Hotel Haunted Hindi - 2 in Hindi Horror Stories by Prem Rathod books and stories PDF | होटेल होन्टेड - भाग - 2

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होटेल होन्टेड - भाग - 2

मौत का नाम सुनकर उस आदमी की आंखें बड़ी हो गई और कमरे में सन्नाटा छा गया उस आदमी ने फिर आगे कहना शुरू किया।

सुबह का समय था अच्छी खासी धूप निकली हुई थी, सूरज ने उस जगह अपनी अच्छी छाप छोड़ रखी थी,वातावरण भी खुशनुमा था जंगल वाला पहाड़ी इलाका और बहुत सारे घने पेड़ थे।सूरज की रोशनी उन पेड़ों के बीच मेंं से निकलती हुई आ रही थी।

उसकी थोड़ी दूरी पर पेड़ काटकर एक बड़ी जगह बनाई गई थी और वह जगह काफी खुली थी,उस जगह पर सब सामान इधर-उधर बिखरा हुआ था और सभी तरफ काम होने का शोर सुनाई दे रहा था।

काफी सारे आदमी काम करनेे में लगे हुए थे,कोई पेड़ काट रहा था तो कोई एक तरफ खुदाई कर रहा था,तो कोई मिट्टी उठाकर ट्रक में डाल रहाा था,इस तरह सब अपना काम करने में लगे हुए थे। यह सब करतेेेेे हुए सुबह कब शाम में बदल गई पता ही नहीं चला,एक-एक करके सारे आदमी अपने घर की तरफ जाने लगे और उस जगह पर छोड़ धीरे-धीरे कम होनेे लगा लेकिन एक जगह पर अभी भी खुदाई की आवाज आ रही थी।

एक आदमी लगातार कुल्हाड़ी के प्रहार जमीन पर कर रहा था उसने अच्छााा खासा गड्ढा खोज लिया था और वो गड्ढा इतना गहरा था कि वह आदमी उसमें पूरा उतर गयाा था,फिर भी वह लगातार खोदे जा रहा था।

'अरे कालू टाइम हो गया हैैैै अब घर चल' थोड़ी दूर से एक आदमी चिल्लाया।
'हां रघु बस 5 मिनट दे मैं बस यह काम पूरा कर लूं'

इतना कह कर वाह फिर खुदाई करनेे लगा खोदते खोदतेेेे उसकी कुल्हाड़ी किसी चीज से टकराई।वह आश्चर्य से उस जगह पर देखने लगा उसने सिर से उसी जगह पर वार किया तो फिर से वही आवाज आई। उसने कुल्हाड़ी को साइड पर रखा और मिट्टी हटाकर देखने लगा तो उसके सामने एक अजीब सी चीज आ गई,जो देखने मैं पुराने जमानेे की लग रही थी और उस पर कुछ पुरानी आकृतियां बनी हुई थी ।

उसने उसेेे बाहर निकाला और मिट्टी हटाकर सूरज की धूप में देखने लगा उस चीज के ऊपर चमकदार लॉकेट जैसा कुछ दिख रहा था और सूरज की रोशनी में वह और भी चमक रहा था,उसने ढलते सूरज की तरफ देखा जो धीरे-धीरे बादलों के बीच ढल रहा था,और धीरे-धीरे अंधेरा होता जा रहाा था उसने उस चीज को छुआ और उससे अलग करके अपने हाथ में लेकर देखनेे लगा।

जैसे ही उसने उसे अलग किया उसेेेेे एक जोरदार झटका लगा और उसके हाथ से वह गिर गया उसके आंखोंं के आगे अंधेराा छाने लगा उसे किसी की अजीब सी हंसी सुनाई दी,वह जमीन पर बैठ गया और अपनी आंखें खोल कर देखी तो वहां लॉकेट उसके हाथ में नहीं था उसनेे अपनी आसपास नजर घुमाई तो एक अजीब साा सन्नाटााा छाया हुआ था।

उसने आसमान की तरफ देखा तो आसमान में कालेेेेेे बादल छाने लगे थे और काले बादलों ने सूरज को पूरा ढक लिया था आसमान पूरी तरह से काले बादलों सेे ढका हुआ था और ठंडी हवाएं जोर जोर से बहने लगी थी।

तभी अचानक रघु की आवाज आई 'अरे कालू चल अब घर चलते हैं लगता हैै की बड़ा तूफान आनेे वाला हैै'
एक हवा का ठंडा सा चौका आया और उसके शरीर में कंपकंपी दौड़ गई, उसके चेहरे पर अजीब सी घबराहट दिखाई दे रही थी और आसमान में जोरदार बिजली कड़कने लगी थी।वातावरण अब पूरा ठंडा हो चुका था,जहां पर सुबह सूरज की रोशनी थी वहां पर अब काले अंधेरे ने जगह ले ली थी।

वहां खड़े होने की कोशिश कर रहा था पर पता नहीं क्यों उसका सारा शरीर सुन पड़ चुका था,वह रघु को बुलाना चाहता था पर उसके मुंह से आवाज ही नहीं निकल रही थी,तभी उसके सामने खड़े पेड़ों पर अचानक बर्फ की चादर बेचने लगी जैसे वह पेड़ बर्फ का हो गया हो यह दृश्य देखकर उसका मुंह पसीने से तरबतर हो गया।

इस तरफ रघु ठंड की वजह से अपने हाथों को अपने शरीर पर लपेट कर खड़ा था और सोच रहा था कि अभी तक कालू आया क्यों नहीं,तभी अचानक उसे कालू की एक जोरदार चीख सुनाई दी और वह चौक गया,वह तेजी से जंगल की तरफ भागा।

इस तरफ कालू की आंखें फटी की फटी रह गई थी और उसके मुंह से खून की धारा निकल रही थी,उसने नीचे अपने पेट पर देखा तो उसकी कुल्हाड़ी उसके पेट के आर पार निकल गई थी, तभी अचानक क्या हुआ और वह कुल्हाड़ी उसके पेट से निकल गई जैसे उस कुल्हाड़ी को पकड़ कर किसी ने उसके पेट से निकाल दिया हो,वह दर्द की वजह से फिर चिल्लाया।

वह उठ कर भागने की कोशिश करने लगा पर दर्द की वजह से वह तेज भाग नहीं सकता था, इधर रघु उसका नाम पुकारता हुआ आवाज की तरफ भागता हुआ आ रहा था, कालू भागने की कोशिश कर रहा था तभी 3-4 नुकीली कील उड़ती हुई आई और उसके पैर में घुस गई,वह एक बार फिर दर्द के मारे जोर से चिल्लाया,उसने सामने देखा तो रघु भागता हुआ उसकी तरफ आ रहा था,उसने इस ओर से उसका नाम पुकारा, पर पता नहीं क्यों वह ना तो उसकी आवाज सुन सकता था और ना ही उसे देख सकता था।

तभी उसकी कुल्हाड़ी उड़ती हुई आई और उसकी खोपड़ी के आर पार हो गई कालू सर के बल जमीन पर गिर गया,इस तरफ रघु उसको पुकार रहा था,तभी कालू का शरीर उस गढ्ढे की तरफ बढ़ने लगा जिसे उसने खुद खोदा था,उसे देख कर ऐसा लग रहा था कि कोई उसके शरीर को घसीट कर उस गड्ढे की तरफ ले जा रहा हो।वह घसीटता हुआ उस गड्ढे में जागीरा और उस गड्ढे में अपने आप धूल जम गई और वह पहले जैसा हो गया जैसे वहां किसी ने खुदाई कीजिए ना हो, इस तरफ रघु उसका नाम पकड़ता हुआ घने जंगल में होता चला गया।

'तो कालू मिला या नहीं'कुर्सी पर बैठे आदमी ने कहा
'नहीं साहब कालू का कुछ नहीं पता चला, पता नहीं वो कहां गया'बोलकर वह चुप हो गया और होल में सन्नाटा छा गया।
तभी अचानक 'कटाकक......' की आवाज आई और सबका ध्यान उस तरफ चला गया सब ने देखा तो पाया कि हवा की वजह से खिड़की खोल गई थी और बाहर से हवा अंदर आ रही थी छोटू ने खड़े होकर खिड़की बंद की और पीछे के कमरे में लकड़िया लेने चला गया,वह खुद इन सब की बात सुनकर कहीं खो सा गया था।

'वैसे जो आदमी कालू के साथ था वो कहां गया'
'वो यही है साहब यह रहा'कहा कर उसने एक आदमी की तरफ इशारा किया और वह खड़ा हो गया उसने अपने चेहरे को कपड़े से ढक रखा था।
'जब तुमने कालू को खोजा तो तुम्हें क्यों नहीं मिला'
'नहीं जानता साहब उसकी और मेरी दूरी पूछी फासले पर थी लेकिन मैं उसे ढूंढ ही नहीं पाया मैंने सिर्फ उसकी दर्द भरी चींखें सुनी इसके अलावा कुछ नहीं'रघु ने डरते हुए कहा।
'बहुत अजीब बात है यह एक आदमी अचानक ऐसे कैसे गायब हो सकता है'
'मैं आपको बोल रहा हूं साहब वहां कोई शैतान का वास है क्योंकि कैसे काम बस वही कर सकता है और हमने उसे जगा दिया है'
'यह सब बेकार की बातें हैं इनका कोई मतलब नहीं यह जरूर कुछ और है'
'आपको ऐसा लगता है तो बताइए यह काम किसका हो सकता है' बोलते हुए रघु ने अपने चेहरे पर जो कपड़ा ढक रखा था उसने उसे हटा दिया और उसका चेहरा देखकर सब लोग डर गए क्योंकि उसके चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था कि उसके चेहरे को किसी ने नाखून से नोच लिया हो और फिर उसे चला दिया हो।

'ये ये क्या है?'
'यह वह चीज है साहब जो मुझे कल उस जगह पर मिली और इस चीज का इलाज किसी अस्पताल में नहीं है'वह सब बातें कर रहे थे कि कभी दरवाजे पर दस्तक हुई।
'लगता है वह आ गया है छोटू जाकर जरा दरवाजा खोल' छोटू ने जाकर दरवाजा खोला और कहा 'आइए साहब सब आपका ही इंतजार कर रहे थे'इतना कहकर बहुत दरवाजे से हट गया।

अंदर घुसते ही उस आदमी ने अपनी छतरी उसे दे दी और ब्लैक कोर्ट में वह चलता हुआ अंदर आया उसने अपने हाथ में पहने हुए ग्लव्ज निकाल दिए। उसे देख कर कुर्सी में बैठे आदमी के सिवा सब लोग खड़े हो गए।
'अरे मालिक आप यहां' एक आदमी ने कहा
उस आदमी ने कुछ नहीं कहा अपनी टोपी सर से हटाई और कुर्सी पे बैठे आदमी की तरफ बढ़ने लगा।
'आओ अजय आओ मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था'
'आप के बुलावे पर तो आना ही था राजीव सर कैसे हैं आप?'
'बस कुछ देर पहले तो ठीक था पर इन सब की बातें सुनकर....' इतना कहकर राजीव चुप हो गया।
'तो आप सब ने इन्हें सब कुछ बता दिया' अजय ने अपनी नजर सब मजदूरों की तरफ करते हुए कहा।
'क्या करते हैं मालिक 2 दिन हो गए पर कालू का कुछ पता नहीं चला इसलिए हमें इन्हें सब बताना ही पड़ा'
'जब राजीव सर का फोन आया था तभी मैं समझ गया था कि इन्हें किस विषय में बात करनी है'
'मैंने तुम्हें इसलिए बुलाया क्योंकि जब इन सब ने मुझसे मिलने की बात की तो मुझे लगा कि जरूर कोई बड़ी बात होगी क्योंकि यदि छोटी मोटी बात होती तो इसे तुम खुद सुलझा लेते'
'सही कहा आप अपने, बात थोड़ी बड़ी है'
'समस्या तो है पर इतनी भी बड़ी नहीं है कि उसे सुलझाया ना जा सके'राजीवने मजदूरों की तरफ देखते हुए कहा।
'कोई है राजीव सर जो हमारे साथ खेल खेल रहा है बस और कुछ नहीं'अजय ने कहा।
'यह आप कह रहे हैं मालिक आप तो थे हमारे साथ 2 दिन से कितना ढूंढा हमने कालू को पर वह कहीं नहीं मिला वहां कोई शैतानी रूह है हम वहां काम नहीं करेंगे'एक आदमी ने कहा।

'देखो यह सब तुम्हारे मन का वहम है और कुछ नहीं मैं भी तो था तुम्हारे साथ पूरा दिन तो मुझे कुछ क्यों नहीं दिखाई दिया' अजय ने कहा
'क्योंकि साहब जो हादसे हुए हैं वह शाम के 5:00 से 6:00 के बीच हुए हैं और आप शाम के 5:00 बजे से पहले घर पर चले जाते हैं'
'तुम्हें क्या लगता है वहां काम करने से तुम्हारी मौत हो जाएगी' अजय ने कहा।
'मौत हो जाएगी नहीं साहब बहुत हो ही गई थी,ना जाने मैं कैसे बच गया' रघु ने कहा।
'अच्छा तो फिर ठीक है आज रात को मैं वहां जाऊंगा और अगर मैं जिंदा वापस लौटा तो आप सबको वहां काम करना पड़ेगा' अजय ने कहा।
'यह आप क्या कह रहे हैं साहब उस जगह पर दिन में जाना भी खतरे से खाली नहीं है और आप तो फिर भी रात में जाने की बात कह रहे हैं नहीं नहीं साहब आप ऐसा मत कीजिए' रघु ने कहा।
'देखो आज रात को अजय वह आ जाएगा और वह सही सलामत वापस लौटा तो तुम सब कल से वहां काम करोगे' राजीव ने कहा।
'ठीक है साहब यदि अजय सर वहां से सही सलामत वापस लौट आए तो हम वहां काम करेंगे' बोलते हुए सब मजदूर खड़े हो गए और एक-एक करके हॉल से बाहर निकल कर अपने घर की तरफ पड़ गए।

सब मजदूरों के जाने के बाद राजीव ने व्हिस्की की एक बोतल निकाली और गिलास पढ़ने लगा उसने देखा तो अजय खिड़की के पास खड़ा था और बाहर की तरफ देख रहा था।
'यह गांव वाले बहुत चालू होते हैं इन्हें लगता है कि ज्यादा पैसे मिल रहे हैं तो लूट लेते हैं,पर तुमने बहुत सही दांव फेंका उन्हें क्या पता कि कितने करोड़ का प्रोजेक्ट है यह' राजीव ने अजय की तरफ देखकर कहा।
'बकवास नहीं है यह सब इन सब की बातों में कुछ तो सच्चाई है' अजय ने राजीव की तरफ देखते हुए कहा।
'क्या कहना चाहते हो तुम क्या तुम इन सब की बातों में विश्वास कर रहे हो'
'नहीं साहब मैं उस बात पर विश्वास कर रहा हूं इसे मैंने खुद अपनी आंखों से देखा है और उसे बोलना बहुत मुश्किल है'
'क्या कहना चाहते हो तुम?'
'यही कि सर कालू की लाश मिल चुकी है'

To be Continued........