माटी का एक पुतला आया!
माँ का दिल हर्षाया, पिता ने जश्न मनाया
गरीब थे, पर पुतले को हर खिलौना दिलवाया|
घर में खाना कुछ काम होता था,
पुतला कभी-कभी पुतला भूखा रोता था
माँ ने अपना भोजन देके,पुतले को चुप करवाया |
भूखी थी पर थकान से आँखों में नींद थी,
पुतला सो नहीं रहा था,तो पूरी रात पुतले पर पंखा फहराया
पुतले को सोता देख,माँ के दिल को सुकून आया
कुछ वर्ष बीत गए,
पुतले के विद्यार्थी बनने का दिन आया |
पिता की इच्छा थी पुतला बड़े अंग्रेजी विद्यालय में पढ़े,
इसी कारण गहने गिरवी रखने पड़े |
पुतला हुआ अठारह वर्ष का,
समाज में शानो शोहकत का ललचाया
एक मित्र ने पूछ लिया युहीं,
पिता का क्या है कारोबार ?
पुतला बताने में थोड़ा कतराया, पिता को हीरो का व्यापारी बताया |
पुतले के दिन बीत रहे थे, एक दिन खाने का डिब्बा
घर भूल आया
पिता, पुत्र प्रेम में पुतले का डब्बा ले विद्यालय आया |
पुतला मित्रों में व्यस्त था,पिता ने पुत्र कहकर उसे बुलाया
पुतला पिता को देख लज्जित हो आया,
मित्रों ने पूछ लिया यह कोन बुज़ुर्ग है आया ?
पुतला बोला रसोईआ है घर का |
बस खाना पोहचाने है आया,
पिता को बात चुभ गयी, पर पुत्र की फ़िक्र के कारण
पिता से चुप्पी न तोड़ी गयी |
श्याम को पुतला घर आया, पिता को खूब सुनाया
विद्यालय आने से पहले मेरी इज़्ज़त का ख्याल ना आया ?
पिता कुछ बोल ना रहे थे,अपनी गल्ती समझ अफ़सोस कर रहे थे |
पुतले को डॉक्टर बनना था, लाख रुपैय का खर्च होना था |
माँ ने पिता को समझाया, सुनार के घर गहनों का मोल करवाया |
समय का पहिया चलता गया, पुतला डॉक्टर बन गया
माँ-बाप ने ब्याह कर दिया, पुतला गांव छोड़ शहर चल दिया|
साल में तीन-चार बार आजाता था
बीवी बच्चो का मुख माँ-बाप को दिखा जाता था |
माँ से काम अब होता नहीं था, पिता अब मजदूरी करने से हार गए थे
पुतला गांव में घर खर्च भेज दिया करता था |
जिन्दा रहने के लिए प्यार और लगाव नहीं,
बस सुविधाएं चाहिए ऐसा पुतला समझता था |
माँ-बाप ने कई बार पुतले को बुलाया,
पर बच्चो की पढाई और अपने काम के कारण पुतला आ ना पाया |
पुतले को शहर में फ्लैट लेना था, लाखो का खर्चा होना था
पुतले ने फिर पिता को टेर लगाई, माता-पिता ने गांव के घर की बोली लगवाई |
पुतला माँ-बाप को घर ले आया, एक कमरे में उन्हें बिठाया
पूरा दिन इसी कमरे में निकल जाता था
माँ की बूढी आँखों को कुछ कम नज़र आता था|
बहु ने लंदन से वास मंग वाया था,उसे सजाने में खूब खर्चा करवाया था
माँ एक दिन कमरे से निकली,ढूंढ रही थी घर की खिड़की वास हाथ से टकरा गया,धरती पर गिर फूट गया |बहु को गुस्सा आया, कमरे से क्यों निकली बहार ?
कहकर माँ को खूब सुनाया, माँ का पूत पत्नी को कुछ ना कह पाया |
कुछ साल यही बीत गए,माता का निधन हो हुआ
पुतले की पत्नी के मन को चैन आया |
पिता अब और भी अकेले हो गए,
कुछ उम्र का तकाज़ा था, कुछ जीवन साथी के जाने का
रातों को नींद नहीं आती थी,आधी रात घर में चक्कर काटने में कट जाती थी |
पुतले की बीवी को पिता की ये बात सार नहीं आती थी,
तुम्हारे पिता पूरी रात ना सोते है ना सोने देते है
पुतले के आगे बार-बार दोहराती थी |
पुतले ने पिता को कहा,रात को मंडराना बंद करो
घर में ओरो की नींद की तो फ़िक्र करो |
पिता अब कुछ कहते नहीं थे,हसना तो सालों से भूल चुके थे
पिता का अब अन्त समय आया था|
पुतले को एक दिन अपने पास बुलाया था,आखरी सांसो में पिता के मुख से निकला
खुश रहना बेटा,तुझे परेशान किया उसके लिए माफ़ करना !
पिता ने आह भरी प्राण त्याग दिए,पुतले की आँखों से आज इंसान
वाले आंसू छलके,पुतले को याद आया कोई था,
जिसने अपना सारा जीवन पुतले पर लुटाया
पर आज पछताने का फायदा ना था |
पुतले ने पिता के अंतिम संस्कार का बड़ा समारोह करवाया,
लोगो ने पुतले को अच्छे बेटे के सम्मान से सजाया |
पुतले ने आज मन ही मन शोक मनाया
वाह रे इंसान तू इंसान ना बन पाया,
जिन माँ-बाप ने तुझे मरकर भी तुझे सम्मान दिलाया
तू उन्हें कभी प्यार ना दे पाया !
बस इसलिए तू अब तक पुतला कहलाया..................