Ek anokha din in Hindi Short Stories by Vinayak Potdar books and stories PDF | एक अनोखा दिन

Featured Books
  • પ્રેમતૃષ્ણા - ભાગ 11

    “ હા ડો.અવની મલ્હોત્રા “ ખુશી બોલી .“ ઓકે , શાયદ ડો.મલ્હોત્ર...

  • આઈ વોન્ટ ટુ ટોક

    આઈ વોન્ટ ટુ ટોક- રાકેશ ઠક્કરઅભિષેક બચ્ચન પિતા અમિતાભનો અભિનય...

  • ભીતરમન - 59

    મુક્તારના જીવનમાં મારે લીધે આવેલ બદલાવ વિશે જાણીને હું ખુબ ખ...

  • ભાગવત રહસ્ય - 121

    ભાગવત રહસ્ય-૧૨૧   ધર્મ -પ્રકરણ પછી હવે -અર્થ -પ્રકરણ ચાલુ થા...

  • કૃતજ્ઞતા

      આ એ દિવસોની વાત છે જ્યારે માનવતા હજી જીવતી હતી. એક ગામમાં...

Categories
Share

एक अनोखा दिन



आज सुबह से ही मैं बड़ी अच्छे मूड में थी। चाहे आज देर से उठी और तैयार होकर ऑफिस निकलने के लिए देर होने वाली थी पर इससे मुझे कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला था। आखिर महीने में एक दिन लेट तो बनता है भाई। और फिर मेरे ऑफिस में तीन लेट मार्क के बाद मेमो आता था। घड़ी में देखा सुबह के आठ बजकर बीस मिनट हो रहे थे। जब की हमेशा मैं छह बजकर तीस मिनट पर ही उठ जाया करती थी। शायद कल रात की देर तक चली शीना की बड्डे पार्टी में कुछ ज्यादा ही ड्रिंक्स हो गयी थी। वैसे मैं रेग्युलर ड्रिंक्स नहीं करती। ऐसा नहीं की मुझे ड्रिंक्स से नफरत है या मुझे अच्छा नहीं लगता। पर मैं अडिक्टेड भी नहीं। मेरे पापा हमेशा कहते है " कोई भी चीज़ हद से ज्यादा करोगे तो वह ज़हर बन जाती है। " मैंने उनकी बात को हमेशा सीरियसली लिया। फिर भी कल की बड्डे पार्टी के दो पेग शायद भारी पड़ गए जिसकी वजह से आज मैं रोज की तरह साढ़े छह के बजाय आठ बीस पर उठी। अब बिगड़े शेड्यूल को किसी भी तरह ट्रैक पर लाना था। बच्चों को फटाफट तैयार किया सुधीर , बच्चों और मेरे लिए टिफिन तैयार किया। और फिर तैयार हो कर बस स्टॉप पर पहुंची। हाँ मेरी एक बात खास है जो हर हालत में मैं नहीं भूलती। मेरे कान में एअर सेट और उसमें बजते गाने। मैं उनके बगैर नहीं रह सकती। वो मेरे कान में हमेशा ठुसे रहते हैं। प्रोफेशनल सिंगर तो कभी बन नहीं पाई , लेकिन गाने सुनना मेरा पैशन रहा है। मैं उनके बगैर सिर्फ तभी रहती हूँ जब मैं ऑफिस में काम कर रही हूँ। वरना चाहे चलना हो ,खाना बनाना हो या कुछ और.... गाने बजने चाहिए। अभी भी मेरा पसंदीदा गाना मेरे कानों में बज रहा था। तब बस आ गई। आज बस लगभग खाली मिल गई। शायद ऑफिस जाने वाली भीड़ जा चुकी थी। चलो अच्छा है इसी बहाने आराम से बैठ कर ऑफिस जाउंगी। वरना रोज पैंडुलम की तरह लटकते हुए ही ऑफिस पहुंचना लिखा है ज़िन्दगी में। आज देर से पहली बार पहुँचूँगी तो पता नहीं सब कैसे बिहेव करेंगे मेरे साथ ? पिछले ५ साल में मैं के बार भी ऑफिस लेट नहीं पहुंची थी। तो ज़ाहिर है सब को हैरानी तो होगी। खास करके लिफ्टमन रामलाल। .. वो तो मेरे आने जाने के समय पर घड़ी मिला लिया करता है। वो तो पक्का बोलेगा। ... अरे स्टॉप आ भी गया ऑफिस का। मन ही मन में बातें करते और गाने सुनते सुनते पता ही नहीं चला। अब बस रास्ता पार करना है और ऑफिस की इमारत में घुसना है। फिर लिफ्ट से चौथी मंजिल और ऑफिस नंबर ४१२। कुछ ही मिनट। अरे वाह मेरा फेवरेट सॉंग लताजी का गाया हुआ... यह कहाँ आ गए हम। वॉव क्या अमिताभ की आवाज़ क्या लताजी का अंदाज़ मैं हज़ारों बार सुन चुकी हूँ यह गाना। पर हर बार नया पैन छलकता है। मैं रास्ता पार कर अब बिल्डिंग में पहुँच गई। अब रामलाल ज़रूर कुछ कहेगा। चलो अच्छा है लिफ्ट निचे ही मिली रामलाल भी शायद मेरा ही इंतज़ार कर रहा हो। मैंने लिफ्ट में पहुँचते ही उसे हेलो कहा। अजीब बात है कि उसने मुझे पलट कर भी नहीं देखा आज। ऐसा तो कभी नहीं करता वो। मैंने उसे दोबारा पुकारा और कहा कि चौथी मंज़िल। पर उसने अनसुनी कर दी। इतने में कुछ और लोग लिफ्ट में घुस आये उन्होंने रामलाल से अपने अपने मंजिल के नंबर बताये उनमे चार नंबर भी था। चलो रामलाल के बच्चे को तो बाद में देख लुंगी। पहले ऑफिस पहुंचू। ऑफिस का माहौल हमेशा की तरह लग रहा था। मैंने रिसेप्शन पर जा कर रजिस्टर अपने सामने घसीटा और उसमे सिग्न कर दिया ११ बज कर १५ मिनट। लगभग एक घंटा पंद्रह मिनट लेट। पर रिसेप्शन पर बैठे मोनिका ने मुझे देखा भी नहीं वो तो मोबाईल पर शायद व्हाट्सप्प में अपने बीएफ से बात करने में बीजी थी. (हमेशा की तरह। ) अब मुझे चाय की तलब लग रही थी। मैंने कान में से ईयर सेट निकल कर मॉनिटर के सामने रखें और अपने लिए मशीन की चाय लेकर आई। पता नहीं क्यूँ , पर आज कुछ अजीब सा फील हो रहा था। सपना जो मेरी कलीग और अच्छी सहेली भी थी , हमेशा की तरह मुझे देखते ही मेरे पास के बजाय अपनी कुर्सी पर बैठे बैठे मेरी तरफ बार -बार देख तो रही थी , पर मेरे हाथ हिला कर हाई बोलने पर भी उसने ना हाय कहा न हेलो। पता नहीं क्या हुआ है इसको ? आज ऑफिस में मेरे लायक कुछ खास काम था नहीं। सारा दिन ऑफिस के लोगों का मेरे प्रति ऐसा ही अजीबो गरीब बर्ताव देखते हुए गुज़रा। मैं हैरान थी की कोई मुझसे बात नहीं करना चाहता था। हर कोई मुझे इग्नोर कर रहा था। हैरान ,परेशान मैं घर पहुंची तो घर में मेरे ममी पापा ,सुधीर के ममी पापा और अड़ोस पड़ोस के कई लोग घर के अंदर बाहर दिख रहे थे। बच्चों को सुमिता मौसी छाती से लगाए बैठी थी। मातम सा माहौल छाया था। मेरा दिल आशंका से लरज गया। कहीं सुधीर को तो कुछ .....? नहीं नहीं मैं यह कल्पना भी नहीं कर सकती थी। सामने ही सफ़ेद कपड़ा ढका हुआ शरीर रखा था। मैं दौडते हुए वहां पहुंची और कपडा हटाया तो जो देखा उसकी मैं खुद कल्पना नहीं कर सकी। ... सामने मैं पड़ी थी अचल, शांत। ... आँखे मुंदी हुई ... अब पूरा दिन मेरी आँखों के सामने से किसी रिवाइंड पिक्चर की तरह गुज़रा मैं रास्ता पार कर रही थी। ... तब मेरे कानो में पड़े ईयर फोन की वजह से मैं मेरी तरफ आती ट्रक को ना देख पाई और न उसकी बजती हार्न को सुन पाई। उसने ही मुझे हवा में उछल दिया जिसके कारण मैं गेंद की तरह उछली और... तभी लिफ्ट में रामलाल ने मेरी बात नहीं सुनी न ही ऑफिस ने मेरी बातों की तरफ ध्यान दिया। शायद मैं मर चुकी थी या मर चुकी हूँ ?

शायद हाँ। ...