svaym se svaym tak ka safar in Hindi Short Stories by Anant Dhish Aman books and stories PDF | स्वंय से स्वंय तक का सफर

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स्वंय से स्वंय तक का सफर

"स्वयं क्या है"

हम जो दिख रहे होते है वह हम नही है वह एक माया जिसके मोहपाश में हम सभी बंधे होते है ।।
अध्यात्म के अनुसार और विज्ञान के अनुसार हमारा निर्माण पंचतत्व से हुआ है जो कि पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, आकाश है ।।

इस पंचतत्व का निर्माण पाँच महाभूतों के विकार से हुआ है जो इस प्रकार है;
(सत्वगुण, रजगुण, कर्म, काल, स्वभाव)
जब ये पांच महाभूतों ने तामस अहंकार में विकार उत्पन्न किया तो शब्द, फिर शब्द में इन्ही पांच महाभूतों ने विकार उत्पन्न करके आकाश, आकाश में पांच महाभूतों ने विकार उत्पन्न करके वायु, वायु में पांच महाभूतों ने विकार उत्पन्न करके तेज, तेज में पांच महाभूतों ने विकार उत्पन्न करके जल और क्रमशः जल में पांच महाभूतों ने विकार उत्पन्न करके पृथिवी या मिट्टी इन तत्वों का निर्माण किया। इन्ही पांच तत्वों को आकाश, वायु, तेज, जल, पृथिवी या पंच तत्व कहते हैं।

सिर्फ ये पंचतत्व से हीं हमारा निर्माण नही है इन पंचतत्व के साथ जो मुख्य रुप से इन तत्व में उर्जा संचार करके जीवन का संचार करता है वह चैतन्य (आत्मा) है ।।

आत्मा पाँच महाभूतों के विकारों से मुक्त होता है और पंचतत्व इन विकारों से ग्रसित होता है इसलिए हम जो भी करते है उसका दोष(पाप) शरीर को लगता है चैतन्य(आत्मा) को नही ।।

स्वंय पर विजय कैसे प्राप्त कर सकते है:-

स्वंय पर विजय प्राप्त किया जा सकता है (सत्वगुण, रजगुण, कर्म, काल, स्वभाव) जब ये पांच महाभूतों पर नियंत्रण करेंगे तो यह भी विकारों से मुक्त होकर चैतन्य(आत्मा) की तरह मुक्त हो जाएगा ।।

पाँच महाभूतों पर नियंत्रण कैसे रखेंगे इस सवाल का जबाब कठिन है क्योंकि (स्वंय के साधक) का सभी का प्रकिया अलग अलग है और सब का विश्लेषण अलग अलग है किंतु लक्ष्य एक है ।।

दार्शनिक के अनुसार:-

वैराग्य को धारण करके पाँच महाभूतों के विकार से मुक्त हो सकते है किंतु इसका रास्ता तय करना बङा कठिन है क्योंकि यदि आप इस रास्ते में भटकते है तो आप न घर के और ना घाट के होते है इसमे आपका सहायक ध्यान एंव साधना है ।।

गृहस्थ में समन्वय बना कर भी आप पाँच महाभूतों के विकार से मुक्त हो सकते है किंतु इसका रास्ता भी आसान नही है इसमें आपका सहायक भक्ति मार्ग है ।।

वैराग्य और गृहस्थ दोंनो के पथ पर चलते हुए जब आप पंचतत्व को सरंक्षण एंव संवर्धन करते है जिसे यज्ञ कहते है तब भी आप पाँच महाभूतों के विकारों से मुक्त हो जाते है जिसका उल्लेख वैदिक काल में मिलता है और यह सबसे सरल रास्ता है चैतन्य को चैतन्य से मिलाने का और स्वंय पर विजय प्राप्त करने का ।।

हवा के साथ हर कोई बहता है
लहर के साथ हर कोई तैरता है
आग के साथ हर कोई जलता है
शरीर के साथ हर कोई जीता है ।।

मैं ना किसी के साथ हूँ
मैं ना किसी के हाथ हूँ

मै स्वंय में ही बहता हूँ
मैं स्वंय में ही तैरता हूँ
मैं स्वंय में ही जलता हूँ
मैं स्वंय में हीं जीता हूँ ।।

वो बात अलग है
मैं दिखता बाहर हूँ
किंतु
मैं अपने अंदर हीं सारा समुंदर हूँ ,
वो बात अलग है
मैं दिखता हर किसी के साथ हूँ
किंतु
मैं अपने अंदर हीं पूरा का पूरा पहाड़ हूँ ।।

वो अलग बात है
मैं दिखता हूँ जलता हुआ समाज में
किंतु
मैं अपने अंदर मैं हीं ज्वालामुखी का आग हूँ ,
वो अलग बात है
मैं दिखता हूँ भवसागर में तैरता हुआ
किंतु
मैं अपने अंदर में हींं भक्ति का अथाह सागर हूँ ।।

वो अलग बात है
मैं दिखता हूँ रीति रिवाज में बहता हुआ
किंतु
मैं अपने अंदर में हींं सभ्यता संस्कृति का सार हूँ ।।

मैं अपने अंदर को हींं मैं जान रहा
मैं स्वंय में हींं शिव को पहचान रहा

हाँ इसका अर्थ
यह कदापि नहीं मैं परमपिता हूँ
मैं अपने परमपिता का मात्र एक अंश हूँ
हाँ मैं शिव का हींं अंश
शिवांश हूँ शिवांश हूँ ।।

#अनंत