The Author Hareesh Kumar Sharma Follow Current Read मेरी डायमंड ग्रह की अनोखी यात्रा - 3 By Hareesh Kumar Sharma Hindi Adventure Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books THE MIRROR KEEPER The village library stood like a quiet guardian in the heart... Predicament of a Girl - 13 Predicament of a Girl A romantic and sentimental thriller Ko... HAPPINESS - 104 Keep erasing hatred from hearts in the universe. Keep... Love at First Slight - 28 The Grand Event at Marina Bay SandsThe night was alive with... The Village Girl and Marriage - 2 Diya had only seen the world of books; she had not witnessed... 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उसने मुझसे पूछा कि तुम कैसे जानते हो उस मिशन के बारे में? मैंने उससे कहा कि तुम्हें कुछ पता है क्या उसके बारे में? उसने मुझे जबाव दिया कि-" हां, इसरो ने वो मिशन लॉन्च तो किया था पर उससे कोई सफलता नहीं मिली उन्हें। उनका 7-8 महिने बाद ही उस अंतरिक्ष यान से सम्पर्क टूट गया था और आज तक भी उस अंतरिक्ष यान का कोई पता नहीं है। लेकिन अब तुम बताओ तुम्हें कैसे पता ये सब?" मैंने उसे बताया कि उस अंतरिक्ष यान में मैं ही था कुछ सालों पहले तुम्हारी तरह मेरा संपर्क भी टूट गया था और मैं यहां आकर फस गया। लेकिन इसरो इस मिशन में सफल रहा क्योंकि मैंने इस ग्रह की सबसे पहले खोज की है। वो ये बात सुनते ही उठकर बैठा हुआ। और मुझसे आर्श्चय से बोला आप भी पृथ्वी से ही हो? मैंने कहा हां मैं पृथ्वी से ही हूं। लेकिन यहां रहते-रहते मैं भी इन लोगों की तरह हो गया हूं। रशियन अंतरिक्ष यात्री ये सुनकर बहुत खुश हुआ कि मेरे अलावा कोई और पृथ्वीवासी भी है यहां पर। मैंने उसे हंसकर कहा कि तो तुम क्या सोच रहे थे कि मैं तुमसे फ्यूल क्यो मांग रहा था? उसने मुझे जबाव दिया कि-"मैं तो ये सोच रहा था कि आप इसी ग्रह से हो और आपने ये अंतरिक्ष यान बनाया है। इसलिए मैंने सोचा कि तुम्हारे पास फ्यूल नहीं है इसलिए मांग रहे हो। मैंने भी डर के कारण तुम्हें फ्यूल दिया कि कहीं यहां के लोग मुझे कोई नुक्सान ना पहुंचाएं। मैंने उसे बताया कि इस ग्रह के लोग वाकई बहुत बहुत अच्छे लोग हैं। जब मैं यहां आया था तो मुझे भी डर लगता था। लेकिन अब तो मुझे यहां रहते हुए कई साल गुजर गए हैं और मैं यहां के लोगों को अच्छी तरह से जानता हूं। फिर रशियन अंतरिक्ष यात्री ने मुझसे शुभ रात्रि कहा और सो गया, साथ ही मैं भी सो गया । सुबह में हम दोनों उठे और सेनापति जी के साथ सुबह की सैर के लिए गए। रशियन अंतरिक्ष यात्री वहां की धरती को लेकर बड़ा ही उत्साहित था। उसने मुझे कहा कि यहां की धरती कांच जैसी क्यों है? मैंने उसे कहा कि हम इस बारे कुछ भी कह सकते क्योंकि ये एक अद्रश्य शैल से बना ग्रह है। और जो चीज दिखाई ही नहीं देती तो उसके बारे में क्या बता सकते हैं। फिर मैंने सेनापति जी से पूछा कि ये चक्रवात कब-कब बनता है। उन्होंने मुझे बताया कि-"मैंने सुना है ये चक्रवात जब भी बनता है तो लगातार एक महीने तक हर पांचवें दिन बनता है।" मैं बोला-" अच्छा ।" फिर हम तीनों लोग सैर करने के बाद वापस महल गये। लेकिन जब हमने वहां जाकर देखा तो सभी में खलबली मची हुई थी। मैंने कई लोगों से जानने की कोशिश की कि क्या हुआ है? सभी ऐसे क्या ढूंढ रहे हैं? लेकिन कोई बता ही नहीं रहा था। तभी एक सैनिक दौड़ता हुआ सेनापति जी के पास आया और बोला कि महाराज जॉजफ नहीं मिल रहें हैं। ये सुनकर हम भी राजा जॉजफ को ढूंढने में मदद करने लगे । हमको राजा जॉजफ को ढूंढते हुए सुबह से शाम हो गई लेकिन उनका कोई पता नहीं लग रहा था। लेकिन शाम को किसी अन्य राज्य का राजदूत एक पत्र लेकर महल में आया। उस पत्र में लिखा था कि-"सैफर्ट राज्य के राजा कैलोन सैफर्ट के निर्देशानुसार। सैफर्ट राज्य की सेना ने आपके राजा जॉजफ को बन्दी बना लिया है तो अब से आप सैफर्ट राज्य के आधीन रहेंगे।" सेनापति जी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया था। लेकिन मैंने उन्हें शांत किया और मैंने कहा कि मैं अभी जाकर राजा जॉजफ को वापस ले-आता हूं। तुरंत रशियन अंतरिक्ष यात्री भी मेरे साथ चलने के लिए आग्रह करने लगा। मैंने कहा कि ठीक है हम दोनों चलतें हैं। फिर हम दोनों सेनापति जी से आदेश लेकर चले गए। रास्ते में रशियन अंतरिक्ष यात्री मुझसे कहने लगा कि यार हम तो केवल 2 ही लोग हैं और वहां पता नहीं कितने सैनिक होंगे। मैंने उससे कहा कि तुम डरो मत तुमने कभी देखा कि आपकी खाने की थाली को एक आदमी लेकर आया है। उसने कहा नहीं मैंने देखा कि कम से कम 3-4 आदमी लेकर आते हैं। मैंने कहा यही तो यहां के लोग इतने कमजोर हैं कि एक इंसान इनकी एक सेना के बराबर है। फिर तो उसके मन से डर निकल गया और बोला कि कितनी देर में पहुंचेंगे हम वहां? मुझे उसका उत्साह देखकर हंसी आ गई कि अभी तो ये डर रहा था और अब..... । हम थोड़ी ही देर में वहां पहुंच गए वहां देखा तो 25 या 30 कुल सैनिक थे। लेकिन वो लोग उल्टा हम दोनों पर ही हस रहे थे कि दो लोग आए हैं अपने राजा को बचाने के लिए। लेकिन उन्हें नहीं पता था कि हम 2 लोग नहीं बल्कि 2 इंसान हैं। और थोड़ी देर में ही उन्हें पता भी लग गया कि हम 2 कौन हैं? फिर हम राजा जॉजफ को अपने साथ लेकर वापस लौटकर आ गये। लेकिन इस बार राजा जॉजफ को मेरी ताकत का पता लग चुका था। हम जब महल पहुंचे तो सभी को राजा जॉजफ ने हमारी ताकत के बारे में बताया। तभी सेनापति जी ने भी बता दिया कि पहले भी आपकी दुश्मन राज्य की सेना को अकेले मैंने ही हराया था। लेकिन राजा जॉजफ के वापस आने की खुशी में सारा राज्य झूम उठा। अगले दिन दोपहर के समय अचानक आसमान में फिर से वही चक्रवात बनने लगा मैंने रशियन अंतरिक्ष यात्री से कहा कि अब हमारा वापस अपनी पृथ्वी पर लौटने का समय आ गया है और हमने वहां सभी से विदा लेकर अपने-अपने अंतरिक्ष यान में सवार हो गए। हम दोनों ने एक साथ अपने अंतरिक्ष यानों को उड़ान भरवाई और वहां के लोगों की विदाई के साथ उस चक्रवात में अंदर चले गए। कुछ देर उस चक्रवात में घूमने के बाद आखिरकार हम बाहर अपनी दुनिया में आ गए। और वहां से कुछ ही दूरी पर अपनी पृथ्वी एकदम स्पष्ट दिख रही थी। हम बिना कुछ देर किए ही अपने-अपने देश की तरफ बढ़ चले। मैं कुछ ही देर में केरल के तट पर समुद्र में सुरक्षित लैंडिंग की । और थोड़ी ही देर में वहां इसरो टीम मुझे लेने के लिए आ गई। वहां पर कोई मुझे पहचान नहीं पा-रहा था। क्योंकि मैं कई सालों बाद पृथ्वी पर लौटा था । लेकिन बाद में उन लोगों ने मुझे पहचान लिया। फिर वहां से मुझे सीधे इसरो सैन्टर ले-जाया गया। वहां पर मेरी जांच की गई और मुझसे पूछा गया कि क्या हुआ था? मैं इतने सालों तक कहां था ? मैंने सब कुछ उन्हें गलत बताया। मैंने उन्हें डायमंड ग्रह के बारे में कुछ भी नहीं बताया। और मैंने रशियन अंतरिक्ष यात्री से भी डायमंड ग्रह के बारे में कुछ भी बताने से मना किया था। उसने भी अपने यहां कुछ भी नहीं बताया। फिर कुछ दिनों बाद इसरो की तरफ से एक प्रैस कॉन्फ्रेंस रखी गई जहां से मुझे मेरे घर वालों को सौंपा जाना था। मैं बेसब्री से उस प्रैस कॉन्फ्रेंस का इंतजार कर रहा था। फिर वो प्रैस कॉन्फ्रेंस हुई जिसमें मैंने मीडिया के ढेर सारे सवालों के जवाब दिए। फिर मेरे मम्मी पापा मेरे सामने आये। मैंने उन्हें कई सालों बाद देखा था तो मुझसे रहा नहीं गया और मैं तुरंत अपनी कुर्सी से उठकर अपनी मम्मी पापा के पैर छूने के लिए चला। जैसे ही मैं उनके पैर छूने के लिए झुका तो पीछे से कोई मेरे कन्धें को पकड़कर मुझे हिलाने लगा। मैंने कई बार उसे हटाया भी था। तभी किसी ने मेरे गाल पर थप्पड मार दिया और मेरी नींद खुल गई। वो थप्पड किसी और ने नहीं बल्कि मेरी मम्मी ने ही मारा था। मम्मी गुस्से में चिल्लाते हुए कहा कि स्कूल नहीं जाना लेट हो रहा है जल्दी उठ और स्कूल के लिए तैयार हो। मैं सोच में पड़ गया कि यार ये सब जो अब तक हुआ ये सब एक सपना था। लेकिन तब तो मैं स्कूल चला गया। लेकिन ये सारी बातें मेरे दिमाग से निकल ही नहीं रहीं थीं। फिर से मेरी जिंदगी उसी तरह से बीतने लगी। जल्दी ही मेरे exams आ गए । लेकिन उसी बीच एक दिन जब मैं अपने दोस्तों के साथ स्कूल से घर लौट रहा था। तभी कुछ दूरी पर वैसा ही आसमान में चक्रवात बनने लगा लेकिन इस बार ये कोई सपना नहीं था, ये सच था। लेकिन उसमें से कोई भी अंतरिक्ष यान बाहर नहीं आया। मेरे दोस्त के पापा इसरो में ही बतौर स्पेश रिसर्च साइंटिस्ट काम करते थे। एक दिन मैं अपने दोस्त के घर पर ही था, तभी मेरे दोस्त के पापा और उनके कुछ और साइंटिस्ट साथी उनके घर आये और वहीं पर अपना काम कर रहे थे। वो लोग उस चक्रवात के बारे में सोचकर परेशान हो रहे थे। मैं उन्हें पीछे से बैठकर देख रहा था। जब वो उस चक्रवात के बारे में सोचकर कुछ ज्यादा परेशान होने लगे। तो मैं उनके पास गया और उनसे बोला अंकल परसों ऐसा ही चक्रवात फिर से आयेगा आप परेशान ना हों बाद में इसपर रिसर्च कर लेना। लेकिन उन लोगों को मुझपर विश्वास नहीं हुआ। वो बोले कि बेटा आप अभी छोटे हो ये चक्रवात ऐसा-वैसा चक्रवात नहीं है। मैंने उनसे कहा कि अंकलजी मैं इस चक्रवात के बारे में बहुत कुछ जानता हूं ये चक्रवात इस महीने हर पांचवें दिन बनेगा। लेकिन उनको मुझपर विश्वास नहीं हुआ। तो मैं वहां से चला गया।लेकिन पांचवें दिन वो चक्रवात फिर दोबारा बना तब उन लोगों को मेरी याद आयी। और मुझे उन्होंने अपने ऑफिस बुलाया। मै उनके ऑफिस गया ।*************************लेकिन आगे कुछ और भी खास हुआ जिसे हम पार्ट-4 में पढेंगे । तो चलिए अभी के लिए नमस्कार ।*************************© Hareesh Kumar Sharma ‹ Previous Chapterमेरी डायमंड ग्रह की अनोखी यात्रा - 2 › Next Chapter मेरी डायमंड ग्रह की अनोखी यात्रा - 4 Download Our App