GHARONDA in Hindi Classic Stories by TEJ VEER SINGH books and stories PDF | घरोंदा - कहानी -

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घरोंदा - कहानी -

#MORAL STORIES

घरोंदा - कहानी -

"रवि, आज तीन तारीख हो गयी। तुम माँ को लेने नहीं आये? महीना खत्म हुए तीन दिन ऊपर हो गये।तुम हर बार ऐसे ही करते हो|"

"भाई साहब, मैं अभी सरकारी काम से दिल्ली में हूँ। दो तीन दिन और लगेंगे।"

"मुझे मालूम है कि तुम बहुत बड़े राजपत्रित अधिकारी हो। लेकिन मुझे इस का रौब दिखाने की जरूरत नहीं है। मैं भी सरकारी अधिकारी हूँ।"

"अरे भैया, मैंने तो ऐसा कुछ कहा भी नहीं। मैं आते ही तुरंत माँ को ले जाऊंगा।"

"हम दोनों आज रात कुंभ स्नान के लिये जा रहे हैं। माँ की व्यवस्था आज ही करनी होगी।"

"यह तो बड़ी खुशी की बात है। आप अम्मा को भी ले जाइये। उनकी भी इच्छा थी। खर्चा मैं दे दूंगा।"

"हम लोग तो गजेंद्र जी की गाड़ी से जा रहे हैं। उसमें दो लोगों की ही जगह है।"

"तो फिर अम्मा को आप ही छोड़ दीजिये मेरे घर पर।"

"मेरे पास तुम्हारी तरह कोई सरकारी गाड़ी तो है नहीं और स्कूटर पर अम्मा बैठ नहीं पाती।"

"भाई साहब औटो से भेज दो। पैसे मुझसे ले लेना।"

"मैं तुम्हारी राजनीति खूब समझता हूँ। दीवाली पर अम्मा के लिये जो कपड़े खरीदे थे। उसका आधा पैसा अभी तक नहीं दिया।"

"कैसी बातें करते हो आप? मैंने अम्मा के हाथ चैक भेजा था जिसे आपने लौटा दिया।"

"नगद क्यों नहीं भेजे।अब चैक लिये बैंक के चक्कर लगाते फिरो।"

"भाई साहब, नगद का कौन रिकार्ड रखेगा?"

"ओहो, तो तुमको अपने बड़े भाई पर भी भरोसा नहीं है।"

"भैया, बात भरोसे की नहीं है। उसूल की है।"

"तुम्हारे सारे उसूलों के किस्से अखबारों में पढ़ता रहता हूँ।"

"भाई साहब, अब आप हद पार कर रहे हो।"

"अच्छा तो अब तुम मुझे मेरी हद बताओगे।"

दीपक गुप्ता के मोबाइल का स्पीकर खुला होने से लक्ष्मी देवी अपने दोनों बेटों के वार्तालाप को सुनकर माथा पकड़ कर बैठ गयीं और अतीत में खो गयीं।

उनके पति सुधीर जी रसद विभाग में अधीक्षक थे। वेतन के अलावा ऊपरी कमाई भी खूब थी।

रिटायरमेंट वाली साल उन्होंने लक्ष्मी जी से कहा था कि,

"देख लच्छो, तेरे दोनों बेटों को पढ़ा लिखाकर सरकारी अफ़सर बना दिया। दोनों के लिये अलग अलग मकान बनवा दिये। तेरे लिये यह दो मंजिला लक्ष्मी निवास है। ऊपर तू रहना और नीचे का हिस्सा किराये पर दे देना। मेरे पीछे तुझे किसी के आगे हाथ नहीं फ़ैलाने पड़ेंगे।"

लक्ष्मी जी ने उनको टोका,"तुम कहाँ जा रहे हो? तुम नहीं रहोगे क्या मेरे साथ?"

"देख लच्छो,मुझे तपैदिक है। मेरा कोई भरोसा नहीं।"

और वे सचमुच रिटायरमेंट से पहले ही चल बसे।

सुधीर जी के स्वर्गवास के बाद उनके दोनों बेटों ने अपनी शतरंजी चालें शुरू कर दीं।

सबसे पहले तो लक्ष्मी देवी को बहला फ़ुसला कर लक्ष्मी निवास से उन्हें अपने साथ ले गये।

तय हुआ कि दोनों भाई एक एक महीने माँ को रखेंगे। शेष खर्चे भी आधे आधे भुगतने होंगे।

धीरे धीरे माँ को झूठ बोल कर लक्ष्मी निवास की पावर आफ़ अथोरिटी बनवा कर उसका विक्रय कर दिया और दोनों भाइयों ने आधा आधा पैसा बाँट लिया।

लक्ष्मी देवी दोनों भाईयों की इस बहस से ऊब कर, बिना किसी को कुछ बताये, अपने धूर्त बेटों की करतूतों से अनजान, अपने जीवन के सुनहरे दिनों की यादों को ताज़ा करने के उद्देश्य से, अपने पड़ोसी से कुछ रुपये उधार लेकर लक्ष्मी निवास जाने के लिये निकल पड़ी। उन्हें याद था कि उस मकान में सुधीर जी की माला चढ़ी हुई तस्वीर लगी थी।वे सोचती जा रही थीं कि उनकी तस्वीर से ही पूछूंगी कि आपने जो पैसा कमाया था उसमें किसकी हाय शामिल थी जो आज यह दिन देखने पड़ रहे हैं। यही सोचते सोचते वे लक्ष्मी निवास पहुंच गयीं।

वहाँ पहुंचने पर जो कुछ उनको देखने और सुनने को मिला, वह उनके लिये अविश्वसनीय था| क्योंकि उनके पास अपने पति की एक ही तो निशानी थी जिसमें उन दोनों की बेशुमार यादें जुड़ी हुई थीं उसे भी उनके बेटों ने बिना उनसे पूछे बारह बाँट कर दिया था।

वे उस सदमे को झेल नहीं सकीं।

और उन्होंने लक्ष्मी निवास से सदैव के लिये नाता तोड़कर लक्ष्मी निवास की चौखट पर ही दम तोड़ दिया| तथा सदैव के लिये सुधीर जी के पास चली गयीं।

मौलिक, अप्रकाशित एवम अप्रसारित