*अफ़वाह,भय और आक्रामकता*
इन दिनों मॉब लिचिंग की चर्चा है भीड़ द्वारा हिंसा । यह बहुत भयावह है कि किसी अजनबी पर सन्देह हो जाय और उसे भीड़ के द्वारा पीट पीट कर मार दिया जाय । सिर्फ इसलिए कि वो बच्चा चोर होगा । कुछ दुष्ट लोग हैं भी, जो बच्चों को अगुआ कर बेच देते हैं, पर यह होता बहुत कम है, इसके चर्चे ज्यादा हैं, जिसके कारण भीड़ को हर अजनबी संदिग्ध लगता है और वो उस पर टूट पड़ती है । अभी हाल ही में इस आग में एक भोला भाला इंजीनियर झुलस गया ,जब उसने केवल प्यार से बच्चो को टॉफी देना चाहा था और उसे भीड़ ने कुचल दिया । सवाल उठता है कि क्या भीड़ में विवेक बिल्कुल नही होता ?क्या उस उन्माद में किसी का भी विवेक साथ नही दे रहा था कि वो इसकी तसदीक कर लेते ? आज संचार के साधन इतने ज्यादा हैं कि किसी के भी बारे में पूरी जानकारी पल भर में जुटाई जा सकती है । पुलिस है ,कानून है,और इस देश का कोई भी इलाका बियाबान जंगल और अलग थलग पड़ा गाँव नही है । फिर ये उन्माद और क्रोध इतना हिंसक क्यो हो जाता है । सिर्फ इसलिए कि इसे आग देने का काम करता है यह हथेली में उग आया मोबाइल का एक सेट , जिसमे चाहे जो लिख डालो, चाहे जिसकी बुद्धि में जहर घोल दो,उसे इतना डरा दो कि उसे किसी पर विश्वास न रह जाय । डर की तो प्रव्रित्ति ही है कि वो अविश्वास और क्रोध के साथ रहता है । किसी व्यक्ति पर हावी हो जाय या किसी भीड़ पर हावी हो जाय तो वो हिंसक और आक्रामक हो जाता है। और इसे हवा देने का काम करते हैं कुछ विघ्नसंतोषी लोग , जिन्हें आग लगाने में ही एक तरह का सुकून मिलता है ।
आखिर किसने ये पोस्ट किया होगा कि गांव में बच्चा चुराने वाले घूमते हैं, यह कोई नही जानता पर उस भय को पैदा करने के कारण भीड़ एक निर्दोष को पीट पीट कर मार डालती है । भगवान न करे कभी आपको किसी दुर्घटना का सामना करना पड़े ,आप अचानक बिछुड़ जायँ और किसी अजनबी गाँव मे आपको जाना पड़ जाय और आपकी खस्ता हालत पर लोगो को सन्देह हो जाय तब तो आपकी जान के लाले पड़ जाएंगे। दुर्भाग्य की बात है कि हम लोगों में सन्देह पैदा करते है, पर विश्वास नहीं । और हमारे मन की आदत है कि वो गलत और नकारत्मकता की तरफ पहले भरोसा करता है। उसे इस तरफ मोड़ने का काम अफवाहें करती हैं। हमारे हाथ मे रखा यह कमाल का यंत्र जो हमारी उंगलियों से शब्द गढ़ता है, जो आग लगाने और झुलसाने का काम करता है, जो दूसरों में डर पैदा कर देता है,उसे इस पाप से बचना होगा। जिसने भी इन बातों को फैलाया वो भी गुनाहगार है और जो भी ऐसा करते हैं वे सब उस गुनाहगार भीड़ में शामिल है। यदि ऐसी अफवाहों के जनक वे हैं तो एक न एक दिन वे भी भीड़ के गुस्से की आग से झुलस सकते हैं । क्या यह हम सबकी आत्मग्लानि का विषय नही कि हम ही एक ,दो,चार करके भीड़ बनते हैं ,हम ही डर और अविश्वास पैदा करते हैं । एक बात हम सबको समझना होगा कि अफवाह,भय और उससे उपजी आक्रामकता कभी किसी के लिए सही नही हो सकती ।