Benami khat - 1 in Hindi Letter by Dhruvin Mavani books and stories PDF | बेनामी ख़त - 1

Featured Books
  • स्वयंवधू - 31

    विनाशकारी जन्मदिन भाग 4दाहिने हाथ ज़ंजीर ने वो काली तरल महाश...

  • प्रेम और युद्ध - 5

    अध्याय 5: आर्या और अर्जुन की यात्रा में एक नए मोड़ की शुरुआत...

  • Krick और Nakchadi - 2

    " कहानी मे अब क्रिक और नकचडी की दोस्ती प्रेम मे बदल गई थी। क...

  • Devil I Hate You - 21

    जिसे सून मिहींर,,,,,,,,रूही को ऊपर से नीचे देखते हुए,,,,,अपन...

  • शोहरत का घमंड - 102

    अपनी मॉम की बाते सुन कर आर्यन को बहुत ही गुस्सा आता है और वो...

Categories
Share

बेनामी ख़त - 1

Dear ख़त ,


सोचा पहला ख़त तुम्हे ही लिखना चाहिए । क्योंकि आज कल के digital जमाने में भला तुम्हे याद कौन करेगा ? तुम्हे तो सिर्फ कुछ सरफिरे लोग ही लिखते है और मुझे खुशी है कि मैं उन सरफिरे लोगो में शामिल हूँ ।

तुम्हारा नाम भी मैंने "बेनामी ख़त " इसीलिए रखा है क्योंकि तुम किसी एक के लिए नही हो । मैंने तुम्हें बिल्कुल आजाद लिखा है । तुम जहाँ चाहो वहाँ जा सकते हो । मैं तुम पे कोई पता नही लिखूँगा और न ही कोई नाम । तुम हर उस शख्स के हो सकते हो जो तुम्हे पढ़ता है , तुम्हे समझता है और तुम पे भरोसा करता है।

वैसे तो आज कल कोई खत नही लिखता या यूँ कहूँ कोई तुम्हे नही लिखता । बस फ़ोन घुमाते है और घंटो उसपे चिपके रहते है । लेकिन फिर भी अपनी बातें उस अंदाज में बिल्कुल नही कह पाते जिस तरह वो महसूस करते है। तुम्हे लिखने का यही फायदा है इसमें हर एक अल्फाज जिंदा महसूस होता है ।

वैसे मैने असल जिंदगी में भी तुम्हारे जैसे ही बहोत खत लिखे है और उन्हें किसीको पहोचाये भी है । मुझे ये काम पसंद है । कूछ बातें ऐसी होती है शरुआत और अंत की जब में फ़ोन पे या text नही कर सकता तो अक्सर मैं खत लिख देता हूँ ।

सच कहूँ तो अब तुम बिल्कुल बेकार हो गए हो । तुम्हारी तो कोई अहमियत ही नही। लेकिन कोई बात नही मेरे जैसे कुछ पागल आज भी मौजूद है जो तुम्हे दाना पानी देते रहेंगे । तुम कभी कोरे नही रहोगे ये हमारा वादा है तुमसे । मैं कभी न कभी कुछ न कुछ लिखता रहूँगा । क्योकि मैं लिखे बगैर जिंदा नही रह सकता । और जब कभी मैं तुम्हे लिखने बैठु तो समझ जाना कि मैं अपनी जिंदगी लिख रहा हूँ । कुछ बहोत खास , जो दुनिया को या फिर किसी को बताना है तुम्हारे जरिये ।

तुम्हे हमेशा मेरे साथ रहना है मेरी साँसो की तरह...मुझे तुम्हारी जरूरत है । क्या
मैं तुमसे उम्मीद कर सकता हूँ कि तुम मुझ से ऊब कर चले नही जाओगे ?
मुझे लगता है मैं कर सकता हूँ । तुम भरोसे के काबिल लगते तो हो । तो फिर ठीक है अब अगले ख़त में मिलेंगे ।

तब तक तुम तुम्हारे दूसरे पेन्ने , कलम और स्याही के साथ जशन मना सकते हो मुझे कोई दिक्कत नही लेकिन हाँ ज्यादा शोर शराबा मत करना वर्ना मुझे डाँट पड़ेगी और गर मुझे डाँट पड़ी तो समजो तुम्हे सजा मिली । और हाँ तुम अगर इसे धमकी समझ रहे हो तो तुम ऐसा समझ सकते हो । खैर छोड़ो बस खुद का ध्यान रखना , कलम से बिल्कुल लड़ाई मत करना वरना वो तुम्हे फाड़ देगी और स्याही को बिल्कुल भी मत चिढाना वरना तुम जानते ही हो । आखिर में सबसे जरूरी कोई गीली चीज पर बिल्कुल भी मत बैठ जाना वरना इस बार मैं तुम्हे नही सुखाऊंगा...

Yhnaam

दोहजार बीस के अगस्त की तारीख बारह...