jadugar jankal aur son pari - 4 in Hindi Children Stories by राज बोहरे books and stories PDF | जादूगर जंकाल और सोनपरी (4)

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जादूगर जंकाल और सोनपरी (4)

जादूगर जंकाल और सोनपरी

बाल कहानी

लेखक.राजनारायण बोहरे

4

कुछ ही देर में वे समुद्र को पार कर चुके थे और मगरमच्छ गहरे पानी से जमीन की तरफ बढ़ रहा था।

इस तरह सबसे कठिन लगने वाली इस यात्रा में एक एक करके इस तरह सातों समुद्र पार करने के बाद वे लोग उस टापू पर जा कर उतर गये थे जिस पर जादूगर ने अपना किला बना रखा था।

मगरमच्छ की पीठ से टापू की जमीन पर उतरते शिवपाल को देख कर परी शिवपाल के पास आयी और उसके हाथ जोड़ बोली कि यहां तक तो आपको लाने में मैंने सहयोग दे दिया है क्येांकि यहां तक मेरा जादू चलता था अब जादूगर के इस पूरे टापू पर हमारा कोई जादू नही चलता है। इसलिये अब आगे के जंगल और मैदान की यात्रा आपको सोच विचार कर मेरी सहायता के बिना अपने हिसाब से करना होगी । मैं सिर्फ इतनी मदद कर सकती हूं कि आप मेरा यह परीदण्ड ले जाइये । जब इसे आप इस परीदण्ड को अपने हाथ में लेकर मुंह के सामने करके कहेंगे कि ‘आग पैदा हो’ तो आग पैदा हो जायेगी और जब आप कहेंगे कि ‘पानी बरसने लगे’ तो तुरंत ही पानी बरसने लगेगा। आप जब वापस लौटेंगे तो मैं आपको समुद्र के इसी तट पर मिलूंगी। आपकी यात्रा शुभ हो।’’

गोपाल ने टापू पर चढ़ने से पहले अपने मित्रों को बुला करा कहा ‘‘ मैं अकेला ही घोड़े पर बैठ कर जादूगर की तलाश में निकलूंगा । उसने शेर से कहा कि तुम मेरे दांये बांये तरफ की झाड़ी में छिपकर चलोगें और जब जरूरत होगी तुम मेरे पास आकर प्रकट हो कर सहायता करोगे। फिर उसने बाज से कहा कि बाज तुम आसमान में उड़ते रहोगे और चारों ओर का नजारा देखते हुये मेरी मदद करोगे। फिर वह मगरमच्छ से बोला कि तुम तब तक इसी जगह रूकर मेरा इंतजार समुद्रतट पर करोगे।’’

घोड़े के कंधे को थपथपा कर वह घोड़े पर सवार हुआ ।

शिवपाल टापू पर घोड़े को आगे बढ़ाया तो देखा कि कुछ दूर तक रेत और खाली मैदान है इसके बाद सामने बहुत घना जंगल खड़ा है । मैदान पार करके घोड़े ने यहां वहां बहुत चक्कर लगाये लेकिन मैदान से जंगल के भीतर जाने के लिए कोई रास्ता तक नही दिख रहा था।

शिवपाल ने बाज को इशारा किया तो बाज ने आसमान में एक कुलांच भरी और चारों ओर की हालत देख कर वह नीचे आया तथा उसने शिवपाल को अपने पीछे आने का इशारा किया। बाज दांये हाथ तरफ बढ़ रहा था शिवपाल ने उसके बताये अनुसार समुद्र किनारे किनारे दो सौ कदम चलने पर पाया कि घने पेड़ों की कतारों में से एकजगह कुछ खुला सा भाग दिख रहा है , पास जाने पर उसने पाया कि यही जंगल में जाने का रास्ता था ।

शिवपाल का घोड़ा उस रास्ते से आगे बढ़ा।

वे लोग जंगल मे प्रवेश कर के दो सौ कदम ही चले थे कि अचानक जंगल चीख पुकार से गूंज उठा। सहसा चारों ओर से बहुत से लोगों के रोने की आवाज आने लगी थी।

घोड़े को रोक कर शिवपाल ने ध्यान से देखा कि जंगल के सब के सब पेड़ों में से पानी सा बह रहा है और हर पेड़ में से ही रोने की आवाज आ रही है।

शिवपाल ने याद किया कि गुरूकुल में पढ़ते वक्त गुरू से ऐसे पेड़ों के बारे मे सुना था, जो हवा की आवाज को अपने पत्तों में मिला कर ऐसी आवाज निकालते हैं कि दूसरों को लगता है कि कोई बहुत दुखी स्वर में रो रहा है।

गुरू की याद आने से शिवपाल को उस समय न तो डर लगा, न ही उसने अपनी यात्रा रोकी ।

घोड़े के कंधों पर उसने हल्की सी थपकी लगाई तो घोड़ा आगे बढ़ चला।

अब वह सौ कदम ही बढ़ पाया था कि एकाएक उसने सुना कि जंगल में घोड़े की टापें बहुत तेज गूंज रहीं हैं। पहले उसे लगा कि उसी के घोड़े की टाप सुनाई दे रही है बाद में ध्यान दिया तो महूसस हुआ कि उसके घोड़े की टापों के अलावा भी बहुत सारे घोड़ों की टापों की आवाज सुनाई दे रही है ।

शिवपाल ने अपना घोड़ा रोका और उसकी पीठ पर खड़े होकर जंगल में चारों ओर नजर दौड़ाई कि कहीं से वे बहुत से घोड़े कहीं दिख जायें जो जंगल में इस तरह दौड़ रहे हैं। लेकिन उसे दूर दूर तक कहीं कुछ नही दिखाई दिया और आवाज अचानक बन्द हो गयी थी तो उसने अपना घोड़ा आगे बढ़ाया ।

उनके घोड़े के चलते ही बहुत सारे घोड़ों की टापें फिर से जंगल में गूंजने लगी थी।

शिवपाल मन ही मन सोच रहा था कि इतने घोड़े इस जंगल में कहां दौड़ रहे थे। वह सतर्क हो गया कि कोई उसका पीछा तो नहीं कर रहा था। पीछे दूर तक कोई भी नही दिखाई दिया। वह समझ नहीं पा रहा था कि आखिर क्या माया थी इस जंगल में?

अब चलते हैं, जो होगा देखा जायेगा, यह सोच कर उसने घोड़ा फिर आगे बढ़ाया।

वह चारों तरफ के पेड़ों और आसमान पर नजर फेंकने लगा तो अचानक ही उसकी नजर अपने सिर के उपर से दांये हाथ की दिशा से उड़कर बांये हाथ की तरफ जाते एक उल्लू पर पड़ी तो वह चौंका, क्योंकि उस उल्लू के मुंह से ही घोड़ों के टापों की आवाज गूंज रही थी- अरे बाप रे !

शिवपाल ने एक लम्बी सांस ली और वह मुस्करा उठा।

उसको गुरूकुल में बताई एक दूसरी बात याद आई कि जंगल में रहने वाले उल्लुओं में भी तोतों की तरह आस पास से आने वाली आवाज की नकल करने का गुण होता है। शिवपाल समझ गया कि आवाज आने की घटना उल्लुओं की करामात थी। रहस्य जानकर राहत की सांस ली शिवपाल ने।

जंगल के इस रास्ते से आगे जाकर एक चौराहा सा था जहां से चारो ओर चार रास्ते गये थे। जाने किस रास्ते से होकर जादूगर जंकाल का किला बनाया गया है? शिवपाल ने दो पल रूककर सोचा।

सहसा उसे सूझा कि इस जंगल से होकर कोई सीधा ही किले तक पहुंच जाये इसके लिऐ रास्तों में भी भरम और भूल भुलैया पैदा की गयी होगी। अब उसने सामने के तीनों रास्तो पर नजर मारी। बांया रास्ता दूर तक जाता हुआ दिख रहा था और दांये तरफ का भी, जबकि सामने वाले रास्ते पर आगे धुंआ सा जमा हुआ था और आगे का कुछ भी नही दिखाई दे रहा था। शिवपाल को लगा जरूर इसी रास्ते पर महल होगा। उसने सामने की ओर घोड़ा बढ़ा दिया।

धुंये जैसा भ्रम जो चौराहे से दिख रहा था वो धुंआ अपनी जगह रूका हुआ था न तो उड़ कर आसमान में जा रहा था न ही शिवपाल के पास आ रहा था बल्कि वह लगातार आगे खिसकता जारहा था।

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