कहानी--
त्याग
आर.एन. सुनगरया
मनुष्य जब खुश, दु:खी या परेशानी में होता है, तब वह अपने शौक में डूब जाना चाहता है। शराबी शराब में, खिलाड़ी खेल में, फिल्म प्रेमी फिल्म देखना। इसी तरह मोहन भी सिनेमा के मैदान में आँखें फैलाये हुये अशांतचित खड़ा था।
उसने सामने सड़क पर जाते अपने किसी दोस्त को देखा, सोचने लगा, कल तो कहता था, जान हाजिर है। और आज इस तरह मुझसे कट के जा रहा है। टोंकूँ या ना टोकूँ आखिर उसने टोक ही दिया, पुकारा, ‘’ओ केशव!’’ कैशव का अंग-अंग मुस्कुरा रहा था, झट उसके समीप आकर बोला, ‘’बोल मोहन, जल्दी में जा रहा हूँ। भैया के घर आशीर्वाद लेने।‘’
‘’पिताजी काम पर गये हैं। बहुत बोर हो रहा हॅूं।‘’ संकोच के साथ मोहन बोला, ‘’एक टिकट के पैसे की जरूरत है।‘’
‘’माफ करना यार।‘’ कैशव ने इन्कार करते हुये कहा, ‘’थोड़ी देर पहले मॉंगता तो अवश्य दे देता। लेकिन अभी-अभी मैंने मुन्नी (कैशव की भतीजी) के लिए मिठाई खरीद ली।‘’ कैशव कह कर चलता बना।
कुछ समय पश्चात् दूसरे मित्र से वही सवाल डालने पर मोहन को जवाब मिला, ‘’केवल दो टिकट के पैसे हैं। जिनसे मैं और मेरा दूसरा मित्र अभी फिल्म देखेंगें।‘’
और भी अनेक सहपाठी मित्रों से उसने पैसे मॉंगें, मगर प्रत्येक से उसे टका सा जवाब मिला। सभी अकड़ दिखाकर चले गये। अन्त में वह अपना सा मुँह लेकर निराश और उदास, सिनेमा मैदान में ही खड़ा था। उसकी आत्मा से आवाजें आ रही थीं, मोहन यह तेरा अपमान है। आज तुझे उन स्वार्थियों ने पैसे नहीं दिये हैं। जिनमें बैठकर तूने अपने पिताजी की गाढ़ी कमाई पानी की तरह बहाई, उन्हें होटलों की सैर कराई, सिनेमा घरों में गुलछर्रे उड़ाये। जिनकी संगत ने आज तुझे गुमराह करके इस स्थ्िाति में छोड़ दिया।
वह निराशमन घर की और चल दिया।
-2-
आशाराम शाम की शॉंत समीर का आनन्द लेता हुआ चला आ रहा था। तभी उसने कार में बैठे कोट, पेन्ट, टाई धारण किये हुये एक बाबू साहब को देखा। उसकी अभिलाषाऍं नाच उठीं, सोचने लगा, मेरा लाड़ला भी पढ़-लिख कर, एक दिन ऐसा ही बाबू साहब बनेगा। मोटर-कारें ऐशो आराम होंगे। कुछ मिनट चल कर वह अपने घर पहुँचा, प्रवेश करते ही बोला, ‘’बेटे मोहन, तबियत तो ठीक है ना, कैसे सो रहे हो?’’ प्रेम पूर्वक।
‘’जी...।‘’ मोहन चौंक कर उठ बैठा।
मोहन को सिट-पिटाते देख उसने पूछा, ‘’आज परिक्षा-फल खुला होगा। पास हो गये?’’
मोहन तो नहीं बोला, पर उसकी खामोशी ने स्पष्ट इन्कार कर दिया। आशाराम क्रोध मिश्रित स्वर में बोला, ‘’और घूमों दोस्त-यारों के साथ आवारा।‘’ क्रोध पूर्ववत था, मगर जब उसकी हृदय में प्रेम और दया उमड़ आई। विचारों की दुनिया में खो गया-----
.....बच्चे भी कितने भोले-भाले शरारती और नादान होते हैं। मोहन कोई बच्चा तो है नहीं। किस तरह ग़मगी़न होकर बैठा है। मॉं और बहन कोई भी नहीं है यदि मैं ही क्रोध करूँगा तो इसे प्यार कहाँ से मिलेगा। वह मोहन के समीप बैठ कर हिम्मत देते हुये प्यार पूर्ण बोला, ’’अरे फैल हो गया तो क्या हुआ, खूब मेहनत से पढ़ना अगले साल पास हो जायेगा। जा मुहँ-हाथ धो आ कुछ खा-पीले।‘’
अपने घर की मध्यम वर्गीय स्थिति देखते हुये मोहन पहले सोच रहा था पिताजी अब मुझे काम पर लगा देंगे परन्तु पिताजी की यह स्नेहमयी बातें सुन उसका मस्तक कुछ हलका हुआ। आँखें सजल थीं। वह ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मन ही मन कोई संकल्प कर रहा हो।
दो वर्ष बाद।
शायद सूर्य की किरणों के तीखे प्रहार से काले बादल नष्ट–भ्रष्ट हो गये। धरती की छाती जलने लगी। साथ ही फसलें पकने लगीं।
आशाराम फुरसत में चटाई पर बैठा अर्वाचीन और प्रचीन समय के वर्कों की तुलना कर रहा था-मोहन क्या से क्या हो गया। स्मरणशक्ति बढ़ाने के लिये नव प्रभात की वायु सेवन करता है। भौर होते ही पढता भी है। समय और लगन से स्कूल जाना नहीं भूलता। स्कूल से आकर पुस्तकालय जाता है। यदि दोस्त, यार या सहपाठी अपने साथ घूमने-फिरने को कहते हैं, तो उन्हें किसी तरह टरका देता है। शाम को शारीरिक शक्ति बढ़ाने के लिए कसरत भी करता है। फिर खाना खा कर ना जाने कितनी रात तक किताबों में माथा-पच्ची करता है। अब वह किताबों का कीड़ा हो गया है। पहले की तरह पैसे भी नहीं मॉंगता। ना ही कहीं आवारा घूमता। हर दृष्टि से उसकी काया-पलट हो गई...। उसका अन्तर्द्वन्द भंग हो गया। आवाज आई ‘’पिताजी मैं अपनी कक्षा में अव्वल नम्बर से पास हुआ।‘’ मोहन के चेहरे पर विजय की चमक थी। पिताजी के चरण छुये। आशाराम की खुशी की सीमा ना रही बोला, ‘’बेटे, तुमने अपने परिश्रम से अपनी कक्षा के सब छात्रों को पिछड़ा दिया। जो तुमसे अति आगे थे।‘’
‘’केवल परिश्रम से ही नहीं पिताजी।‘’ मोहन ने पिताजी की बातों को आगे बड़ा कर कहा, ‘’दोस्त यार, आवारागर्दी, मटर गश्ती, लापरवाही, अहंकार, आलस्य, आराम, होटल, और सिनेमा आदि के त्याग से...’’
‘’सच है बेटे, त्याग ही मनुष्य को महापुरूष और अमर बनाता है।‘’
--इति--
संक्षिप्त परिचय
1-नाम:- रामनारयण सुनगरया
2- जन्म:– 01/ 08/ 1956.
3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्नातक
4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से
साहित्यालंकार की उपाधि।
2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्बाला छावनी से
5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्यादि समय-
समय पर प्रकाशित एवं चर्चित।
2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल
सम्पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्तर पर सराहना मिली
6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्न विषयक कृति ।
7- सम्प्रति--- स्वनिवृत्त्िा के पश्चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं
स्वतंत्र लेखन।
8- सम्पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)
मो./ व्हाट्सएप्प नं.- 91318-94197
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