Bilkul Sahi Vasiyat in Hindi Short Stories by S Sinha books and stories PDF | बिल्कुल सही वसीयत

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बिल्कुल सही वसीयत

कहानी - बिल्कुल सही वसीयत

¨ जीवन के अंतिम पड़ाव में आ कर इतना कष्ट भोगना होगा , ऐसा कभी सोचा भी न था मैंने . ¨ शांति देवी बहुत मुश्किल से छड़ी के सहारे चल कर बाथ रूम जाती हुई बोली थीं


शंकर बाबू ने कहा ¨ तुम घबराओ नहीं , मैं जल्द ही तुम्हें किसी बड़े अस्पताल में ले चलूँगा . ¨


शंकर बाबू ने पत्नी को तसल्ली देने के लिए बोल तो दिया पर उनके दिमाग में बेटों की बेरुखी स्थायी घर बना चुकी थी . खुद तो झारखण्ड के छोटे से शहर रामगढ के रिफ्रैक्ट्री की ईंटें बनाने वाली एक प्राइवेट कंपनी से दो साल पहले रिटायर हो चुके थे . दोनों बेटों को पी ऍफ़ लोन और घर के नाम पर बैंक से लोन ले कर सैटल करा दिया था . बेटी की शादी भी इन्हीं रुपयों की बदौलत हो गयी थी . रिटायरमेंट के बाद उनके पास कोई ख़ास राशि नहीं बची थी . जो कुछ मिला उससे क़र्ज़ चुका कर घर छुड़ाया . वो तो उनके पिताजी ने अपने जमाने में इस छोटे शहर की अंतिम छोर पर एक बड़ा सा प्लाट खरीद कर उस पर एक छोटा मकान बना रखा था . हांलाकि यह मकान भी काफी पुराना हो चला था , जगह जगह टूटने लगा था . फिर भी सर पर छत तो थी . नहीं तो मकान का किराया देना उनके बस की बात न थी . वैसे घर के आगे पीछे काफी ज़मीन अभी तक खाली पड़ी थी .


बड़ा बेटा नीरज वर्षों पहले अमेरिका जा बसा था . छोटा बेटा धीरज प्राइवेट कंपनी में अफसर था , कभी मुंबई ,तो कभी चेन्नई या हैदराबाद ट्रांसफर होता रहता था . दोनों अपने अपने परिवार में व्यस्त थे . शंकर बाबू ने कभी पैसों की कमी की बात अपने बच्चों से नहीं की . उल्टे बेटे ही उन्हें अपनी परेशानी सुनाया करते - बड़े शहर के बड़े खर्चे , स्कूल की फीस , गाड़ी , घर , फर्नीचर्स आदि के ई एम आई से खुद उनके हाथ तंग रहते हैं . बेटी गुंजन कोई 40 किलीमीटर दूर रांची में रहती थी . वही बीच बीच में आ कर अपनी माँ को चुपचाप कुछ रूपये दे देती थी . गुंजन के पति का कोलकाता ट्रांसफर हो जाने से उसका आना भी करीब बंद हो चुका था . कभी कभी बेटी पापा के बैंक अकाउंट में कुछ रूपये ट्रांसफर कर देती . बेटी जाने के पहले एक अच्छा काम कर के गयी थी . घर के एक कमरे को उसने किराए पर दे रखा था . किरायेदार एक लड़का था जो उसके ससुराल के जान पहचान वाला था . विजय नाम था उसका , वह रामगढ़ के कॉलेज में पढता था . विजय से कुछ किराया भी मिल जाता और वह शंकर बाबू के बाहर के काम भी कर देता था .


बेटी ने ही जाने के पहले शंकर बाबू को एक स्मार्ट फोन दे कर कहा ¨ पापा आपको इसे रिचार्ज कराने की कोई जरूरत नहीं है . मैं कलकत्ते से ही इसका रिचार्ज कराते रहूंगी . वैसे बीच में कोई जरूरत हो तो मुझे अवश्य बताएँगे . ¨


पर उन्होंने आज तक अपने लिए कभी बेटे या बेटी से कुछ नहीं माँगा था . उनका मन सोचता कि बेटा या बेटी शादी के पहले तक ही अपने होते हैं . शादी के बाद माँ बाप का बंटवारा हो जाता है . बेटे को तो ससुराल वाले माँ बाप ज्यादा अच्छे लगते हैं . बेटी तो परायी होती ही है फिर भी पराये घर में जा कर भी अपने माता पिता को नहीं भूलती है . बेटी को पराया घर विदा करने पर उतना दुःख नहीं होता है जितना बेटों के पराया हो जाने का .


फिलहाल शंकर बाबू को रुपयों की जरूरत थी . अपनी और पत्नी दोनों की आँखों के मोतियाबिंद के ऑपरेशन कराने थे और पत्नी के घुटनों का भी इलाज कराना था . वैसे रांची के डॉक्टर ने तो घुटने बदलवाने के लिए बड़े शहर जाने के लिए बोला था . विजय ने एक बार उनसे कहा भी था ¨ अंकल , आपके घर के आगे पीछे इतनी ज़मीन पड़ी है कि इस पर एक अपार्टमेंट बन सकता है . अब तो रामगढ़ का भी विकास हो रहा है . किसी बिल्डर को दे दें तो अच्छी कीमत मिलेगी और बिल्डर आपके रहने के अलावे कुछ और फ्लैट भी फ्री दे देगा . ¨


यही बात उनकी बेटी ने भी एक बार सुझाया था , पर उन्हें यह मंजूर नहीं था .


यूँ ही तकलीफ से शंकर बाबू और शांति देवी के दिन कट रहे थे . इधर कुछ दिनों से शंकर बाबू भी बीमार थे . एक दिन अचानक घर के सामने टैक्सी रुकी . शंकर बाबू बारामदे में कुर्सी पर बैठे थे . उन्होंने देखा कि टैक्सी से अकेली गुंजन बेटी उतर रही थी . वे उठ कर गेट खोलना चाहते थे तभी बेटी ने उन्हें बैठे रहने का इशारा किया . उन्हें प्रणाम कर उनका हाल पूछा तो वे बोले ¨ ठीक है बेटा . ¨


गुंजन ने उनका ललाट छू कर कहा ¨ पापा आपको बुखार है , चलिए अंदर चलिए . ¨


दोनों घर के अंदर गए . गुंजन ने माँ को प्रणाम किया तो उन्होंने पूछा ¨ अचानक अकेली कैसे आयी , वह भी दो बड़े सूट केस के साथ . दामाद जी और नाती कहाँ हैं ? ¨


¨ कैसे आयी हूँ आप जानना चाहती हैं न , ट्रेन से आई हूँ . आपका अगला सवाल होगा क्यों आई हो , पति से लड़ कर आई हो ? ¨ उसने हँसते हुए कहा


शंकर बाबू और शांति देवी दोनों बेटी को उत्सुकता से देख रहे थे . इसी बीच विजय भी वहीँ आ गया . उसे देख कर गुंजन बोली ¨ आपलोग तो कुछ बोलते नहीं , मुझे पराया समझते हैं . विजय ने फोन कर आपलोगों के बारे में बताया . ¨


¨ तुमने गुंजन को क्यों कष्ट दिया ? “ विजय से शंकर बाबू ने पूछा


¨ वो क्या बोलेगा , मैं बताती हूँ . मैं यहाँ पति की सहमति से आई हूँ . कम से कम एक महीना रहूंगी मैं . और आपलोगों को सैटल करा कर ही जाऊंगी . ¨


¨ क्या मतलब , अभी क्या मैं सैटल्ड नहीं हूँ ? ¨


¨ नहीं पापा मैं नहीं समझती कि आप लोग ठीक से सैटल्ड हैं . जब भी आपकी तकलीफ के बारे में सुनती हूँ मैं अपने को अनसैटल्ड महसूस करती हूँ . पापा , मेरा मन आपलोगों के लिए चिंतित रहता है . ¨


¨ तुम क्या कहना चाहती हो ? ¨


¨ पापा मैंने यहाँ आने से पहले रांची के बिल्डर से बात की है . वह चुपचाप आ कर आपका घर और खाली प्लाट देख कर गया है . इस प्लाट पर वह एक अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स बनाएगा . ¨


¨ बेटे , तुम मुझे जीते जी अपने घर से बेदखल करने आयी हो . ¨


¨ पापा , आप मुझे गलत समझ रहे हैं . मैंने और विजय ने इस बीच काफी प्लानिंग कर ली है . ¨


¨ तो यह तुम्हारे ससुराल वालों की मिली भगत है . मैं यह घर नहीं बेचूंगा . ¨


¨ पापा आपने पहली बार मुझ पर अविश्वास किया है . मुझे बहुत दुःख हुआ है . मैं सिर्फ आपलोगों की भलाई सोच कर यहाँ आयी हूँ . आप इतना बड़ा प्लाट रख कर क्या करेंगे ? आप क्या सोचते हैं भैया लोग यहाँ रहने आएंगे ? वे भी आपके बाद इसे बेच डालेंगे . मैं आपको समझाती हूँ ¨


¨ मेरे बाद जो भी हो , मैं जीतेजी यह नहीं होने दूंगा . ¨


¨ इसे बोलने तो दीजिये . ¨ शांति देवी ने बहुत देर खामोश रहने के बाद चुप्पी तोड़ी .


¨ पापा , आप ध्यान से सुनिए . मैंने जिस बिल्डर से बात की है वह एक दो दिनों में पूरा प्लान ले कर हमारे पास आएगा . कोई आपको जबरदस्ती नहीं कर सकता है . पर जरा सोचिये , वह आपको अच्छी कीमत देगा . साथ में जितने अपार्टमेंटस बनेगा उसका बीस पर्सेंट आपको देगा यानि अगर बीस फ्लैट बनाता है तो आपको चार फ्लैट भी फ्री देगा . ¨


शंकर बाबू सोच में पड़ गए . तब विजय बोला ¨ अंकल , आपको कुछ दिनों के लिए किराए के मकान में रहना पड़ेगा ज्यादा से ज्यादा एक साल . इस बीच कम से कम एक फ्लैट आपके रहने लायक तैयार कर बिल्डर आपको सौंप देगा . ¨


¨ इतना ही नहीं , इसके अलावा आपके तीन और फ्लैट्स होंगे जिन्हें आप किराए पर लगा देंगे . आपको आजीवन पैसों की कमी नहीं होगी . अपना और माँ का इलाज आराम से करा सकते हैं . और फिर अपार्टमेंट्स में पड़ोसी आपकी सहायता कर सकते हैं . घर की सुरक्षा के लिए चौबीस घंटे सिक्युरिटी होगी , पानी , बिजली के मेंटेनेंस की चिंता आपको नहीं करनी है वो सोसाइटी करेगी . एग्रीमेंट साइन करते समय बिल्डर आपको कुछ एडवांस भी देगा जिससे आपलोग अपना इलाज तुरंत करा सकते हैं . ¨ गुंजन ने कहा


शांति देवी बोलीं ¨ ठीक ही तो है . हमारे बाद एक एक फ्लैट तीनों बच्चों का हो जायेगा . ¨


¨ और चौथा फ्लैट ? ¨ शंकर बाबू ने पूछा


कुछ पल शांत रहने के बाद शांति देवी बोलीं ¨ चौथे फ्लैट में तो हम दोनों रहेंगे . और हमारे बाद वह फ्लैट भी गुंजन का होना चाहिए . आखिर दोनों बेटों से कहीं बढ़ कर हमारी बेटी ने हमारे लिए सोचा है . ¨


¨ पापा , यह सब बाद में सोचेंगे . मुझे फ्लैट की जरूरत नहीं है . ¨


¨ नहीं मैंने अभी से सोच लिया है . तुम बिल्डर को बोल दो , अपना एग्रीमेंट ले कर आएगा . और जैसा कि तुम्हारी माँ ने कहा है वसीयत वैसी ही होगी . दो फ्लैट्स तुम्हारे नाम होंगे . ¨


“ सिर्फ आपके लिए एक फ्लैट ग्राउंड फ्लोर पर बनेगा जिसमें एक एक्स्ट्रा गेस्ट रूम रहेगा . इसमें विजय रहेगा या आगे भी किसी ऐसे आदमी को रखना है जो आप दोनों की देखभाल कर सके . “


¨ यह बिल्कुल सही वसीयत होगी अंकल . ¨ विजय बोला


¨ अच्छा तुम ज्यादा बक बक नहीं करो . पैकिंग में मदद करो हमारी . जल्द ही किराए के मकान में जाना होगा . ¨ गुंजन ने हँस कर विजय को कहा



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( यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है और किसी पात्र या घटना या जगह का भूत या वर्तमान से कोई सम्बन्ध नहीं है )