Chudel ka Intkaat - 2 in Hindi Horror Stories by Devendra Prasad books and stories PDF | चुड़ैल का इंतकाम - भाग - 2

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चुड़ैल का इंतकाम - भाग - 2


वह जैसे जैसे आगे बढ़ रही थी एक विशेष किस्म की तीव्र खुश्बू भी बढ़ती जा रही थीं अगले चन्द सेकण्ड्स में अब वह उसके सामने थी। उसकी मौजूदगी का एहसास वह मनमोहक मादकता भरी सुगंध करवा रही थी। इस से पहले इतनी अच्छी खुश्बू उसने अपनी ज़िंदगी मे कभी नहीं सूंघी थी। इस खुश्बू को जैसे जैसे वह सूंघता जा रहा था खुद पर से नियंत्रण खोता चला जा रहा था।मानो जैसे यह खुश्बू उस पर कोई जादू कर रही हो।



अगले पल जयन्त की नजर उस काले साये पर पड़ी तो वह यह देखकर प्रफुल्लित हो जाता है कि एक साढ़े पांच फीट की कोई औरत काली साड़ी में उसके सामने खड़ी है। उसने अपना मुख घूँघट के अंदर छिपा रखा था। उसके पेट का काफी बड़ा हिस्सा ढके न होने की वजह से उसकी नाभि का उभार जयन्त साफ साफ देख पा रहा था। जयन्त नजरे उसकी नाभि पर ही अटक गई थी, जैसे रावण की शक्तियां उसकी नाभि में ही निहित थी ठीक उसी प्रकार जयन्त उसके नाभि के वजूद का एहसास हो रहा था।
बहरहाल उसने खामोसी को तोड़ते हुए जयन्त से ही प्रश्न किया?


"यहां इतनी रात को क्या कर रहे हो?"
उसकी यह बात सुनते ही जयन्त बोल पड़ा-"त...त...तुम्हे इस से क्या मतलब?
यह सुनते उस औरत ने बड़े प्यार से इस बार कहा-"इतनी रात को तुम्हे इस जगह डर नहीं लगता?"
यह सुनते ही इस बार जयन्त सकपका गया और थोड़ा ऊंचे स्वर में बोला-मेरी छोड़ो पहले यह बताओ कि तुम यहां आधी रात को अकेले इस सुनसान जगह पर क्या कर रही हो?"


यह सुनते ही उसने चालाकी भरी जवाब दिया और बोली-"अब मैं अकेली कहाँ हूँ तुम भी तो साथ हो?"
यह कहकर वो खिलखिलाकर हंस पड़ी। उसके इस हंसी के साथ जयन्त भी कुछ सामान्य स्थिति में हो गया। जब उसकी हंसी रुकी तो वो बोली-"मैं तो अक्सर यहां आती रहती हूं लेकिन तुम्हे पहली बार देखा है।"


जयन्त ने भी उसकी इस हमदर्दी को देखते हुए अपनी सारी कहानी बता दी जिसके सुनने के बाद हो हंस के बोल पड़ी-"बाबू! होनी को कोई नहीं टाल सकता। जो होना है वो तो हो कर रहेगा ही। इसे ना तुम बदल सकते ही और ना ही...!"यह कहते ही वो एकदम से चुप हो गई।


जयन्त ने भी उसे कुछ नहीं कहा। थोड़ी देर खामोशी छाई रहती है। तभी जयन्त के दिमाग मे एक सवाल घर कर जाता है और वो मन ही मन बुदबुदाता है-


"कहीं ये चुड़ैल तो नहीं? भला इतनी रात को कौन अकेली औरत खेत मे भटकती है। नहीं नहीं यह चुड़ैल नहीं हो सकती। यदि ऐसा होता तो इस से इतनी मनमोहक खुश्बू कैसे आती। मैंने तो सुना है कि चुड़ैल के जिस्म से सडीली दुर्गंध आती है और वह इतनी व्याहारिक भी नहीं होतीं। ल...ल...,लेकिन यदि यह सच मे चुड़ैल ही हुई तो? अभी पता लग जायेगा यदि इसकी दोनों टांगे उल्टी हुई यो निश्चित रूप से यह चुड़ैल ही होगी।"


अब जयन्त ध्यान से उस औरत के पाँव के तरफ देखे तो अपने किस्मत को कोसने लगा क्योंकि एक तो यह घनघोर अंधेरा और ऊपर से काले रंग की साड़ी जिसकी वजह से उसके पांव बिल्कुल ही ढका हुआ था जिसकी वजह से वो बिल्कुल अंदाजा नहीं लगा पाया।


जयन्त को उसके चुड़ैल होने के अभी तक कोई पुख्ता सबूत नहीं मिले थे लेकिन वह एक आम महिला है यह उसका दिल मानने को भी कतई राजी नहीं था। बहरहाल उसने भी उसे एक साधारण महिला ही मान लिया।


जयन्त ने चुप्पी तोड़ते हुए उस से कहा-"हां बिल्कुल सही कहा तुमने लेकिन इतनी रात गए इधर क्या कर रही हो? पता है न यह इलाका बाहुबलियों का है और ऐसे जगह पर इतनी रात को किसी ख़तरे को निमंत्रण देने जैसा ही है।"


"अगर मेरी मदद ही करना चाहते हो तो यहां से तकरीबन 3 किलोमीटर पर मेरा गांव है वहां मुझे छोड़ दो।"
"बेशक मैं छोड़ दूंगा मुझे कोई दिक्कत नहीं है लेकिन क्या नाम है आपके गांव का?"


"जी आगे जो वरुणा नदी पड़ती है उसे पार करने के बाद लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर भरहेता नामक गाँव के पास छोड़ देना।"
"ठीक है यह तो मेरे गाँव जाने के रास्ते मे ही पड़ता है। आ जाओ बाइक के पीछे आराम से बैठ जाओ।"


यह कहते जयन्त ने अपनी मोटरसाइकिल के पीछे उसे बैठा लेता है। वह औरत जयन्त से लगभग चिपक कर बैठ जाती है। उसके इस कदर बैठने से जयन्त के शरीर मे झुरझुरी सी दौड़ पड़ती है।उसकी जिंदगी में ऐसा मौका पहली बार मिला था कि कोई इतनी जवान और हसीन औरत उसके इतनी करीब आई हो।


"तो क्या नाम बताया था आपने?"
"जी मेरा नाम जयन्त बलूच है और आपका?"
"मेरा नाम जानकर क्या करोगे बाबू?"
"अच्छा चलो कोई बात नहीं अगर नहीं बताना चाहती तो मैं तुम्हे फ़ोर्स नहीं करूंगा।"


"नहीं बाबू वह बात नहीं है। हम जैसे गरीब को पूछता ही कौन है?"
"यह कैसी बाते कर रही हो। मैं भी तो एक गरीब किसान का ही बेटा हूँ, लेकिन किसी के सामने हाथ फैलाने की जगह दोनों हाथ से मेहनत करते हैं और खाते हैं।"


"नहीं बाबू मेरा वह मतलब नहीं था, खैर छोड़िए इन बातों को यह बताइये कि आपकी शादी हो गयी है क्या?"
"नही अभी तो नहीं हुई लेकिन उम्मीद है जल्द आप जैसी कोई खूबसूरत लड़की मिल गयी तो ज़रूर कर लूंगा।"
"आपने मेरे चहेरा देख लिया क्या?"यह कहते के साथ वह औरत जयन्त के जिस्म से काफी चिपक जाती है।


"नहीं देखी तो नहीं है लेकिन मैं जानता हूँ आप बेहद सुंदर ही होंगी बिल्कुल अपनी खूबसूरत आवाज की तरह।"
"तो आपको नहीं लगता कि इस खूबसूरत चेहरे का दीदार कर ही लेना चाहिए आपको।"


"यह तो मेरी मन की बात कह दी आपने। मैं तो कब से आपके चेहरे को देखने को बेताब था, लेकिन कहने से डर रहा था कि पता नहीं आप क्या समझो।"


"तो जनाब पीछे पलटो ना?"इस बार उसने बड़ी ही मादकता भरी आवाज में कहा था।जयन्त का ईस वक़्त पूरा ध्यान बाइक चलाने पर था वह चाह कर भी उसका चेहरा नहीं देख पा रहा था क्योकि उसने बाइक के साइड मिरर पिछले हफ्ते ही हटा दिए थे और रास्ते टूटी फूटी होने की वजह से उसका ध्यान सड़क पर सामने था।


अगले ही पल वह औरत जयन्त के कमर पर हाथ आगे की तरफ बढ़ाते हुए उसे प्यार से जकड़ लेती है और बोलती है-"अब तो पीछे पलट कर देख लो मेरी जान!"


अचानक इस बदलाव से जयन्त का बदन थरथरा उठा। उसने सोचा कि अब इसे अचानक क्या हो गया है? यह क्यों बार-बार मुझे अपने चेहरे को दिखाने के पीछे पड़ गई है।
अभी जयन्त इन्ही सब सोचने में खोया था कि वरुणा नदी का पूल आ गया और वह औरत जयन्त के गले पर पीछे से चुम्बन करती हुई उसके कानों को अपने हल्के से दांतों से प्यार से काटते हुए बोलती है-


"अब तो मेरी आखिरी मंजिल भी आ गयी है बाबू पलट जाओ न। एक दफा देख तो लो। क्या पता तुम्हारी तलाश मुझे देखने के बाद खत्म हो जाए हमेशा के लिए।"


इधर जयन्त के दिमाग मे कुछ और ही चल रहा था। उसके यह बात समझ मे आ गई थी कि वह औरत ज़रूर कुछ गलत करना चाहती है जिसकी वजह से वह उसकी जगह रास्ते पर अपना ध्यान केंद्रित करता हुआ चल रहा था। जब उस से नहीं रहा गया तो वो बोल पड़ा-


"अरे! इस कद्र परेशान मत करो। देखो वरुणा नदी को पार करते ही जैसे ही मैं तुम्हारे गांव छोडूंगा तो उतरने के बाद मुझे अपना चेहरा दिखा देना क्योकि गाड़ी चलाते हुए तुम्हारे चेहरे को देखना मेरे लिए असम्भव है और दुर्घटना होने के संभावनाएं ज्यादा है।"
जयन्त की यह बात सुनते ही वह इस बार चीख कर बोली-"ऐ लड़के! मैं कहती हूँ कि पीछे पलट नहीं तो सही नहीं होगा।"


यह सुनते जयन्त सकपका कर रहा जाता है कि जो अभी औरत प्यार की अठखेलियाँ कर रही थी अचानक ऐसा क्या बदलाव आ गया जो अपनी ज़िद्द पूरी करने के लिए लगभग पागल सी होती जा रही है। अभी जयन्त यह सोच ही रह था कि फिर उस औरत की बहुत तेज चीखने की आवाज आई-"तू देख नहीं तो मैं तेरी इस गाड़ी से कूद कर तुझे भी गिरा दूंगी। तू समझता क्यों नहीं। बस एक बार पलट के देख ले मुझे। तुझे पलटना ही होगा समझे।"


अचानक हुए इस बर्ताव से जयन्त सकते में आ गया था। अचानक उसे अपने दादा की कही हुई बात याद आ गई-

"उसके दादा ने बताया था कि एक बार ठिठुरन भरी ठंड में किसी गाँव से अपने गांव आ रहे थे। घर जल्दी पहुंचने के चक्कर से उन्होंने खेत के रास्ते से शॉर्टकट जाने की सोची। उस वक़्त उनके हाथ मे घड़ी तो नहीं थी लेकिन यह घटना मध्यरात्रि से पहले की है।


उन्हें अचानक ऐसा एहसास हुआ था कि उनके पीछे पीछे कोई चला आ रहा है। फिर अहले ही पल उन्हें एहसास हो गया कि कोई उनके पीछे पीछे चलते इतने करीब आ गई कि अचानक उनसे कहा-"कहाँ जा रहे हो मुसाफिर?"


यह सुनने के बाद भी जयन्त के दादा ने कोई जवाब नहीं दिया।फिर अगली आवाज आई-"मुसाफिर नाराज हो क्या?"
यह सुनने के बाद भी जब जयन्त के दादा ने कुछ न कहा तो उस अजनबी आवाज ने उसके दादा के बिल्कुल करीब आ कर उनके कंधे पर हाथ रखकर बोला-


"अरे तनिक सुस्ताई लो बुढऊ? इतनी जल्दी कहाँ है जाने की?"
काफी देर से जयन्त के दादा शांत थे लेकिन उन्होंने देखा कि वह अजनबी साया उसका साथ छोड़ने को ही तैयार नहीं तो वह खीझकर बोले-"देख तेरी कोई भी युक्ति काम मे नहीं आने वाली। तू लाख यत्न कर ले मैं पीछे पलट कर नहीं देखने वाला। अगर तुझमे हिम्मत है तो सामने आ कर बात कर।"


उनके ऐसा कहते ही वह साया वहां से गायब हो गई और पूरे रास्ते उन्हें किसी ने फिर परेशान नहीं किया। वह इस बात को भलीभाँति जानते थे कि पीछे पलटकर देखने पर इस तरह की नकरात्मक शक्तियां उनके साथ घर आ जाती या वहां पलटते ही उनका अनिष्ट कर सकती थी।


यह बात उन्होंने अपने पोते को बताया था जिसे जयन्त अच्छी तरह गांठ बांध लिया था कि कुछ भी हो जाए ऐसे मौके पर पीछे पलटकर भूल से भी नहीं देखनी चाहिए।
जयन्त अब यह भलीभाँति जान चुका था कि यदि उसने पीछे पलटकर नहीं देखा तो वह बुरी शक्तियां उसका बाल भी बांका नहीं कर सकती।


जयन्त इन्ही विचारों में खोया था कि उसने देखा कि उस औरत का गांव आ गया है। उसने उस औरत को आवाज दी तो कोई जवाब नहीं आया। उसे एहसास हुआ कि ज़रूर कुछ दाल में काला है। जैसे ही वो पलटकर देखता है तो स्तब्ध रह जाता है। पीछे कोई भी मौजूद नहीं था। उसने आजू बाजू अपने सिर को घुमा कर देखा लेकिन जहां जहां तक उसकी नजरें गईं वहां तक सिवाय सन्नाटे के कुछ भी हासिल न हुआ।
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क्रमश..........


इस कहानी का अगला भाग बहुत ही जल्द।

यह कहानी आप सभी को किसी लग रही है? मुझे मेरे व्हाट्सएप्प पर 9759710666 पर ज़रूर msg कर के बताएं।