रमेसर तिवारी जमींदार खानदान से थे..जमींदारी उन्मूलन भले हो गयी हो पर 'मुई हाथी तौ सवाव लाख' वाली बात उनपर फिट बैठ रही थी..बड़ा सा दो मंजिला मकान था..क्षेत्र के बड़े काश्तकार में सम्मान जनक स्थान था..नौकर -चाकर थे..जवार में रुतबा था..क्षेत्र की कोई पंचायत बिना रमेसर तिवारी के नही निपटती थी..सबकुछ था..यदि कुछ नही था तो वह थी शिक्षा.. जब कोई आकर कहता मेरा बेटा पढ़ाई में अव्वल आया है तो रमेसर तिवारी जल-भुन जाते थे..अपने थे तो चार बेटे पर हाईस्कूल कोई पार नही कर पाया था..ऐसे में जब भी सुनते कि फलां का लड़का पढ़ाई में बड़ा सुघड़ है तो मन में कसक सी उठती..सीने पर सांप लोट जाता.. ऐसे में जब बड़े लड़के का लड़का मदन मोहन चार वर्ष का हुआ तो उसे करेजे पर पत्थर रख कर बोर्डिंग स्कूल में डाल आये..
घर लौटे तो मातम पसरा था..रमेसर तिवारी की पत्नी उसे लेकर ही सोती थीं.. रो रोकर उनका बुरा हाल था..
"का हो बुढ़ूऊ नानमून लरिका बिना महतारी के कसकै रही..तनिकौ दया नाई लागि तोहरे"
"बूढ़ा तुहिन नाई मुहाति हौ ,मुहाइत हमहू हन..पर ऊ धनखर पासी कै लरिका देखौ.. लिख पढ़ि कै बड़का अफसर बनिगा औ तोहरे..कोई केला लगाये हैं.. कोई गन्ना बोये हैं.. अब हमरेव घर मां अफसर होइहैं देखि लिहेव "
रमेसर तिवारी सीना चौड़ा करके बोले थे..
घर में बड़ा विरोध हुआ पर रमेसर टस से मस नही हुये..ऊपर से एक फरमान और.. बच्चा छुट्टी में भी घर नही आयेगा..इस देहतिहा माहौल से बच्चे को बिल्कुल दूर ही रखना है..जिसको ज्यादा मोह सतावै ऊ स्कूल जाय के मिलि आवै..
मदन मोहन जैसे जैसे बड़ा हो रहा था नित नये प्रतिमान छू रहा था..फिर भी अपनी मिट्टी, अपने लोग,अपनी बोली से बिल्कुल कट रहा था..गर्मी की छुट्टियों में भी रमेसर तिवारी उसे किसी हिल स्टेशन पर भेज देते..गाँव में पैदा होने के बावजूद वह गाँव की संस्कृति ,सभ्यता से अन्जान ही रहा ..घर के बहुत विरोध पर यदि एक दिन के लिये उसे लाया भी जाता तो प्रयास होता कि बाहर न जाने पावै..गाँव के लड़कों के संग तो बिल्कुल न जाने पावै..बैठक वाले कमरे में लगी खिड़की से बाहर की झलक पाने को आतुर मदन मोहन अक्सर उसी कमरे में रहता..सायकिल के टायर को नचा रहे बच्चों को देख देख ललचाता..गाँव के बच्चों का कोई समूह 'अंख मूंदी झण्डा' खेलने में व्यस्त होता तो कोई समूह 'छल कबड्डी आल ताल मेरी मूंछे लाल लाल ' खेल रहा होता..मदन मोहन के लिये यह सब केवल ख्वाब बनकर रह गया था..
पिछली बार ठण्डी में जब वह आया था.. विभोर चाचा उससे मिलने आये थे..उनके साथ उनका दस वर्षीय लड़का भी था..मौका पाकर वह उसको लेकर छत पर खेलने चला गया था..छत पर खेलने के बजाय वह उससे गाँव देहात के बच्चों के खेल के विषय में ही बात करता रहा..जब उसने बताया कि कैसे वह चुपके से बगल वाले पाड़े के खेत से गन्जी खोद कर लाया था और दुआर पर लगे बड़े से कौरा (अलाव) में भून कर खाया था..या कैसे रहीमा दादी की बकरी जो चरने गयी थी ,को पकड़ कर उसका दूध दुह कर पी गया था..मदन मोहन को उसकी बातें किसी दूसरे गोला की लगतीं..
समय बीतता गया..अब पढ़ाई पूरी करने के बाद मदनमोहन सिविल की तैयारी करने लगे..तैयारी के दौरान ही पशुपालन अधिकारी की वैकन्सी आयी..मदनमोहन ने शौकिया तौर पर फार्म डाल दिया था..साक्षात्कार में पूंछा गया..
"भैंस कितने प्रकार की होती हैं "
मदनमोहन चकराये..
"भैंस भैंस होती है..इसमें प्रकार कहां से आ गया सर.."
"अच्छा यह बताओ..मुर्रा भैंस और भदावर भैंस में क्या अन्तर होता है.."
मदन मोहन ने सोचा यदि गाँव से टच होता तो ये बातें वे बिना पढ़े ही जान रहे होते..
"सारी सर..मुझे नही पता"
"मिस्टर मदन आपने अपने फार्म में भरा है कि किसान के बेटे हो और गाँव से विलांग करते हो.. उच्च शिक्षित भी हो फिर भी ये साधारण प्रश्न आपको नही आते .."
"सर ये फार्म मैने शौकिया डाल दिया था..मेरा लक्ष्य सिविल सर्विसेज का है..रही बात गाँव और किसान के बेटे की तो यह सही तो है पर मैं चार वर्ष की उम्र से ही गाँव से दूर रहा हूँ"
"मिस्टर इतना तो शहर में पले बढ़े बच्चे भी जानते हैं "
मदन मोहन उसी दिन गाँव आ गये थे..रमेसर तिवारी के नाक भौं टेढ़े तो हुये थे पर जब मदनमोहन ने उन्हें बताया कि अफसर बनने के लिये खेती-पाती,गाँव जवार और हिन्दी की भी जानकारी होना बहुत आवश्यक है..तो वे मान गये थे..कान्वेण्ट में पढ़े मदनमोहन की हिन्दी वास्तव में कमजोर थी..गाँव के ही एक गुरुजी को कुछ दिन हिन्दी पढ़ाने के लिये कह दिया..करीब एक माह पढ़ाने के बाद गुरुजी ने टेस्ट लेना चाहा..
"अच्छा मदनमोहन ये बताओ कि 'लड़कियों के कान छेदे गये' सही वाक्य है कि गलत "
"बिल्कुल गलत है गुरुजी "
मदनमोहन विश्वास से बोले
"कैसे..?"
"आपने ही पढ़ाया है गुरुजी कि एक वचन के साथ एकवचन और बहुवचन के साथ बहुवचन का प्रयोग होता है "
"तो..!"
"तो यहाँ लड़कियाँ बहुवचन है और कान एक वचन इसलिये यह गलत वाक्य है..सही वाक्य होगा..'लड़कियों के काने छेदे गये"
गुरुजी को झुंझलाहट के साथ हंसी भी आयी थी..बिल्कुल प्राकृतिक अवस्था में बोले..
"गन्धैला होय गेव भैया "
मदनमोहन ने सोचा 'गन्धैला' शायद प्रतिभाशाली का गंवई रुप है..सगर्व बोले..
"गुरुजी बस आपकी कृपा है..यदि आपका आशीर्वाद बना रहा तो मैं और ज्यादा गन्धैला बन जाऊंगा"
रमेसर तिवारी वहीं बगल में फूलों को पानी दे रहे थे..सर पकड़ कर बैठ गये..गुरुजी उन्हें देखकर मुस्कराये..बोले..
"काका लड़के को आपने विदेशी बना दिया है..पहले इसे साल छः महीने गाँव जवार का टियुशन लेने दो..फिर मैं भी पढ़ा दूंगा.."
रमेसर तिवारी कपार पकड़े बैठे रह गये जैसे कुछ सुना ही न हो
राजेश ओझा