अब तो तु ही है मनझील मेरी
और तु ही तो है सहारा मेरा....
तेरे सीवा अपना
ना कोइ था,ना कोइ है,
और अब तो ना ही कोइ रहेगा मेरा....
मेरी हर एक मुसीबत मे
सीर्फ तुने ही थामा और सीर्फ तु ही थामेगा हाथ मेरा....
क्युकी तु ही तो है कालो का काल
महाकाल मेरा....
श्रुष्टी के कल्याण हेतु हलाहल नामक विष पीया तुने
बस तेरे ही बनाये इन्सान के कल्याण हेतु वैरागी नामक विष पीया मैंने
हाथ जोडे नदमस्तक खडा है तेरे सामने यह दास तुम्हारा
अपनाले मुझे भोले
क्युकी मैं भी हु एक छोटासा अंष तुम्हारा....
शरीर और आत्मा के संग समग्र जिवन है तुझे समर्पीत मेरा
बसा लुं मेरे कोमल ह्यदय मे तुझे
चीख चीख कर केह रहा है यह वैरागी तेरा....
अब तो बनुगा सीर्फ और सीर्फ आप ही की तरहा
और गलती से भी कदम ना रखुगा सांसारीक जीवन मे दोबारा....
क्युकी साथ मीला है हमेसा मुझे सीर्फ और सीर्फ तेरा
ऐसा है डमरु वाला कालो का काल महाकाल मेरा....
तु ही तो है ब्रम्हा,वीष्नु और महेष
तु ही तो है यह जग सारा
हमेसा ध्यान मे लीन रहेता और दुर करता है तु दुःख मेरा....
जिवन की सारी आषाए और इच्छाए त्याग कर आज कह रहा है यह भक्त तेरा....
मेरे आज के,और आने वाले सभी जिवन मे तु ही एक रहेगा पालनहार मेरा...
संसार मे ओर कोइ नही है अब अपना मेरा
सीर्फ तु ही है कालो का काल महाकाल मेरा....
समाया है तुझे रक्त,आत्मा ओर शरीर मे मेरे
हर्षोल्लास से यह कह रहे है अब ह्यदय और मन मेरे...
हुइ हो अगर अज्ञानता मे कोइ गलती मेरी
तोह सहर्ष माफ करना यह ह्यदय से है तुझसे बीनती मेरी....
बेल की पत्तीया,भांग और धतुरा पसंद करता है मेरा नीलकंठ नीराला
करुणा से भरे ह्यदय वाला उज्जैन का राजा है मेरा भोला....
नही है उन्है कीसीका मोह,माया और कोइ लालसा
आंख बन्ध कर रहते है वह तो परमानंद की स्थीती मे सदा....
डमडमडम डमरु बजाता,नाचता भुतो की टोली मे सदा
सामील कर मुझे भी उस टोली मे तेरी,रहना है अब तो तोरी गोद सदा....
सुबह-साम दिन-रात भजता रहता हु सीर्फ नाम तेरा
शिव भक्त के नाम से अब जानने लगा है मुझे यह जग तेरा....
गंगा धारण करने वाले,तांडव न्रुत्य करने वाले नटराज है वो
अम्रीत को बांट कर वीष पीने वाले मेरे जटा धारी शिव है वो....
चंद्र शेखर,नील कंठ,कैलाष पती,त्रीलोचन है वो
सर्प है उनका कंठहार,पंच महाभुत के नाथ भुतनाथ है वो....
गौर वर्ण,शरीर पर भस्म, रुराक्ष है आभुषण उनका
सबसे अनोखा,मन मनोहर और सौन्दर्य से भरपुर स्वरुप है उनका....
सुंदरता की परीभाषा और आकर्षण की पराकाष्ठा है आराध्य तो मेरा
हे भोले सीर्फ तु ही तो है कालो का काल महाकाल मेरा....
गलती से अगर हो गया हो कोइ अपराध मेरा
तोह दंडीत करते समय थोडी दया और करुणा रखना मुझपे तुझसे हाथ जोडकर यह अनुरोध है मेरा....
मीटादे सारी तमस मेरी,भरदे मन और ह्यदय सत्व से मेरा
नीश्वार्थ भक्ती हमेशा करता रहु तेरी आषिर्वाद यह मुझपे बनाए रख तेरा....
आंख बंध तो शिव,आंख खुले तो शंकर और क्रोध आए तो रुद्र स्वरुप है तेरा
मेरी तो रग रग मे समाया हुआ,इस जिवन का तो सीर्फ तु ही है आधार मेरा....
काल-कुट तु ही,विष और अम्रीत भी तु ही
भुतो का नाथ तु ही,देवो का देव भी तु ही
मेरा मन और ह्यदय तु ही,मेरी आत्मा और शरीर भी तु ही
सब कुछ है अब तुझे समर्पीत मेरा
सीर्फ और सीर्फ तु ही है कालो का काल महाकाल मेरा....
-मीत श्रीमाली
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