lokdown vardan in Hindi Short Stories by Ruchi Dixit books and stories PDF | लॉकडाउन वरदान

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लॉकडाउन वरदान

आज जहाँ कोरोना को लेकर पूरा विश्व संकट मे है, सभी देशो की सरकारे भी हाथ खड़ी कर चुकी है | हर व्यक्ति मौत के साये मे स्वयं को घरो मे इस प्रकार बन्द कर, अपने प्राणो की रक्षा कर रहा है | मानो बाहर कोई तलवार लेकर खड़ा हो निकलते ही गरदन पर प्रहार हो जायेगा , यह बात तो उनकी है जिनका पेट भरा है , किन्तु कुछ लोग ऐसे है जिन्हे यह तलवार भी डराने मे अक्षम है , ये वे बहादुर लोग है जो पूरे दिन काम करके केवल दो जून की रोटी ही जुटा पाते है | अचानक लॉक डाउन से तो बेचारो को कई दिनो तक बीवी बच्चो सहित भूखे ही सोना पड़ा | हॉलाकि जल्द ही सरकार को इनकी पीड़ा का अहसास हुआ | ऐसा इसलिए भी क्योकि वर्तमान मे जो सरकार है वह स्वयं भी इसी पीड़ा से गुजर मंत्री मण्डल तक पहुँची है | अतः ऐसे लोगो के लिए भोजन पानी की व्यवस्था जगह - जगह करवाई गई| ऐसे ही एक परिवार की पीड़ा का अहसास अचानक इन दिनो हो आया | दरअसल बात उन दिनो की है जब मै एक इन्श्योरेन्स कम्पनी मे लाइफ प्लानिंग आफिसर के पद पर कार्यरत थी |
मुझे एक आर्फन कस्टमर मीटिंग के लिए भेजा गया था | जिस कस्टमर के पास मुझे भेजा गया था , हमारी कम्पनी मे उसकी दो पालिसियाँ चल रही थी , जो कि लैप्स थी | उसका एड्रेस ढूंढते आखिर उसकी गली मे प्रवेश कर जाती हूँ | गली इतनी संकरी की स्कूटी को बाहर रोड पर ही खड़ी करनी पड़ी | खैर कुछ दूर पर ही उसका मकान आ गया | छोटे-छोटे दो कमरो का दो मंजिला ईंटो से बना, बिना प्लास्टर के मकान के कोने मे से ही ,ऊपर के लिए सीढ़ी गई थी |जो मेरे क्लाइंट के कमरे तक जाती थी | मैने हिसाब लगाया कमरा दस बाई दस का ही होगा जिसमे एक बड़ा लोहे का बक्सा , एक लकड़ी का तखत(पलंग) जिसके आधे हिस्से मे वही लोहे का बक्सा रख्खा था |
एक छोटा सा फ्रिज जो कभी अच्छी कमाई मे लिया गया होगा | उस एक कमरे के अलावा ,दूसरे कमरे की आधी जगह तो सीढ़ियों ने ,बाकी आधी जगह मे बाथरूम जो दो तरफ से कपड़ो से ढका था, जिसका स्पेस इतना कि कोई तंदुरूस्त आदमी तो उसमे फँस ही जाये , न जाने कैसे नहाते होंगे| बची थोड़ी सी जगह बैठने भर की बस इतनी सी ही जगह मे अपने छः बच्चो के साथ किस प्रकार गुजर -बसर कर रही है यह तो उन्हे देखने वाला ही समझ सकता है | वहाँ पहुँचते ही सबसे पहले मुझे गुस्सा उस एजेन्ट पर आया जिसने उनकी यह हालत देखते हुए दो पॉलिसियाँ पकड़ा दी|
बेचारे सीधे - साधे अशिक्षित होते हुए भी, मितव्ययिता की भावना ने आखिर उन्हे जाल मे फँसा ही लिया | अब स्थिति खराब होने की वजह से उनका घर खर्च ही पूरा नही हो रहा था , तो आखिर पॉलिसी की किस्त कहाँ से दे पाते | वहाँ पहुँच एक और बात पता चली कि उनकी एक और पॉलिसी जो किसी और कम्पनी की चल रही है , अब तो मन उन लोगो की इस क्रूरता से क्रोध से भर आया | पॉलिसी के फायदे को हम नकार नही सकते , किन्तु पॉलिसी देते समय, पालिसी धारक की आर्थिक स्थिति का, आकलन बेहद जरूरी है | यह कस्टमर के पक्ष मे होता है | आखिर लैप्स अवस्था मे यदि पॉलिसी धारक की मृत्यु हो जाये तो इन बेचारो को आखिर क्या मिलेगा | जिन्होने अपना पेट काट कर अभी तक इसकी किस्त भरी | पॉलिसी देते समय शायद यह बात एजेन्टो द्वारा समझायी भी न गई होगी | खैर ,अब किया भी क्या जा सकता था | कम्पनी का काम था स्थिति का जायजा ले प्रीमियम के लिए प्रोत्साहित करना | उनकी ऐसी स्थिति देख मै कुछ बोलूँ यह साहस मुझमे न था| उन्हे अपना परिचय देने पर बिना सवाल पूँछे ही सब हाल मिलने लगे | उस दिन के बाद से अक्सर मै उस क्लाइंट से मिलने जाया करती , किन्तु उसकी वजह कम्पनी न होती , बल्की उसके बच्चों के लिए कपड़े व खाने पीने की यथा सम्भव चीजे ,जो वही पास मे ही रहती मेरी बहन के सहयोग द्वारा इसका कारण, उसके बच्चों के छोटे कपड़े क्लाइंट के बच्चो को फिट आ रहे थे, पहुँचा आया करती | पहली बार जब मन मे यह विचार आया था ,तो मन ने थोड़ा संकोच किया |यह संकोच मेरे अपने मन मे बनने वाले आत्म सम्मान की छवि से ही प्रेरित था | मैने फोन पर सकुचाते हुए पूछा "मैम आप बुरा न माने तो एक बात कहूँ " हाँ मैडमजी कहिये| उधर से उत्तर मिला | "देखिये आप बुरा मत मानियेगा आप मेरी बहन जैसी हैं , कुछ चीजे है जो आपके बच्चो और आपके काम आ सकती है, यदि आप कहें तो कल ले आऊँ | "हाँ मैडमजी , इसमे बुरा मानने वाली क्या बात है |" समान पाकर उनके चेहरे पर जो खुशी और कृतग्यता की भावना थी | उसने मुझे यह काम बार- बार करने के लिए प्रेरित किया| | बीमा कम्पनी से इस्तीफा देने के बाद भी बहुत समय तक इसी सिलसले मे मेरा वहाँ जाना आना होता रहा था | जब भी वहाँ जाती उस परमात्मा का हजारो बार धन्यवाद करती ,
कि उसने मुझ ज़र्रे को किसी की एक मुस्कान का माध्यम चुना क्योकि मेरा मानना है कि जिसपर ईश्वरीय कृपा होती है, उसे ही प्रेरणा और परिस्थिति देकर वह माध्यम बनाता है, फिर इससे कोई फर्क नही पड़ता कि आप बहुत धनवान है, समर्थवान या फिर औसत संसाधनो मे जीवन बिताने वाले|
कुछ अच्छा करने के लिए तो, केवल भावनाए ही श्रेष्ठ होनी चाहिए | किन्तु ईश्वरीय कृपा के बिना यह भी सम्भव नही| खैर काफी दिनो तक घर से बाहर न निकलने ,और बीच मे कोरोना जैसी बिमारी के चलते ,लॉक डाउन मे मै उस क्लाइंट को भूल ही गई थी| कि अचानक एक दिन पिता जी के मुँह से एक बात सुन, " अच्छे-अच्छे लोगों का तो इस लॉक डाउन मे गुजारा नही हो पा रहा , उन बेचारो की जिन्दगी कैसे कट रही होगी जो रोज गड्ढा खोद पानी पीते है|" अचानक मुझे उस याद आ गई ,उसका पति भी तो सब्जी की ही ठेली लगाता है| मैने तुरन्त उसे फोन लगाया | फोन पर उससे बात कर मुझे पिता जी द्वारा अक्सर कही जाने वाली बात याद आ गई, कि "सबका दाना -पानी चलाने वाला वह ईश्वर है वह तो पत्थरो के कीणों को भी पालता है जीव -जन्तु,मनुष्य की तो बात ही क्या है|" फोन पर पता चला कि लॉक डाउन से पहले उनके जो बद्तर आर्थिक हालात थे ,वह इस लॉक डाउन ने सुधार दिये|
सरकार द्वारा गया आर्थिक लाभ जो जहाँ संजीवनी का काम कर रही है , वही नगर निगम मे सफाई कर्मचारी के तौर पर उसे नौकरी मिल गई थी, उसके पति की बिक्री भी पहले की अपेक्षा लॉक डाउन की वजह से अधिक रही| उसकी बातो मे एक संतुष्टि का आभास हो रहा था | फिर भी मैने पूँछ ही लिया | मैम आपको कोई परेशानी तो नही| "नही मैडमजी भगवान की दया से अभी सब ठीक चल रहा है , आपलोगो की दुआ है , भगवान आपका भला करे , आज की दुनिया मे आप जैसे लोग कितने होते है|" इति