी से हा कर देंगे...लेकिन सब बदल गया...!"
कई दिन बीत गए लेकिन निखिलेश ने अपनी मर्जी नही बदली। निखिलेश की नाराज़गी से हार कर एक रात मुस्कान ने भागने का फ़ैसला किया। थोड़े दिनों में सब ठीक हो जाएगा, पापा भी मान जाएगे सोच मुस्कान छोटा सा बेग पैक करने लगी।
तभी अलमारी से एक अल्बम नीचे गिर पड़ा। सहसा मुस्कान निर्जीव सी हो गई । वह वही जमीन पे बैठ गई और अल्बम खोलके देखने लगी। उसमें उसकी बचपन की सारी यादें थी।
"मम्मी कहती थी बड़ी मिन्नतों के बाद भगवान ने हमे तोफे के रूप में तुमको दिया है।" ये याद आते ही उसकी आंखें बहने लगी, " ये मैं क्या करने जा रही थी। अगर मैं भाग जाती तो पापा जीते जी मर जाते। मेरी जिंदगी में अरमान को आए तो अभी दो साल ही हुए है मगर उससे पहले तो ये दोनों ही मेरी दुनिया थे, मेरी जिंदगी, मेरा प्यार सब कुछ यही थे।मेरे पापा की जान बस्ती है मुझमे, मैं अपनी नई जिंदगी के लिए उस जिंदगी को कैसे दुखी कर सकती हूं?? i am sorry पापा, i am sorry अरमान..."
सुबह की किरणों से नई उमंग लेकर मुस्कान निखिलेश से मिली, "पापा कुछ काम अधूरा रह गया है मुंबई में, मैं जल्द ही लौट आऊंगी।" आँखों के आँसू को निगल कर वह मन में ही रो रही थी।
"ठीक है। जाओ, ध्यान रखना"
मुस्कान जैसे ही दरवाजे पे पहोंची की निखिलेश ने उसे रोका, " याद है न मुस्कान, मैंने क्या कहा था??"
बड़ी मुश्किल से मुस्कान बोल पाई, "कैसे भूल सकती हूं पापा..."
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6.[क्या हम फिर मिलेंगे??....]
मुंबई पहोचते ही मुस्कान अरमान से मिलने गई।अरमान हा सुनने के लिए बेकरार था लेकिन मुस्कान का जवाब सुन वो तिलमिला उठा।
" तुम प्यार का मतलब जानती हो? तुम ऐसे हार मानोगी?? मुझे छोड़ दोगी?? तुम प्यार को समझती ही नही हो।"
"समझती हु अरमान, इसीलिये ना कह रही हु। तुम सिर्फ दो साल से मेरी जिंदगी बने हो, मगर मैं, मैं 23साल से किसीकी जिंदगी हु, तुम ही सोचो मैं उसे कैसे छोड़ दु? मैं तुमसे प्यार करती हूँ, बहोत करती हु, और जिंदगी भर करती रहूँगी। मगर अरमान मेरे प्यार का मतलब ये नही की मैं तुम्हारे साथ रहू.... मेरे प्यार की मंज़िल शादी नही तुम्हारी खुशी है। तुम किसीके भी साथ रहो, जहा भी रहो बस खुश रहो यही मेरा प्यार है। मैंने कभी तुम्हे पाने की चाहत नही रखी।मैंने सिर्फ तुम्हारे होंठो पे मुस्कान की चाहत रखी है।"
"पर इस मुस्कान के बिना मेरे होंठो पे कभी मुस्कान नही आएगी।"
"तो सोचो अरमान, मेरे मम्मी पापा की क्या हालत होगी जब ये मुस्कान उससे दूर हो जाएगी उसकी मर्जी के खिलाफ.... समझने की कोशिश करो अरमान, मैं तुम्हे दुःखी नही देख सकती और न ही अपनी जान के खिलाफ जा सकती, तुम मुझे भूल नही पाओगें लेकिन कोशिश तो कर सकते हो। मैं हमेशा तुमसे ही प्यार करूँगी, बस साथ नही रह सकती। मुझे माफ़ करदो...मा...फ़..."
कहके वो अरमान के पैर पड़ गई।
मुस्कान की ये हालत देख अरमान पूरी तरह टूट गया...उसकी आँखें भी बहने लगी।
"मुझे गर्व है मुस्कान, की मैंने तुमसे प्यार किया। तुम अपने पापा की मुस्कान के लिए इतना कुछ कर सकती हो, तो जब तुम मेरी बनोगी तब तुम...."
वह आगे कुछ न बोल पाया... दोनो एक दूसरे को गले लगाकर खूब रोये।
"तुम अपनी जिंदगी में आगे बढ़ो और तुम्हे मेरी कसम तुम कभी भी मेरे बारे में जानने की कोशिश नही करोंगे...."कहके मुस्कान बिना पलटे वहासे चली गई और अरमान उसे ऐसे ही देखते रह गया। सजाए सारे सपने मानो थे ही नही वैसे टूट के बिखर गए। जुदा हुए दो दिल बहोत रोए और उसके आँसू बरसते बरसात की बूंदों में भीग गए।
अब दोनों के दिलो में बचा था सिर्फ एक सवाल, "क्या हम फ़िर मिलेंगे???"
महेर के घर आके मुस्कान मायूस बैठी थी तभी अचानक महेर ने उसके फोन पे गाना बजाया,
"थोड़ी सी दूरियां है,
थोड़ी मजबूरियां है,
लेकिन ये जानता है मेरा दिल...
एक दिन तू आएगा,
जब तू लौट आएगा,
तब फिर मुस्कुराएगा मेरा दिल...
लेजा मुझे साथ तेरे,
मुझको न रहेना साथ मेरे..."
मुस्कान ने जोर से मोबाइल पटक दिया। मुस्कान का ये रूप देख महेर डर गई, "मुस्कान, क्या हुआ तुझे? तू ठीक तो है? ये तो तेरा फेवरिट गाना था...."
मुस्कान : "सब कुछ खत्म हो गया... मैंने सब कुछ खत्म कर दिया। मेरा दिल पसीज रहा है महेर... कुछ कर , उसे दुःखी कर मैं नही रह पाऊँगी और न ही मम्मी पापा को छोड़ पाऊँगी...."कहते उसके शब्द चीख बन गए और वो रोने लगी।
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7.[ ओर एक हत्सा...]
मौसम बदलते गए, हवाए चलती रही, और समय ने अपना काम कर दिया।
इस बात को तीन साल बीत गए। अब मुस्कान और उसके मम्मी पापा राजकोट रे रहे थे। मुस्कान ने अपनी आगे की पढ़ाई MD राजकोट में की।
कोई बदला नही था, बस सबको एक दूसरे को खामोश देखने की आदत पड़ गई थी। मुस्कान सब कुछ भूल के आगे बढ़ जानेका ढोंग कर रही थी।
अपने पापा के कहने पर वह अरमान को तो छोड़ आई थी मगर अनजाने में ही उसकी खुद की मुस्कान भी अरमान के साथ छूट गई थी। वह सिर्फ़ किताबो और हॉस्पिटल के बीच खुद को कैद रखती थी। म्यूजिक और गानों से खुद को बहोत दूर कर दिया था उसने।सिर्फ एक ना से सारे सुनहरे दिन मायुसी में ढल गए।सबके मुकुरने की वजह तीन साल पहले का समय चुरा ले गया था।
इन तीन सालों में ज्योति और निखिलेश ने मुस्कान की शादी करवाने की कोशिश भी की थी मगर इस बार मुस्कान ने कठोर हो के मना कर दिया था, "मुझे अब शादी नही करनी पापा ,प्लीज़। मैंने खुद से ये वादा किया है। मैं आपके साथ ही रहूँगी और आप लोगो का ध्यान रखूंगी। प्लीज़, आखरी बार मेरी ये बात मान लीजिए।"
कितने समय बाद बेटी ने कुछ चाहा था तो निखिलेश उसे मन नही कर पाया। तबसे अब तक उससे किसीने शादी के लिए फोर्स नही किया।
दूसरी ओर अरमान ये सोच के आगे बढ़ रहा था कि कहिसे मुस्कान उसे देख रही है और उसकी कामयाबी से खुश हो रही है।मुस्कान को खुश करने की वो हवामें ही कोशिश कर रहा था।
यूं ही दिन बीतते गए, एक दिन अचानक ज्योति को हार्ट एटैक आया और वह पलभर में दुनिया छोड़ चल बसी।
मुस्कान और निखिलेश की तो मानो आधी दुनिया वही बर्बाद हो गई।
मुस्कान के लिए अब ये जिंदगी बिताना और मुश्किल हो रहा था। वो भी इस बिना माँ के खाली घर में। दुनिया खामोश तो थी ही पर अब सुनी भी लगने लगी थी। एक दिन मायुसी ने उसे इस कदर घेरा की वह निखिलेश के कंधे पे रो पड़ी, "पापा, अब मुझसे इस घर मे नही रह जा रहा....ये सुना घर मुजे कांटने को दौड़ता है। क्या हम कहि ओर शिफ्ट हो जाए???इन सब बुरी यादों से दूर...।"
निखिलेश भी उसकी बातों से सहमत हुआ। जॉब का सेटिंग होते ही मुस्कान और निखिलेश केलिफोर्निया के लॉस एंजेलिस में रहने चले गए।
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8.[ क्या होगा कहानी का अंत???]
नया देश, नया शहर और नए लोगो के बीच शायद पुराने गम पिघल जाएंगे इसी आश में दोनों बाप बेटी जिंदगी गुजार रहे थे।
एक महीना हो गया यहाँ आए हुए। मुस्कान का काम भी ठीक चल रहा था। कुछ महीनों में वह खुद का क्लिनिक खोलने के बारे में भी सोच रही थी।
लेकिन शायद किस्मत को ये भी मंजूर न था। अचानक निखिलेश की तबियत बिगड़ जाती है और उसे हॉस्पिटल एडमिट करना पड़ता है। सभी रिपोर्ट्स पढ़के सीनियर डॉ. ने बताया कि निखिलेश को ब्लड केन्सर है और वो भी 3rd स्टेज में है, उसकी ट्रीटमेंट शुरू कर देते है लेकिन उसके बचने के चान्स कम है, शायद वो कुछ दिन ही जिंदा रह पाएंगे।
रिपोर्ट देख मुस्कान की तो मानो जिंदगी में भूचाल आ गया। अभी तो माँ की मौत का गम विसरा नही था कि ये खबर....
उसने बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला...और वह अपने पापा को हौसला देने लगी।
अब सही मायने में उसे किसीकी जरूरत थी जो उसकी टूटी हालत को संभाले और उसका साथ दे।
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रात का समय था। लॉस एंजेलिस की हवा में शांति छाई हुई थी। आसमान में चाँद तारे और बादलो के बीच लुकाछुपी का खेल चल रहा था। और नीचे....
नीचे निखिलेश की आँखों मे आंसू थे।मुस्कान उन आँसुओ का कारण पूछती है।
निखिलेश : "बेटा, कई साल बीत गए। इन सालो में तुमने बहोत कुछ सहा है। अब तो तुम्हारी माँ भी नही रही..."
मुस्कान शायद समाज गई थी कि निखिलेश क्या कहना चाहता था इसलिए उसने बीच में ही बात काटते हुए कहा, " आप फिक्र मत करो पापा, सब ठीक हो जाएगा।"
निखिलेश : "मुझे अब जूठा दिलासा मत दो।बात को समजो। मेरे गुजर जाने के बाद तुम्हारा इस दुनिया में कोंन बचेगा?? तुम अकेली तो पूरी जिंदगी नही काट सकती।मेरी मानो मेरी बच्ची, तुम अब शादी कर लो।"
ये शब्द मुस्कान के कानों में सोई की तरह चुभें, "नही पापा, मैंने आप से पहले भी कहा था, आपके उस दिन सुनाए शब्द आज तक मेरे कानों में गूंजते है। मैं अब किसीसे भी शादी नही करूँगी।"
निखिलेश : "अपने मरते बाप को ये सुख नसीब करदो, मेरी आखरी इच्छा समझकर शादी करलो..."
निखिलेश के आँसू देख मुस्कान दौड़ के छत पे चली गई...
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गाना सुनते ही मुस्कान दिल फाड़कर रोने लगी। बहते आँसू और सूजी हुई आँखों के साथ रात यूं ही बीत गई।
सुबह निखिलेश ने उसे एक फोटो देते हुए कहा, " तुम्हें इसे तुम्हारे फेवरिट कैफ़े में मिलने जाना है। ये अपने किसी काम से यह थोड़े दिनों के लिए आया है।कुछ दिनों में वापस इंडिया चला जायेगा। उससे पहले तुम दोनों मिल लो तो बात कुछ आगे बढ़े।"
मुस्कान उसे अनदेखा करते हुए ही दरवाजे की तरफ चली गई, " मैं किसीसे मिलने नही जाउंगी। पसन्द आपकी है फिर मैं मिल के क्या करूँगी??? वैसे भी आज से आपकी ट्रीटमेंट शुरू होने वाली है मैं आपके साथ हॉस्पिटल चलूँगी।"
निखिलेश : "मिल लो बेटा, पसंद मेरी है पर तेरी भी तो मर्जी होनी चाहिए न... और वैसे भी वो तुमसे मिलना चाहता है।"
मुस्कान को ये सोच के दुःख हो रहा था कि निखिलेश अरमान को ऐसे भूल गए है जैसे वो कभी उसकी बेटी की जिंदगी में आया ही नही था।
ग़ुस्से में मुस्कान तैयार होने चली गई। ब्लेक कलर की सिंपल लोंग कुर्ती और लाइट ब्ल्यू कलर की जीन्स, और उसके बंधे बालो में से बाहर आती कुछ लहेरे... आँखों पे लगा चश्मा उसके गुस्से से फुले हुए मुह को छिपा रहा था।
रास्ते मे वह यही सोच रही थी कि लड़के को साफ साफ बता देगी की शादी सिर्फ पापा की तबियत ठीक होने तक.... उसके बाद ये ड्रामा खत्म।
उतने में ही वो कैफ़े आ गया। ये लॉस एंजेलिस का मशहूर और शांत कैफ़े था। एक अजीब सा रिश्ता जुड़ गया था मुस्कान का इस कैफ़े के साथ। रोज शाम हॉस्पिटल से घर आते वक्त वह कुछ समय इस कैफ़े में बिताती, खिड़की के पास का कोने का टेबल उसकी फेवरिट जगह थी। वही न तो दुनिया का कोई शोर आता था और न ही परेशानी। उस खिड़की के बाहर शाम में वो ज़िल का नजारा उसके दिल को सुकून दे जाता। उसकी तन्हाई का साथी और गवाह बन चुका था वो कोना और वो ज़िल का नज़ारा...
आज ये कैफ़े पूरा फूलो से सजा था जिसकी महक पूरा लॉस एंजेलिस ले रहा था। मुस्कान दो घड़ी सजावट देखती रह गई। उतने में एक वेइटर आया। उसने मुस्कान को गुलाब का फूल दिया और कहा कि आज कैफ़े की 5वी सलगिरा है।मुस्कान अंदर जा के बैठ गई। कोने में बैठे कपल को देख उसकी आँखों का कोना भी भीग गया। कुछ पुरानी यादों ने दिल पे फिरसे दस्तख दे दी। ऊपर से ये सजावट उसकी यादों की अलमारी खोल दिल से यादों को आँखों के ज़रिए आँसुओ में बहा रही थी। शायद वो जानती थी कि इस यादों का आज बह जाना ही बहेतर है, नजाने आगे जिंदगी क्या रंग दिखाए।
शाम होने को आई एमजीआर वो लड़का अभी तक नही आया और इधर केक काटने की तैयारियां हो रही थी। सभी लाईट बंध हुई और हल्के से म्यूजिक के साथ गिटार की आवाज आई,
" जुदा हम हो गए माना,
मगर ये जान लो जाना ,
कभी मैं याद आउ तो चले आना,
चले आना...
तुम्हें मैं भूल जाऊँगा,
ये बातें दिल में ना लाना,
कभी मैं याद आउ तो चले आना,
चले आना...."
लाइन के खत्म होते ही मुस्कान पर लाइट हुई और उसके सामने कोई घुटने पे हाथों में गुलाब लिए बैठा था। जैसे ही उस इंसान ने मुस्कान की ओर देखा कि सारी लाइट ऑन हो गई और पूरा कैफ़े तालियों से गूंज उठा।
मुस्कान के सामने उसकी मुस्कान, जिंदगी - अरमान खड़ा था और सामने देखा तो सब अपने ही खड़े थे, निखिलेश, अरमान के मोम- डेड और खास महेर भी।
ये सब देख मुस्कान अभी तक शॉक में खड़ी थी। सहसा ये सब देख उसके आँखों के सामने अंधेरा छा गया और वो ख़ुर्शी पे बैठ गई।
अरमान तुम यहाँ?? और ये सब लोग?? और पापा आपकी हॉस्पिटल??? आहह कोई मुझे समज़ाएगा की ये सब क्या हो रहा है?
" ये सब मेरी मुस्कान के चहरे की मुस्कान के लिए है मेरी बच्ची..."
अपने पापा को इस तरह देख वो ज्यादा कन्फ्यूज़ हो गई।
अरमान ने उसे पानी देते हुए कहा कि तुम्हे तुम्हारे सारे सवालों के जवाब मिलेंगे।
और निखिलेश ने की कहानी के अंत की शुरुआत,
******
अरमान की कुछ दिन पहले यहाँ पे कॉन्सर्ट थी। तभी उसने तुम्हें इस कैफ़े में देख लिया। जाहिर सी बात है, वो तुम्हारे चहरे की खामोशी और मायुसी पढ़ गया। तुम्हारी यही मायुसी ने उसे तुम्हारी कसम तोड़ने पे मजबूर कर दिया।
फिर एक दिन में शाम को गार्डन में बैठा था वही एक बच्चे ने मुझे एक बॉक्स दिया। उस बॉक्स और उसे भेजने वाले ने मुझे बदल दिया। वो बॉक्स अरमान ने भिजवाया था।
उसमे तुम्हारी वह पेड़ के नीचे जुला खाते हुए मुस्कुराती तस्वीर थी जो पिछले तीन सालों से गायब थी या फिर मैंने छीन ली थी...कहते उसकी आँखों मे पानी आ गया।
उस तस्वीर के पीछे लिखा था, " इस मुस्कान को देखें मुझे अरसा हो गया और शायद आपको भी। मुस्कान के चहरे की मुस्कान सिर्फ आप ही वापस ला सकते हो, मुझे भी मेरी मुस्कान लौटा दो....
और ये आपकी घड़ी मुझे मुस्कान ने तब दी थी जिस रात मैंने उसे प्रपोज़ किया था। लेकिन तबसे मैंने ये घड़ी बंध ही रखी है, क्योकि इसके समय में मेरी मुस्कान मेरे साथ नही है, मुझे इंतज़ार है उस समय का..."
इस लड़के ने मेरी आँखें खोल दी, ये तुम्हारा तीन सालों से इंतजार कर रहा है, इससे अच्छा जीवनसाथी तुम्हे कहि ओर नही मिलेगा.... जा मुस्कान अपनी जिंदगी के पास।
मुस्कान की आँखों से आँसू बहने लगे। अरमान ने उसे गले लगा लिया। और वह मन ही मन अरमान को शुक्रियादा कर रही थी।
अचानक उसे याद आया, " पापा लेकिन आज तो आपकी ट्रीटमेंट शुरू होने वाली थी"
निखिलेश का चहेरा थोड़ा फीका पड़ गया, वो अरमान के सामने देखने लगा।
अरमान की बाहों में खड़ी मुस्कान दोनों को देखने लगी।
निखिलेश : "वो...वो बेटा...अमम...तुम वो सब भूल जाओ...समजो कुछ हुआ ही नही था।"
मुस्कान : "मतलब???"
निखिलेश : "असल में वो सब एक ड्रामा था तुम्हे शादी के लिए मनाने... और इसमें मेरी गलती नही थी ये अरमान का आइडिया था।"
अरमान ने मुस्कान को अपनी पकड़ से छोड़ दिया और दूर जा के बोला, " पापा, ये क्या?? आपने प्रोमिस किया था, अब आप मुझे पिटवाएंगे क्या???"
मुस्कान : "अरमान....रुको तुम..."
अरमान : "सुनो तो सही, इतनी बड़ी सरप्राइज के लिए थोड़ा जुठ तो चलता है न मेरी जान, मुस्कान।"
सबकी आँखों में आँसू थे मगर आज वो खुशी के थे।
अपनी आँखें बंध कर निखिलेश ज्योति को याद कर बैठा और अपनी मुस्कुराती मुस्कान को निहारने लगा।
अगले दिन दोनों की लॉस एंजेलिस में ही सगाई हुई और थोड़े दिनों बाद जयपुर में परिवार के बीच धूमधाम से शादी हुई।
मुंबई आके शानदार रिसेप्शन का आयोजन किया गया था। जिसमें बॉलीवुड की सभी महान हस्तियां शामिल थी।
पूरा होटल जगमगा रहा था और स्टेज तो अरमान के मनपसंद फूल गुलाब से सजाया गया था। सभी के मुह से हो रहे अरमान और मुस्कान की लव स्टोरी के चर्चे के साथ,
व्हाईट सूट और उसपे लगा डायमंड का छोटा सा क्राउन का ब्रॉच पहने एक हाथ में ऑफ शोल्डर फुल व्हाईट गाउन और वही घुटनों तक लहराती रेशमी ज़ुल्फो को सजाए मुस्कान हाथ थाम के दोनों सीढ़ियों से नीचे आये।
सब एक दफा चाँद से उतरे इन फरिश्तो को देखते ही रह गए। सब कोई फ़िल्म जैसा लग रहा था।
धीरे से म्यूजिक बजा,
"ख्वाबों के पन्नो पे,
मैंने लिखा था सो दफा,
लफ्ज़ो में जो इश्क था,
हुआ ना होंठो से बया...
मैं खुद से....
.....किस हक से कहूं बता??
की मैं हु हीरो तेरा...की मैं हु हीरो तेरा..."
और गाने के साथ रोमांस के प्रिंस अरमान शेख और
उसकी प्रिंसेस मुस्कान शेख ने डांस किया
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"उठो मुस्कान, रात भर जग के अरमान के बारे में सर्च करती रही और अब उठने का नाम ही नही ले रही, तुम लेट हो जाओगी... तुम्हे आज होस्टल जाना है याद है न।"
"बस थोड़ी देर और मम्मी, बहोत अच्छा सपना आ रहा है।"
"उथो मम्मा... उथो...."आवाज़ ने मुस्कान को गहरी नींद से जगा दिया।
"ऑफफहो....वो सपना था??? मम्मी ने सपने में आके10 साल पहले की वो रात याद दिला दी।" उस रात के बारे में सोच मुस्कान मन ही मन मुस्कुरा रही थी कि फिरसे वो आवाज आई,
"मम्मा, हम लेट हो जाएंगे, डैडी कबके रेडी हो गए"
"हा, डैडी के बच्चे, अभी 5 मिनट में मेरा मिनी अरमान रेडी, पर उससे पहले मम्मा के साथ फाइटिंग..."
"येएए.... हा हा हा" छोटे से चार साल के आरव की आवाज से होटल का कमरा गूंज उठा।
और बाल्कनी में कॉफी पी रहा अरमान इन दोनों को देख खुश हो रहा था।
" ठंडी हवा में अकेले अकेले कॉफी??बीवी को भूल गए क्या?"
"अरे, उसे कैसे भूल सकता हूं, मेरी जान, मेरी मुस्कान।आज पाँच साल बाद L.A. की सुबह में हमारी मुलाकात की यादें फिरसे ताजा कर रहा हूं"
"समय बीतते देर नही लगती, उस बार की कॉन्सर्ट में हम मील थे और इस बार हमारा बेटा भी हमारे साथ आया है।"
दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़े बैठे थे कि आरव गिटार लेके आया,
"डैडी, गिटार बजाना सिखावन...सिखावन...फिर रात को मैं भी को.. कोन्स...में बजाऊँगा।"
अरमान ने हसते हुए कहा, "हा मेरी नन्ही सी जान तू बजाना और मैं गाऊँगा..."
फिर अरमान की गोद में आरव और हाथ में गिटार....ऐसे में अरमान की आवाज़ से पूरा लॉस एंजेलिस मदहोश हो गया,
"तुमको तो आना ही था
जिंदगी में,
देर हुई आने में क्यो??
जीना मुझे है बस तेरे लिए...
जो भी करू, its only for you
beacause i love youuuuu😆💖💖"