niswarth seva in Hindi Motivational Stories by RAJESH MAHESHWARI books and stories PDF | निस्वार्थ सेवा

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निस्वार्थ सेवा

निस्वार्थ सेवा

कुछ वर्ष पूर्व गुजरात राज्य में भीषण अकाल पड़ा था जिसमें मानव के साथ साथ जानवर भी भोजन के अभाव में काल कलवित हो रहे थे। इसका सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव गो वंश पर हो रहा था क्योंकि उनके रखवाले मालिक ही जब स्वयं अपनी व्यवस्था नही कर पा रहे थे, तो वे पालतू गायों के लिये चारे की व्यवस्था कैसे करते ?

ऐसी विकट परिस्थितियों की जानकारी राजकोट के सांसद द्वारा जबलपुर के अपने कुछ मित्रों को दी गयी। इससे द्रवित होकर उन्होने एक रैक रेलगाडी का चारे से भरकर गो माता की सेवा के लिये भेजने का संकल्प लिया। रेल विभाग द्वारा रेल वेगन एवं किराया आदि इस पुनीत कार्य के लिये माफ कर दिया गया। परंतु समय सीमा भी दो सप्ताह की दी गयी थी।

इस अभियान से जुडे सभी सेवकों ने यह प्रण लिया था कि वे चारे, भूसे को गांव गांव जाकर इकट्ठा करके नियत समय पर उसे भेज देंगे। जब उन्होने गो माता की रक्षार्थ भूसा दान देने का अनुरोध किया तो क्षेत्र के हर छोटे बडे किसान ने अपने दिल और आत्मा से इसका स्वागत करते हुये मुक्त हस्त से दान देना प्रारंभ कर दिया। उन्होने रेल्वे स्टेशन तक भूसा पहुँचाने का बीडा भी अपने कंधो पर ले लिया, और एक सप्ताह के अंदर ही रेल्वे का पूरा प्लेटफार्म भूसे के ढेर से भर दिया। हम सभी यह देखकर बहुत प्रसन्न थे परंतु जब भूसा वेगनों में भरा गया तो पूरा भूसा भरने के बाद भी आधी वेगने खाली थी यह मालूम होते ही हम सभी के चेहरो पर हवाइयाँ उडने लगी कि अब इतना भूसा और कहाँ से आयेगा हम जितना प्रयास कर सकते थे उतना कर चुके थे हम सभी निराशा से भरकर इस पर चिंतन कर रहे थे परंतु मन में कही न कही एक उम्मीद की किरण अवश्य थी कि इस पुनीत कार्य में निस्वार्थ भाव से सेवा का उद्देश्य अवश्य पूरा होगा।

शाम का समय हो गया था तभी साइकिल पर एक दानदाता भूसे का गट्ठा लेकर आया और उसने वह भूसा वेगन में डाल दिया। वह हम लोगों के पास आकर बोला कि ईश्वर करे आपका यह निस्वार्थ मनोरथ पूरा हो ऐसी भावना व्यक्त करके वापिस चला गया। हम उसे दूर जाते हुये देख रहे थे। अंधेरा घिर आया था मैने अपने साथियो से कहा कि देखो ये दूर छोटी छोटी टिमटिमाती हुयी रोशनीयाँ जैसे इसी तरफ आती हुयी महसूस हो रही है। इसके कुछ देर बाद ही एक के बाद एक भूसे से भरी बैलगाडीयाँ आने लगी और वे स्वयं ही भूसे को वेगनों मे भरने लगे हम यह देखकर भौंचक्के रह गये कि चार पाँच घंटे के अंदर ही पूरे वेगन भूसे से ठसाठस भर चुके थे। हम उस साइकिल से आने वाले दानदाता के बारे में विचार कर रहे थे जैसे कोई देवदुत आकर हमारी निराशा को आशा में बदलकर चला गया हो। दूसरे दिन ही रेल्वे ने उस रेलगाडी को गुजरात के राजकोट शहर की ओर रवाना कर दिया। हम लोग भी प्रसन्नता पूर्वक यह सोचते हुये रवाना हुये कि निस्वार्थ भाव से किये गये संकल्प अनेको कठिनाइयों के बाद भी पूरे होते हैं।