Arman dulhan k - 5 in Hindi Fiction Stories by एमके कागदाना books and stories PDF | अरमान दुल्हन के - 5

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अरमान दुल्हन के - 5

अरमान दुल्हन के भाग 5

सरजू कविता से बहुत सारी बात कर लेना चाहता था मगर तभी भाभी चाय लेकर आ गयी। सब लोग चाय पीने लगे। कविता ने भाभी से जाने की इजाजत मांगी। सरजू का मन कर रहा था कि कविता थोड़ी देर और बैठ जाये। तभी कविता की बूआ ने आकर कविता को पुकारा -"मीनू ..ए मीनू , कित्त मरग्गी ( कहाँ चली गयी) ए।"
"हां बूआ"
"बेटी मन्नै एक काम सै, जाके आऊं सूं मैं, अर घरां कोय कोनी तेरा जी (मन)ना लागैगा ऐकली का। तेरी भाभी धोरै ए बतळा (बातें करना) लिये।"
"ठीक सै बूआ"
"आपका नाम मीनू सै, या फेर कविता
?" सरजू ने विस्मय से पूछा।
"जी...वो बूआ.. प्यार तैं ( से) मीनू कह दिया करै।"
"ब्होते प्यारा नाम सै।सरजू ने कविता की आंखों में झांककर बोला।
कविता सकुचाकर इधर-उधर देखने लगी।

सरजू को यकीन ही नहीं हुआ भगवान उसकी इतनी जल्दी सुन लेगा।वह मन ही मन बेहद प्रसन्न हुआ और दिल से ईश्वर का धन्यवाद करने लगा। कविता से और बतियाने का मौका जो मिल रहा था।
भाभी अपने काम में व्यस्त हो गई थी।सरजू और कविता फिर से अकेले थे।सरजू फिर से कविता से बतियाने लगा।सरजू से बातें करके कविता को भी अच्छा लगने लगा था। कविता सोचने लगी मैं खामख्वाह ही सभी लड़कों को बूरा सोचती थी।अच्छे लड़के भी बहुत होते हैं। ये कितना हंसमुख लड़का है और कितने सलीके से बात कर रहा है। कविता की लड़कों संदर्भ में धारणा बदलने लगी थी।

कुछ तो उम्र का ये पड़ाव ही ऐसा होता जब विपरीत लिंग के दो लोग एक दूसरे के प्रति आकर्षित हो ही जाते हैं। यही हुआ सरजू और कविता के साथ भी। कविता को सरजू की बातें प्यारी लग रही थी और सरजू को कविता की बातें शहद के मानिंद लग रही थी ।
अब दोनों एक दूसरे को देखने का बहाना ढूंढने लगे थे।तीन चार दिन तक ऐसे ही चलता रहा। सरजू दो दिन के लिए आया था और चार दिन हो गए थे।वापस जाने का मन ही नहीं कर रहा था।इधर कविता को भी वापस जाना था उसका भाई उसे लिवाने आ गया था। कविता भाभी को बाय बोलने आई थी । भाभी तो महज बहाना था दरअसल बात कुछ और ही थी।वह सरजू को एक बार और देख लेना चाहती थी।भाभी घर पर नहीं थी सरजू बैठा अखबार पढ़ रहा था।
"भाभी कित्त(कहाँ) सै?"
सरजू ने कविता को ऊपर से नीचे तक देखा।उसे वह आज बला की खूबसूरत लग रही थी। कविता ने नीले रंग का पटियाला सूट डाल रखा था। दुपट्टे को ऊंगली से लपटते हुए उसने पूछा ।
हल्का सा आंखों में काजल, लंबी चोटी में बिल्कुल अल्हड़ सी लग रही थी।उसे ऐसा लग रहा था जैसे कोई परी अभी अभी आसमां से उतरकर साक्षात दर्शन दे रही हो।वह उसे अपलक देखता रहा।
"अरे भाभी कित्त सै?"
कविता ने दोबारा प्रश्न दोहराया।
"भाभी तो बाहर गई सै।"
कविता वापस मुड़ी ही थी कि सरजू धीरे से बोला।
" सुण!"
सरजू के दिल की धड़कन बढ़ गई थी ।
"के कहवै था?"
कविता जैसे इसी इंतज़ार में थी कि सरजू उसे पुकारे। उसका दिल भी जोरों से धक धक करने लगा ।
"बूरा ना मानै तो .....एक बात कहूं,
वह थोड़ा सा ठहरा और फिर मौके पे चौका मारते हुए बोला-"आज तैं ब्होते सुथरी लागै सै। मेर गैल ब्याह करले तेरे सारे सुपने पूरे कर दयूंगा।"
सरजू एक ही सांस में सबकुछ कह गया। उसका दिल और जोरों से धड़कने लगा।बाद में उसे महसूस हुआ था कि उसे ऐसा नहीं बोलना चाहिए था। लेकिन तीर कमान से निकल चुका था ।


कविता कुछ नहीं बोल पायी थी । सरजू के एकदम शादी के प्रपोज से अंदर तक गुदगुदा सी गई थी। वह दिल की धड़कन पर काबू पाते हुए थोड़ी सी मुस्कुराई और भाग गई।

आज सरजू बहुत अच्छा फील कर रहा था।कविता के मुस्कुराहट का मतलब वह उसकी हां ही समझ बैठा था।

सरजू भी अपने गांव आ गया किंतु उसका मन बिल्कुल नहीं लग रहा था।बार- बार उसे मुस्कुराती हुई कविता याद आ रही थी। ना ठीक से भूख लग रही थी और ना ड्यूटी पर जाने का मन कर रहा था।

क्या सरजू को सचमुच में प्यार हो गया ।या फिर सिर्फ आकर्षक मात्र। कविता का मुस्कुराना मात्र संयोग था या कुछ और जानने के लिए पढिए अगला भाग ........
क्रमशः
एमके कागदाना
फतेहाबाद हरियाणा