post men in Hindi Comedy stories by Yashvant Kothari books and stories PDF | मेरे पोस्टमैन

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मेरे पोस्टमैन

मेरे पोस्टमैन

यश वन्त कोठारी

आज मैं पोस्टमैनों की चर्चा करना चाहता हूं। कारण स्पष्ट है कि बिना पोस्टमैन के लेखक का जीवन अधूरा है। सच पूछा जाये तो पोस्टमैन ही लेखक का सच्चा मित्र होता है। लेख सम्पादक तक पहुंचाने तथा चैक या धनादेष को लेखक तक पहुंचाने में सबसे महत्वपूर्ण कड़ी पोस्टमैन ही है। आज ई मेल और कूरियर के जमाने में भी पोस्टमैन का महत्व कम नहीं हुआ है। अपने इस जीवन में तरह-तरह के पोस्टमैनों से काम पड़ा है। कुछ पोस्टमैन निहायत ईमानदार, कर्तव्यपरायण और कुछ बिलकुल विपरीत। कुछ सीधे, सरल, सज्जन और कुछ विपरीत। कुछ समयबद्ध आते, उन्हें देखकर घड़ी मिलाने की इच्छा होती और कुछ बिल्कुल विपरीत। पोस्टमैनों की चर्चा करते-करते उनके विचारों पर भी चर्चा करना चाहता हूं। एक पोस्टमैन की याद आती है जो पूरे गांव में अकेला डाक बांटता, डाक को शहर तक लाता ले जाता और वेतन बहुत कम पाता। मगर कर्तव्यपरायण इतना कि बस, कुछ मत पूछिए। एक पोस्टमैन राजेष खन्ना की तरह जब आता, एक हीरो की तरह। एक पोस्टमैन काबिना मंत्री की तरह सरकार बनाने और बिगाड़ने के लिए चिट्ठी को लाता है और ले जाता है । प्राचीन समय में डाक कबूतर या हरकारे लाते थे। आज कल डाक लाने, ले जाने के नये-नये उपकरण बन गये हैं, मगर जो मजा पोस्टमैन के आने से मिलता है वो किसी अन्य में नहीं।

उदयपुर के एक पोस्टमैन की चर्चा जरूरी है । मेरी कोई रचना छपते ही वह सर्वप्रथम पत्रिका को खोल कर स्वयं पढ़ता, फिर उस पर अपनी समीक्षात्मक टिप्पणी देता ओर बाद में पत्रिका मुझे पढ़ने को देता। एक अन्य पोस्टमैन महाराज ऐसे कि सभी स्थानों पर पत्र देने के बाद मेरे यहां आते, आज के राजनीतिक हालातों की चर्चा करते और बाद में चाय पीकर जाते। एक अन्य पोस्टमैन महोदय थे जो दूर से ही आवाज लगाते, घरवाले बाहर निकल कर इन्तजार में खड़े रहते और वे चिट्ठियां फेंक कर चले जाते।

आपने वो किस्सा तो सुना ही होगा कि एक विदेश गया पति रोज अपनी पत्नी को चिट्ठी लिखता, परिणाम स्वरूप् पोस्टमैन और विरहन ने शादी कर ली। खैर, जाने दीजिए। इस पोस्टमैन चर्चा को ही आग चढ़ाते हैं। पोस्टमैन इस संचार चुग की आत्मा है। औसतन एक पोस्टमैन लगभग सौ किलोमीटर इस संचार युग की आत्मा है। औसतन एक पोस्टमैन लगभग सौ किलोमीटर प्रतिदिन चलता है और सर्दी, गर्मी, बरसात, बीमारी की परवाह किये बिना सेंदेषा आप तक पहुंचाता है, मगर आज के इस भौतिकवादी युग में बहुत सारे दूसरे साधन हो गये हैं और कूरियर की दुकानें खुल गई हैं।

कल्पना करिये की डाक विभाग स्वतंत्रता के बाद खोला जाता। आप को चिट्ठी लिखने के लिए पहले प्रार्थना-प्त्र देना पड़ता, बैंक में चालान से टिकट की राषि जमा होती फिर आपको लिफाफा मिलता। आप लिखकर लिफाफे को वापस सरकारी दफ्तर में जमा कराते, फिर कुछ दिनों बाद आपको उत्तर प्राप्त होता और आप उसे सरकारी दफ्तर जाकर प्राप्त करते, मगर यह सब परेषनी अब नहीं है। पोस्टमैन आपके घर पर आकर डाक दे जाता है। पोस्टमैनों के प्रकारों मे एक विषेष प्रकार है, जो डाक को एक ही स्थान पर डाल जाते हैं। ऐसे पोस्टमैनों के कारण कई बार परेषानी हो जाती है। इसे रोका जाना चाहिए। पोस्टमैन प्रेम, विरह, सुख, दुःख, शोक, मृत्यु सभी प्रकार के समाचार लाता है। सबको समभाव से देखता है। लेकिन आजकल पोस्टमैन भी होली, दिवाली का आनन्द लेते हैं। होली या दिवाली या नव वर्ष पर पोस्टमैन सलामी लेकर ही जाते ही जाते हैं। ये तो एक दस्तूर है और शायद ही कोई एतराज करता है। ऐतराज किया तो गई चिट्ठी पानी में।

आपकी सूचनार्थ निवेदन है कि देष में लाखों पोस्टमैन हैं मगर पोस्ट-वूमेन नहीं है। मेरा डाक तार विभाग से अनुरोध है कि पोस्ट वूमेन भी रखे। इससे कई प्रकार के लाभ विभाग को तथा उपभोक्ताओं को होंगे।

अक्सर आपने समाचार-प्त्रों में देर से डाक पहुंचने के समाचार प्ढ़े होंगे, मगर इन समाचारों से पोस्टमैन का कोई संबंध स्था पित करना अनुचित होगा।

चिठिया हो तो हर कोई बाँचे, भाग्य न बांच्यो जाय की तर्ज पर पोस्टमैनों के भाग्य को बांचने की जरूरत है।

चिट्ठी एक अत्यंत महत्वपूर्ण चीज है। संवाद भेजने वाले या संवाद ग्रहण करने वाले का कुछ नहीं बिगड़ता, लिफाफा ही फटता है और पोस्टमैन को ही घूमता पड़ता है। चिट्ठी को गन्तव्य तक पहुंचाने में पोस्टमैन का योगदान दिन के उजाले की तरह साफ है।

मेरे पोस्टमैनों की चर्चा के दौरान मैं एक और पोस्टमैन का जिक्र करना चाहता हूं। ये सज्जन कूरियर की तरफ से आते हैं। फटाफट संस्कृति के वाहक हैं, तेजी से अपना काम पूरा करते हैं, अपनी कम्पनी का साक्षात् विज्ञापन हैं ये सज्जन। कम्पनी का कार्ड और मेरा पैकेट फेंकते हैं और तेजी से रफूचक्कर हो जाते हैं। एक अन्य पोस्टमैन मोपेड पर आते हैं, मगर ऐसा लगता है जेसे हवा के घोड़े पर सवार हैं।

डाक को लाने व ले जाने के लिब सरकार में हरकारे, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी, मैसेन्जर, अर्दली वगैरह भी होते हैं। जो डाक को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाते ले जाते हैं। कभी-कभी लिफाफे मे खतरनाक पत्र होते हैं, जिन्हे पाकर सरकारी बाबुओं के होष फाकता हो जाते हैं। कई बार एक चिट्ठी से सरकार बन या गिर जाती है।

अतः डाकिये की महिमा अपरम्पार है श्रीमान् !

डाक व्यवस्था की सबसे मजबूत कड़ी पोस्टमैन है मगर शायद सबसे उपेक्षित भी। प्रेम पत्र हो या निलम्बन पत्र पोस्टमैन को तो पहुंचाना ही पड़ेगा। मेरे घर वालों को धनादेष का ज्यादा इंतजार रहता है और मुझे छपी रचना की प्रति का। अपना अपना भाग्य।

डाकियों की चर्चा अधूरी ही रह जायगी यदि मैं उस सहदय डाकिये का जिक्र न करूं, जिसने जंगल में बनें मकान तक मेरी डाक पहुचाने का श्रम किया और मुझे अपनी नियुक्ति व प्रथम रचना के प्रकाषन की सूचना दी। सच में लेखक का सच्चा मित्र है-डाकिया। डाकिया आया डाक लाया। अब इस शोध-प्रबंध को समाप्त करने की इजाजत दीजिये क्योंकि डाकिया ताजा डाक डाल गया है।

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यशवन्त कोठारी

86, लक्ष्मीनगर ब्रह्मपुरी बाहर,

जयपुर 302002

मो-९४१४४६१२०७