Shikayat hai upar wale se in Hindi Short Stories by डिम्पल गौड़ books and stories PDF | शिकायत है ऊपर वाले से

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शिकायत है ऊपर वाले से


हुकुम सिंह ने आते ही सबसे पहले ननकी को ऊपर से नीचे तक घूरा ।
उसकी पैनी दृष्टि के बाण ननकी सहन नहीं कर पा रही थी। महसूस होने लगा मानो उसकी देह पर असंख्य बिच्छु रेंग रहे हों!
वह दीवार की तरफ नज़रें रखते हुए अपने पैर के अंगूठे से ज़मीन की मिट्टी कुरेदने लगी ।
उसका बस चलता तो कभी भी इस आदमी की चौखट पर कदम न रखती। मगर होनी को कौन रोक सकता है। दो महीने हो गए घर में बंद हुए । कामकाज सारा ठप्प पड़ा है । जाने कहाँ से ये मुई बीमारी आ गई। एक तो पहले ही फाके पड़े हुए थे, ऊपर से ये बंदी का आलम । बहुत सोचा था कि नहीं आऊँ यहाँ। ऐसे ही काम चला लूँ, लेकिन एक अकेली जान होती तो रह लेती भूखी, मगर दो छोटे-छोटे बच्चों की हालत देख नहीं सकी, इसलिए तो दौड़ पड़ी मालिक की चौखट की तरफ ।
ज्यों ही अंदर प्रवेश किया बड़े से आँगन में बंधा कुत्ता उसे देख भौंकने लगा था। उसके भौंकने की आवाज़ सुनकर ही तो साहब बाहर आए थे ।
"चार दिन से मेरे बच्चों ने रोटी का एक कोर मुँह में नहीं रखा है ।कुछ करिए मालिक ।आपके हाथ जोड़ती हूँ । वह गिड़गिड़ाई ।

" अब क्या कहें । पूरे गाँव की यही हालत है ।बोलो किस-किसकी मदद करें !" पैसों का रुआब मुख पर लिए दांत निपोरते हुए जवाब देते वक्त वह अपनी बड़ी-बड़ी मूंछों को ताव भी दिए जाता था ।

तभी घर के अंदर से एक स्त्री स्वर सुनाई पड़ा---" ऐ जी सुनते हो ! भोजन तैयार हो गया है ! आ जाओ जल्दी से अंदर !"

" देखिए मालिक ,आपसे कुछ ज्यादा तो नहीं माँग रही ।बच्चों की हालत नहीं देखी जा रही अब । एक बखत के लिए ही कुछ दे दीजिए मालिक। " ननकी ने एक बार फिर से मन्नत की ।

तब तक उनकी महतारू भी घर से बाहर निकल आई थी।

"अरे ! इसको अंदर क्यों आने दिया तुमने । ये मजदूर लोग भी न ! जानती हूँ सब तुम्हारी ही दी हुई ढ़ील का नतीजा है।
और तू सुन ! तुझे मालूम नहीं कित्ती बड़ी बीमारी आई हुई है! खुद तो मरेगी ही, साथ ही साथ हम सबको भी बीमार करने चली आई ! घर में बंद नहीं रहा जा रहा तुझसे ! अब जा चल निकल यहाँ से ! मुँह को आँचल से ढकते हुए चिल्ला रही थी हिम्मत सिंह की तेजतर्रार महतारू ।

उसकी दुत्कार भरे स्वर सुन हताश सी ननकी मुड़ने को हुई तभी उसकी नज़र पालतू हट्टे-कट्टे कुत्ते पर पड़ी । बर्तन में भीगी दूध रोटी बड़े आराम से खाए जा रहा था मालिक का पालतू कुत्ता ।
यह दृश्य देख के ननकी के मन में दुःख का सागर उमड़ पड़ा । आँखों से अश्रुधारा बह निकली । वह वहाँ से तो चली आई किंतु रास्ते में ऊपर आसमान की ओर देख धीमे स्वर में बुदबुदाई----" हे भगवान ! कुछ और नहीं तो कम से कम, मेरे बच्चों को ऐसे ठाठ-बाठ वाले पालतू कुत्ते का ही जनम दे देता....