Wife Worship in Hindi Poems by Ajay Amitabh Suman books and stories PDF | पत्नी महिमा

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पत्नी महिमा

(१)

पत्नी महिमा

लाख टके की बात है भाई,
सुन ले काका,सुन ले ताई।
बाप बड़ा ना बड़ी है माई,
सबसे होती बड़ी लुगाई।


जो बीबी के चरण दबाए ,
भुत पिशाच निकट ना आवे।
रहत निरंतर पत्नी तीरे,
घटत पीड़ हरहिं सब धीरे।


जो नित उठकर शीश झुकावै,
तब जाकर घर में सुख पावै।
रंक,राजा हो धनी या भिखारी,
महिला हीं नर पर है भारी।


जेवर के जो ये हैं दुकान ,
गृहलक्ष्मी के बसते प्राण।
ज्यों धनलक्ष्मी धन बिलवावे,
ह्रदय शुष्क को ठंडक आवे।


सुन नर बात गाँठ तू धरहूँ ,
सास ससुर की सेवा करहूँ।
निज आवे घर साला साली ,
तब बीबी के मुख हो लाली।


साले साली की महिमा ऐसी,
मरू में हरे सरोवर जैसी ।
घर पे होते जो मेहमान ,
नित मिलते मेवा पकवान ।


जबहीं बीबी मुंह फुलावत ,
तबहीं घर में विपदा आवत।
जाके चूड़ी कँगन लावों ,
राहू केतु को दूर भगावो।


मुख से जब वो वाण चलाये,
और कोई न सूझे उपाय ।
दे दो सूट और दो साड़ी ,
तब टलती वो आफत भारी।


कहत कवि बात ये सुन लो ,
बीबी की सेवा मन गुन लो।
भौजाई से बात ना कीन्हों ,
परनारी पर नजर ना दीन्हों।


इस कविता को जो नित गाए,
सकल मनोरथ सिद्ध हो जाए।
मृदु मुख कटु भाषी का गुलाम ,
कवि जोरू का करता नित गान।


अजय अमिताभ सुमन:
सर्वाधिकार सुरक्षित

(२)

चलोगे क्या फरीदाबाद?

रिक्शेवाले से लाला पूछा,
चलते क्या फरीदाबाद ?
उसने कहा झट से उठकर,
हाँ तैयार हूँ ओ उस्ताद.

मैं तैयार हूँ ओ उस्ताद कि,
क्या सामान तुम लाए साथ?
तोंद उठाकर लाला बोला,
आया तो मैं खाली हाथ .

आया मैं तो खाली हाथ,
कि साथ मेरे घरवाली है .
और देख ले पीछे भैया,
थोड़ी मोटी साली है .

मोटी वो मेरी साली कि,
लोगे क्या तुम किराया ?
देख के हाथी लाला,लाली,
रिक्शा भी चकराया.

रिक्शावाला बोला पहले,
देखूँ अपनी ताकत .
दुबला पतला चिरकूट मैं,
और तुम तीनों हीं आफत .

और तुम तीनों आफत,
पहले बैठो तो रिक्शे पर,
जोर लगा के देखूं क्या ,
रिक्शा चल पाता तेरे घर ?

चल पाता है रिक्शा घर क्या ,
जब उसने जोर लगाया .
कमर टूनटूनी वजनी थी,
रिक्शा चर चर चर्राया .

रिक्शा चर मर चर्राया,
कि रोड ओमपुरी गाल.
डगमग डगमग रिक्शा डोला,
बोला साहब उतरो फ़िलहाल.

हुआ बहुत ही हाल बुरा ,
लाला ने जोश जगाया .
ठम ठोक ठेल के मानव ने,
परबत को भी झुठलाया .

परबत भी को झुठलाया कि,
क्या लोगे पैसा बोलो ?
गश खाके बोला रिक्शा,
दे दो दस रूपये किलो .

दे दो दस रूपये किलो,
लाला बोला क्या मैं सब्जी?
मैं तो एक इंसान हूँ भाई,
साली और मेरी बीबी .
साली और मेरी बीबी फिर,
बोला वो रिक्शेवाला .
ये तोंद नहीं मशीन है भैया,
सबकुछ रखने वाला .

सबकुछ रखने भाई,
आलू और टमाटर,
कहाँ लिए डकार अभीतक,
कटहल मुर्गे खाकर .

कटहल मुर्गे खाकर कि,
लोगों का अजब किराया .
शेखचिल्ली के रूपये दस,
और हाथी का भी दस भाड़ा?

अँधेरी है नगरी भैया,
और चौपट सरकार.
एक तराजू हाथी चीलर,
कैसा ये है करार?

एक आंख से देखे तौले,
सबको अजब बीमार है .
इसी पोलिसी से अबतक,
मेरा रिक्शा लाचार है .


अजय अमिताभ सुमन
सर्वाधिकार सुरक्षित