Janjivan - 3 in Hindi Poems by Rajesh Maheshwari books and stories PDF | जनजीवन भाग ३

Featured Books
Categories
Share

जनजीवन भाग ३

जय जवान जय किसान

देश की सुरक्षा और

हरित क्रान्ति का प्रतीक है

जय जवान जय किसान!

यह हमारी

सभ्यता, संस्कृति और संस्कारों का

प्रणेता है

जितना कल था

उतना ही आज भी है

उद्देश्यपूर्ण और सारगर्भित।

कैसा परिवर्तन है

हमारी सोच में

या परिस्थितियो मे

हमारा अन्नदाता

कर्ज में डूबा

कर रहा है आत्महत्या

हरित क्रान्ति का प्रतीक

खेती के लिये

सरकारी अनुदान की ओर

निहार रहा है

सीमा पर सैनिक

हमारी रक्षा के लिये

हो रहा है शहीद,

हमें उस पर गर्व है

किन्तु कुछ हैं जो

कर रहे हैं इसकी आलोचना

ऐसे देशद्रोहियों से

देष हो रहा है शर्मिन्दा

सर्वोच्च पदों पर बैठे

नेताओं को

मजबूर नहीं

मजबूत होकर दिखाना होगा

देश-भक्ति को सुदृढ़ कर

ऐसे राष्ट्र-द्रोहियों से

देश को बचाना होगा

तभी हम बढ़ सकेंगे

आदर्श नागरिक

बन सकेंगे,

जय जवान जय किसान को

सार्थक कर सकेंगे।

नेता चरित्र

देश में

प्रगति और विकास की दर

क्यों है इतनी कम

क्या हमारे नेताओं में

कम है दम।

काम किसी का करते नहीं

ना किसी को कहते नहीं

पाँच साल में एक बार

सद्भाव, सदाचार, सहिष्णुता बताकर

हमारा मत झटका कर

पद पा जाते हैं

भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और अनैतिकता से

धन कमाते हैं

जनता

मंहगाई, भाई-भतीजावाद

और बेरोजगारी में पिसकर

जहाँ थी

वहीं रह जाती है।

गरीबी के हटने

और अच्छे दिन आने की

प्रतीक्षा करती है।

देश की पचास प्रतिशत आबादी

चौके-चूल्हे में व्यस्त है

जीडीपी में

उनका योगदान

बहुत कम है।

बढ़ती जनसंख्या

आर्थिक प्रगति और विकास में बाधक है

नेता

प्राकृतिक आपदा में भी सुरक्षित

और जनता

अपने ही घर में असुरक्षित।

नेता

कथनी और करनी को एक करें

देश को निराशा से उबारकर

विकास की ओर

अग्रसर करें,

विचारधारा मे परिवर्तन लाएं

सकारात्मक सृजन करें

भारत को उसका

मान-सम्मान दिलाएं

नाम रौशन करें।

भक्त और भगवान

उसका जीवन

प्रभु को अर्पित था

वह अपनी सम्पूर्ण

श्रृद्धा और समर्पण के साथ

तल्लीन रहता था

प्रभु की भक्ति में।

एक दिन उसके दरवाजे पर

आयी उसकी मृत्यु

करने लगी उसे अपने साथ

ले जाने का प्रयास,

लेकिन वह

हृदय और मस्तिष्क में

प्रभु को धारण किए

आराधना में लीन था

मृत्यु करती रही प्रतीक्षा

उसके अपने आप में आने का

वह नहीं आया

और मृत्यु का समय बीत गया

उसे जाना पड़ा खाली हाथ

कुछ समय बाद

जब उसकी आँख खुली

उसे ज्ञात हुआ सारा हाल

वह हुआ लज्जित

हाथ जोड़कर नम आँखों से

प्रभु से बोला

क्षमा करें नाथ मेरे कारण आपको

यम को करना पड़ा परास्त

कहते-कहते वह

प्रभु के ध्यान में खो गया

भक्ति में लीन हो गया।

कोरा कागज

कोरा कागज

साफ, सुन्दर, स्वच्छ

पर उसका मूल्य नगण्य

किन्तु जब उस पर

अंकित होते हैं सार्थक शब्द

भाव, विचार या वर्णन

होता है लिपिबद्ध

तब वह अनमोल होकर

बन जाता है

इतिहास का अंग।

जीवन भी

कोरे कागज के समान है

जब होता है सृजनहीन

तब समय के साथ

खो देता है अपनी पहचान

वह किसी की स्मृतियों में नहीं रहता

उसका जीवन यापन होता है मूल्यहीन,

पर जो मेहनत, लगन और समर्पण से

सृजन करता हुआ

समाज को देता है दिशा

वह बनता है युग-पुरुष

उसका जीवन होता है

सफलता, मान-सम्मान और वैभव से परिपूर्ण।

हमारा जीवन

ना हो कोरे कागज के समान

युग पुरुष बनकर दिखाओ।

देश को विश्व में

गौरवपूर्ण स्थान दिलाओ।

नव-वर्षाभिनन्दन

आ रहा नववर्ष!

आओ मिलकर

नव-आशा और

नव-अपेक्षा से

करें इसका अभिनन्दन।

देश को दें नई दिशा

और लायें नये

सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन,

किसानों, व्यापारियों, श्रमिकों और

उद्योगपतियों को मिले उचित सम्मान।

रिश्वत, मिलावट, भाई-भतीजावाद और

मंहगाई से मुक्त राष्ट्र का हो निर्माण,

कर्म की हो पूजा और

परिश्रम को मिले उचित स्थान,

जब राष्ट्र प्रथम की भावना को

सभी देशवासी

वास्तव में कर लेंगे स्वीकार,

नूतन परिवर्तन

नूतन प्रकाश का सपना

तभी होगा साकार,

सूर्योदय के साथ

हम जागें लेकर मन में

विकास का संकल्प,

तभी पूरी होंगी

जनता की अभिलाषाएं

तब सब मिलकर

राष्ट्र की प्रगति के

बनेंगे भागीदार,

नूतन वर्ष का अभिनन्दन

तभी होगा साकार।

शुभ दीपावली

दीपावली शुभ हो

लक्ष्मी जी की कृपा बनी रहे

कुबेर जी का भण्डार भरा रहे

आशाओं के दीप जल रहे हैं

निराशाओं से संघर्ष कर रहे हैं

आशा का प्रकाश

निराशा के अंधकार को समाप्त कर

उत्साह व उमंग का संचार

हमारी अंतरात्मा में कर रहा है

हम अच्छे दिनों की प्रतीक्षा कर रहे हैं

भ्रष्टाचार, मंहगाई व रिश्वतखोरी के

समाप्त होने की प्रतीक्षा में

जीवन बिता रहे हैं

सरकार चल रही है

जैसे

सिर के ऊपर से

कार निकल रही है

सिर को कार का पता नहीं

कार को सिर का पता नहीं

पर सरकार चल रही है

आओ हम सब मिलकर

करें सकारात्मक सृजन

विध्वंश के एक अंश का भी

ना हो जन्म

विपरीत परिस्थितियों में भी

प्रज्ज्वलित रखो

आशाओं के दीप

कठिनाइयों में भी

बुझने मत दो

दीप से दीप प्रज्ज्वलित कर

बहने दो

प्रेम की गंगा।

समय और जीवन

कौन कहता है कि समय

निर्दय होता है,वह तो

तरुणाई की कथा जैसा

होता है मधुर और प्रीतिमय,

वह यौवन के आभास सा

होता है कभी खट्टा और कभी मीठा।

उन मोहब्बत के मारों की सोचो

जिन्हें वक्त और जवानी ने दगा दे दिया।

उनकी भावनायें बन जाती हैं

आंसुओं का दरिया,

उन्हें जीना पड़ता है इसी मजबूरी मे,

समय उन्हें देता है दुखो की अनुभूति

वे जीवन भर भरते हैं आहें

छोड़ते है ठण्डी सांसें।

समय उन्हीं पर मेहरबान होता है

जो समझ लेते हैं समय को समय पर।

ऐसे लोग शहंशाह की तरह जीते हैं।

पर ऐसे खुशनसीब

बहुत कम होते हैं।

सुखी होते हैं वे

जो समय को

मित्र बनाकर रहते हैं

जिन्दगी के फलसफे को

समझकर जीते हैं।

वक्त को समझ सको

तो भी जीना है

न समझ सको तो भी

जीना है।

एक जीवन को जीना है

और दूसरा जीना है

सिर्फ इसलिये जीना है।

हमारी संस्कृति

अनुभूति की अभिव्यक्ति

कविता बनती है।

सुरों की साधना

बन जाती है संगीत।

कविता है भक्ति

और संगीत है

उस भक्ति की अभिव्यक्ति।

एक समय

कविता और संगीत

सकारात्मक सृजन की दिशा में

शिक्षा के रूप में

मील के पत्थर थे।

आधुनिकता और आयातित संस्कृति के बाहुपाश ने

इन्हें जकड़ लिया,

इनकी भावनात्मकता और रचनात्मकता को

मिटा दिया।

इन्हें कर दिया आहत

और बना दिया

उछल-कूद का साधन,

अश्लीलता, फूहड़ता और कामुकता ने

बदल दिया है इनका रूप।

नई पीढ़ी को

समझना होगी

संगीत और कविता की आत्मा

उसका महत्व

और उसे सार्थक करते हुए

समाज में उन्हें

करना होगा स्थापित

तभी निखरेगा इनका स्वरूप

और निखर उठेगी

हमारी संस्कृति।

काश ऐसा हो !

सृष्टि में मानव है

सबसे महत्वपूर्ण और महान

वह है

परमपिता की सर्वोत्तम कृति।

जीवन में

मनसा-वाचा-कर्मणा

सत्यमेव जयते और सत्यम शिवम सुन्दरम का

समन्वय हो,

ऐसे हों प्रयास

यही है परमपिता की

मानव से आस।

हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाएं

मन को शान्ति

हृदय को संतुष्टि

आत्मा को तृप्ति देती हैं,

हमने सृजन छोड़कर

प्रारम्भ कर दिया विध्वंस।

कुछ पल पहले तक जहाँ

बिखरा हुआ था आनन्द,

अद्भुत और अलौकिक सौन्दर्य

कुछ पल बाद ही

गोलियों की बौछार कर गई

जीवन पर लगा गई

पूर्ण विराम।

हमें विनाश नहीं

सृजन चाहिए।

कोई नहीं समझ रहा

माँ का बेटा

पत्नी का पति

और अनाथ हो रहे

बच्चों का रुदन

किसी को सुनाई नहीं देता।

राजनीतिज्ञ कुर्सी पर बैठकर

चल रहे हैं

शतरंज की चालें

राष्ट्र प्रथम की भावना का

संदेश देकर

त्याग और समर्पण का पाठ पढ़ाकर

भेज रहे हैं सरहद पर

और सेंक रहे हैं

राजनैतिक रोटियाँ।

हम हो जागरूक

नये जीवन का दें संदेश

आर्थिक और सामाजिक तरक्की से

सम्पन्न हो हमारा देश।

मानवीयता हो हमारा धर्म

सदाचार और सद्कर्म

हो हमारा कर्म,

तभी जागृत होगी

एक नयी चेतना

सत्यमेव जयते

शुभम् करोति

अहिंसा परमो धर्मः की कल्पना

हकीकत में हो साकार

हमारे प्यारे देश को

भारत महान

पुकारे सारा संसार।

अहिन्सा परमो धर्मः

अहिन्सा परमो धर्मः

कभी थी हमारी पहचान

आज गरीबी और मंहगाई में

पिस रहा है इन्सान

जैसे कर्म करो

वैसा फल देता है भगवान।

कब, कहाँ, कैसे

नहीं समझ पाता इन्सान।

मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च सभी

बन रहे हैं आलीशान,

कैसे रहें यहाँ पर

परेशान हैं भगवान,

वे तो बसते हैं

दरिद्र नारायण के पास,

हम खोजते हैं उन्हें वहाँ

जहाँ है धन का निवास,

पूजा, भक्ति और श्रृद्धा तो

साधन हैं

हम इन्हीं में भटकते हैं।

परहित, जनसेवा और

स्वार्थरहित कर्म की ओर

कभी नहीं फटकते हैं।

काल का चक्र

चलता जा रहा है

समय निरन्तर गुजरता जा रहा है

दीन-दुखियों की सेवा

प्यासे को पानी

भूखे को रोटी

समर्पण की भावना

और घमण्ड से रहित जीवन से

होता है

परमात्मा से मिलन,

अपनी ही अन्तरात्मा में

होते हैं उसके दर्शन,

जीवन होगा धन्य

प्रभु की ऐसी कृपा पाएंगे

एक दिन हंसते हुए

अनन्त में विलीन हो जाएंगे।

हे माँ नर्मदे!

हे माँ नर्मदे!

हम करते हैं

आपकी स्तुति और पूजा

सुबह और शाम

आप हैं हमारी

आन बान शान

बहता हुआ निष्कपट और निश्चल

निर्मल जल

देता है माँ की अनुभूति

चट्टानों को भेदकर

प्रवाहित होता हुआ जल

बनाता है साहस की प्रतिमूर्ति

जिसमें है श्रृद्धा, भक्ति और विश्वास

पूरी होती है उसकी हर आस

माँ के आंचल में

नहीं है

धर्म, जाति या संप्रदाय का भेदभाव,

नर्मदा के अंचल में है

सम्यता, संस्कृति और संस्कारों का प्रादुर्भाव,

माँ तेरे चरणों में

अर्पित है नमन बारंबार।

अनुभव

अनुभव अनमोल हैं

इनमें छुपे हैं

सफलता के सूत्र

अगली पीढ़ी के लिये

नया जीवन।

बुजुर्गों के अनुभव और

नई पीढ़ी की रचनात्मकता से

रखना है देश के विकास की नींव।

इन पर बनीं इमारत

होगी इतनी मजबूत कि उसका

कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगे

ठण्ड गर्मी बरसात आंधी या भूकम्प।

अनुभवों को अतीत समझकर

मत करो तिरस्कृत

ये अनमोल हैं

इन्हें अंगीकार करो

इनसे मिलेगी

राष्ट्र को नई दिशा

समाज को सुखमय जीवन।