इस प्रस्तुति में मैंने अपनी तीन कवसम्मिलित किया है . ये तीनों कवितायेँ मुख्यतः व्ययंग धारा की हैं . पहली कविता इस बात को दृष्टि गोचित करती है कि अख़बार जिस तरह के व्यक्तियों के बारे में खबर छापते हैं , वो अनुकरणीय नहीं होते , बल्कि चर्चा के कारण हो सकते हैं . इसी तरीके से बाकि दो कविताएँ आम जनता की धर्म के बारे में छद्म मानसिकता को दृष्टिगोचित करती है .
(१)
क्या खबर भी छप सकती है
क्या खबर भी छप सकती है,
फिर तेरे अखबार में,
काम एक है, नाम अलग बस,
बदलाहट किरदार में।
अति विशाल हैं वाहन जिसके ,
रहते राज निवासों में ,
मृदु काया सुंदर आनन पर ,
आकर्षित लिबासों में ।
ऐसों को सुन कर भी क्या ,
ना सुंदरता विचार में ,
काम एक है, नाम अलग बस,
बदलाहट किरदार में।
रोज रोज का धर्मं युद्ध ,
मंदिर मस्जिद की भीषण चर्चा ,
वोही भिन्डी से परेशानी ,
वोही प्याज का बढ़ता खर्चा।
जंग छिड़ी जो महंगाई से ,
अब तक है व्यवहार में ,
काम एक है, नाम अलग बस,
बदलाहट किरदार में।
कुछ की बात बड़ी अच्छी ,
बेशक पर इनपे चलते क्या ,
माना की उपदेश बड़े हैं ,
पर कहते जो करते क्या ?
इनको सुनकर प्राप्त हमें क्या,
ना परिवर्तन आचार में,
काम एक है, नाम अलग बस,
बदलाहट किरदार में।
सम सामयिक होना भी एक,
व्यक्ति को आवश्यक है ,
पर जिस ज्ञान से उन्नति हो,
बौद्धिक मात्र निरर्थक है ।
नित अध्ययन रत होकर भी,
है अवनति संस्कार में ,
काम एक है, नाम अलग बस,
बदलाहट किरदार में।
क्या खबर भी छप सकती है,
फिर तेरे अखबार में,
काम एक है, नाम अलग बस,
बदलाहट किरदार में।
अजय अमिताभ सुमन
सर्वाधिकार सुरक्षित
(2)
अखबार में तो हैं
अच्छे हैं, बुरे हैं,
रफ्तार में तो हैं,
नेताजी साहब,
सरकार में तो हैं।
सुखी सी आँतें थी,
भूखी आवाम की,
सपने दिखाते थे,
गेहूँ की धान की।
कहते थे बिजली,
मुझे भी सताती है,
पानी है महँगी,
गले तक न आती है।
बनाओगे नेता ,
ना डॉक्टर भगाएगा,
भीखू का बेटा,
इंजिनीयर हो जाएगा।
पर बनते हीं नेता ,
भुलाते हैं वादे,
घोटालों में फँसते,
हैं बातें बनाते ।
मन्दिर का किस्सा ,
पुराना उठाते हैं,
फिर आते चुनावों के,
ऐसे रिझाते हैं।
भूखी थी आँते जो ,
फेकन किसान की,
नेताजी खाना
खिलाते प्रभु राम की।
फिर मंदिर के चर्चे ,
अखबार में तो है,
नेता जी साहब ,
सरकार में तो हैं।
अच्छे हैं, बुरे हैं,
रफ्तार में तो हैं,
नेताजी साहब,
सरकार में तो हैं।
अजय अमिताभ सुमन
सर्वाधिकार सुरक्षित
(3 )
धर्म निरपेक्ष
क से काली नहीं, कौआ ,
प से पार्वती नहीं,पाड़ा।
भ से भोलेनाथ नहीं भैंस,
और ग से गणेश नहीं गिद्ध।
काली का क उतना ही है,
जितना की कौए का।
पार्वती का प उतना ही है
जितना की पाड़े का।
फिर भ से भोलेनाथ क्यों नहीं?
और क्यों नहीं ग से गणेश?
क्योंकि, कौए, पाड़े, भैंस और गिद्ध,
किसी एक धर्म के नहीं,
बल्कि सारे धर्मों के हैं ,
धर्म निरपेक्ष।
अजय अमिताभ सुमन
सर्वाधिकार सुरक्षित