Vivek aur 41 Minutes - 20 in Hindi Detective stories by S Bhagyam Sharma books and stories PDF | विवेक और 41 मिनिट - 20

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विवेक और 41 मिनिट - 20

विवेक और 41 मिनिट..........

तमिल लेखक राजेश कुमार

हिन्दी अनुवादक एस. भाग्यम शर्मा

संपादक रितु वर्मा

अध्याय 20

पुष्पवासन अपने हाथ में रखी पिस्तौल से गोकुलवासन के सिर को मारते हुए हंसा |

“तुम्हारे सिर की खोपड़ी के अंदर दो गोलियां जाने में 29 मिनिट ही है | पुलिस का साइरन सुनाई दे रहा है ना....... तुम्हारी गाड़ी को पूरे शहर में पुलिस छलनी डाल कर ढूंढ रही है | बट, ये कार एक पेड़ के पीछे झाड़ियों के बीच खड़ी है उनको पता नहीं चलेगा..........”

गोकुलवासन ने घबराये हुए चेहरे से मुड़ कर उसको देखा |

“जल्दीबाजी करके मुझे मार मत देना........! मुझे तुमसे कुछ बात करनी है...........”

“बात करनी है तो करो !”

“मेरे पिता जी की और ड्राइवर की हत्या करने वाले तुम नहीं हो सकते | मैं कह रहा हूँ यह सही है ?”

“सही है......... उन दोनों को खत्म करने की मैंने बहुत कोशिश की | परंतु नहीं हुआ............ और किसी उनको पसंद नहीं करने वाले ने मार डाला |”

“उस कोई और को जान कर तुम क्या करोगे ?”

“क्या करूंगा ? उसके गले में बड़ा सा एक हार पहना कर हाथ मिला कर उसके गले लगूँगा........”

“ऐसा है तो उस माला को मुझे ही पहनाना होगा.....”

पुष्प वासन चकित रह गया |

“तुम क्या बोल रहे हो......?”

“सच बात को बता रहा हूँ........ मेरे अप्पा और अप्पा के कानून के विपरीत सभी कार्यों को करने वाले एक ब्रोकर जैसे ड्राइवर दुरैमाणिकम को मैंने ही खत्म किया |”

“स...... स...... सच है ?”

“सच में”

“पैदा किया जिस अप्पा को किस लिए.........?”

“उस कामुक भूत को मेरेअप्पा बोलने में ही मैं शर्मिंदा हूँ | भेड़ को काट.. फिर गाय को काट... आखिर में मनुष्य को ही काटा जैसे.... शहर में रहने वाली सुंदर लड़कियों को अपने बिस्तर पर बुलाते रहने वाले मेरे अप्पा आखिर में अपनी ही बहू को बुलाना शुरू कर दिया | मैं जब घर में नहीं रहता मेरी पत्नी सुभद्रा को फोर्स किया | सुभद्रा ने बहुत समझाने की कोशिश की पर वे नहीं सुधरे | पिछले हफ्ते सुबह सुबह पौ फटने का समय रहा था नहाने गई सुभद्रा से गलत ढंग से पेश आने लगे | मेरे लिए गुस्से को रोकना असंभव हुआ | पीतल के फूलदान को उठाकर उनके सिर पर दे मारा | सही मार पड़ी ! एकदम गिर कर मर गए | ये बात वॉचमेन को पता है | मैं, सुभद्रा, वॉचमेन तीनों मिलकर ऊपर के गेस्ट- हाउस में उन्हें लेकर जाकर, बगीचे में गड्ढा खोद, दफना कर साढ़े छ: बजे घर आए | कुछ देर में ही डी. जी. पी. शर्मा के पास से फोन आया | अप्पा से मिलने क्राइम ब्रांच के ब्रांच ऑफिसर विवेक और वे आने वाले है बोले | अप्पा जिंदा है इस तरह एस्टेब्लिश करने के लिए, अपनी आवाज को बदल कर अप्पा जैसे बात की | डी. जी. पी. शर्मा ने विश्वास कर लिया | 7.30 बजे वे कार में मेरे घर पर आए तब वॉचमेन और हम “अप्पा को एक पुलिस इंस्पेक्टर और दो कॉन्स्टेबलों ने उन्हें जीप में लेकर गए कह कर झूठ बोल दिया | शर्मा और विवेक हमने जो झूठ बोला उसे सच मान कर अभी तक उस पुलिस जीप, और जीप के साथ आए आदमियों को ढूंढ रहे है....”

“ये............ ये............. सब........... सच है........... ?”

“सच सच चाहे तो मेरी पत्नी सुभद्रा के मोबाइल पर फोन करो पूछ लो........ वही बोलेगी |”

“तुम्हारी पत्नी के मोबाइल नंबर क्या है ?”

गोकुलवासन बोला उसे लेकर पुष्पवासन अपने बाएँ हाथ से मोबाइल लेकर उन नंबरों को लगाया | बात की | स्वर में अभी नरमी थी |

“मिस्टर विवेक.......”

“यस.........” दूसरी तरफ से विवेक की आवाज “मैं सी. बी. जी. सिकंदर |”

“बोलिए सिकंदर | गोकुलवासन क्या बोल रहा है...?”

“सभी बातों को मान गए | अपने अप्पा सुंदर पांडियन को और ड्राइवर दुरैमाणिकम की भी हत्या उसी ने की है ऐसा स्टेटमेंट देकर मान गए | इसके बाद डिटेल में पूछने के लिए गोकुलवासन को अभी लॉकअप में लेकर आ रहा हूँ.....”

“आइये........ पुष्पवासन......... सॉरी सिकंदर |”

***