कविता संग्रह
1 . कविता -- भारत की नारी
मैं आधुनिक भारत की नारी हूँ
अबला न समझना मुझको
मैं 'तुलसी ' की नहीं वो नारी
जो थी सकल ताड़ना की अधिकारी
और न वह ‘ 'गुप्त ' की नारी
जिसके आँचल में था दूध
और आँखों में था केवल पानी
मैं शील शिष्टाचारी हूँ
पर भूल कर इसे
मेरी दुर्बलता नहीं समझना
मैं एक सुप्त चिंगारी हूँ
इसको हवा न देना
सहनशीलता की है एक सीमा
क्योंकि ये शोला अगर भड़का
तो फिर तपिश सह न पाओगे
दुर्जनों को जला कर
भस्म कर राख बना दूँगी
अबला न समझ ,सबला हूँ मैं
आज जल ,थल ,वायु सैनिक हूँ मैं
दुश्मनों के दाँत खट्टे करूंगी मैं
मेरे लिए जो न्यायसंगत हो
वो सब मुझ को दो
मुझे वो मान दो
सम्मान दो
जिसकी मैं अधिकारी हूँ
मैं भारत की नारी हूँ .
2 . कविता - तस्वीर तेरी
सावन की सिली सिली सी
हवा बह रही थी
हौले हौले जो लहरायी
झीनी झीनी सी
तेरी धानी चुनरिया थी
तेरे चेहरे पर उभर आयी
धीमी धीमी तेरी हँसी थी
और हवा में तैर गयी
भीनी भीनी तेरे बदन की
एक मस्तानी खुशबू थी
मेरी नजरों ने तेरी
एक झलक जो पायी
नैनों में उतर आयी
तेरी हसीं तस्वीर जो
मिटाये न मिटी आज भी
3 . कविता - छुअन का अहसास
तेरी रेशमी जुल्फों को
छुआ तो दिल में उठा
एक उमंग
तेरे गुलाबी गालों की
छुअन से मन
झूमे और इठलाये
जैसे हवा में पतंग लहराये
तेरे शर्बती होठों की
छुअन से
रोम रोम में
उठी तरंग
ऐसा लगे कि
बागों में खिले
फूल रंग बिरंगे
इस एहसास को
कैसे करें बयां हम
बस समझ लो
इसके लिए शब्द
पड़ रहें हैं कम .
4 . कविता - अंग से लगा लो
जब से तुम्हें देखा है
चैन अपना खोया है
आँखों के रास्ते से
मन में आकर
तुम समाये हो .
तन मन में
आग लगाए हो
ऐसी ज्वाला है उठी
सावन भादो की झड़ी
इसे न बुझा पायेगी
एक बार आकर
अंग से लगा लो
मेरी ये प्यास बुझा दो .
5 . कविता - हाँ दीवाना हूँ मैं
हाँ दीवाना हूँ मैं
तेरी नरगिसी शराबी इन आँखों का
तेरी लहराती जुल्फों की घटाओं का
तेरी मद मस्त बलखाती अदाओं का
हाँ दीवाना हूँ मैं
तेरे गेसुओं में छुपी झिलमिलाती पलकों का
तेरे कानों के सुनहरे झूमते झुमकों का
तेरे होश उड़ाने वाले उन ठुमकों का
हाँ दीवाना हूँ मैं
तेरे बालों के गजरों का
तेरे इन रसीले अधरों का
तेरे गोरे कोमल कपोलों का
हाँ दीवाना हूँ मैं
तेरी इस सुराहीदार गर्दन का
तेरी अंगड़ाई और यौवन का
तेरी मीठी मासूम मुस्कान का
हाँ दीवाना हूँ मैं
तेरी सुंदरता का
तेरी शालीनता का
तेरी मासूमियत का
तेरी हर अदा का
हाँ दीवाना हूँ मैं
6 . कविता - बीते दिन याद क्यों दिलाते हो
चाहा था तुम्हें जी जान से सनम
सोचा था साथ दोगे जन्म जन्म
जो वादे किया क्या निभाते हो
बीते दिन याद क्यों दिलाते हो .
तुमने चाहा था मुझे आजमाने को
क्या क्या न किया तुम्हें पाने को
अब मिले तो क्यों नज़रें चुराते हो
बीते दिन याद क्यों दिलाते हो .
कभी बागों में रोज मिलते थे
कभी लहरों पर साथ चलते थे
अब सिर्फ सपने में आते हो
बीते दिन याद क्यों दिलाते हो .
किसी राह पर किसी मोड़ पर
देखा कभी न मुंह मोड़ कर
इस कदर बेरुखी दिखाते हो
बीते दिन याद क्यों दिलाते हो .
अब और नहीं बस भी करो, रहने दो
फिर से अजनबी बन जाएँ हम दो
पुराने रिश्ते से अब कतराते हो
बीते दिन याद क्यों दिलाते हो .
7 . कविता --छोटी सी मुलाकात
कहने को वो
छोटी सी मुलाक़ात थी
मेरे लिए तो बड़ी बात थी
बस चंद मिनटों के
हमसफ़र थे हम .
फिर भी
ना जाने क्यों वो पल
मेरी इन आँखों में
यूँ समाये रहते हैं
कि भुलाएँ न जातें हैं ,
कुछ तुमने कहा था
कुछ मैंने कहा था
कुछ दोनों ने कहा था
फिर कुछ पल में
जुदा हो गए थे .
हम और तुम हुए जुदा
पर साथ रह गयीं
सिर्फ पुरानी यादें
जो मेरी तन्हाई में
मेरे हमसफर हैं .
कैसे हो , कहाँ हो
कुछ तो कहो
अगर आ न सकती
सपनों में ही सही
दरश दिखा जाओ .
जरा याद करो
जुदा होते होते
क्या कहा था तुमने
ये मुलाकात को
इत्तफाक समझो .
आँखों आँखों में
कहा था तुमने
एक बार फिर
कभी मिल सके
शायद इत्तफाक से .
वो इत्तफाक की
घड़ी ला दो
मेरी नजरों की
प्यास बुझा दो
एक और छोटी सी
मुलाकात करा दो .
8 चांदनी रात
चांदनी रातों में
जब देखता हूँ तुम्हें
छत पर बैठे हुए
डरता हूँ कहीं
तेरे गोरे बदन को
चाँदनी न लग जाए
तेरे कोरे बदन पर
कोई दाग न लग जाए
9 . कविता --किस्मत
किस्मत भी
क्या चीज है
किसी की दासी
किसी की सौत है .
एक रोज मैंने
भी उसे पुकारा
कहा था
दरवाजा खुला है
एक झलक दिखा जा
मेरे गरीबखाने में .
कुछ शर्मा कर
कुछ इतरा कर
कुछ कतरा कर
पड़ोस के घर
तू चली गयी .
तेरे इंतज़ार में
पलकें बिछाएं
अभी तक
मैं बैठी हूँ कि
कब मेरे घर आये .
वह न आयी
तो नए साल में
नए अंदाज़ में
मैंने फिर
उसे पुकारा
पर वह फिर
हो गयी नौ दो ग्यारह .
वह बोल गयी
बुलाये नहीं आती
आती हूँ बिन बुलाये
जाती हूँ बिन बताये .
मैंने भी सोच लिया
जा, तू मेरी बला से
शायद मेरे
जीते जी न आये
किस्मत तू
बड़ी कातिल है .
10 . कविता - वादा न तोड़
वादा अगर किया था
तो निभाया होता
कहा था उम्र का दरिया
हम साथ करेंगे पार
जिएंगे तो एक साथ
मरेंगे तो भी एक साथ .
पर बीच मझधार में लाकर
क्यों छोड़ दिया पतवार
ज़िन्दगी मेरी मौजों के
हवाले क्यों सौंप दिया .
अब यह ज़िन्दगी है
एक बे सिम्त सफर
मालूम नहीं कहाँ है मंजिल
अब ये तूफ़ान की मर्जी
ले जाए जिधर .
एक बार फिर से
तू थाम ले पतवार
मेरे हमदम
मेरे हमसफ़र
वादा न तोड़ .
11 . कविता - तेरा अंदाज़ ए मुस्कुराना
सूरज हुआ मध्धम मध्धम
दिन भर का थका हारा
अस्ताचल की ओर चला था
सागर की गहराईओं में डूबने .
और तुम खड़ी सागर तट पर
देख रही थी सुदूर क्षितिज पर
सूरज को आधा डूबा हुआ
और आधा तैरता सागर पर .
सागर की लहरें चूम रहीं थी
तेरे नाज़ुक क़दमों को
और घुटनों तक गीली करतीं
तेरे आवरण को .
तलवों के नीचे से
बालू का धीरे से सरकना
एक गुदगुदी होती थी तुम्हें
एक हरकत सी हुई थी
तेरे गुलाबी होठों पर
और तू मुस्कुराई थी .
फिर तेरे गोरे गोरे गालों पर
डिम्पल्स का यूँ उभरना
मैं भी वहीँ खड़ा
तुम्हें दूर से देख रहा था
आसान भी नहीं था
बयां करना दो लब्जों में
तेरा ये अंदाज़ ए मुस्कुराना
12 . कविता - लाल गुलाब
मेरे घर के सामने
तुम्हारी खिड़की थी
खिड़की पे बार बार तेरा आना
और मुस्कुरा के चले जाना .
क्या समझूँ इसे मैं
फिर एक बार
मुझे गुलाब भिजवाना
और खुद छुप जाना .
क्या यही प्यार है
तुम्हारे गुलाब को
मैंने सीने से लगाया
होठों से भी लगाया .
दिल धड़क उठा
तन मन मदहोश हुए
ऐसा लगता था
तेरे इश्क की मौज़ों में
बहकने लगी थी मैं .
फिर अचानक इस कदर
वो खिड़की यूँ बंद हुई
कि दुबारा न खुल पायी
मुझको कशिश देकर
तुम तो न जाने
किस जहाँ में खो गये .
पर चाहे जहाँ भी हो
मेरी अरज है तुमसे
अब आ जाओ ना
और तड़पाओ ना .
अगर ना आये तो
मेरी जान जाने पर
मेरे सफ़ेद कफ़न पर
लाल गुलाब का एक फूल
फिर भिजवा देना
शायद मेरी रूह को
सुकून मिल जाए .
13 . कविता - - प्यार से तौबा
तेरे दीदार से पहले
कभी दिल मेरा
यूँ बेकरार न था
जब तलक तुझसे प्यार न था .
तेरी नरगिसी नज़रों से
खिंचा आया तेरे दर पे
रफ्ता रफ्ता तूने भी
इकरार किया था .
फिर निगाहें क्यों फेर ली
तू और की हो चली
हुए थे बिस्मिल
तेरे इश्क में हम .
हमें काश तुमसे
प्यार न होता
अब तो आलम यह है
कि इस प्यार से तौबा .
14 . कविता - फूल गुलाब का
काश मैं भी होती
फूल एक गुलाब का
चार दिनों की ज़िंदगी होती
पर खुशबू तो बेशुमार होती .
जब बनती एक कली
मंडराने लगते मुझ पर
भौंरें और तितलियाँ
मेरा पराग ,मेरा मधु रस
पान कर गुण गाते मेरे
सब के मन को भाती
करती अपने सुगंध से .
पिरती कभी वरमाला में
कभी गिरती प्रभु चरणों में
कभी बनती श्रृंगार प्रसाधन
शहीदों को कभी करती नमन .
मृतकों को देती अंतिम विदाई
अगर रह जाती डाली पर
बगिया में बिखेरती खुशबू
अगर हवा का झोंका
उड़ा ले जाता मेरी पंखुड़ियां
जा गिरती मैं धरा पर
मिल जाती उसी माटी में .
15 . कविता .. तुम्हारी यादें
चांदनी रात और
समंदर का किनारा
यूँ ही रेत पर लेटता
तेरी रेशमी जुल्फों के साये में .
देर तक होतीं प्यार की बातें
पर कुदरत को रास न आई
हमारी प्यार की घड़ियाँ
सब छिन गया पल भर में .
आज भी वही चाँद है
वही है समंदर भी
पर अब न तुम रही
न तुम्हारी बातें .
रह गयी तो फकत
तुम्हारी यादें
इन्हें दिल में छिपाए
समंदर की मौजों में
ढूंढतीं रहतीं हैं ये आँखें
वही पुरानी बातें
16 . कविता - तेरा दीदार
जैसे काली घनेरी रात को
इंतजार हो
सूरज की पहली किरण का
जैसे धूप में तपती धरा को
इंतजार हो
बारिश की पहली बूँद का .
जैसे किसी पुजारी को
इंतजार हो
मंदिर का पट खुलने को
अपने फूल और दिए
अर्पित कर पूजन को .
मैं भी बैठा हूँ
झरोखे पर सवेरे सवेरे
तेरे इंतजार में
कि कब तेरी खिड़की खुले
और चिलमन उठे .
तू अस्त व्यस्त
अंगड़ाई लेते हुए
मेरी ओर देखे
मुस्कुराते हुए
मेरे नए दिन की
शुरुआत हो
तेरे दीदार से .
17 . कविता - जी चाहता है
तेरी आँखों से छलकते ज़ाम
पीने को जी चाहता है
तेरे गुलाबी रसीले होंठों को
चूमने को जी चाहता है .
तेरी रेशमी जुल्फों के साये में
दम लेने को जी चाहता है
तेरे दिल की धड़कनें
सुनने को जी चाहता है .
चांदनी रातों में छत पर
तेरे दीदार को जी चाहता है
तेरे ख्वाबों में आकर
तेरी नींदें उड़ाने को जी चाहता है .
तेरी एक झलक मिल जाए तो
मुस्कुराने को जी चाहता है
तू आये या न आये
तुम्हें बुलाने को जी चाहता है ,
18 . कविता - ऐ हवा
ऐ हवा
थम जा
सनम की गली से
होकर तू आयी है
उसके दामन को
छू कर आयी है
उसकी खुशबू भी
साथ लायी है
दो पल ठहर
मुझे जी भर के
सांस तो लेने दे
सनम की खुशबू
सीने में उतार
दो घड़ी
सुकून पाने दे
जब लौट के जाना
मेरा हाल ए दिल
सनम को बताना
मैं किस क़दर बिस्मिल
जा कर उसे पैगाम देना
और फकत एक
दर्द ए दिल की
दवा लेकर आना .
19 कविता - अब मैं हंसूगा
मेरे गिरने पर
न हंसना जग वालों
पत्ते भी शाख से गिर कर
फिर पेड़ों पर
नव जीवन लेते हैं .
जिस तरह कोई
सदा हवा में उड़ नहीं सकता
जहाज हो या मानव
या कोई पखेरू
उसे नीचे आना ही पड़ता .
ऊँचे शिखर के उस पार
ढलान होती है
रात के बाद सवेरा होना है
बादल को छंटना ही है
बरसात को थमना ही है .
धूप भी खिलेगी
मैं भी गिर कर उठूंगा
बहुत रोया हूँ
अब और न रोऊंगा
देखना तुम सब
अब मैं हंसूगा .
20 . कविता - अब तो आजा
फागुन बीता पिया न आये
चैत की रैना बहुत सताए
विरह वेदना उठी हिया में
इस पीड़ा को कौन मिटाये
प्रीत अगन में तन मन दहके
इधर उधर मेरा मन बहके
तेरे मिलन की आस लगाये
कभी हँसू कभी रोऊँ मन में
कजरारी आँखें झम झम बरसे
पिया मिलन को जिया तरसे
काश दिखाते तुम एक झलक भर
बिठा लेती तुम्हें अपनी पलक पर
21 . कविता - बहुत शुक्रिया
एक अहसास दिला गया
तेरे स्पर्श ने
जीने की आस दिला गया
तेरे चंद लफ़्ज़ों ने .
मैं तो टूट कर
बिखर चला था
तेरी बाहों के सहारे
निखर चला हूँ .
मेरे जीवन को
संवार दिया तुमने
बहुत शुक्रिया
मेरी ज़िन्दगी में आने का .
22 . कविता - जीने - मरने की वज़ह
फिर याद आया मुझे
वो मुलाक़ात का आलम
खिरामा खिरामा तेरी वो चाल
कुछ भी न भूला जानम .
तेरे मखमली बालों का
हवा में वो लहराना
तेरी नरगिसी आँखों
में छिपा वो मयखाना .
तू ही तू नजर आती है
अब मुझे हर जगह
तू ही तो है
मेरे जीने की वजह .
तेरी चंद यादों को
सीने से लगाए बैठा हूँ
एक और मुलाक़ात की
आस लगाए बैठा हूँ .
ये जुदाई का दर्द
बनता जा रहा नासूर
ऐसे में जान चली जाए
तो मेरा क्या कसूर .
अगर मेरे जीने की वजह
सिर्फ तुम थी
तो मरने की वजह
भी सिर्फ तुम ही हो .
23 . कविता - तेरे सदके सनम
तेरे सदके सनम
मार डाले न जुदाई का गम
याद करो कभी दो जिस्म
मगर एक जान थे हम .
तेरे सदके सनम
तुझे मेरी कसम
न कर तू ऐसे करम
कि बेमौत मर जाएँ हम .
तेरे सदके सनम
कर मुझ पे रहम
तेरे सब जुल्म ओ सितम
हंस के अब सह लेंगे हम .
तेरे सदके सनम
मेरे प्यारे बलम
काश एक बार मिले वो बज्म
तो फिर से संवर जाएँ हम .
तेरे सदके सनम
तेरे इश्क़ में हम
हुए इस कदर बेशरम
तोड़ डाले सारे लाज ओ शरम .
तेरे सदके सनम
हुए रुसवा प्रियतम
सुनी ना जो तूने फरियाद ए गम
तोड़ देंगे आज तेरे दर पे दम .
24 तेरे गीले बाल
बालों को सुखाने
के बहाने
तेरा वो छत पर आना
कुछ डरी सी
कुछ छुई मुई सी
सिमटी शर्माई सी
मुझे सामने देख कर
तेरा वो मुस्कुराना .
सावन में झूले पर
तेरा वो हवा में तैरना
कभी सरकी पल्लू को
काँधे पर यूँ खींच लाना .
कभी गीले बालों का
यूँ झटकाना
और शबनम की बूंदों का
मेरे चेहरे पर
यूँ छिटक आना .
शोख अदाओं से
तेरा वो मुस्कुराना देख कर
मुझ पर नशा सा छा जाना
फिर इस क़दर
मैं तेरा आशिक़ बना
न खुद का होश रहा
न ज़माने की परवाह रही
जुबां पर बस तेरा ही नाम
और आँखों में तेरी तस्वीर बसी .
25 . कविता - काश
काश इस कदर तुमने
प्यार से न देखा होता
तुम्हें ख्वाबों में आने से
मैंने रोक लिया होता
न दिल इस तरह
कभी मचला होता
और सफर जिंदगी का
कितना आसां होता
26 कविता - ये कैसा आशियां
कब तुम आये और कब गए
कुछ याद न रहा
पर आँखों में बसी है
अभी तक
वो मुलाक़ात की घड़ियाँ
तेरी जुदाई ने यह अहसास दिलाया
आशियां फकत दीवारों से नहीं होता
दीवारों के साये का क्या भरोसा
जिनसे सर टकरा के
दिन रात बीते रो के
-
27 . कविता - तेरे गीत
हर सहर गाये आफ़ताब के नग्मे
हर शाम गाती महताब के नग्मे
पर हम गायें सिर्फ उसके गीत
जिसने लिया है दिल मेरा जीत .
हम आंसुओं में जहां को डुबो देते
मगर उनको कभी के पी चुके थे
होश आने के पहले उसे खो चुके थे
हमको पता है वो बेवफा हो चुके थे
28 . कविता - मय पीने दो
इस सुहानी शाम को
समां भी जब हसीं हो
तुम इस कदर क्यों
नैन किये नीचे
गुमसुम ग़मगीं बैठी हो .
इन झील सी आँखों में
जीवन नैया का पतवार
तुन्हें सौंपने आया हूँ
तेरी आँखों से गिरते
इन आंसुओं को
मय समझ कर
मैं पीने को आया हूँ
29 . कविता - मेरा सामान लौटा दो ( Already in published matrubharti bites )
जब चांदनी रातों में
तुम साथ होते
तुम्हारी गोद में मेरा सर होता
मेरे बदन की वो खुशबू
भीनी भीनी सी
भीगी भीगी मेंहदी की महक
झीनी झीनी सी
वो पल वो यादें
वो कसमें और वादे
जो तेरी बाहों में छोड़ आये
सब लौटा दो
मेरा सामान मुझे लौटा दो
30 . कविता - अकेले चलते जाना है
घूमता फिरता हूँ
कभी इस शहर में
कभी उस शहर में
पर कोई ठिकाना नहीं है
कभी किसी ख़ुशी या
किसी गम में
कोई कहने को भी
अपना या बेगाना नहीं है
कोई आवाज दे कर
कभी मुझे पुकारता
ये मुमकिन ही नहीं
बस अकेले चलते जाना है .
31 . कविता - मेरे गीत
मेरे गीत रहे मेरे मन में
आंसू भी न बचे नयनन में
दिल का कमल खिलने से
पहले ही मुरझा गया
पंखुडिया भी बिखर गयीं
तुम्हें न आना था न आये
मैं सपनों में खो गयी
रात रोते रोते मैं सो गयी
32 . कविता - ज़ज़्बात
दिल के ज़ज़्बातों को
अब और अल्फ़ाज़ न दो
दोनों का सुकून छिन जाएगा
हासिल न कुछ हो पायेगा
ना तुम्हें कुछ मिलेगा
और ना ही हमें
दूरियाँ बढ़ेंगी बीच में
जो शेष बचा है
वो भी लुट जाएगा
33 . कविता - माँ गंगा ( Already in published matrubharti bites )
हिमाद्रि तुंग से तू निकलती
निर्मल निर्झर कलकल करती
शिखर से धरा पर उतरती
नित दिन है अनवरत बहती
भारत भूमि को धन्य करती
करोड़ों की तृष्णा मिटाती
खेतों को जब सींचती
अन्नपूर्णा तू बन जाती
पर हमने तेरे लिए क्या किया
तेरा उचित सम्मान भी न किया
मलिनता से तुझे दूषित किया
तेरे अस्तित्व को संकट में किया
हमें एक और अवसर दे कर
हम सबको तू कृतार्थ कर
दिखाएंगे एक संकल्प ले कर
पुनः तुम्हें निर्मल स्वच्छ कर
प्रार्थना है शीश नमन कर
सुन ले माता तू कृपा कर
माँ हमारी भूल को भूल कर
हे गंगे हमें क्षमा प्रदान कर
==== X X X ==========