sarkaari bhawana in Hindi Short Stories by GOVT SR SEC SCHOOL MAHAROLI books and stories PDF | सरकारी भावना

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सरकारी भावना

वह अक्सर अपने कॉलेज जाते टाइम अपने मोटर साइकिल को मुख्या सड़क से ही ले जाता था. रास्ते में उसका स्कूटर अचानक अपने आप ही रुक जाता था. सड़क क उस पार बने हुए उन टेंट्स को देखकर उसका मन बहुत विचलित हो अत था. आज देश को आज़ाद हुए सत्तर साल से भी अधिक हो गए इस दौरान पता नहीं कितनी सरकार आयी और चली गयी. सभी सरकारों से गरीबो के लिए बहुत सारे काम भी किये. इनको घर बनाकर भी दिए और है बार इनको सरकारी सहायता का नाम पर न जाने कितने पैसे मिले होंगे. सर्कार ने इनको नियमित रोजगार देने क लिए सड़क के दूसरी और कुछ कियोस्क भी बनवा कर दिए और साथ ही कुछ राशी इस आधार पर भी बैंक से दिलवाई की इनके दिन भी फिर कर वापस आएंगे मगर हर बार इनकी यही दशा होती थी.

पिछली बार चुनाव क समय पर जब इनकी बस्ती में यहाँ क लोकल नेता गए थे तो इन्होने इनकी भरपूर सहायता का वचन भी दिया . पास के स्कूल के शिक्षकों ने इनके बच्चो को ले जाने कलिए खूब कोशिश की थी. उस दिन लोकल ऍम अल ए साब ने इनके सभी बच्चो का स्कूल में एडमिशन करवाने के लिए कहा था. नए आये प्रिंसिपल साहब अपने स्टाफ के साथ इनके टेंट्स में गए . प्रिंसिपल साहब ने सभी बच्चो का एडमिशन करके ये कहा की आपके सभी बच्चो को रोज क हिसाब से स्कूल आने पर पैसे मिलेंगे और रोज का खाना भी मिलेगा . सभी ने खुश होकर अपने बच्चो का एडमिशन स्कूल में करवा दिया. मगर पहले सप्ताह ही सब बच्चो के माँ और बाप स्कूल में पहुंच गए और कहने लगे की हमारे बच्चो के पैसे आपने नहीं दिए . स्कूल के प्रिंसिपल साहब ने कहा की जब न बच्चो का पूरा एक महीना हो जायेगा तो इनके पैसे आपको इनके कहते में ही मिलेंगे आपको पैसे नकद राशि क रूप में नहीं दिए जायेंगे . उस दिन स्कूल में बहुत हंगामा हुआ .प्रिंसिपल साहब ने अपनी सूझ बुझ से सभी बच्चो के माँ और बाप को शांत करके भेज दिया . वह सोच रहा था की इनके माँ और बाप को बच्चो की पढाई से कोई मतलब नहीं ह इनको केवल सरकारी पैसे से मतलब ह . उसने प्रिंसिपल साहब की बात का समर्थन किया की बच्चो को रोजाना एक महीने तक स्कूल तो भेजना ही पड़ेगा. प्रिंसिपल साहब रोज उन बच्चो की जानकारी लेते थे. कभी उन में से आधे रुक जाते और कभी कभी तो एक भी नहीं आता था. जिस दिन एक भी बच्चाः नहीं आता था उस दिन शहर में कोई न कोई शादी या कोई त्यौहार होता था. उस दिन वह भी स्कूल चला गया और उसने बात की उस स्कूल के प्रिंसिपल से की आप क्या रोज उन बच्चो की जानकारी लेते ह . प्रिंसिपल साहब ने कहा की वो केवल जानकारी ही नहीं बल्कि उन बच्चो को उनके घर से लेने के लिए खुद चले जाते ह . गुरु का ऐसा भी रूप होता ह ये उसने उसी दिन जाना . उसकी सोच सभी स्कूल वालो के बारे में यह थी की वो लोग स्कूल में कोई काम नहीं करते हं . उस दिन वो भी प्रिंसिपल के साथ उन टेंट्स में चला गया वह पर जब प्रिंसिपल साहब ने यह पूछा की बच्चे क्यों नहीं स्कूल जा रहे ह तो एक पुरुष ने जो कहा उसको सुनकर उसके भी होश उड़ गए एक आदमी बोलै की साहब आप क्यों रोज रोज यहाँ चले आते ह इन बच्चो को आपके कहने पर स्कूल में एडमिशन दिलवा दिया अब इनका आना या नहीं आना कोई मायने नहीं रखता ह साहब ये रोज शाम को आपकी स्कूल में मिलने वाले पैसे से ज्यादा मांग कर ले आते ह आप परेशां मत हुआ कीजिये .

प्रिंसिपल साहब कभी मेरी और देखते और कभी में प्रिंसिपल साहब की और हम दोनों ये सोचते हुए वापस आ गए की क्या सरकार इनको फ्री के पैसे पर ज़िंदा रहना सीखा रही ह क्या इनको किसी काम में लगा कर इनको काम के साथ पढाई करवाकर रोज के हिसाब से पैसे दे दे . इनकी रोज की जरुरत भी पूरी हो जाये और सरकार का उद्देश्य भी पूरा हो जाये. हम दोनों ये सोचते हुए स्कूल तक आ पहुंचे.

वह भी कॉलेज जाने के लिए लेट हो रहा था. ये सोच रहा था की भारत में क्या कभी कोई बदलाव सरकार की भावना के अनुसार भी आएगा .