solahavan sal - 16 in Hindi Children Stories by ramgopal bhavuk books and stories PDF | सोलहवाँ साल (16)

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सोलहवाँ साल (16)

उपन्यास

सोलहवाँ साल

रामगोपाल भावुक

सम्पर्क सूत्र-

कमलेश्वर कॉलोनी (डबरा) भवभूति नगर, जिला ग्वालियर म.प्र. 475110

मो 0 -09425715707Email:- tiwariramgopal5@gmai.com

भाग सोलह

आज के परिवेश में आपकेा ये सब बातें अव्यावहारिक लग रही होंगी। आने बाले समय में कुछ नई परम्परायें समाने आयी हैं। आज की कुछ बातें कल अव्यवहारिक लग सकती हैं।

अब मुझे लगता है -ओजोन की पर्त में छेद हो गया हैं जिसके कारण यह सब घटित हो रहा है। रक्षक शोषकों का काम करने लगे हैं। विश्वसनीय अविश्वसनीय हो गये हैं। उस छेद को वैज्ञानिक बन्द करने का प्रयास कर रहे हैं। किन्तु प्रकृति के परिवर्तनों को कोई रोक नहीं पाया है ।

कॉलेज लायब्रेरी से लाकर एक उपन्यास पढ़ लेती हूँ। उसके पश्च्चात दूसरी पुस्तक इश्यू करा लाती हूँ ।

इस तरह कुछ साहित्यक कृतियों के सर्म्पक में आ गई हूँ ।

आज वृन्दासहाय कॅालेज में प्राफेसर डा0 सत्या शर्मा से बालकों की किशोर अवस्था के बारे में किसी ने प्रश्न कर दिया। उन्होंने तो इस विषय पर पूरा व्याख्यान ही दे डाला।

मनुष्य की जन्म से पाँच वर्ष तक शैशव अवस्था है। छह वर्ष से दस वर्ष तक पोगन्ड अवस्था शास्त्रों में बतलाई गई है। ग्यारह वर्ष से लेकर पन्द्रह वर्ष तक किशोर अवस्था होती है। पोगन्ड अवस्था में जितनी सरलता होती है किशोर अवस्था उतनी ही रहस्यमय हो जाती है। पोगन्ड अवस्था किशोर अवस्था को सरसब्ज बनाती है ..और किशोर अवस्था, कुमार अवस्था के रूप में लावण्य मयी बन जाती है। उम्र के इक्कीस वर्ष से शुरू हो जाती है युवावस्था ।

नारी जीवन कुछ पृथक सा प्रतीत होता है। किशोर अवस्था के पश्च्चात ही वह युवा अवस्था में प्रवेश कर जाती है। लड़कियों की कुमार अवस्था, किशोर अवस्था में ही शुरू हो जाती है। इसी कारण छह वर्ष के ही मिली जुली प्रक्रिया होन लगती है। इस प्रकार लड़कियाँ किशोर अवस्था में ही कुमारी बन जाती हैं। उस समय उनका मन रहस्यों को जानने के लिए उत्सुक रहने लगता है ।

किशोर अवस्था में ही मानव का प्रकृति से परिचय होता है। यहीं से वह जान जाता है -फूल कैसे बनता है ? कैसे विकसित होता है ? किस प्रकार फल के निर्माण की प्रक्रिया शुरू होती है ? फल कैसे विकसित होता है ? प्रकृति के ये रहस्य इस अवस्था में बड़े विचित्र लगते हैं ? वह इन रहस्यों को जानने के लिए अपने को संयत कर आगे बढ़ता है तब इन रहस्यों पर पड़ा पर्दा खुलने लगता है।

किशोर अवस्था के बारे में सोचने- समझने बाले लोग उन भक्त सन्तों से कम नहीं है जो किशोर और किशोरी जी के अन्तकरण की थाह पाने में अपना जीवन ही अर्पित कर देते हैं।......फिर भी उनकी पहुँच नकारात्मक ही रहती है। यह कोई साधारण कार्य नहीं है।

डा0 सत्या शर्मा की बातें सुनकर कुछ दिनों से यह अवधारणा बनती जा रही है कि बालक- बालिकाओं की मनोवृति को लेकर कुछ बातें कही जायें।

किशोर अवस्था बचपन और युवावस्था के मध्य की अवस्था है। यह वय सभी को पार करना पढ़ती है। इस उम्र की मधुर स्मृतियों को हम जीवन भर संजो कर रखते हैं। पुरूष और प्रकृति के सम्बन्ध में जो अवधारणायें इस वय में विकसित होती हैं, नारी पुरूष बनते- बनते वे ही अवधारणायें स्थायी रूप ग्रहण कर जाती हैं ।

मन में पनपी कुन्ठाऐं अथवा आत्मविश्वास इसी वय की देन होती हैं। कुछ लोग अत्यधिक शंकालू प्रवृति के होते हैं। मुझे तो लगता है उनकी किशोर अवस्था में पनपी अवधारणायें मुखरित होकर, समाज को शंका की दृष्टि से देखने को विवश करती हैं।

किशोर अवस्था के कुछ साथी मेरे आसपास रहे हैं। वे ठीक ढंग से विकसित हों, फूलें फलें ?यही जिन्दगी का अब लक्ष्य बन गया हैं।

इस व्याख्यान को सुनने के बाद मुझे जो भी किशोर उम्र के साथी मिलते मैं उनसे नजदीकी बनाने का प्रयास कर उनकी मनोभावनाओं को समझने का प्रयास करने लगी हूँ। कहीं वे कुछ बातें समझने में चूक तो नहीं कर रहे हैं। कभी- कभी इस अवस्था की चूक जीवन भर पश्चाताप करने की ग्रंथी बना जाती हैं। जो उनके विकास में बाधक होती है।

मैं हायर सेकन्ड्री तक कन्या विद्यालय एवं इससे आगे के अध्ययन के अध्ययन के लिए कन्या महा विद्यालओं की ही छात्रा रही, लेकिन हाई स्कूल तक गाँव में सह शिक्षा के विद्यालयों में ही अध्ययन रहा। यहाँ आकर फिर लड़कों के जमघट में आकर फस गई हूँ। इन दिनों यहाँ के अनुभव कुछ भिन्न ही रहे हैं। ऐसे कॉलेजों में सीखने को तो बहुत अधिक मिलता है किन्तु लड़कियों को बहुत सोच समझकर आगे बढ़ना पड़ता है।

हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश भर में स्वच्छ भारत का नारा देकर एक नई पहल की है। उन्होंने यह नारा देते हुए सफाई अभियान की स्वयम् झाडू लगाकर शुरूआत कर दी। मुझे उनकी बात बहुत ही अच्छी लगी। मैंने अपने कॉलेज की सभी लड़कियों को इकट्टा किया और हम सब ने मिलकर अपने कॉलेज की सफाई की योजना बना डाली। दूसरे दिन सुबह ही हम सब कॉलेज प्रांगण में झाडू लगाने लग गये। कॉलेज के लड़कों ने यह दृश्य देखा तो उन्होंने भी झाडू उठाली। बातों- बातों में सम्पूर्ण कॉलेज का प्रागंण साफ हो गया। इससे मुझे एक लाभ यह हुआ कि मेरा नाम सही समय पर सही सोच के लिए चर्चा में आ गया।। अगले दिन स्वच्छ भारत विषय को लेकर एक-वाद- विवाद का कार्यक्रम रखा गया। मैंने उसमें अपनी बात रखी-‘हमारे महाविद्यालय में अधिकांश छात्र गाँव से आते हैं। वे अपने- अपने गाँव में स्वच्छता बनाये रखने के लिये प्रयासरत हो जाये। घर-घर शैाचालय बनाने की बात अपने गाँव के लोगों को समझये। अब कोंई खुले में शौच न जाये। गाँव का जो व्यक्ति खुले मैं शौच जाता है ऐसे लोगों की हम सूची बना ले और वहाँ की पंचायत को उनके नाम सौप दे। इससे पंचायत उन्हें सहयोग देकर उनके यहाँ शौचालय बनाने का प्रयास शुरू कर देगी। इस तरह हम कुछ ही कदम चलेंगे कि सभी सचेत हो जायेगे, फिर कोई खुले मैं सौच नहीं जायेगा। गाँव स्चच्छ हो जायेंगे। वहाँ होने बाली बीमारियाँ नहीं होगीं।। हम सब कॉलेज के छात्रों का सचेत हो जान की आवश्यकता है। मैंने अपने विचार रखे हैं यदि उचित लगे हो तो ताली बजाकर मेरा उत्साह बढ़़ाये।

सच मानिये बहुत देर तक तालियों की गड़गड़ाहट सुनाई देती रही। मैं समझ गई मेरी बात सभी ने स्वीकार करली है। इसके बाद कॉलेज के अन्य छात्रों ने भी अपने विचार रखे। सभी की बातें मेंरे इर्द-गिर्द ही मड़राती रहीं। कॉलेज मैं मेरा भाषण चर्चा का विषय बन गया।

उन्हीं दिनों कॉलेज के चुनाव आ गये। सुमन गुप्ता बोली-‘तुमने अपना लक्ष्य हिन्दी साहित्य की सेवा बना लिया है। तुम्हारी लिखी हुई हर बात मुझे बहुत रुचिकर लगती है। मैं चहती हूँ कॉलेज में चुनाव आ गये हैं। अपने इस कॉलेज में हर बात में लड़कों का ही वर्चस्व है। चुनाव में हम लड़कियों को भी उतरना चाहिए कि नहीं?;

मैंने उसकी बात का समर्थन किया-‘ अच्छा है तुम यदि चुनाव लड़ना चाहती हो तो मैं तुम्हारा पूरा साथ दूंगी।’

‘मुझे तुम्हारा पूरा विश्वास है किन्तु मेरे मम्मी-पापा इसकी कभी अनुमति नहीं देगें। वे पूरे व्यापारी किस्म के लोग हैं। मुझे मामा के कारण यहाँ पर पढ़ा भी रहे हैं, यह उनका मेरे ऊपर उपकार ही है। तुम्हारे पापा राजनीति में दखल रखते हैं। वे तुम्हें चुनाव लड़ने की अनुमति दे सकते हैं।’

‘ हर माँ-वाप लडकी के मामले में रिस्क नहीं लेना चाहते। हम इस मामले में दूर ही रहे तो अच्छा है।’

‘वैसे जैसी तेरी इच्छा। एक वार भाग्य अजमाकर तो देख। कॉलेज से ही राजनीति के दरवाजे खुलते हैं। तुम्हारी तो किसी न किसी विषय पर कलम चलती ही रहती है। तुम भाषण भी अच्छा दे लेती हो।’

मैंने उसे समझाया-‘‘उस दिन प्रतियोगिता की बात छोड़। उस दिन नारी विषय पर विमर्श था। मन का विषय मिल गया। नारी जीवन की पीड़ाओं से हम अवगत है इसलिये मैं बोलती चली गई। मुझे पुरस्कार भी मिल गया। हमारे प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी के स्वच्छता अभियान की बात और थी। उसमें मैंने गाँव में जो देखा है उन्हीं बातों को कह दिया किन्तु चुनाव की बात अलग है। इसमें झूठ- सच का सहारा लेना पड़ता है। जो मुझे विल्कुल पसन्द नहीं है।

लड़कियों के लिए कॉलेज की आबोहवा संकुचित वातावरण की सीमा से बाहर निकालने में समर्थ होती है। मेरे सौन्दर्य और सौष्ठव के कारण साथी छात्र मेरे इर्द-गिर्द मंडलाने लगे। उनकी भावना वे जानें, मैं तो उनसे पढ़ाई की बातें करने लग जाती। जो बात कक्षा में समझ न आती वही उनसे पूछ बैठती। वे मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाते तो मेरे पास दोबारा सामने आने का प्रयास न करते। इस तरह भावनाओं से खेलने बाले लड़कों से दूर होती चली गई। आसपास रह गये अध्ययन, मनन में रुचि बाले सहपाठी। यह आदत मेरी ग्वालियर के के. आर. जी. कॉलेज से ही पड़ गई थी।

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