Stokar - 22 in Hindi Detective stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | स्टॉकर - 22

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स्टॉकर - 22




स्टॉकर
(22)



एसपी गुरुनूर ने इंस्पेक्टर अब्राहम से कहा।
"तुमने एक नए कोंण से इस केस को जाँचने का प्रयास किया। हमारा ध्यान इधर गया ही नहीं था। अंकित और रॉबिन एक दूसरे से मिले हुए हैं।"
"हाँ मैम....यह तो पता चल गया कि दोनों एक दूसरे को जानते थे। पर सबसे बड़ा सवाल ये है कि दोनों के बीच क्या षडयंत्र रचा गया था। किस आधार पर दोनों एक हुए थे। दोनों ने मिस्टर टंडन की हत्या कैसे की ? चेतन की हत्या में दोनों का हाथ है या नहीं।"
"यही नहीं अब्राहम यह भी देखना होगा कि अगर मेघना मिस्टर टंडन की हत्या में शामिल नहीं थी तो फिर उसने रॉबिन को अपने फार्म हाउस में क्यों रखा। दूसरा मिस्टर टंडन की कार चेतन की लाश के साथ रॉबिन के फार्म हाउस पर कैसे थी ?"
"मैम ये केस बहुत उलझा हुआ है।"
"बस एक टुकड़ा है जो गायब है। वह मिल जाए तो पज़ल सॉल्व हो जाए।"

एसपी गुरुनूर ने जब यह बात कही उसी समय सब इंस्पेक्टर गीता ने केबिन में प्रवेश किया। आते ही वह बोली।
"मैम ये अंकित एक बड़ा कहानीकार है। पता नहीं चलता है कि उसने क्या सच कहा है और क्या झूठ।"
एसपी गुरुनूर ने पूँछा।
"क्या कोई नई बात पता चली है ?"
"मैम.... अंकित ने कहा था कि मेघना ने उसे मिस्टर टंडन की हत्या के लिए पंद्रह लाख एडवांस दिए थे। वो पैसे उसने फर्ज़ान मलिक को भिजवाए थे।"
"हाँ उसने कहा था।"
"मैम मैंने इस फर्ज़ान मलिक से संपर्क किया तो उसने कहा कि अंकित ने उसे ईमेल कर किसी नई नौकरी के बारे में पूँछा था। उसने अंकित को दिल्ली के एक जिम का नाम सुझाया था। जब मैंने उससे पूँछा कि क्या उसने अंकित को दुबई में नौकरी दिलाने की बात कही थी तो उसने एकदम नई बात बताई।"
"वो क्या ?"
"मैम....फर्ज़ान ने बताया कि वह कैसे उसे दुबई में नौकरी दिलाएगा। वह तो खुद करीब सात महीनों से भारत में है। बीमारी की वजह से उसे दुबई की नौकरी छोड़ कर आना पड़ा।"
इंस्पेक्टर अब्राहम ने कहा।
"ये अंकित एडवांस वाली बात से साबित क्या करना चाहता था।"

जवाब एसपी गुरुनूर ने दिया।
"वह हमें यह यकीन दिलाना चाहता है कि मेघना मिस्टर टंडन की हत्या करवाना चाहती थी।"
सब इंस्पेक्टर गीता ने अपना बिंदु रखा।
"मैम मुझे तो लगता है कि अंकित सब झूठ बोल रहा है। दोनों हत्याएं उसने ही की हैं।"
"हो सकता है गीता। इंस्पेक्टर अब्राहम ने एक नई बात पता की है। अंकित और रॉबिन एक दूसरे को जानते थे।"
एसपी गुरुनूर की बात सुन कर सब इंस्पेक्टर गीता ने इंस्पेक्टर अब्राहम को देखा।
"वाह सर....."
इंस्पेक्टर अब्राहम एक नए विचार में उवझा था। वह एसपी गुरुनूर से बोला।
"मैम....ये तीनों एक दूसरे को जानते हैं। तीनों ही कत्ल से इंकार कर रहे हैं। पर मेरा शक बार बार मेघना पर ही जाता है।"
"हो सकता है। उसके नौकर भले ही उसके अच्छी औरत होने का प्रमाण दे रहे हों। पर उन्हें पैसों से खरीदा जा सकता है।"
"मैम एक बार इस मेघना की असलियत के बारे में फिर से पता करते हैं।"
"यही ठीक होगा। ऐसा करो कि मेघना, रॉबिन और अंकित तीनों को जाने दो। उसके बाद इन तीनों पर नज़र रखो। पर ध्यान रहे तीनों शहर छोड़ कर ना जा सकें।"
एसपी गुरुनूर कुछ रुकी। फिर उसने कहा।
"अब्राहम तुम रॉबिन पर नज़र रखो। गीता अंकित की निगरानी करेगी। मैं मेघना पर नज़र रखूँगी।"

एसपी गुरुनूर ने मेघना की हर गतिविधि पर बरीकी से नज़र रखना शुरू कर दिया था। कुछ दिनों तक तो मेघना घर से बाहर निकली ही नहीं। उसके बाद वह केवल ऑफिस ही जाती थी। कहीं और उसका आना जाना नहीं होता था।
मेघना के घर और ऑफिस के बाहर एसपी गुरुनूर ने सादी वर्दी में अपने दो कांस्टेबल लगा रखे थे। वह हर समय इस बात पर नज़र रखते थे कि मेघना के घर या दफ्तर में उससे मिलने कौन कौन आता है।
लखन कुमार मेघना के ऑफिस पर निगरानी रख रहा था। उसने एक बात पर ध्यान दिया था। इधर कुछ दिनों से एक वकील रोज़ दोपहर को मेघना से मिलने के लिए आ रहा था। उसने उस वकील के बारे में पता किया। उसका नाम सूरज सिंह था।
लखन ने सूरज सिंह की कुंडली पता लगानी शुरू कर दीं।
सूरज सिंह एक बहुत ही साधारण सा वकील था। यदि उसके पेशे की बात की जाए तो उसमें सूरज सिंह ने अब तक एक भी बड़ा केस नहीं लड़ा था। वह बस वकालत से संबंधित छोटे मोटे काम ही करता था। वकील के तौर पर उसकी कोई खास पहचान नहीं थी।
लेकिन एक साधारण वकील होते हुए भी उसके जीने का अंदाज़ अमीरों जैसा था। यह एक बड़ा सवाल था कि उसकी इस जीवनशैली के लिए उसके पास पैसा आता कहाँ से था।
सारी बात सुन कर एसपी गुरुनूर ने फैसला किया कि वह खुद इस सूरज सिंह का सच पता लगाएगी।
शहर के मंहगे पब से सूरज सिंह नशे में झूमता हुआ निकला। वह कार में बैठ कर अपने घर के लिए चल पड़ा। उसने बहुत अधिक शराब पी रखी थी। उसके लिए कार संभाल पाना कठिन हो रहा था।
अभी वह पब से महज़ पाँच सौ मीटर आगे आया होगा कि उसने अपनी कार एक मोटरसाइकिल वाले से टकरा दी। मोटरसाइकिल वाला गिर गया। उसे चोट भी लगी।
मोटरसाइकिल वाले ने सूरज सिंह को उतरने को कहा। सूरज सिंह भी तैश में कार से उतरा और अपनी गलती मानने की बजाय मोटरसाइकिल वाले पर बिगड़ने लगा। उसे धौंस देने लगा कि अगर वह अपनी पर आ गया तो उसकी हालत खराब कर देगा।
तभी सब इंस्पेक्टर गीता उस जगह पर पहुँची। साथ में कांस्टेबल लखन कुमार भी था। उसने इशारा कर बता दिया कि यह वही है।
"क्या बात है ?" किस बात पर झगड़ रहे हो दोनों।"
सब इंस्पेक्टर गीता ने कड़क आवाज़ में पूँछा। मोटरसाइकिल वाले ने उसे सारी बात बताई।
"मैडम....एक तो गलती की ऊपर से वकील होने का रुआब झाड़ रहा है।"
सब इंस्पेक्टर गीता सूरज सिंह की तरफ मुड़ी।
"क्या बात है ? आप वकील हैं। इस तरह से सड़क पर झगड़ा कर रहे हैं।"
सूरज सिंह पहले ही नशे में था। जो कुछ हुआ उसने उसके गुस्से को भड़का दिया था। वह उसी तरह तैश में बोला।
"मोटरसाइकिल चलाने की तमीज़ नहीं है। बड़ा आया....मुझे आँखें दिखा रहा है।"
सूरज सिंह के मुंह से शराब की गंध का एक भभका निकल कर सब इंस्पेक्टर गीता की नाक में घुसा।
"तुमने पी रखी है। वकील हो....पता नहीं है कि पी कर गाड़ी चलाना जुर्म है। चलो मेरे साथ...."
सूरज सिंह अभी भी उसी अकड़ में बोला।
"कहाँ चलूँ...."
"वकील हो....अब ये भी समझाना पड़ेगा।"

सूरज सिंह पुलिस स्टेशन में बैठा था। एसपी गुरुनूर उसके सामने थी।
"शराब पी कर गाड़ी चलाते हो। कानून का मज़ाक बना रखा है।"
"मैं हमेशा उतनी ही पीता हूँ जितने की इजाज़त है।"
"वो तो जाँच में सामने आ जाएगा।"
सूरज सिंह के खून में अल्कोहल की मात्रा बहुत अधिक थी। उसने शराब के नशे में कार चलाते हुए एक व्यक्ति को घायल भी किया था। अतः पेनाल्टी के साथ उसे सज़ा भी मिली।
एसपी गुरुनूर को पूरा यकीन था कि सूरज सिंह का शिव टंडन की हत्या में भी हाथ हो सकता है। अतः अपने अधिकारियों से इजाज़त लेकर वह इस केस के बारे में पूँछताछ करने के लिए सूरज सिंह से मिली।
एसपी गुरुनूर को देख कर सूरज सिंह ने कहा।
"आप यहाँ मुझसे मिलने क्यों आई हैं ? जो मैंने किया उसकी सज़ा तो मुझे मिल चुकी है।"
एसपी गुरुनूर ने उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठते हुए कहा।
"कुछ और बातें हैं जो जाननी हैं।"
सूरज सिंह ने खींस निपोरते हुए कहा।
"क्या बात है मैडम ? मुझमें बहुत दिलचस्पी दिखा रही हैं।"
एसपी गुरुनूर ने उसे घूर कर देखा। उसकी बात का जवाब दिए बिना बोली।
"आजकल तुम शिव सेल्स एंड सर्विस सेंटर में मेघना से मिलने रोज़ ही जाते थे। क्या कारण है ?"
"मैं वकील हूँ मैडम.... उनकी कुछ कानूनी उलझनें सुलझाने के लिए जाता था।"
"कैसी कानूनी उलझनें ?"
"मैडम शिव टंडन शहर के माने हुए रईस थे। उनकी इतनी बड़ी जायदाद में कुछ कानूनी पेंच तो होंगे ही।"
एसपी गुरुनूर कुछ देर तक उसके चेहरे को ताकती रही। फिर बोली।
"मिस्टर टंडन शहर के रईस लोगों में थे। उन्हें कानूनी सलाह देने के लिए उनके दोस्त मशहूर वकील सैयद उस्मान अली थे। फिर उन्हें छोड़ कर मेघना ने आपको यह तकलीफ क्यों दी।"
सूरज सिंह ने इस बार एकदम से कोई जवाब नहीं दिया।
"अब ये तो श्रीमती मेघना टंडन ही बता सकती हैं। वह मेरे पास आईं। मेरा तो पेशा ही वकालत है फिर मैं मना क्यों करता।"
"आपकी वकालत इतनी चलती तो है नहीं। मैंने नहीं सुना कि आपने कभी कोई बड़ा केस जीता हो।"
"फिर भी मुझे वकालत आती है। श्रीमती मेघना टंडन को मुझ पर यकीन था। इसलिए उन्होंने मेरी सेवाएं लीं।"
"कौन सी सेवा की आपने कि बदले में आपको बीस लाख रुपए मिले। आप उस स्तर के वकील तो नहीं हैं।"
खुद को मिली रकम के बारे में सुन कर सूरज सिंह परेशान हो गया। वह समझ गया कि एसपी गुरुनूर बहुत कुछ मालूम करके आई है।