pustak ka vimochan in Hindi Comedy stories by Manjari Shukla books and stories PDF | पुस्तक का विमोचन

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पुस्तक का विमोचन


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मैं सुबह के अखबार में सिर घुसा कर देखने की कोशिश कर रहा था कि कहीं कोई काम की ख़बर दिख जाए कि तभी लगा सामने की कुर्सी पर आकर कोई विराजमान हो गया हैI

शहर भर में भले ही मेरी घनी लम्बी और काली मूँछों से लोग मुझे चंगेज़ खां का वारिस समझते है पर असलियत कुछ और ही हैI

डर के मारे जैसे मेरी जान ऐसे निकल गई मानों मेरी बीवी ने मेरा फेसबुक अकाउंट खोल लिया होI

अचानक ही सीने में दाईं तरफ़ कुछ दर्द बढ़ता महसूस हुआI

तभी दिमाग ने पहली बार सही समय पर चेताया कि हज़ारों प्रेमिकाओं पर लुटाने के बाद भी तू भूल गया कि दिल शरीर के बाएँ हिस्से में होता हैI

मन ही मन बचपन के बादामों का धन्यवाद देते हुए मैंने तुरंत दर्द को बाईं ओर सरका लियाI

तभी मेरे अख़बार पर किसी का सनी देओल टाईप का ढाई किलो हाथ पड़ा और मैंने देखा कि सामने मेरा बरसों पुराना मित्र बैठा हुआ थाI

स्कूल के ज़माने से मुझ पर लगातार पैनी दृष्टि रखने के कारण वह बहुत अच्छे से जानता था कि मैं महा डरपोक हूँ इसलिए कोई भी पैंतरा आजमाना बनाना बेकार थाI

वह बोला-"यार, मैंने कल रात एक सपना देखा हैI"

सपने का नाम सुनते ही मेरा दर्द अब बाईं और दाईं दोनों तरफ़ बँट गयाI

मैं जानता था कि वह अगली लाइन क्या कहने वाला हैI

"तो अब किस पुस्तक का विमोचन करवाना है?" मैंने खीजते हुए पूछा

"यार, पुस्तकें तो बहुत हैI तुम तो बस आदमी ढूंढोI अपने पास सारी फ़ील्ड की पुस्तकें छपी पड़ी हैंI जिस भी विधा का आदमी तैयार हो जाएगा अपन फ़ट से चल देंगेI"

"तुम अजीब झक्की होI जब देखो तब पुस्तक का विमोचन कराने की फिराक में रहते होI" मैं चिढ़कर बोला

मित्र कुर्सी पर कूदता हुआ बोला- चील भी क्या चूहे को देख पाती होगी जितना हम विमोचन करने वाले को ढूंढ निकालते हैI"

"अच्छा तो अब किसे खोज लिया तुमने, मैं हँसता हुआ बोला

तुम्हें, मेरी जान तुम्हें..."

"अजीब अहमक हो...हमारी क्या औकात...जो हम तुम्हारी पुस्तक का विमोचन करेंगे!" हमनें मन ही मन खुश होते हुए कहा

"तुम बिलकुल सही कह रहे होI पर हम तो तुम्हारी बात ही नहीं कर रहे हैI" मित्र बोला

"मुँह पर डायरेक्ट बेइज्जती सुनकर हम खिसियाते हुए बोले-"तो किसके लिए कह रहे होI"

"अरे कल एक मंत्री को तुम्हारे घर से निकलते देखा थाI तुम्हारी कामवाली से पता चला कि तुम्हें किसी कार्यक्रम का न्योता देने आये थेI"

मैंने गुस्से से पूछा -"वो कामवाली क्या मेरे घर की बात पूरे मोहल्ले में बताती फिरती है?"

"नहीं..सिर्फ़ हमारे घर में..."दोस्त धीरे से बोला

"क्यों..यह मेहरबानी सिर्फ़ तुम पर ही क्यों..."मैंने दाँत पीसते हुए कहा

"कोई फ्री फ़ोकट में नहीं बताती..दो सौ रुपये लेती है चोरनीI"  मित्र ने राज़ खोला

मैंने आश्चर्य से मित्र की तरफ़ देखा और उसने मेरी तरफ़...और हम दोनों ठहाका मारकर हँस पड़े

"चलो, कल सुबह है कार्यक्रम..पर वह पूर्व मंत्री है..तुम्हें कोई दिक्कत तो नहीं हैI"

"अरे हम तो पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण नहीं देखते..बस मंत्री होना चाहिए...अब हम चलते है बहुत तैयारियाँ  करनी है

और यह कहते हुए वह भाग खड़ा हुआI

तैयारियों के नाम पर मात्र झोला उठाना है और कल तक आधे शहर में जाकर बताना है कि अमुक आदमी इनकी पुस्तक का विमोचन कर रहा हैI

खैर अगले दिन महाशय सुबह सात बजे ही आ खड़े हुए

"इसे कहते है कर्मठताI" मैंने कहा

"हाँ, चलो अब तुम भी जल्दी से तैयार हो जाओI" मित्र बोला

"अभी सेI" मैंने झुंझलाते हुए कहा

"कार्यक्रम दस बजे से हैI हमें समय का पाबन्द रहना चाहिएI" दोस्त गंभीर मुद्रा में बोला

"अभी कितना बजा है?" मैंने घड़ी की ओर इशारा करते हुए कहा

पर तब तक उसने मेरा अखबार और चाय दोनों ही हथिया लिए थेI

तीन घंटे का समय होने के बावजूद भी वह हर दस मिनट बाद चीखता रहा

"अरे सात बजकर दस मिनट हो गए..अब सात बजकर बीस मिनट हो गए ...अरे जल्दी करो, क्या दरवाजे पर खड़े होकर इत्र छिड़कोगे मंत्री कोI"

"हे भगवान..नौ बज चुके हैI क्यों मेरे प्राण पीने पर तुले हो?" अपने कुर्ते की टूटे हुए बटन की जगह आलपिन ठूँसता हुआ वह बोला

मैंने झुंझलाते हुए कहा- "आयोजन  स्थल मात्र दो मिनट की दूरी पर है, क्यों गला फाड़ रहे हो?"

वह निहायत गंभीर मुद्रा बनाते हुए बोला- "हमें समय और अपने काम के प्रति बेहद ईमानदार रहना चाहिएI"

"ईमानदारी से याद आया कि तुम आज ऑफ़िस नहीं गए?" मैंने उसे गौर से देखते हुए पूछा

"अरे छोड़ो..हम कह रहे है अपने काम के प्रति...ना की दूसरो के काम के प्रति..." और हीहीही करके उसने बत्तीसी काढ़ दी 

मैंने सोचा, जब किसी के पास हर सवाल के ऐसे अनोखे जवाब मौजूद हो तो ज़ुबान खुद ब खुद ही गटइया में जाकर विश्राम ले लेती हैI

नौ बजते ही दोस्त ने हमें दरवाज़े तक घसीट कर जबरन चप्पल पहनवा दी और बोला-"अब क्या दरी उठाने ही चलोगे?"

जलते भुनते हुए हमनें उसकी पुस्तकों का थैला उठाया और चल पड़ेI

मात्र कुछ कदम चलने के बाद ही कार्यक्रम स्थल आ गयाI

मित्र इधर उधर देखते हुए बोला-"शायद कुछ जल्दी आ गए है, तुम कहो तो लौट चलते हैI"

"बुरा ना मानना, पर साले स्टेज पर अंडे टमाटर कहते हुए तुम लतियल हो चुके होI" मैंने गुस्से से कहा

"बुरा क्या मानना यार...उनसे ही तो कई दिन घर में आमलेट बनता हैI"

"वाह बेटा, तुम असली कवि हो, चलो, अब अंदर चलेI" कहते हुए मैं दरवाज़े के पास पहुँच गया

संसार का सबसे दुबला पतला बूढ़ा आदमी खाकी रंग की वर्दी पहने खड़ा था

"किससे मिलने का है?" उसने तम्बाकू रगड़ते हुए पूछा

"इनका सम्मान हैI" मैंने दोस्त की तरफ़ देखते हुए मैंने झूठ बोला

"क्यों, ऐसा क्या करते है यह?" वह निर्विकार भाव से बोला

"यह कवि हैI कवितायें लिखते हैI"

तम्बाकू मसलना छोड़ वह बूढ़ा जोरों से हँसा और बोला-"जाइये तुरंत जाइये, सम्मान के अवसर तो कवियों के जीवन में बहुत कम आते हैI"

मुझे बहुत बुरा लगा पर मित्र मुस्कुराते हुए बोला-"वाह चाचा, दाँतों में मेहँदी लगाए हो या खैनी..पूरे नारंगी हुए जाते हैI"

बुढ़ऊ जब तक कुछ समझ पाते हम अंदर पहुँच गए

अंदर जाते ही हमें लगा कि हम अपने किसी रिश्तेदार की शादी में पहुँच गए हैI

सारे कवि और लेखक दार्शनिक भाव से अपना झोला लटकाये बेहद व्यस्त नज़र आ रहे थेI

"हे राम, इन सबको कैसे पता चला कि यहाँ मंत्री आ रहा हैI" मित्र ने कहा

"मुझे लगता है मेरी कामवाली इन सबके घर भी काम करती होगीI"

"पागल हो क्या?" मित्र धीरे से बोला

तभी तीन चार लोग हमारे पास आकर खड़े हो गए

"अरे शर्मा जी ...आप यहाँ कैसे?"

"क्या बताये, सालों से पुस्तक पड़ी थी, सोचा विमोचन करवा लेI"

"तो आज कॉलेज नहीं गए?" दोस्त ने पूछा

"तुम भी तो ऑफिस नहीं गए, हमने पूछा कि काहे नहीं गए?" शर्मा जी पान चबाते हुए बोले

मिश्रा जी की ख़ुशी संभल ही नहीं रही थीI जब बहुत देर तक उनसे कुछ नहीं पूछा गया तो वह ख़ुद ही बोले-"हमें तो बहुत अफ़सोस है आज कॉलेज नहीं जाने का, पर आज हमें सम्मानित करने के लिए बुलाया गया हैI"

"कितना चंदा दिया है आपने?" मित्र ने पूछा

"बदतिमीज़ी बर्दाश्त नहीं है हमसे..."समझे मिश्रा जी गुस्से से बोले

मैंने देखा कि सारे साहित्य के बचे खुचे चीथड़े उड़ने ही वाले है तो मैं बोला-"चलिए, जल्दी से आगे की  सीट पर बैठ जाते है, मंत्री जी आने ही वाले हैI"और आगे की सीट का नाम सुनते हीसभी स्थापित कवि और लेखक एक दूसरे को भरपूर ताकत सेधकियाते हुए आगे बढ़ चलेI

शारीरिक श्रम काम आया और बुद्धि से शून्य प्रबुद्ध आत्माएँप्रथम पँक्ति में स्थान पा गईI

मेरा दोस्त मिश्रा जी से भिड़ने ही जा रहा था कि मैं बोला-तुममहा कमीने टाइप के इंसान हो यह राज़ सिर्फ़ मैं ही जानता हूँIतुम पीछे बैठकर नम्र होने का ढोंग करो कल को साहित्य की क्षेत्रमें तुम्हारे ही काम आएगाI"

दोस्त का चेहरा ख़ुशी से चमक उठा और वह पुस्तकों का थैलागोद में लिएलोहे की जंग खाई कुर्सी पर चर्र की आवाज़ केसाथ ही विराजमान हो गयाI

मंच पर अफरातफरी का माहौल थालोग बिना किसी काम केव्यस्त थेपागलों की तरह बेवजह इधर  उधर दौड़ रहे थेजैसेउनकी ट्रेन छूटी जा रही होI

कार्यक्रम का संचालन करते हुए महामंत्री गुप्ता जी ने बताया किसभी दर्शक अपनी धड़कनों को थाम लेहृदय की गति कोसँभाल ले,अपने दिल को मजबूती से पकड़ ले क्योंकि...

तभी पीछे से एक नवयुवक चिल्लाया-"क्योंक्या जबरदस्तीहमरा दिल निकाल लोगे काकउनो ऑपरेशन होने वाला है?"

उसकी बात सुनते ही सभा में ठहाका गूँज उठा

आयोजक गुस्से को पीकरमुस्कुराते हुए बोला-"बसकुछ हीपलों बाद आपके बीच हमारे मंत्री जी पधारने वाले हैI"

"अभी कौन भौंका था बीच में.... बाहर निकालो उस कुत्तेको...मंच से आवाज़ आई

अरे बुद्धिजीवियोंपहले माइक तो बंद कर लो...एक बुज़ुर्गचिल्लाये

लोगो के पेट में हँसते हँसते बल पड़े जा रहे थेतभी वहाँ पर पूर्वमंत्री आकर स्टेज पर पधार गएI

उनके साथ ही ढेर सारे अंजू पंजू छुटभैये नेता भी मुँह में पान कीपीक दबाये अपने मोबाइल लेकर जा पहुँचेI

सेल्फ़ी ने ना जाने कब सरस्वती वंदना की जगह ले लीआधे टेढ़ेमुँह बनाते हुए जी भरकर फोटुएँ खिंचवाई गईसभा का शुभांरभसेल्फ़ी के साथ हुआ और उद्घाटन होते ही नेताजी और उनकेसाथियों को दीप प्रज्ज्वलन करने के लिए कमर तक झुक करआमंत्रित किया गयाI

दो पल के लिए तो मुझे भ्रम हो गया कि मैं जापान पहुँच गया हूँ

खैरमाँ सरस्वती के सभी मानस पुत्र जूते चप्पल पहने पूरी श्रद्धाऔर भक्ति के साथ जाकर दीप प्रज्ज्वलन कर आएI

जूता उतारने पर तो कर कमलों को पानी से धोना पड़ता तो जूतेचप्पल भविष्य के भारी जल संकट को देखते हुए उतारे ही नहींगएI

पूर्व मंत्री जो हमेशा पान की दूकान पर खड़े वर्तमान सरकार कोकोसा करते थेअचानक ही बहुत व्यस्त हो गए और अधीर होतेहुए बोले-"कार्यक्रम जरा जल्दी निपटाइएमुझे देर हो रही हैI"

आयोजक इसी बात से इतना प्रसन्न हो गए मानों दो चार घरों कीरजिस्ट्री उनके नाम पर कर दी गई होI

उन्होंने मंत्री जी की तारीफ़ में दो शब्द कहना चाहे जो सुरसा केमुख की तरह बढ़ते हुए करीब दो लाख हो गए और श्रोताओं केकान ज्ञान को पीते हुए लाल हो गएI

मंत्री जी कभी घड़ी देख रहे थे तो कभी दरवाज़ा....

इधर मेरे दोस्त ने कोहनी मार मारकर मेरा जीना हराम कर रखाथावह अपनी पुस्तकों के विमोचन के लिए पगलाया जा रहाथाI

तभी मिश्रा जी का खून उबाल मारा और वह खड़े होते हुए बोले-"सालाअभी तक हमरा सम्मान नहीं हुआ... ससुर का नातीहमका भूल तो नहीं गया!"

"तुम्हारे सम्मान को छोड़ोवह तो तुमने चंदा देकर ख़रीदा हैइसकुत्त्ते को सड़क पर चप्पलों से मारूंगी अगर आज मेरी किताबका विमोचन नहीं हुआ तो..."एक महीन सी आवाज़ आई

गर्दन उचकाकर देखा तो पीछे मोहल्ले की ही गुप्ता भाभी बैठीथीI

"हे भगवानयह भी लिखने लगीI" दोस्त ने सिर धुनते हुए कहा 

"अमां यारअब ऐसा कोई नहीं बचा है जो नहीं लिखता हैबसपढ़ता कोई नहीं हैI" मैंने पुस्तक के थैले को कसकर पकड़ते हुएकहा

उधर स्टेज पर एक के बाद एक अभिनय के मंजे हुए कलाकारआए जा रहे थे और मंत्री जी के चरित्र की उत्तम व्याख्या कर रहेथेI

मंत्री जीजो सड़क सड़क दुरियाए जाते थेअपने बारे में इतनीअच्छाई सुनकर चकित थेI

वह आज पहली बार खुद से रु  रु हो रहे थेI

तभी गुप्ता भाभी मंच पर ही पहुँच गई और बोली-"हमारीकिताबों का विमोचन होना थाआप लोगो ने कार्ड में छापा भीहैI"

"दिखाइए कार्डI" साढ़े तीन फ़ीट का कर्मठ नेता बोला

अब गुप्ता भाभी सकपकाई और गुस्से से लाल होती हुई बोली-"अरे  ठिगनेतो क्या मैं झूठ बोल रही हूँ?  वैसे भी कार्ड तोघर पर हैI"

"तो लेकर आइयेहमें कैसे पता चलेगा कि इतनी खूबसूरत ग़ज़लभी कविता लिखती हैI"

रणचंडी का रूप धरे गुप्ता भाभी आख़िरी शब्द सुनकर निहालहो उठी और मुस्कुराते हुए बोली-"मैं अभी घर से कार्ड लेकरआती हूँI"

"अबे सालोंअब हमारा सम्मान कर भी दोक्या जूता बजायेस्टेज पर आकर?"

"पुलिस बुलाओ..इसी समय दो डंडे इस बद्तमीज़ आदमी कोलगवाओI" मंत्री जी ने भीड़ में मिश्रा जी को खोजते हुए कहा

बेचारे मिश्रा जी ने तुरंत अपना रुमाल कुर्सी के नीचे गिरा दियाऔर उसे उठाने के बहाने ज़मीन पर लोट  गएI

तभी स्टेज से एक सज्जन चिल्लाये-"अरे भाईसाहबमै  तो अपनेपिताजी की स्मृति में सम्मान देने आया हूँ और आप जबरदस्तीमुझे ही सम्मानित कर रहे हैI"

"अरे तो हो जाओ ना सम्मानितसम्मान ही दे रहे हैं ना,  ३०२ कीधारा तो नहीं लगा रहेउधर भीड़ में देखोलोग जान दिये दे रहेहैं सम्मान पाने के लिए पर बेचारों का नंबर ही नहीं  पा रहाहैI"

पर...

"पर वर कुछ नहींयह लीजियेआप सम्मानित होगए...मुस्कुराइएआपकी फोटो खिंच रही हैI"

"वाह..जीवन भर इस तरह का बुद्धिजीवी वर्ग ना देख पाता अगरतुम मेरे दोस्त ना होतेI" मैंने दोस्त को कोहनी मारते हुए कहा

मेरा दोस्त अजीब सा मुँह थावह इस समय दया और करुणा कीसाक्षात् प्रतिमूर्ति बना बैठा हुआ थावह स्टेज पर दौड़कर जानेकी मुद्रा में बैठा थावह कुर्सी पर भी ऐसे बैठा था मानों किसीरेस शुरू होने की प्रतियोगिता में दौड़ने की तैयारी में होउसकेपंजे ज़मीन से लगे थे और एड़ी हवा में उचकी हुई थीबस उसेअपने नाम का इंतज़ार था

तभी जबरदस्ती सम्मान प्राप्त सज्जन की पीछे से आवाज़ आई-" मैं तो भगवती दास नहीं हूँ..यह तो किसी दूसरे का सर्टिफ़िकेटहैI"

"क्या कहा...अरे मेरा सर्टिफ़िकेट हैं ये मेरा...उनके बगल में बैठेसज्जन ने उनके हाथ से प्रमाणपत्र छीनते हुए कहा

प्रमाणपत्र को हवा में झुलाते हुए वह चिल्लाये-"और मेरा मान कापान कहाँ है..वो खा गए क्या?"

"तमीज़ से बात करियेमैं ख़ुद दो हज़ार का सम्मान देने आयाहूँI"

"और पहली बार मिला तो मेरा मान का पान खा गएवह सप्तमसुर में चीख़े 

मैंने आश्चर्य से अपने दोस्त से पूछा-"यारएक पान के लिए यहआदमी इतनी चीख पुकार क्यों मचा रहा हैI"

मेरे दोस्त ने मुझे देखा और ठहाका मारकर हँसने लगाI

सुबह से पहली बार मैंने उसे हँसते देखा थाइसलिए मैं खुशहुआपर वह लगातार हँसे ही जा रहा था I

"अरे कुछ तो बताओीमैं पूछ रहा था

"चलो यारचलते है वह थैला उठाते हुए बोला

और विमोचन..मैंने आश्चर्य से उसका हाथ पकड़ते हुए कहा

"उधर देखो...दोस्त ने स्टेज की तरफ़ इशारा किया

हे भगवान..शहर भर के सभी नामचीन और बुद्धिजीवी लोग,लातों और घूसों से आयोजकों पर अपना प्रेम प्रदर्शित करते हुएसबकी तबीयत से सुताई कर रहे थे

मै बोला-"पर तुम्हारा विमोचन तो रह ही गयाI"

कोई बात नहीं फोटो शॉप कर लेंगे किसी "मंत्री जीके साथ

और हम दोनों हँसते हुए वहाँ से बाहर  गए

 

डॉ. मंजरी  शुक्ला


09616797138