Choupade ki chedel - 4 - last part in Hindi Horror Stories by PANKAJ SUBEER books and stories PDF | चौपड़े की चुड़ैलें - 4 - अंतिम भाग

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चौपड़े की चुड़ैलें - 4 - अंतिम भाग

चौपड़े की चुड़ैलें

(कहानी : पंकज सुबीर)

(4)

यह जो रसायनों की उत्पत्ति थी यह आने वाले दिनों में और, और, और का कारण बनने वाली थी और बनी भी। सोनू ने उसके बाद कई-कई बार उस नंबर पर कॉल किए। हर बार कॉल काटने के बाद आया हुआ मैसेज एक बड़ी राशि कट जाने की सूचना देता था। हर बार किसी नई आवाज़ से बातें होती थीं। सोनू चाहता था कि कल जिससे हुई थी उससे से ही हो लेकिन, वैसा नहीं होता था। सोनू की इच्छा थी कि अगर कोई रिपीट में एक बार भी मिल जाए तो उससे कुछ आगे का सिलसिला जोड़ा जाए। मगर वैसा हो नहीं पा रहा था।

असल में ऐसा होना तकनीकी रूप से संभव भी नहीं था। क्योंकि जिस कंपनी के नंबर पर बातें होती थीं उस कंपनी ने पूरे भारत में क़रीब पाँच हज़ार से ज़्यादा मोबाइल कनेक्शन ग़रीब और ज़रूरतमंद महिलाओं तथा लड़कियों को दिये थे। इन लड़कियों में ज़्यादातर छोटे क़स्बों की लड़कियाँ थीं। इन मोबाइल नंबरों पर ही वह मीठे-मीठे कॉल आते थे। इन महिलाओं को उन कॉल्स को सुनने के सौ से डेढ़ सौ रुपये रोज़ मिलते थे। चार शर्तें इन महिलाओं को पूरी करनी होती थीं। पहली यह कि मोबाइल किसी भी स्थिति में स्विच्ड ऑफ नहीं किया जाएगा। दूसरी सामने वाला आदमी जो भी, जैसी भी बातें करे, इनको फोन नहीं काटना होगा, हाँ में हाँ मिलाना होगा और अपनी तरफ से भी बातें करनी होंगी। तीसरी शर्त यह कि सभी कॉल्स को रिसीव करना होगा और दिन भर में कम से कम तीन घंटे की बात करनी ही होगी, यह उनका उस दिन का टारगेट रहेगा। टारगेट पूरा न होने पर उस दिन का पैसा नहीं दिया जाएगा। मोबाइल स्विच्ड ऑफ मिलने, कॉल रिसीव नहीं करने पर भी पूरे दिन का पैसा काट दिया जाएगा। तीन से ज़्यादा बार मोबाइल स्विच्ड ऑफ मिलने पर पूरे महीने का पैसा काट लिया जाएगा। और यदि ग्राहक की बात सुनकर फोन काट दिया तो भी पूरे महीने का पैसा कट जाएगा। चौथी शर्त यह कि किसी भी हालत में ये अपनी कोई भी वास्तविक जानकारी कॉल करने वाले को नहीं बताएँगीं। सब कुछ झूठ ही बताना है। इन शर्तों के बाद भी ग़रीब और ज़रूरतमंद कई महिलाएँ अपना परिवार चलाने के लिए मोबाइल कंपनी के इस गोरखधंधे से जुड़ी हुईं थीं। मोबाइल कंपनी ने जो नंबर विज्ञापन में दे रखे थे उन पर कॉल करने से कॉल सीधे आई.एस.डी. से ही शुरू होता था। ज़ाहिर सी बात है कि सोनू कितना ही सर पटक लेता उसे एक ही लड़की से दूसरी बार बात करने का मौका, किसी दैवीय संयोग के अलावा नहीं मिल सकता था। पाँच हज़ार में दोहराव की गुंजाइश ही कितनी कम थी।

लेकिन कहते हैं न कि जहाँ चाह वहीं पर राह। उस दिन बात करने वाली लड़की शायद नई थी, उसे नहीं पता था कि वह अपने ग्राहक से जो भी बातें करती है, उन बातों को कंपनी के लोग सुनते हैं, रिकार्ड भी करते हैं। क़रीब घंटे भर की बातचीत के बाद लड़की सोनू के प्रति पिघलने लगी। दोनों के बीच मीठी बातों से इतर पर्सनल बातें होने लगीं। इस प्रकार की स्थिति में अक्सर कंपनी के लोग बीच में ही कॉल को डिस्कनेक्ट कर देते थे। लेकिन इससे पहले कि कंपनी की ओर से उसका कॉल काटा जाता, उसने अपना वास्तविक मोबाइल नंबर सोनू को उपलब्ध करवा दिया। वह अपने शहर और पते के बारे में कुछ और जानकारी उपलब्ध करवाती उससे पहले ही कॉल काट दिया गया। लेकिन उससे क्या होना था ? सोनू के पास तो लड़की का मोबाइल नंबर आ चुका था। लड़की से सीधे संपर्क करने पर पता चला कि लड़की उस शहर की नहीं थी, जिस शहर में सोनू रह रहा था। दूसरे किसी शहर की थी। फिर भी बातचीत तो हो ही सकती थी। किसी अज्ञात के साथ मीठी-मीठी बातें करने से ज़्यादा आनंद देता है, किसी ज्ञात के साथ करना।

कहानी में मोड़ ठीक अगले ही दिन तब आ गया, जब लड़की का कॉल सोनू के पास आया। उसने सोनू को, सोनू के ही शहर के एक स्थान का पता दिया कि मैं तुमसे मिलने आ गयी हूँ, इस जगह पर ठहरी हूँ, आ जाओ। सोनू को तो मानो पंख ही लग गए। मीठी बातें के स्थान पर, मीठी घातें करने का मौका जो मिल रहा था। सोनू तयशुदा समय पर उस स्थान पर पहुँच गया। वहाँ वह सब कुछ नहीं था, जो वह सोच कर आया था। वहाँ कुछ और था। वह वास्तव में एक सेक्सटॉर्शन केन्द्र था। सोनू का वहाँ सेक्सटॉर्शन किया गया। और जो कुछ भी किया गया उस सब का बाक़ायदा तेज़ हेलाजन लाइटों की चुँधियाती हुई रौशनी में वीडियो भी बनाया गया। महँगे विदेशी कैमरों से हाई डेफिनेशन वीडियो। जैसे किसी कमर्शियल फिल्म की शूटिंग होती है, ठीक उसी प्रकार से। लड़कियों और सोनू की कुछ भिन्न-भिन्न प्रकार की वीडियो बनाई गईं, इसके बाद अंत में सोनू की जमकर पिटाई की गई। इस प्रकार की हड्डी नहीं टूटे, किन्तु हर स्थान पर चोट आए। इस पिटाई का भी पूरा वीडियो बनाया गया। सोनू का मोबाइल, पैसे, एटीएम कार्ड, घड़ी आदि जो कुछ भी उसके पास था कपड़ों को छोड़कर, वह सब कुछ छीन लिया गया। इस मोबाइल नंबर को फिर चालू नहीं करवाने और किसी को कुछ नहीं बताने की धमकी दी गई। उसके बाद एक कार में बिठा कर कहीं छोड़ दिया गया। कहानी सुनते ही पूरी लड़का पार्टी और चुड़ैलों के बीच सन्नाटा खिंच गया था।

***

आते-आते हवेली के माहौल में सोनू भी धीरे-धीरे घुल गया और सहज होता चला गया। अब उसे शहर की उस घटना की कील चुभती नहीं थी। मँझली चुड़ैल उस पर कुछ ज़्यादा ही मेहरबान रहती थी। बल्कि यूँ कहें तो भी ग़लत नहीं होगा कि अब मँझली चुड़ैल पूरी तरह से सोनू के लिए ही आरक्षित हो गई थी। बड़ी चुड़ैल पहले से ही हम्मू ख़ाँ के लिए आरक्षित थी, तो अब लड़का पार्टी के लिए बस छोटी चुड़ैल ही बची थी।

एक दिन अचानक जब मँझली चुड़ैल ने सोनू से उस जगह के बारे में पूछा जहाँ सोनू को ले जाया गया था, तो सोनू कुछ असहज हो गया। क्या मतलब है यह पूछने का, जानने का। मगर मँझली चुड़ैल के दिमाग़ में तो और ही कुछ था। मँझली चुड़ैल को सोनू द्वारा बताया गया मोबाइल पर बातें करने का काम बहुत मुफ़ीद नज़र आ रहा था। सोनू को राज़ी करने में मँझली चुड़ैल को बहुत ज़्यादा देर नहीं लगी। सोनू को भी लगा कि जो कुछ मँझली चुड़ैल कह रही है, उसमें दम तो है। सोनू आख़िर में मान गया मगर, सब कुछ नए सिरे से तलाश करना पड़ा। हालाँकि बात बहुत पुरानी नहीं हुई थी, इसलिए सूत्र उसे बहुत ही जल्दी मिल गए। वह सूत्र जो कंपनी से जुड़े हुए थे। समय लगा। इस बीच कंपनी के कुछ लोग आकर हवेली देख गए। यह कंपनी विज़िट थी। और अंततः तीनों चुड़ैलों को कंपनी की ओर से मोबाइल नंबर प्रदान कर दिए गए।

काम जब शुरू हुआ तो चुड़ैलों को बात करने में कुछ झिझक होती थी। ग्राहक बहुत खुली बात करना चाहता था, लेकिन चुड़ैलें ज़रा दबी-छिपी बातें करती थीं। फिर एक दिन सोनू ने मँझली चुड़ैल को बताया कि ग्राहक क्या चाहता है। सोनू ने एक ग्राहक का कॉल अटैंड किया और उसके साथ लड़की की आवाज़ में बात की। खुली-खुली बातें। मँझली चुड़ैल की आँखें, कान और दिमाग़ सब खुलता गया। उसके बाद मँझली चुड़ैल ने मानो पूरे काम के सूत्र अपने हाथ में ले लिए। इस प्रकार से कि जो ग्राहक पहले दस मिनिट तक बात करता था वह अब दो-दो घंटे चिपका रहता। मँझली चुड़ैल को सोनू ने धीरे-धीरे पूरा ट्रेण्ड कर दिया। उस अनुभव से, जो उसने कंपनी के मोबाइलों पर बात कर-करके सीखा था। मँझली चुड़ैल अब दक्ष हो गई थी। उसने बाकी दोनों चुड़ैलों को भी धीरे-धीरे ट्रेण्ड कर दिया। काम ज़ोरों से चल निकला। चुड़ैलें अब खुलकर बातें करती थीं। बिना किसी झिझक के, बिना किसी संकोच के। इस प्रकार, कि कई बार सामने से बातें कर रहा ग्राहक भी शरमा जाता था। चुड़ैलों को समझ में आ गया था कि केवल बातें ही तो करना है, वह भी उसके साथ जो उनको जानता तक नहीं है। किसी अज्ञात के साथ केवल बातें करने में क्या बुरा है। यह ब्रह्मज्ञान प्राप्त होते ही चुड़ैलों के दिव्य नैत्र भी खुल गए थे।

चुड़ैलें पूरा दिन व्यस्त रहती थीं। काम फैल रहा था। तीनों मोबाइल दिन भर व्यस्त रहते थे। चुड़ैलें चाहती थीं कि कुछ और मेाबाइल हों लेकिन उन पर बात करेगा कौन ? अब हवेली को कुछ और चुड़ैलों की आवश्यकता थी। मँझली चुड़ैल ने अपना जाल फैलाया। कुछ ग़रीब, ज़रूरतमंद महिलाओं और लड़कियों को पैसों की चमक दिखाई। चमक ने कुछ को खींचा और वो हवेली के दरवाज़े तक आ गईं। दरवाज़े से हवेली के कमरे तक लाने का काम मँझली चुड़ैल ने किया। जो कमरे तक आईं वो चुड़ैल बन गईं। मंझली चुड़ैल ने उनकी गरदन के पीछे दाँत गड़ा कर अंग्रेज़ी फिल्मों की तरह कुछ ख़ून-वून तो नहीं चूसा मगर, कुछ ऐसा ज़रूर किया कि चुड़ैलों की संख्या बढ़ गई। अब हवेली में कुछ और चुड़ैलें हो गईं थीं। अब कुछ कढ़ाई, कशीदाकारी के काम भी हवेली में शुरू किये गये। दिखाने के लिए कि हवेली में यह काम किया जा रहा है। नई चुड़ैलें कानों पर हैडफोन लगाए हवेली के अंदर के कमरों में कशीदाकारी करती रहतीं। या यूँ कहें कि कशीदाकारी करने का नाटक करती रहतीं, असल काम तो हैडफोन से चलता रहता था। अब हवेली एक हस्त शिल्प केन्द्र बन चुकी थी।

***

उस बात को अब दो साल से भी अधिक हो गए हैं। कॉल सेण्टर में कॉल अटेण्डर चुड़ैलों की संख्या अब काफी बढ़ गई है। हवेली के एक हिस्से को तुड़वा कर वहाँ पर तीन चार वातानुकूलित हॉल बना दिए गए हैं। इनमें कई सारे साउंड प्रूफ कक्ष हैं। इन कक्षों में बैठ कर चुड़ैलें अपना काम करती रहती हैं। मँझली चुड़ैल अब वास्तव में ही कंपनी की सीईओ है। कई सारे समाज सेवा के काम करवाती रहती है। आए दिन उसके फोटो समाचार पत्रों में छपते रहते हैं। सोनू और उसने शादी तो नहीं की लेकिन, बात शादी जैसी ही है। सोनू के वह वीडियो जो कंपनी ने बनाए थे, कई सारी पॉर्न वैब साइटों पर इंडियन सैक्शन में उपलब्ध हैं। सोनू और मँझली चुड़ैल अक्सर इनको देखते हैं, हँसते हैं। चुड़ैलें अब हवेली से निकल कर विरचुअल हो गईं हैं। हवा में फैल गईं हैं, सिग्नल्स के रूप में, फ्रिक्वेंसी के रूप में। अब वे हर किसी के मोबाइल में हैं। मीठी बातें करती हुई, कुछ लाइव ध्वनियाँ पैदा करती हुईं। चुड़ैलें अब रूप बदल-बदल कर आ रही हैं। अब उनका कोई नाम कोई ठिकाना स्थायी नहीं है। अब वह चौपड़े की चुड़ैलें नहीं रहीं, अब वे ब्रह्माण्ड की चुड़ैलें हो चुकी हैं। पूरे के पूरे विरचुअल ब्रह्माण्ड की चुड़ैलें। अब वे कहीं से भी झपटती हैं। जैसे आकाश में चमकने वाली बिजली काली वस्तु को देख कर झपटती है, वैसे ही चुड़ैलें भी काले मोबाइल को किसी के भी हाथों में देख कर झपट्टा मारती हैं और समा जाती हैं उसमें। और उसके ज़रिए मोबाइल धारी के कानों में, आत्मा में, मन में। चुड़ैलें फैलती जा रही हैं, फैलती जा रही हैं, फैलती जा रही हैं।

(समाप्त)