judne se pahle in Hindi Women Focused by Kishanlal Sharma books and stories PDF | जुड़ने से पहले

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"देखो माला।"
"रुमाल तो बड़े सुंदर है,"माला रूमालों को देखते हुए बोली,"जेंट्स रूमाल है।किसके लिए खरीदकर लायी हो?"
"राजन के लिये," इला बोली,"अपने लिये रूमाल खरीदने गई थी।यह भी पसंद आ गए इसलिए खरीद लिए।"
"राजन राजन राजन,आजकल तू हर समय राजन की रट लगाए रहती है।लगता है राजन की याद मैंं,तू सो भी नही पाती होगी।"
"प्यार चीज़ ही ऐसी है।तू क्या जाने? तूने किसी से प्यार किया होताा,तो इसका एहसास होता।मेरी मान तू भी किसी से प्यार कर ले।"
"तेरा प्यार तुझे मुबारक।"इला की बात सुनकर माला बोली।
इला की राजन से घनिष्ठा दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी।वह उस पर पूरी तरह फिदा हो चुकी थी।राजन के बारे में इला, माला को रोज कुछ ने कुछ बताती रहती।ऑफिस में हर समय राजन के गीत गाती रहती।
इला में यह परिवर्तन कुछ महीने पहले आया था।छोटे से कस्बे से आयी बेहद शर्मीली,सीधी सादी इला बहुत कम बोलती थी।अपने काम से काम रखती थी।लेकिन राजन के संपर्क में आते ही बदल गई थी।अब खूब बोलने लगी थी।ज्यादातर समय राजन की ही प्रशंसा करती रहती।हर समय राजन के ही गीत गाते देखकर माला ने एक दिन उसे टोका था,"इला यह मुम्बई है।ज़माना खराब है।धोखेबाज भी होते है मर्द।तू बचकर रहना।"
"राजन ऐसा नही है।तू न जाने कंयो शक कर रही है।"
उस दिन बात आई गई हो गई।दिन गुजरने लगे।इला राजन के रंग में रंगती चली गई।उसे राजन के सिवाय और कुछ नज़र नही आता था।हर समय राजन के ही गुण गाती रहती।
एक दिन ऑफिस आते ही इला छुट्टी की एप्लिकेशन लिखने लगी।उसे लीव एप्लिकेशन लिखते देखकर माला ने पूछा था,"कन्हा जा रही है?"
"दिल्ली,"इला बोली,"राजन के साथ।"
राजन के साथ जाने की बात सुनकर माला उसे समझाते हुए बोली,"दिल्ली में दोनों साथ रहोगे।कोई ऐसा काम मत कर बैठना की जिंदगी भर तुझे पछताना पड़े।"
"मै बच्ची नही हूं।"माला के समझाने पर इला बोली थी।
राजन और इला राजधानी एक्सप्रेस से दिल्ली पंहूचे थे।राजन इला को लेकर होटल पंहुचा था।राजन कंपनी के काम से दिल्ली आया था।वह नहा धोकर जल्दी तैयार होकर इला से बोला,"मै जल्दी लौटने का प्रयास करूंगा।फिर हम घूमने चलेंगे।"
राजन चला गया।उसके जाने के बाद इला ने टीवी चला दिया।वह पलंग पर लेटकर गाने सुनना चाहती थी।राजन का तोलिया, अटेची और उतरे हुए कपडे पलंग पर ही पड़े थे।पलंग पर राजन का सामान बिखरा देखकर इला मन ही मन बड़बड़ाई,"बड़ा लापरवाह है।"
इला ने अटेची पलंग से नीचे रखने के लिए उठाई।वह अटेची नीचे रखती उससे पहले अटेची उसके हाथों से छूटकर नीचे गिर गई।अटेची का ताला लगाना शायद वह भूल गया था।इसलिए उसमे रखा सारा सामान फर्स पर बिखर गया।वह समान उठाकर अटेची में रखने लगी।अचानक उसकी नज़र कुछ कागज़ों पर पड़ी।दूसरे के कागज़,चिट्टी चोरी छिपे पढ़ना गलत था।इस बात को वह जानती थी।फिर भी उन पत्रो को पढ़ने का लोभ नही छोड़ पाई।
राजन की अटैची से निकले कागज पड़े तो दंग रह गईं।उन कागज़ों को पढ़कर इला दंग रह गई।उन कागज़ों से पता चला राजन विवाहित है और पत्नी से तलाक का मुकदमा चल रहा है।उन कागज़ों का सीधा मतलब था।उसका पत्नी से तलाक का मुकदमा चल रहा है। राजन ने झूंठे बोला था कि वह कुंवारा है।
उन पत्रो और कागज़ों को पढ़कर इला को राजन से पहली मुलाकात याद आने लगी।
इला मुम्बई में एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती थी।वह लोकल ट्रेन से आती जाती थी।एक दिन वह लोकल ट्रेन से लौट रही थी।उसकी बगल में एक युवक बैठा था।उसने उससे पूछा था,"आप सर्विस करती है?"
"जी।"
"मेरा नाम राजन है और में भी-----अपना परिचय देते हुए बोला,क्या आपका नाम जान सकता हूं?"
"इला".
उस दिन के बाद इला और राजन की अक्सर ट्रैन में मुलाकात होने लगी।धीरे धीरे वे एक दूसरे के बारे में जानने लगे।समय गुज़रने के साथ वे एक दूसरे के इतने करीब आ गए कि एक दिन राजन बोला,"कल संडे है।चलो साथ घूमते है।"
इला ने राजन के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था। संडे को वे साथ घूमे,पिक्चर देखी और होटल में खाना खाया था।उस दिन के बाद उनका हर छुट्टी का दिन साथ गुज़रने लगा।धीरे धीरे वे करीब आने लगे।
एक दिन राजन उसे नही मिला। तब उसने फोन किया था।फोन उसने नही उठाया तब वह चिंतित हो उठी।लेकिन ऑफिस पहुँचने पर उसकी चिंता दूर हो गई।ऑफिस में उसे राजन का पत्र मिला था।उसे अचानक मद्रास जाना पड़ा था।इसी पत्र में राजन ने अपने प्यार का इज़हार करते हुए।उसे अपना जीवन साथी बनाने की इच्छा जाहिर की थी।उसने पत्र में लिखा था कि क्या उसे उसका प्रस्ताव स्वीकार है?
इला राजन का पत्र पढ़कर खुश हुई थी।वह तो कब से इस प्रस्ताव का इन्तजार कर रही थी।राजन मद्रास से लौटा तब इला के लिए साड़ी व अन्य उपहार लाया था।आते ही बोला,"मेरे प्रस्ताव पर क्या निर्णय लिया?"
"चलो आज अपनी माँ से मिलाती हूं"।राजन को जिला अपने घर ले गई थी।इला ने राजन का परिचय माँ से कराया था।राजन मद्रासी ब्राह्मण था जबकि इला पंजाबी।लेकिन इला की माँ को अपनी बेटी की शादी राजन से करने में ऐतराज नही था।
राजन इला से बोला,"तुम्हारी माँ तो मान गईं लेकिन मेरी माँ पुराने खयालो की है।उन्हें मनाने में समय लगेगा।"
इला,राजन से प्यार करने लगी थी।उसे अपना जीवनसाथी बनाने का सपना देखने लगी थी।इसलिए कुछ समय इन्तजार के लिए तैयार थी।
शादी का निर्णय कर लेने के बाद उनका काफी समय साथ गुज़रने लगा।जब कंपनी के काम से उसका दिल्ली जाने का प्रोग्राम बना,तब वह इला से बोला,"दिल्ली जा रहा हूँ,तुम भी चलो।"
और वह उसके साथ दिल्ली आ गई थी।यँहा उसे राजन के कागज हाथ लग गए।इन्हें पढ़कर पता चला।जिसे वह चाहती है,वह पहले से ही शादीशुदा है।उसे अपना बनाने के लिए पत्नी को तलाक दे रहा है।सच्चाई जानकर इला के दिल को ठेस लगी थी।
वह सोचने लगी।कैसा मर्द है?उसे अपना बनाने के लिए पत्नी को तलाक दे रहा है।भविष्य में किसी और लड़की को अपना बनाने के लिए उसे भी छोड़ सकरा है।
इसका मतलब उसे इला से सच्चा प्यार नही है।वह उसकी सूंदर देह पर मोहित है।वह उसकी देह को पाना चाहता है।वह सोचती रही
"इला में आ गया"
"राजन के लौटने पर इला बोली,"तुमने झूंठ कंयो बोला?"
"झूंठ?कौनसा झूंठ?"इला की बात सुनकर राजन अचकचा गया।
"तुम विवाहित हो और मुझे पाने के लिए पत्नी को तलाक दे रहे हो"
"नही तो।"
"ये क्या है?"इला कागज दिखाते हुए बोली
"इला बात ये है---
"मै तुम्हारी कोई बात नही सुनना चाहती"कागज़ राजन पर फेंकते हुए बोली"प्यार का आधार झूंठ हो उस पर दाम्पत्य कन्हा खड़ा रह सकता है?दाम्पत्य का आधार विश्वास होता है।"
"एक बार मेरी तो सुन लो,"
इला ,रसज्ञ की कोई बात सुनने के लिए तैयार नही थी।वह उसे छोड़कर चली आयी।
"इला तुम,"इला को देखकर माला बोली थी,"एक सप्ताह बाद आने वाली थी।क्या राजसन से झगड़ा हो गया।"
"उस नीच का नाम मत लो।"
"बात क्या है?"माला ने प्यार से पूछा तो इला ने बता दिया था।उसकी बात सुनकर माला बोली"चलो एच हुआ।"
"जिससे प्यार किया वह धोखेबाज़ निकला।"
"शादी के बाद असलियत सामने आती तो जीवन तबाह हो जाता"माला इला कक समझाते हुए बोली,"किसी से भी शादी का फैसला जल्दबाजी में मत करना"