Weekend Chiththiya - 1 in Hindi Letter by Divya Prakash Dubey books and stories PDF | वीकेंड चिट्ठियाँ - 1

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वीकेंड चिट्ठियाँ - 1

वीकेंड चिट्ठियाँ

दिव्य प्रकाश दुबे

(1)

उन सभी लड़कियों के नाम जो पहले नहीं मिलीं!

ज़िंदगी से यूं भी तमाम शिकायतें हैं मुझे. लेकिन उन तमाम शिकवों में से एक ये भी है कि ज़िंदगी मुझे तुमसे पहले नहीं मिलवा सकती थी. हालांकि ऐसे सोचो कि तुम अगर पहले मिल जाती तो क्या हो जाता, क्या कुछ बदल जाता? हां शायद या नहीं शायद. यार, प्यार में ‘शायद’ से ज्यादा Certain कोई verb ही नहीं होती.

कभी-कभी तुम इतनी अच्छी लगती हो कि मन करता है कि तुमसे पहला प्यार कर लूं. वो जो भी बात हम सोच तो लेते हैं लेकिन सही-गलत की वजह से बोल नहीं पाते वो भी तो हमारी दुनिया का हिस्सा हो जाती हैं. दुनिया का ऐसा हिस्सा जिसका पता केवल हमें पता होता है.

कमिटमेंट और लॉयल्टी जैसे शब्द नौकरी में अच्छे लगते है, प्यार में इन शब्दों से गुलामी की बू आती है. अगर हमें कोई गुलाब का फूल बहुत अच्छा लगता है तो उसके उसको डब्बे में बंद करके मारने की बजाय हमें गमले में दूसरे के लिए छोड़ देना चाहिए. याद करो अपने साथ के वो लोग जो दिन भर में दस बार love you forever बोलते थे. आज देखो उनको कहां गए वो लोग और कहां गया उनका प्यार.

इस दुनिया का सबसे बड़ा झूठ ये है कि प्यार सिर्फ एक बार होता है. जिसने भी ये अफ़वाह उड़ाई है, उसको तुमसे मिलना चाहिए. अगर एक प्यार दूसरे प्यार के लिए प्यासा न कर दे तो वो साला भी कोई प्यार हुआ.

प्यार सदियों और सालों का होता ही नहीं, प्यार पल का होता है. जिसकी आमदनी और खर्चा दोनों ही ‘पल’ भर होता है बस. तुमने अगर उस पल में मुझसे प्यार किया था तो मुझे बांधने की कोशिश मत करना, न ही मैं करूंगा. जिस पल तुम मेरे बाद किसी और से प्यार करोगी और एक पल को ही सही मेरी याद आए तब हमारे प्यार को सच्चा मानना. वरना नकली वाला प्यार महसूस करते हुए मर जाना इस दुनिया के लिए कोई नई बात नहीं.

बढ़िया ही है कि तुम पहले नहीं मिली. क्योंकि पहले मैं अलग था तुम अलग थी. हमारा प्यार अलग था. उस वक्त के हिसाब से हमने ‘सच्चा’ प्यार किया होगा. उस समय के हिसाब से हम ‘सच्चे’ बीते होंगे. उस वक्त के हिसाब से हमने सही ‘पलों’ को चुना होगा. तुम पहले मिली होती तो हमारी कहानी ऐसी नहीं होती. जो जब मिल जाए, वही उसका राइट टाइम होता है.

मैं जान बूझ कर तुम्हारा नाम नहीं लिख रहा, क्योंकि अगर मैंने नाम लिख दिया तो इसका ये मतलब होगा कि अब मैं और किसी को प्यार नहीं करूंगा और तुम्हारे प्यार की इतनी बड़ी तौहीन मैं नहीं कर सकता.

प्यार को समझने की कोशिश करना बेईमानी है. अगर इस दुनिया में कुछ समझने और सहेजने लायक है तो वो हैं ‘पल’ और पल का कोई सच-झूठ, सही-गलत, पास्ट-फ्युचर नहीं होता.

उम्मीद है कि कभी तुम चिट्ठी लिखकर जरूर बताओगी अपने बारे में. अपने नए प्रेमी के बारे में. प्यार के बारे में और ‘पल’ के बारे में.

फ़िर मुलाक़ात होती है कभी किसी दूसरी दुनिया में. अगली बार एक दूसरे को पक्का पहला प्यार करेंगे.

दिव्य प्रकाश दुबे

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दिव्य प्रकाश दुबे की पहली किताब का नाम क्या है ?