WO CHALA GAYA ... ... in Hindi Short Stories by Kalyan Singh books and stories PDF | वो चला गया

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वो चला गया

“ बहन जी ! अब तो लगता है कि विकास का इलाज़ यहाँ पर हो पाना संभव नहीं हैं।” - सरोज ' दीदी जी ' अपनी परेशानी मम्मी से बताते हुए बोली।


“ दरअसल हमारे यहाँ महिला टीचर को ' दीदी जी ' नाम से संबोधित किया जाता है। “
“लेकिन क्यों ? आप तो यही पर उसका चेक - अप करवा रही थी। फिर अचानक से इलाज़ में मुश्किल कैसे आ गयी ? “- मम्मी अपने मन में आ रही शंका को ख़त्म करते ही पूछ लिया ।


“अब क्या बताए ! कल अचानक से इसको सांस लेने में तकलीफ़ होने लगी। और जब डॉक्टर के पास लेकर गयी तो वो बोले कि इसका इलाज़ यहाँ पर संभव नहीं है। आपको शहर ले जाना पड़ेगा और ज्यादा देर हुई तो कुछ भी हो सकता हैं ! “


“अरे ! ये क्या बात हुई , जब इलाज़ नहीं कर सकते थे तो पहले ही बता देते। हम लोग पहले से ही शहर में इसका चेक - उप करवाते। अब जब बीमारी और बढ़ गयी तो बोल रहे हैं कि इलाज़ संभव नहीं है। चलिए ! मैं डॉक्टर से बात करती हूँ। “ - इतना बोलते हुए मम्मी एकदम से उठ खड़ी हुई।


“अरे आशा ! ये सब का अभी समय नहीं है।मुझे तो हर - पल विकास का ही ख़्याल आ रहा है।” - दीदी जी , मम्मी का हाथ पकड़ते हुए बोली। “ मैं आज ही विकास को लेकर शहर जाऊँगी। थोड़ा सा आप से एक मदद चाहिए ? “


“मदद ! ये भी कोई पूछने की बात है ? आप बेफ़िक्र होकर बोलिये। “ - मम्मी ने एकदम आश्वासन से भरा उनको जवाब दिया कि तुम अकेली नहीं हो।


“अब आपसे क्या बताँऊ कि आज राम के पापा को पहली बार ; जब से इनकी दिमागी हालत ख़राब हुई है ; अकेले छोड़ के जाना पड़ रहा हैं। इसीलिए अगर आप थोड़ा सा राम और इनके पापा को देख लेंगी ? तो मैं वहाँ आराम से इसका इलाज़ करवा लूँगी। “


“अरे ! ये भी कोई बोलने की बात है। आप यहाँ की चिंता से बेफिक्र होकर विकास का इलाज करवाइये। मैं तो कहती हूँ कि संजय को भी अपने साथ लेते जाइये थोड़ी बहुत आपकी मदद भी हो जाएगी।”- मम्मी ने उनका हाथ पकड़ते हुए बोला।

“अरे नहीं ! मैंने अपने भैया को बोल दिया है वो गाँव से सीधे शहर आ जाएंगे।”

“अगर कुछ पैसे या और कुछ मदद चाहिए तो बहन जी अपना समझ के बिना संकोच बता दीजियेगा।” - मम्मी ने अपने-पन का अहसास दिलाते हुए बोली।

“अरे नहीं ! पैसे की अभी कोई आवश्यकता नहीं है। अगर कुछ होगा आपको जरूर बताउंगी। “


“नमस्ते दीदी जी ! “- मैं घर में प्रवेश करते हुए।

“अरे ! संजय जाओ जरा 'दीदी जी ' को बाइक से घर छोड़ आओ “- मम्मी ने मेरे को इशारा के साथ बोली।

“अरे ! रहने दीजिये इतनी धूप में कहाँ जायेगा। वैसे भी मैं छाता लेकर आयी हूँ , धीरे - धीरे पैदल चली जाऊँगी।” - दीदी जी, मम्मी की बात काटते हुए बोली।


ट्रिन ट्रिन ... ...

संजय देख किसका फ़ोन है ?

जी मम्मी !

मैं टेलीफ़ोन का रिसीवर अपने कान में लेते हुए।

कौन ?

“जी मैं सरोज 'दीदी जी ' का पड़ोसी बोल रहा हूँ वो आपके यहाँ आयी हुई हैं क्या ? “- उधर से बहुत जल्दी में आवाज़ आयी।

जी यही पर है। फिर मैं एकदम से स्पीकर पर अपना हाथ रखते हुए , दीदी जी आपके पड़ोसी का फ़ोन हैं वो आपसे बात करना चाहते है।

फ़ोन अपने हाथ में लेती हुई

“दीदी जी ! विकास को अभी ख़ून की उलटी हुई है और राम भइया भी मूर्छित होकर गिरे पड़े है। आप यहाँ पर तुरंत आ जाये “- इतना बोलते ही उधर से फ़ोन कट हो गया।

“आशा बहन ! अब चलती हूँ विकास की तबियत ज्यादा ख़राब हो गयी है “- इतना बोलते ही दीदी जी उठने लगी।

“क्या हुआ ! फ़ोन पर क्या बात हुई आपकी ? “- मम्मी ने इधर से पूछा।

“अरे ! बोल रहे है कि विकास को खून की उलटी हुई है और शायद उसकी ये हालत देखकर राम मूर्छित होकर गिरा हुआ है।” - इनके यहाँ इतनी बड़ी मुसीबत आ गयी और ' दीदी जी ' कितने शांत स्वभाव से बोल रही है कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं है।


क्या ? - मैंने और मम्मी ने एक साथ बोला !

दीदी जी के बारे में ये हैं कि चाहें कितनी ही बड़ी मुसीबतों क्यों ना हो वो अपने अंदर के दुःख को बाहर नहीं आने देती है। और आज यही हो रहा है।

“खून की उलटी ! राम मूर्छित होकर गिर पड़ा है ? “ - मम्मी एकदम रुहासे भरी आवाज़ में।

आज जिसको हिम्मत देने की जरूरत हैं वो खुद हम लोगों को सांत्वना दे रहा हैं।

मैं जल्दी से दीदी जी को बाइक से उनके घर छोड़कर सीधा घर की तरफ निकल पड़ा। क्योंकि मुझे जल्दी घर पहुँचकर मम्मी को भी उनके घर छोड़ना था।


1


जब घर के भीतर गए तो वहाँ का दृश्य देखकर किसी के भी आँसू निकल जाते !

एक तरफ विकास बाथरूम के दरवाज़े के पास अचेत अवस्था में पड़ा हुआ था उसका एक हाथ खून की उलटी पर और कपड़े पर खून के छींटे पड़े हुए थे। उसके मुँह से जमीन तक खून की छोटी - छोटी बूँदे टपके जा रही थी जिस पर मक्खियाँ भिन - भिना रही थी।

और एक तरफ राम भैया मूर्छित अवस्था में पड़े हुए थे जिनकी दोनों आँख खुली हुई जिसको देखकर थोड़ा डर सा भी लग रहा था।

उन दोनों को इस अवस्था में देखकर किसके आँख में आँसू न आये लेकिन एक इंसान वहाँ कुर्सी पर बैठा दोनों को एक टकटकी निगाहों से बिना किसी आँसू के देखे जा रहा था।

अब ये सोच पाना मुश्किल था उनके इस व्यवहार की वजह !

या तो उनको बहुत बड़ा आघात पंहुचा है या उनकी दिमागी हालत ख़राब हो गयी और या तो वो मन ही मन आभास कर रहे हैं कि उनके बच्चों के साथ क्या हुआ हैं लेकिन कुछ भी न कर पाने में असमर्थ सा महसूस कर रहे है।


' दीदी जी ' बिना आँसू बहाये पहले 'विकास' के पास जाकर उसके खून को साफ़ करने लगी और मैं भी पड़ोसी की सहायता से राम भैया को उठाकर दूसरे कमरे के तख़त पर लेटा दिया। फिर पानी की छींटे उनके चेहरे पर मारते हुए उनको होश में लाने का प्रयास करने लगे जो कि विफल रहा।

इतना सब देखकर कुछ लोगों ने पास से एक डॉक्टर को बुला लाया। वो राम भैया के आँखे और मुँह चेक करके बोले कि कमज़ोरी की वजह से इनको चक्कर आ गया है।थोड़ी देर में होश आ जायेगा।

और इधर पानी की छींटे विकास के चेहरे पर मारने के कुछ देर बाद उसकी आँखे खुली और पहला शब्द ' राम भैया ' निकला।

माँ को अपने पास देख कर - “मम्मी आप आ गयी। भैया कहाँ है मुझे उनको खुश- खबरी सुनानी है।”

“हाँ बेटा ! मैं आ गयी “- दीदी जी ने ममता से भरी आवाज़ में कहा।

“मम्मी ! भैया की नौकरी लग गयी है वो देखो उनका लेटर आया है।” - एक हाथ से जमीन पर पड़े लिफ़ाफ़े की ओर इशारा करते हुए। “ भैया को बुलाओ ना ! ये खुश- ख़बरी सबसे पहले मैं उनको दूंगा।”

“हाँ बेटा ! भैया अभी बाहर गया है जब आ जायेगा तब जरूर सुना देना खुश -ख़बरी।”

“हाँ मैं ही सुनाऊंगा ! मम्मी पानी पीना है। “

“ये लो बेटा पानी ! दीदी जी अपने हाथ से पीठ पर जोर ऊपर उठाते हुए और दूसरे हाथ से पानी पिलाते हुए।

बेटा ! अभी कैसा महसूस कर रहे हो ? “ - पानी की गिलास बगल के टेबल पर रखते हुए बोली।


“पेट में बहुत दर्द हो रहा है और साँस लेने में बहुत दिक्कत भी हो रही है।”

“सब सही हो जायेगा बेटा ! अभी डॉक्टर के पास चलती हूँ।

इधर - उधर नज़र घुमाते हुए जैसे ही विकास की नज़र हम लोग पर पड़ी - “ इतने लोग क्यों आये है मम्मी ?”

“बेटा ये सभी लोग तुम्हारा हाल पूछने आये है। “


“संजय ! जाओ एक रिक्शा ले आओ विकास को अस्पताल ले चलना है।” - मम्मी मेरे को देखते हुए बोली।

जी ! अभी ले आता हूँ।

“विकास बेटा ! क्या हुआ था कुछ याद आ रहा है ?” - मम्मी विकास के पास आकर पूछने लगी।

“ऑन्टी जी ! मुझे कुछ ज्यादा याद नहीं आ रहा है। बस इतना याद आ रहा है कि पापा को खाना देकर जैसे ही मैं खाना खाने बैठा त्योंही अचानक फिर से वही पेट का दर्द शुरू हो गया। जैसे - तैसे मैंने खाना खाया लेकिन जब दर्द सहा नहीं गया तो मैंने दर्द की खुराक ले ली। तब कुछ थोड़ा आराम मिला। उसके कुछ देर बाद ही घर की घंटी बजी तो देखा कि पोस्टमैन एक लिफाफा थमाते हुए चले गए। जब मैंने लिफाफा खोला तो पता चला कि भैया के नौकरी के आवेदन को स्वीकार कर लिया गया है जिसको लेने के लिए वह डाक कार्यालय गए हुए थे। मैंने सोचा की ये खुश ख़बरी सबसे पहले मैं ही उसको बताऊंगा। लेकिन अचानक फिर से वही दर्द शुरू हो गया और इस बार तो बर्दास्त करना मुश्किल था दर्द से कहारते - कहारते जैसे ही पानी पीया, वैसे ही मुझे खून की उलटी होने लगी और उसी समय पीछे से मुझे भैया की ' बाबू ' ज़ोर से आवाज़ आयी। उसके बाद मुझे कुछ पता नहीं ! “


“सब सही हो जायेगा बेटा ! हिम्मत रखो।” - मम्मी हौसला बढ़ाते हुए बोली।

“मम्मी रिक्शा आ गया है। “- मैं कमरे में प्रवेश करते हुए बोला।

मम्मी और दीदी जी ! विकास को लेकर डॉक्टर साहब को दिखाने रिक्शे से चली गयी

और मैं और उनका एक पड़ोसी राम भैया के पास रुक गए। जो अभी भी मूर्छित अवस्था में पड़े हुए थे। एक तरफ अंकल जी भी अपनी वही अवस्था में कुर्सी पर बैठे हम लोग को देख रहे थे।


2


“अरे ! राम को अस्पताल लेकर क्यों नहीं गए ? “- पिता जी कमरे में दाखिल होते ही मेरे से बोले।

“पापा ! वो पास वाले तिवारी डॉक्टर आये थे और बोल कर गए है कि कमज़ोरी है , थोड़ा हवा देते रहिये अपने आप ठीक हो जाएगा। “

“अरे ! तुम लोग इतनी अकल नहीं है कि ये कोई कमज़ोरी - वमजोरी नहीं है जरूर इसको सदमा लगा है। “- एकदम गुस्से भरी आवाज़ में बोले।

सदमा ? - मैं थोड़ा सकपकाये हुए आवाज़ में !

“और क्या ! एक तरफ नौकरी लग जाने की इतनी बड़ी ख़ुशी और उसी समय अपने भाई को ऐसी अवस्था में देखना ! सदमा नहीं तो क्या है ? “- पिता जी पूरे विश्वास के साथ बोले। चलो अब देरी मत करो तुरंत अस्पताल लेकर चलो।

इतना बोलते ही हम सभी लोग ऑटो में राम भैया को लेकर अस्पताल की ओर निकल लिए।

और २० मिनट में अस्पताल भी पहुंच गए।


उस समय हम लोग सीधे इमरजेंसी में बैठे डॉक्टर के पास चल दिए।

वहाँ मौजूद डॉक्टर ने उनकी नब्ज़ चेक करते हुए बोले कि इनको एडमिट करना पड़ेगा। आप लोगो में से इनके परिवार का कोई है क्या ?

“सर ! दरअसल इनके परिवार से तो कोई नहीं है अगर कुछ औपचारिकता है तो मैं कर दूँगा। लेकिन सर इसको जल्दी से ठीक कर दीजिये “- पिता जी हाथ जोड़ते हुए बोले ।

अच्छा ! कोई नहीं आप मेरे साथ आइये और वो , पिता जी को लेके एक कोने में चले गये।


वहाँ पर दोनों आपस में बहुत धीमे - धीमे बातचीत करने लगे जिसको यहाँ से सुन पाना मुश्किल था लेकिन चेहरे पर आये पसीने को देख कर लग रहा था कि जरूर कुछ सीरियस बात है।


इधर मैं मन ही मन अंकल जी के बारे में सोचने लगा।

शायद ही मैं कभी उनको बोलते हुए सुना हूँगा। ६ फिट की लम्बाई , चौड़ा माथा और देखने में पूरी तरह से हस्ट - पुस्ट !


ऐसा कहा जाता है कि ,

"जिस किसी का भी माथा चौड़ा हो वह काफी ज्ञानी होता है।"

जिस तरह अंकल जी कुर्सी पर बैठते है उनके हाव - भाव और चेहरे के तेज़ को देख कर कोई नहीं कह सकता है कि उनकी दिमागी हालत सही नहीं है।

“ऑन्टी ने बताया था कि उनकी दिमागी हालत उनकी ज्यादा पढाई करने से हुई है उनको जब भी देखा है वो पढ़ते रहते है। कभी किताब तो कभी अखबार ! “


“डॉक्टर साहब विकास का मुँह पूरा खुलवाकर उसमें टॉर्च से देखते हुए बोले “- क्या खाया था ?

“जी सर ! खाना खाया था फिर ... ... “ - मम्मी एक ही साँस में बोल ही रही थी कि बीच में ही डॉक्टर साहब रोकते हुए , विकास को बोलने दीजिए ?

“सर ! खाना खाया था फिर पेट दर्द शुरू हुआ तो दवा ले लिया उसके बाद उलटी होने लगी।” - विकास ने बहुत धीमे से बोला।

अच्छा ! फिर अपने स्टेथोस्कोप से सीने पर चेक करते हुए बोले साँस लो। उसके थोड़ी देर बाद विकास को बगल के हॉस्पिटल बेड पर लेटने की हिदायत देते हुए बाहर जाने लगे।

जाते हुए मम्मी और दीदी जी को दो मिनट के लिए बाहर बुला लिया।


इधर मैं विकास के बारे में सोच ही रहा था कि पिता जी ने बोल ही दिया !

संजय ! - मैं यहाँ राम के पास रुकता हूँ तुम जाओ विकास को देख आओ।

जी पापा ! बोलता हुआ मैंने बाइक स्टार्ट की और १० मिनट में अस्पताल के अंदर पार्क करके सीधा रिसेप्सन की तरफ दौड़ा।

“हेलो मैडम ! विकास किस रूम एडमिट है ? “ - मैं हेल्प डेस्क पर मौजूद रिसेप्शनिस्ट से पूछने लगा।

पहला फ्लोर , सामान्य वार्ड , रूम नंबर १०२ !

थैंक यू मैडम ! बोलता हुआ सीधे कमरे की तरफ दौड़ा। कमरे के बाहर डॉक्टर साहब , मम्मी और दीदी जी कुछ बात कर रहे थे जैसे ही मैं उन लोग के पास पंहुचा डॉक्टर साहब वहाँ से निकल गये ।


3


“मम्मी ! डॉक्टर साहब ने क्या बोला ? “- मैं एकदम हाँफते - हाँफते मम्मी से पूछा।

“अभी तो ऐसा कुछ बोला नहीं है। ये बताओ राम को होश आया कि नहीं ?” - मम्मी ने राम भैया का हाल जानने की चेष्टा से पूछा।


“अभी तक तो नहीं आया है ! हम लोग उनको सरकारी अस्पताल में ले आये है और पापा वहाँ पर उनके पास है।”


होश नहीं आया ! - एकाएक दीदी जी की आवाज़ आयी जो कि कुछ समय से बंद पड़ी थी।

“डॉक्टर ने उनको एडमिट कर लिया है और बोला हैं कि कुछ ही समय में होश आ जायेगा। “- मैंने इधर से आश्वासन भरा जवाब दिया।

लेकिन उन दोनों के चेहरे को देखकर लग रहा था कि जरूर मुझसे कुछ छुपा रही है।


“संजय बेटा ! हम लोग को अभी शहर निकलना है। जाओ कोई कार यहाँ से शहर तक के लिए रिज़र्व कर आओ। “ - मम्मी मेरे को इशारा करते हुए।

क्या हुआ मम्मी ! आप लोग मुझसे कुछ बता क्यों नहीं रहे है ?

“बेटा ! विकास को दिखाने शहर लेके जाना है “ - दीदी जी ने मेरे सवाल का बहुत ही सीधा सा जवाब दिया।


उन दोनों लोगों के चेहरे पर परेशानी के लक्षण देख कर साफ़ पता चल रहा था जैसे कि मेरी मम्मी ही विकास की मम्मी है। क्योंकि दीदी जी अपने इस पहाड़ से बड़े दुःख को भीतर ही भीतर घुटे जा रही थी और मम्मी अपनी बहन से भी सगी सहेली का दुःख छुपा नहीं पा रही थी।


कुछ समय बाद मैं वहाँ एक कार के साथ पहुँचा और जल्दी से विकास को कार में बैठकर हम सभी लोग बैठने लगे।


“ प्लीज ! आप लोग यही पर रुक जाइये मैं इसको ले जाती हूँ। “ - दीदी जी , मम्मी को देखते हुए बोली फिर कार में बैठने लगी।

“वाह ! सरोज क्या बात हैं। जब - जब मुझे तुम्हारी जरूरत पड़ी तो तुमने अपना समझ के मेरे दुःख को खुद ही ले लिया और जब मुझे तुम्हारा उपकार उतारने का समय आया तो तुमने अपना और पराया का अच्छा अहसास करा दिया !

जो आँसू वो इतने समय से कष्ट झेलकर भी अंदर समाये हुए थी वो भी इस बहन से भी सगी सहेली के ख़ातिर अपने आप बाहर आ गया।”

किसी ने सच ही कहा है ,

“दोस्त एक ऐसा चोर होता हैं ;

जो आँखो से आँसू , चेहरे से परेशानी ,

दिल से मायूसी , जिंदगी से दर्द ,

और बस चले तो हाथों की लकीरों से मौत तक चुरा ले। “


अपने आँसुओ को पोछते हुए और एकदम रुहासे भरी आवाज़ में - “एक तुम ही तो हो यहाँ पर जिसको अपना समझती हूँ इसीलिए अपने घर के मुखिया और ज़िंदगी से जूझ रहे बेटे को तुम्हारे माथे छोड़ के जा रही हूँ।”

“जाओ सरोज बहन ! यहाँ की चिंता तुम एकदम छोड़ दो। बस जल्दी से विकास को ठीक कराकर आ जाओ।”- शायद मम्मी ने ‘ दीदी जी ’ के टूट रहे आत्मविश्वास को फिर से एक मजबूती प्रदान की है।

इसी हिम्मत के साथ दीदी जी की कार वहाँ से निकल गयी और हम लोग राम भैया को देखने अस्पताल की ओर निकल लिये।

4


“क्या बोला डॉक्टर साहब ने ? “- मम्मी अस्पताल के कमरे में घुसते हुए पिता जी से राम भैया के बारे में पूछने लगी।

“अभी तो एडमिट किये है बोल रहे है कि कुछ सैंपल की रिपोर्ट आने पर ही पता चलेगा। विकास का सब ठीक है ? “

“उसको तो सरोज बहन शहर ले जा रही है। एक ही बार में इतनी बड़ी मुसीबत सरोज पर आयी है। मेरी तो भगवान से विनती है कि उसको हर मुसीबत से लड़ने की हिम्मत दे।” - इतना बोलते हुए मम्मी दोनों हाथ जोड़कर भगवान को याद करने लगी।


अभी तक राम भैया को होश नहीं आया था और रात भी हो रही थी तो मैंने पापा - मम्मी को घर छोड़कर रात को अस्पताल में राम भैया के पास रुक गया।

मैं पास के ही बेंच पर बैठा - बैठा सो रहा था कि अचानक रात को २ बजे विकास - विकास ... की आवाज़ आने लगी।

जब उठा तो देखा की राम भैया को होश आ गया था

“मुझे देखते ही पूछने लगे ? “- संजय ! यहाँ तो कोई भी नहीं दिख रहा है ? विकास कहाँ है ?


भाई के बारे में किसी ने सत्य ही कहा हैं -

" पास नहीं तो क्या हुआ मेरा भाई मेरे दिल के करीब है "

वही यहाँ पर दिख रहा था कि दोनों भाई एक दूसरे के दिल में रहते है।


“भैया ! वो घर पर आराम कर रहा है और आपकी मम्मी उनके पास है। “- मैंने जवाब दिया।

“मुझे घर ले चलो !” - राम भैया मुझसे विनती करने लगे।

“भैया ! आप पहले ठीक हो जाइये फिर हम दोनों घर साथ चलेंगे।”

“नहीं ! तुम्हारे आँखो को देख कर साफ - साफ़ लग रहा है कि तुम मुझसे कुछ छुपा रहे हो” - मेरे चेहरे के उतरे हुए भाव को देखकर बोलने लगे।

“नहीं भैया ! थोड़ा थक गया हूँ इसीलिए चेहरा उतरा हुआ लग रहा है ”

मैंने इस तरह से एक भाई को दूसरे भाई के दर्द से बचाएँ रखा। बहुत जी चाहा कि सच बोलूँ लेकिन क्या करें हौसला नहीं जुटा पाया। दरअसल मुझे आज झूठ बोलने का गम नहीं हुआ क्योंकि यह झूठ आज राम भैया की जान बचाने के लिए बोला था।


“भैया ! आप आराम करिये। सुबह होते ही मैं डॉक्टर साहब को बुला लाता हूँ। “ - इतना बोलते हुए मैंने पानी का गिलास उनके हाथ में दे दिया।


कुछ समय बाद हम दोनों सो गए, फिर सुबह की नींद साफ़ - सफाई करने वाली दाई ने तोड़ी।

“राम ! अभी कैसा महसूस कर रहे हो ? “- सुबह की शिफ्ट के डॉक्टर साहब ने आते ही पूछा।

“सर ! अभी कुछ हल्का महसूस कर रहा हूँ। मैं कब डिस्चार्ज हो सकता हूँ ? “

“एक- दो दिन आराम कर लो अगर सब कुछ सामान्य रहा तो डिस्चार्ज कर दूँगा।”


" अस्पताल और जेल ! दो ऐसी जगह है जहाँ कोई भी आने के बाद हमेशा बाहर जाने की बात करता हैं। "


मम्मी से पता चला कि विकास की हालत में बहुत सुधार हो रहा हैं और इधर राम भैया भी ठीक होकर घर आ गए। इस तरह घर पर आयी एकाएक मुसीबतें थोड़ी कम हुई।


यहाँ सब कुछ सही चल रहा था कि अचानक रात में विकास की हालत खराब होने लगी तो उसको सामान्य वार्ड से ऑपरेशन रूम में भेज दिया गया।


अगली सुबह हम लोग जब राम भैया का हाल - चाल लेने उनके घर पहुंचे तो वहाँ का दृश्य ... ...


राम ... ... एकदम से हम सभी लोग की आवाज़ निकल गयी जिसको सुनकर आस - पड़ोस के लोग इकट्ठा हो गए। पता करने पर पता चला कि इनकी मौत रात को ही हो गयी थी।

राम भैया कुर्सी के पास मृत अवस्था में पड़े हुए थे जिनके मुख पर मखियाँ अपना अम्बार लगाए हुए थी और दूसरी कुर्सी पर अंकल अपनी वही अवस्था में चुपचाप बैठे हुए थे।


उधर एक भाई अपनी जिंदगी और मौत के बीच की लड़ाई लड़ रहा है और दूसरा भाई जिंदगी के परपंच की लड़ाई से पूरी तरह हो मुक्त हो चूका था


मम्मी की आँखों से आँसुओ की धारा बहे जा रही थी और बार - बार यही कहे जा रही थी कि - “ सरोज ! मुझे माफ़ कर दो। मैं तुम्हारी दी हुई जिम्मेदारी को नहीं निभा पायी। “

अब इस दुःखद सूचना को दीदी जी तक कैसे पहुँचाई जाए। किसी न किसी को तो हिम्मत जुटाना होगा।

अब सवाल ये पैदा होता हैं कि वो हिम्मत कौन जुटाएगा?

वो मम्मी तो नहीं ! क्योंकि वो इस समय पूरे शोक में डूबी हुई है। उनसे नहीं बोला जाएगा।


फिर पिता जी ने इस दुःखद समाचार की सूचना दीदी जी के भाई को दी।

उधर से सहमति मिलने पर हम लोग राम भैया को लेकर शहर की ओर निकल लिए।

मृत वाहन में बैठे - बैठे, मुझे राम भैया के साथ बिताये सारे पल याद आ रहे थे।

जिसके साथ बचपन में साइकिल चलाना सीखा ; जिन्होंने एक बार मेरे लिए दूसरे के घर से आम चुराए थे ; जिस कारण उनको घर पर बहुत मार भी पड़ी थी।

जो कभी किसी का बुरा नहीं चाहे उनको भगवान ने इतनी जल्दी क्यों बुला लिया ?

दीदी जी पर क्या बीत रहा होगा। मुझे उनका मृत शरीर देखकर न जाने कितने सारे विचार आये जा रहे थे।

यही सब सोचते - सोचते ! हमारा वाहन शहर के अंदर घुसता हुआ सीधे शमशान घाट के पास पहुँचा। पहुंचते ही वहाँ पर शोक की लहर दौड़ गयी !

एक तरफ जहाँ सारे रिश्तेदार आँसुओ में डूबे हुए थे वही दूसरी ओर दीदी जी किस विचारों में डूबी हुई थी ये बता पाना मुश्किल था।

इतने में वो राम भैया के शव के पास आकर बोलने लगी - “ मुझे माफ़ कर दो बेटा ! आखिरी समय में तेरे साथ नहीं रही। तुझे अकेला छोड़कर यहाँ आ गयी इतना बोलते ही उनकी आँखों से आँसू की बुँद आने लगी। “

“सरोज अपने आप को सम्हालों ! तुमको मजबूत होना पड़ेगा अपने विकास के खातिर !” - उनके भैया उनको सांत्वना देते हुए।

हाँ भैया ! - बोलते हुए एकदम चुप होकर राम भैया को देखने लगी।


फिर कुछ देर बाद ...

हम लोग फिर शमशान घाट की ओर निकल पड़े। फिर अंकल जी ने दाह संस्कार किया।


5


अगले दिन विकास की हालत में काफी सुधार होने लगा और उसको फिर से सामान्य वार्ड में भेज दिया गया ।


एक- एक करके सभी रिश्तेदार मिले जा रहे थे और अपने - अपने झूठ बोले जा रहे थे।


“मम्मी ! आप सभी लोग दिख रहे है लेकिन भैया नहीं दिख रहा है ?” - विकास ने अपनी शंका जाहिर करते हुए पूछा।

“बेटा ! अभी तो आया था लेकिन डॉक्टर साहब ने उसको कुछ दवाई और इंजेक्शन लेने बाहर भेजा है “ - आज एक माँ अपनी ममता के सामने झुक गयी।और अपने ही खून से झूठ बोलने लगी।

“मम्मी ! जरूर कुछ बात है जो आप मुझसे कुछ छुपा रही है। बीते तीन दिनों में केवल मामा और मौसा मिलने आये थे लेकिन आज संजय उसके पापा और चाचा , बुआ ना जाने कितने लोग ! और मैं भी तो अभी ठीक हो गया हूँ। “

“नहीं बेटा ! सब तुमसे मिलने आये है दो दिन पहले तुम्हारी तबियत बहुत ज्यादा खराब हो गयी थी तो वही सुनकर सभी लोग आये है। “ और हम सभी ने अपनी हामी भी भर दी।


इधर अंकल चुपचाप बिना कुछ बोले सब सुन रहे थे और तभी अचानक से कुर्सी की खटाक से आवाज़ आती है।

अंकल जी , जो इतने वर्षों तक एक शब्द भी नहीं बोले थे आखिरी में वो भी अपने दिल के दर्द को नहीं रोक पाए ।और बोल पड़े ...


" सरोज ! बता क्यों नहीं देती हो कि ,

चला गया वो !

बिना तेरे से अपनी नौकरी की खुश ख़बरी सुने !

चला गया वो भगवान से ये बोलते हुए मेरे भाई को ठीक कर देना !


किसी को अहसास भी ना हुआ , और चला गया वो !

मेरी चिता को आग दिए बिना, चला गया वो... "