AAO CHALE PARIVERTAN KI OR - PART-13 in Hindi Fiction Stories by Anil Sainger books and stories PDF | आओ चलें परिवर्तन की ओर... - 13

Featured Books
  • انکہی محبت

    ️ نورِ حیاتحصہ اول: الماس… خاموش محبت کا آئینہکالج کی پہلی ص...

  • شور

    شاعری کا سفر شاعری کے سفر میں شاعر چاند ستاروں سے آگے نکل گی...

  • Murda Khat

    صبح کے پانچ بج رہے تھے۔ سفید دیوار پر لگی گھڑی کی سوئیاں تھک...

  • پاپا کی سیٹی

    پاپا کی سیٹییہ کہانی میں نے اُس لمحے شروع کی تھی،جب ایک ورکش...

  • Khak O Khwab

    خاک و خواب"(خواب جو خاک میں ملے، اور خاک سے جنم لینے والی نئ...

Categories
Share

आओ चलें परिवर्तन की ओर... - 13

अक्षित अपने कमरे से बाहर निकल कर बैठक में आकर बैठ जाता है और पास रखी मेज़ पर से अखबार उठा कर पढ़ने लगता है | अचानक उसका ध्यान गुसलखाने से आती हुई सोनिया पर पड़ता है | वह सोनिया को देख कर हैरानी से पूछता है “क्या बात है डॉ० साहिबा आज सुबह-सुबह तैयार कैसे हो गयी हैं, आज तो सन्डे है |”

“जी मुझे भी मालूम है | सुबह तो आपके लिए है मेरे लिए नहीं | आपकी जानकारी के लिए बताना चाहती हूँ, इस समय सुबह के 11 बज रहे हैं |”

“अस्पताल जाना है क्या ?”

“क्यों, वैसे तैयार नहीं हो सकती क्या?”

“नहीं, नहीं, मैं तो ऐसे ही कह रहा था |” कह कर अक्षित फिर से अखबार पढ़ने लगता है |”

“तैयार क्या लग रही हूँ, बस नाईट गाउन उतार कर सूट ही तो पहना है |”

“अरे यार, गलती हो गयी |” अक्षित अखबार के पीछे से ही बोलता है|

“गलती मान रहे हो तो फिर सज़ा भी भुगतनी पड़ेगी |”

अक्षित, अखबार मेज़ पर वापिस रखते हुए कहता है “कहिए, क्या सजा है?”

सोनिया, अक्षित के पास आकर, रसोई की तरफ देखते हुए कहती है “सोफ़िया, सबका नाश्ता लगाओ, मैं जाकर बच्चों को बुलाती हूँ |” और फिर अक्षित को मुस्कुरा कर कहती है “साहिब की यह सजा है कि नाश्ता कर, जल्दी से कपड़े बदल लो |

“क्यों, यार आज संडे है | आज तो आराम से सब काम करने दो |”

“साहिब, पूनम अपने बेटे के साथ अभी आने ही वाली होगी और वह आज दोपहर का खाना हमारे साथ ही करेगी | दोपहर के बाद गौरव के कुछ दोस्त आपसे मिलने आ रहे हैं|”

“कोई ख़ास बात?”

“हाँ”

“क्या?”

सोनिया मुस्कुराते हुए कहती है “वह तुमसे अकेले में मिलना चाहती है | कह रही थी, मैं अक्षित के साथ कुछ समय अकेले में बिताना चाहती हूँ |”

“बकवास नहीं करो, सच बोलो |”

“मैं सच बोलूंगी तो क्या तुम भी सच बोलोगे |”

“हाँ, बोलो |”

“तुम उससे भागते क्यों हो?”

“तुम्हारा दिमाग़ खराब हो गया है |”

“आपको सब कुछ दिखता और समझ आता है तो तुम्हारे साथ रहते-रहते मैं भी बहुत एक्सपर्ट हो गयी हूँ | तुम्ही कहते हो, दो साथी यदि दिल और दिमाग़ से मिले हुए हों और मेडिटेशन भी साथ करते हों तो एक का अध्यात्म में किया प्रयास दूसरे को स्वयं ही मिल जाता है | हमसे ज्यादा आपसी मिलन किसका हो सकता है |”

“तुम कुछ ज्यादा ही समझदार हो गयी हो | गलती मेरी है जो मैं तुम्हें, रोज अपने साथ अकेले में मेडिटेशन पर बिठाता हूँ |”

“गलती की है तो भुगतनी तो पड़ेगी |”

“भुगत ही रहा हूँ | अब नाश्ता भी मिलेगा या भाषण से ही काम चलाओगी|”

“क्या भुगत रहे हो | बिना मेरे, तुम्हें अध्यात्म में सफलता भी न मिलती |”

“हाँ, हाँ, मैडम आप जीतीं मैं हारा, ठीक है |”

सोनिया मुस्कुराते हुए, अक्षित के गाल पर चिकोटी काटते हुए कहती है “यह बात पहले ही मान जाते | अच्छा अब असली बात का तो ज़वाब दो |”

“क्या?”

“तुम पूनम से भागते क्यों हो | मैंने कितनी बार देखा है, वह जब तुम्हारे पास आकर बैठती है या फिर तुमसे कोई बात शुरू करती है तो तुम कुछ भी कह कर निकल लेते हो|”

“ऐसी कोई बात नहीं है | औरत तो आख़िर औरत ही होती है | शक की आदत नहीं जाती, चाहे वह कितनी भी बड़ी डॉक्टर हो या फिर अध्यात्म में कितनी ही उँचाई पर हो |”

“महाशय, बात को टालो नहीं |”

“जब ऐसी कोई बात है ही नहीं |”

“दूसरों को कहते हो झूठ न बोलो और खुद बोल रहे हो |”

“मैडम, मैं हमेशा कहता हूँ, ‘झूठ मत बोलो’, यह आज के जमाने में चल ही नही सकता क्योंकि सच कोई सुनना ही नहीं चाहता या फिर सुन नहीं सकता | हाँ, ज़िन्दगी हमेशा सच पर खड़ी होनी चाहिए और झूठ सिर्फ़ तब बोलो जब बहुत जरूरी हो या उससे किसी का फायदा हो रहा हो | आपके झूठ से किसी का कोई नुक्सान नहीं होना चाहिए | रात को सोने से पहले उस झूठ बोलने का अफ़सोस जरूर करो |”

सोनिया मुस्कुराते हुए कहती है “इसका मतलब हर बार मुझसे झूठ बोलकर अफ़सोस होता है तो क्यों बोलते हो | खैर, मैं तो मज़ाक कर रही थी | वैसे वो मुझे बता चुकी है कि कॉलेज समय में तुम दोनों एक दूसरे के प्रति काफी सीरियस थे | तुम्हें मुझ से मिलना था इसलिए वह बात आगे न बढ़ सकी | मेरा सिर्फ़ इतना कहना है कि जो भी हुआ वह होना ही था इसलिए सब बाते भूल कर फिर से एक दूसरे के साथ दोस्ती कर लो | यार वह अकेली है और अकेलेपन के कारण वह डिप्रेशन में जा रही है | उसकी इस स्थिति के कारण उसका बच्चा भी उदास-सा रहने लगा है | मेरी तुम से हाथ जोड़ कर प्रार्थना है कि उसके साथ बात करो और इस दूरी को खत्म करो | मुझे तुम पर पूरा विशवास है और यदि कोई गलती कर भी दोगे तो भी एडवांस में माफ किया|”

अक्षित, सोनिया के हाथ को अपने हाथ में लेकर कहता है "मैं हमेशा सबको यही कहता हूँ, अध्यात्म से जुड़ो | आपसी सम्बन्ध बहुत मधुर हो जाते हैं | हम इन शारीरिक और सामाजिक रिश्तों व बन्धनों से ऊपर उठ कर इंसानियत को महत्त्व देते हैं | आज तुमने साबित कर दिया | मैं पूरी कोशिश करूँगा और कोई गलती नहीं होगी|”

सोनिया हँसते हुए बोली “मुझे भी मालूम है तुम गलती कर ही नहीं सकते क्योंकि अब तुम्हारे बस की रही भी नहीं |”

अक्षित हँसते हुए बोला “अच्छा जी |”

सोनिया बच्चों की आवाज़ सुन अपना हाथ छुड़वाते हुए हँस कर बोली “बच्चे आ रहे हैं |”

गौरव, सोनिया के पास आ कर बोला “अरे यार, अप्पा तो पूरे कॉलेज में छा गये हैं | मेरे दोस्त अप्पा से मिलने और देखने आ रहे हैं कि अप्पा और हम अपनी आम रोजमर्रा की ज़िन्दगी में कैसे इन कही बातों के साथ चलते हैं |”

“तेरे अप्पा हैं ही ग्रेट |”

“कल तो आपकी पसंद खराब थी’,

“वो भी मैं सही कह रही थी | मेरी पसंद खराब थी जो मैंने इन्हें समय पर पहचाना नहीं | ईश्वर ने इनसे दोबारा मिलवा दिया वरना मैं तो खो ही चुकी थी |”

आनिया खाने की टेबल पर बैठते हुए बोलती है “अम्मा आप भी ग्रेट हो सच बोलने में आप भी हिचकती नहीं हो |”

सोनिया मुस्कुराते हुए बोलती है “सब तुम्हारे अप्पा से ही सीखा है |”

यह सुन सब हँसते हुए नाश्ता करने लगते हैं |

*

सामने से सोनिया को तैयार होकर बैग लटकाए हुए आते देख कर पूनम नाश्ते की प्लेट मेज पर रखते हुए बोलती है “दीदी आप कहाँ जा रही हैं?”

“मैं आनिया और गौरव के साथ बाज़ार जा रही हूँ | बस आधे-एक घंटे में आ जाउंगी | अक्षित अपने कमरे में लैपटॉप पर कुछ काम कर रहे हैं | जब तक हम नहीं आते हैं तुम वहीँ जा कर बैठो |”

“दीदी मैं भी आपके साथ चलती हूँ |”

“देखो, अपराधबोध ज़िन्दगी को तबाह कर देता है | उसे जितनी जल्दी निकाल फेंकोगी, उतना ही तुम्हारे लिए अच्छा होगा | अभी तुम्हारी बहुत ज़िन्दगी पड़ी है और तुम अकेली नहीं हो तुम्हारे पर एक बच्चे की जिम्मेवारी भी है |”

“पर दीदी....|”

“मैं जैसा कह रही हूँ, वैसा ही करो | अक्षित के पास जाओ और आज सारे गिले-शिकवे मिटा लो तुम्हारे लिए अच्छा होगा |”

“पर.....|”

“पर-वर कुछ नहीं | बोला ना, दीदी कहती हो और दीदी की बात नहीं मानती हो | जाओ और जैसा मैं कह रही हूँ वैसा ही करो, ठीक है |” कह कर वह आनिया और गौरव को चलने को कह घर से बाहर निकल जाती है|”

गौरव और आनिया सोनिया के पीछे-पीछे बाहर का दरवाज़ा बन्द कर चले जाते हैं | सोफ़िया आकर खाने की खाली प्लेटें उठा कर रसोई में चली जाती है | काफी देर तक पूनम खाने की टेबल के पास ही रखी कुर्सी पर बैठी रहती है फिर कुछ हिम्मत जुटा, अक्षित के कमरे की तरफ बढ़ जाती है |

अक्षित के कमरे का दरवाज़ा खोल अक्षित के देखने का इन्तजार करने लगती है | अक्षित लैपटॉप पर काम करते हुए बिना देखे ही बोलता है “अरे यार, वहाँ क्यों खड़ी हो |”

पूनम चुपचाप दरवाज़ा बन्द कर, अंदर आकर बेड के पास रखे स्टूल पर बैठ जाती है | अक्षित बिना देखे ही बोलता है “क्या हुआ | तुम और चुप बैठी हो |”

“वो मैं......|”

अलग-सी आवाज़ सुन कर अक्षित हैरानी से देखता है | सामने पूनम को बैठे देख कर बोला “ओह ! sorry, मैंने सोचा सोनिया है |”

पूनम नजरें झुकाए हुए ही बोलती है “कोई बात नहीं |”

“सोनिया कहाँ है |”

“दीदी, आनिया और गौरव के साथ बाज़ार गईं है |”

“क्या....?”

“हाँ, दीदी कह कर गयी थीं कि जब तक मैं नहीं आती, तुम अक्षित के पास बैठ जाना | आप कुछ ज़रुरी काम कर रहे हैं तो मैं ऊपर बच्चों के पास बैठ जाती हूँ | वह तीनों ऊपर पता नहीं क्या गुल खिला रहे होंगे |” कह पूनम उठ कर खड़ी हो जाती है |

अक्षित अपना लैपटॉप बंद कर बैड पर रखते हुए बोला “आप जब यहाँ मेरे पास आ ही गई हैं तो कुछ देर बैठिए | मैं कोई ख़ास काम नहीं कर रहा था और आप से ख़ास क्या हो सकता है|”

पूनम मुस्कुराते हुए अपने चेहरे पर आई बालों की एक लट पर उँगली घुमाते हुए बड़ी अदा से कहती है “वक्त ने देखो, एक भोले-भाले लड़के को कितना तेज़ कर दिया और एक तेज़-तर्रार लड़की को ऐसे पटका कि वह......|”

अक्षित, पूनम की बात खत्म होने से पहले ही बोल पड़ता है “सोनिया बता रही थी कि तुमने अपने परिवार से खफ़ा होकर नर्सिंग कॉलेज ज्वाइन कर लिया था |”

पूनम एक लम्बा सांस लेते हुए बोली “मुझे हमेशा ही आदमी पहचानने में गलती हुई | आज तुम जो कुछ भी मेरा हाल देख रहे हो यह सब उसी का ही नतीज़ा है | आज मुझे लगता है कि शायद मेरा यह हाल इसलिए हुआ क्योंकि मुझे एक बार फिर से तुम्हें मिलना था | पूरी ज़िन्दगी में दो ही लोग हैं जिन्हें पहचानने में मुझसे कोई गलती नहीं हुई और इसके बावजूद भी दोनों को मैंने खो दिया | तुम्हें नहीं लगता ज़िन्दगी कैसे-कैसे खेल खेलती है ? किसी को इतने मौके मिलते हैं और किसी को एक भी मौका नहीं मिलता |”

अक्षित बात बदलते हुए बोलता है “तुमने मेरे सवाल का ज़वाब नही दिया|”

“कौन सा सवाल |”

“तुमने नर्सिंग कॉलेज कैसे ज्वाइन कर लिया |”

“बस मैं सबसे अलग हो कर रहना चाहती थी और अचानक एक दिन मेरी नज़र एक विज्ञापन पर पड़ी और वह देख मैंने नर्सिंग कॉलेज में दाखिला ले लिया और वहाँ जाने का मेरा एक ही मकसद था कि मैं सब से अलग रह कर कुछ समय बिताना चाहती थी|”

“मुझे पूरी बात बताओ |” अक्षित ने बोला | वह चाहता था कि जब तक पूनम अपनी ज़िन्दगी की पूरी कहानी नहीं सुना देगी तब तक उसके मन पर रखा बोझ हल्का नहीं होगा | सोनिया उसे पहले ही बता चुकी थी कि पूनम उसे अपनी अभी तक की ज़िन्दगी का पूरा हाल बता चुकी है लेकिन फिर भी उसमे कोई परिवर्तन नहीं आ रहा है | सोनिया का कहना था कि उसने जब से मुझे देखा है वह और भी अन्तर्मुखी होती जा रही है | जोकि न सिर्फ़ उसके लिए बल्कि उसके बच्चे के लिए बहुत ही ख़राब है | इसलिए सोनिया अक्षित को कह कर गई थी कि वह आज उसके दिल का हाल एक बार सुन लेगा तो शायद वह सब सुना कर हल्का महसूस करेगी और तुम दोनों की आपस में जो खींच-तान लगी हुई है वह भी ठीक हो जाएगी |

अक्षित उसके बारे में सोच रहा था और उधर पूनम उसके सामने बैठ नजरें झुकाए बोले चली जा रही थी |

अक्षित उसे एकटक देख रहा था | पूनम कितनी बदल गई है | इतनी सुंदर दिखने वाली लड़की आज पूरी तरह से एक औरत में बदल चुकी है | उसने अपना पहनावा भी किसी मानसिक रोगी की तरह बदल लिया है | उसे नहीं पता उसने क्या पहना है | कोई कलर कॉम्बिनेशन नहीं है, कोई फिटिंग नहीं है | उसका दुपट्टा कहाँ जा रहा है उसे कुछ भी ध्यान नहीं है | बाल बिखरे हुए हैं, बीच-बीच में से सफ़ेदी झाँक रही है लेकिन उसे कोई परवाह नहीं है | आँखों में कोई काजल नहीं है | वक्त ने आँखों के नीचे हल्के से काले रंग के गड्ढे बना दिए है | अचानक अक्षित को पूनम की आवाज़ सुनाई दी “इस तरह मैं.......|”

“हाँ, हाँ बोलो |”

“मै एक बात और कहना चाहती हूँ | मैंने तुम्हें बेवकूफ बना कर शर्त जीतने के लिए तुमसे दोस्ती का नाटक शुरू किया था लेकिन नाटक करते-करते मुझे तुम अच्छे लगने लगे थे | बस मुझे तुम्हें सच्चाई बताने का ईश्वर ने मौका ही नहीं दिया |”

“आज दे दिया, मैं समझ गया तुम तब भी अच्छी थीं और आज भी हो | यह बता कर तुम मेरी नज़र में आज और भी अच्छी हो गई हो |”

“लेकिन आज सब कुछ बदल गया है |”

अक्षित को कुछ-कुछ बात समझ आ चुकी थी सो वह बात बदलते हुए बोला “शादी और बच्चे|”

“हाँ, तुम्हारे जैसा एक शरीफ दिखने वाले से शादी की थी लेकिन क्योंकि मैंने तुम्हें धोखा दिया था तो मुझे मिलना ही था |’

“मतलब”

“उसके साथ रहते-रहते मुझे लगने लगा कि वह शराफत का ढोंग कर रहा है | पहले बच्चे के बाद जब सब कुछ सामने आ गया तो मैंने उसे तलाक दे दिया |”

“तो अब?”

“मैं और मेरा बेटा दोनों ख़ुशी से रह रहे हैं |”

अभी वह अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी कि दरवाज़े के पास से सोनिया की आवाज़ सुनाई दी “अगर आपसी गिले-शिकवे खत्म हो गये हों तो मैं अंदर आऊं |”

पूनम अपनी जगह से उठते हुए मुस्कुरा कर बोली “दीदी आप भी......|”

सोनिया पूनम के पास आ उसे आलिंगन करते हुए बोली “पहली बार तुम्हारी आवाज़ में एक अदा और विश्वास दिखा और चेहरे पर मुस्कराहट |” फिर अक्षित को देखते हुए बोली “थैंक्यू साहिब जी, मेरी दोस्त के चेहरे पर मुस्कराहट लाने के लिए | चलिए लंच कर लेते हैं | अभी कुछ ही समय में गौरव के दोस्त भी आने वाले होंगे |”

सोनिया की बात सुन कर दोनों मुस्कुराते हुए सोनिया के साथ बैठक में रखी खाने की मेज़ के पास आ जाते हैं | सोनिया अक्षित को देखते हुए बोली “खाना खा कर मैं और पूनम बाज़ार जाएंगे और आने में शायद काफी देर हो जाए तो आप गौरव के दोस्तों के साथ बात करने के बाद बच्चों के साथ ही रहना |”

अक्षित मुस्कुराते हुए बोला “जो हुकुम मेरे आका |”

अक्षित की बात सुन सोनिया और पूनम मुस्कुराते हुए रसोई की तरफ चल देती हैं |

✽✽✽