The Author सोनू समाधिया रसिक Follow Current Read रक्षक.... एक जंग प्यार और नफरत की By सोनू समाधिया रसिक Hindi Adventure Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books मी आणि माझे अहसास - 100 विश्वाच्या हृदयातून द्वेष नाहीसा करत राहा. प्रेमाची ज्योत ते... नियती - भाग 35 भाग -35मायराने घरी सर्वांना रामने दिलेली ......उद्या पहाटे स... जर ती असती - 3 "हे काय बोलतोय तू... वेळा झाला आहेस, जे तोंडात येतंय ते बोलत... बकासुराचे नख - भाग १ बकासुराचे नख भाग१मी माझ्या वस्तुसहांग्रालयात शांतपणे बसलो हो... निवडणूक निकालाच्या निमित्याने आज निवडणूक निकालाच्या दिवशी *आज तेवीस तारीख. कोण न... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share रक्षक.... एक जंग प्यार और नफरत की (86) 2.9k 13.6k 15 कीर्तीगढ के महाराजा दर्शन प्रताप सिंह के कुशल प्रशासन, बुद्धिचातुर्य एवं न्यायप्रियता के कारण आज उनके राज्य में चारो ओर सुख समृद्धि थी। कोई भी शत्रु उनके राज्य की तरफ आँख उठाकर भी नहीं देखता था। उनकी वीरता की गाथाएं आस पास के क्षेत्र में प्रसिद्ध थी। प्रजा उन्हें अपने पिता समान मानती थीं और राजा भी उन्हें अपने पुत्र की तरह मानते थे।एक बार राजा दर्शन प्रताप अपने शाही दरवार में बेठे थे कि तभी उनका एक सैनक दरवार मे आकर बोलाbu"महाराज की जय हो!""बोलो द्वारपाल तुम्हारा यहां आना कैसे हुआ।""महाराज! द्वार पर कुछ मुसाफिर खड़े हैं, जो खुद को बंजारे कह रहे हैं वो आपसे कुछ बात करना चाहते हैं।""क्या! मेरे राज्य में मेहमान आये हैं, उन्हें आदर के साथ मेरे पास ले आओ।"कुछ क्षण बाद द्वारपाल कुछ मुसाफिरों के साथ शाही दरवार में राजा के समक्ष उपस्थित होते हैं। उन मुसाफिरों में से एक मुसाफिर जो उस समूह का सरदार था।वो आगे आकर राजा को नमस्कार करते हुए बोला -" महाराज को मेरा नमस्कार है, महाराज हम लोग पास के राज्य से है, वहां किसी शत्रु ने हमला करके हमे बेघर कर दिया है और हम केसे भी करके अपनी जान बचाकर आपके राज्य की सीमा में प्रवेश कर गए आपका नाम सुनते ही वो भाग गये और तब हमारी जान बच पाई। इस तरह हम आपकी शरण में आ गए हैं, महाराज रक्षा करो। "" कौन थे? वो दुष्ट! "" पता नहीं महाराज! प्रभु मेरी आपसे एक विनती है आप मुझे अपनी ही शरण में रख लीजिए, "" कहना क्या चाहते हो तुम "" हम सब आपके राज्य में रहना चाहते हैं, कृपया हमें रहने की आज्ञा दें "" बेशक़! तुम लोग मेरे राज्य में कहीं भी खाली जगह में रह सकते हो "और इस तरह से वो मुसाफिर राज्य के श्मशानघाट के पास खाली जगह पर रहने लगे। कुछ दिन बाद........ एक रात श्मशान घाट के पास सारे मुसाफिर आपस में बाते कर रहे थे। " हमारी एक योजना to सफल हो चुकी है अब हमे दूसरी योजना सही वक़्त आने पर पूरी करनी है। हमें सावधानी पूर्वक अपनी पहचान छुपाकर रहना है!" "जी ।सरदार।" "सरदार मुझे किसी इंसान की गंध आ रही है!" "वो सामने देखो कोई आ रहा है!" "वेशभूषा तो सैनिक की लगती है, पास आने दो "वास्तव में वो राजा का सिपाही ही था। " महाराज ने आपके बारे में पूछने को कहा है, सब कुशल मंगल है ना! कोई परेशानी तो नहीं है ""जी जी हम सब सकुशल हैं और महाराज को मेरा प्रणाम कहना ""जी "सैनक जेसी ही जाने लगता है तभी एक बंजारा उस पर छलांग लगाने की कोशिश करता है। सरदार उसको पकड़ कर अपनी तरफ खींच लेता है। " जल्दबाजी मत करो, तुमको भी अपनी प्यास बुझाने का मौका मिलेगा। "ठीक उसी रात तकरीबन मध्यरात्रि के बाद कोई व्यक्ति जो अपने घर का रास्ता भटक कर श्मशान घाट के पास बने हुए घर के पास पहुच गया। अंधेरे के कारण उसे कुछ भी नहीं दिखाई नहीं दे रहा था। किसी आदमखोर जानवर जेसी अवाज को सुनकर उस व्यक्ति के पांव वही ठिठक गए। वह दबे पांव जब घर के पास पहुंचा तो उसे घर के अन्दर से आ रही धीमी रोशनी में उस घर के दरवाजे के सामने उसे किसी जंगली जानवर के पंजों के निशान दिखे, उसने डरते हुए किवाङो के एक सुराख से अंदर झांक कर देखा तो खौफ के मारे उसकी चीख निकल पड़ी और वो उल्टे पांव वहां से भाग खड़ा हुआ। चीख सुनकर सभी मुसाफिर बाहर निकल आए। "सरदार लगता है कि किसी इंसान को हमारी असलियत का पता चल गया है, अब क्या करें!" "करना क्या है, वो यहां से ज्यादा दूर नहीं गया होगा, जाओ तुम लोग चारों दिशाओं में फैल जाओ, बचकर नहीं जाना चाहिए,। जाओ जल्दी से और अपनी प्यास बुझाओ।" सभी बंजारे बिजली की गति से चारों दिशाओं में फैल गए। वह व्यक्ति भागता हुआ एक पीपल के पेड़ के नीचे पहुंच गया उसकी साँसें थम नहीं रही थी, वह अपनी जान बचाने के लिए पीपल के पेड़ पर चढ़ गया और उसकी टहनियों में छिप कर बेठ गया। कुछ क्षण बाद एक बंजारा उस व्यक्ति को खोजता हुआ वहा पहुंच जाता है और पीपल के पेड़ के नीचे खड़ा हो कर इधर उधर देखता है। "मुझे पता है कि तुम मेरे आस पास कही छिपे हुए हो, मुझे तुम्हारी गंध आ रही है। तुम्हें हमारी पहचान पता चल चुकी है, अब तुम्हें मरना ही होगा। " उस बंजारे ने अपनी सांसो को तेज़ करते हुए कहा। इस तरह की बातें सुनकर वह व्यक्ति डर से काँप ने लगा जिससे पीपल की पत्तियों की आवाज उस बंजारे के कानो में पड़ी उसने ऊपर की ओर देखा और बिजली की रफ्तार से ऊपर चड़ गया। " मुझे पता चल गया है कि तुम इंसान नहीं पिशाच हो" "इसलिए तुमको मारना है" और वह बंजारा देखते ही देखते एक आदमखोर पिशाच में तब्दील हो गया और उसने उस व्यक्ति का खून पी लिया। अगले दिन की शुरुआत हो चुकी थी। लोग अपनी दिनचर्या को पूर्ण कर अपने खेतों पर निकल गये थे और ग्वाले अपने मवेशियों को चारा खिलाने के लिए निकल पड़े थे। रोजाना की तरह आज का भी मौसम खुशनुमा था। तभी एक ग्वाले की नजर उस व्यक्ति के शव पर पड़ी तो वह घबराकर भागता हुआ। राजा के पास पहुंचा और घटना की पूर्ण जानकारी दी। राजा बिना विलंब के सेनापति सहित घटना स्थल पर पहुंचे। सेनापति मेघ सिंह जो एक महान योद्धा के साथ चतुर भी था। उसने शव का निरीक्षण करने के बाद कहा कि - "महाराज इसे किसी इंसान ने नहीं, खून पीने वाले किसी आदमखोर जानवर ने मारा है। देखिए इसकी गर्दन पर दाँतों के निशान है।" जेसे ही एक सैनिक ने शव को कब्जे में लेना चाहा कि तभी वो व्यक्ति ने उस पर हमला कर दिया और उसे काटना चाहा उससे पहले सेनापति मेघ सिंह ने लपककर अपनी तलवार से उसका गला काट दिया। सेनापति को स्थिति भांपने मे देर नहीं लगी। " महाराज इसे किसी जानवर नहीं पिशाच ने काटा है। संभवत कोई पिशाच हमारे राज्य प्रवेश कर चुके हैं" "सेनापति जी अब आप राज्य की सुरक्षा और बड़ा दीजिए।" "जी! महाराज" तीन चार माह के बाद...... उसी श्मशान घाट पर"साथियों, अब सही समय है हमें अब अपनी दूसरी योजना के अनुसार कार्य करने का "" जी, सरदार।"" रूपसी को बुलाओ "रूपसी के आने पर उसको अपनी योजना समझाता है। दूसरे दिन सुबह राजा दर्शन सिंह मोसम का मिजाज खुशनुमा देखकर आखेट पर अपने कुछ सैनिको के साथ निकल पड़े। शिकार की तलाश में राजा अपने सैनिकों से बिछड़ गये। धूप के कारण राजा प्यास बुझाने के लिए पानी की तलाश में भटकने लगे तभी उन्हें एक तालाब दिखा तो उन्होंने वहां जाकर जल पिया और पास ही एक बरगद के पेड़ के नीचे थोड़ा आराम के हेतु लेट गये। मंद मंद बहती शीतल हवाओं के स्पर्श से पता नहीं राजा की कब आंख लग गयी। तभी राजा के कानो में पायल की आवाज पड़ी तो राजा एकदम से चौक कर इधर-उधर देखने लगा, उसने देखा सामने तालाब में एक अपूर्व सुंदर युवती अपने घड़े में जल भर रही है राजा उसकी सुंदरता को देखकर मोहित हो गये। तो वो खड़े होकर उस युवती के पास जाकर बोले "हे, सुंदरी आप कौन हैं? और आप इस जंगल में क्या कर रही हैं।और आपका नाम ky" "मैं आपके राज्य के मनीराम सेठ की बेटी हूँ और मैं यहां जल लेने आयी हूँ!" "चलिए। मैं आपको आपके घर तक अपने घोड़े से छोड़ देता हूं" "जी!" रूपसी और राजा जैसे ही घोड़े के पास पहुंचे तो घोड़ा हीन हीनाकर इधर-उधर भागने की कोशिश करने लगता है। रूपसी स्थिति को भांप लिया। " रहने दीजिए महाराज मै अकेली ही चली जाऊँगी,। आप जाइये "ऎसा कह कर रूपसी वहां से चली जाती है। राजा ने महल में आकर उस मनीराम सेठ के यहाँ जाकर उनकी बेटी का हाथ मांगते हैं और इस प्रकार राजा की रूपशी से विवाह हो गया। कुछ माह बाद राजा दर्शन प्रताप सिंह को एक तमश नामक पुत्र रूपी रत्न प्राप्त हुआ। एक बार दर्शन सिंह के राज्य में उनके कुल गुरु महान ज्योतिषाचार्य शिवानन्द का आगमन हुआ। राजा ने उनको प्रणाम किया। "राजन्,! मै तुम्हें चेताने आया हूँ मुझे आभास हुआ है कि तुम्हारा राज्य पर पिशाचओं का साया पड़ चुका है। तुम्हारे महल भी उनसे अछूता नहीं रहा है वो प्रवेश कर चुके हैं महल में"। "" भगवन! ये आप क्या कह रहे हैं। "" मैं सत्य कह रहा हूँ और हाँ तुम्हारा पुत्र कोई साधारण मनुष्य नहीं है वो तो........ खैर तुम ये पिशाच नाशक यंत्र लो और इसे इसी क्षण अपने गले में पहन लो अब मे प्रस्थान करता हूं" इतना कहकर शिवानंद जी वहां से चले गए। उसी रात रूपसी सबके सो जाने के बाद अपने कक्ष से बाहर निकल कर आती है और वो काले लिबास में थी जेसे ही उसके पास पहरेदार आते वो उन्हें मूर्छित करती जाती। वो जंगल में अपने सरदार से मिलती है " वाह! रूपशी तुमने बहुत अच्छा कार्य किया है। " अब आगे क्या करना होगा सरदार "" अब तुमको राजा को मारना होगा अभी जाकर तुम राजा को मार डालो क्यों कि हमें अपना उत्तराधिकारी मिल गया है। "" जो अग्या सरदार "" रूपशी वापस राजा के कक्ष में पहुंच जाती हैं और अपने नुकीले दांतों से राजा पर हमला करती है और तभी पिशाच नाशक यंत्र के स्पर्श से वो वायु में लहराती हुई दूर करने जा गिरी आवाज सुनकर राजा उसके पास जाकर पूछा कि - "क्या हुआ महारानी आप ठीक तो हो इतनी रात्रि के समय आप हमारे कक्ष में केसे,?" "कुछ नहीं महाराज व.. व.. वो सांप ? था।" "कहाँ है सांप।" "वो कक्ष के झरोखे से बाहर निकल गया है जंगल में।" राजा रानी रूपसी को उनके कक्ष में छोड़कर आते हैं। दूसरी रात को रूपसी अपने सरदार के पास पहुँची। " सरदार मैं अपने कार्य को करने में असफल रही कार्य तो पूरा हो गया होता अगर उस ढोंगी बाबा का दिया हुआ पिशाच नाशक यंत्र बीच में ना आता "" तो क्या हुआ ये कार्य अपने बेटे तमस से करवाओ वो भी तो एक पिशाच है वो कब काम आएगा हमारे।" "परंतु सरदार वो तो एक अर्ध पिशाच है। "" तो क्या हुआ है तो पिशाच जाओ उसका अंदर का जानवर को जगा दो। "सुबह रानी रुपशी अपने पुत्र तमस को वन भ्रमण पर ले गयी, घूमते हुए वे दोनों जंगल में प्रवेश कर गए। " पुत्र! तुम्हें शिकार करना आता है या नहीं।"" नहीं माँ।" " आओ मैं तुम्हें शिकार करना सिखाती हूँ। "" केसे माँ। "" वह देखो सामने कौन है। "" माँ वह एक अपने राज्य का लकड़हारा है जो लकड़ियाँ काट रहा है।" "बहुत सुंदर! अब तुम जाओ और उसका शिकार करो!" "ये आप क्या कह रही हैं माँ मै एक मनुष्य होकर मनुष्य का शिकार कर सकता हूं और हमारा एक राजकुमार होने के नाते दायित्व है कि हम किसी को हानि न पहुंचाए, उसकी रक्षा करें। "" तुम इंसान हो ही नहीं देखो में दिखाती हूँ कि केसे शिकार किया जाता है! "" आप कुछ भी नहीं करेंगी, रुक जाइये माँ "और रूपसी तमस की बातों को अनदेखा करते हुए बिजली की रफ्तार से उस लकड़हारा पर हमला कर देती है और उसका खून पीने लगती है ऎसे दृश्य को देख कर तमस चीख पड़ता है और अपने दोनों कान बंद कर घुटनों के बल बेठ जाता है तभी उसके अंदर पैशाचिक शक्तियाँ जाग्रत होने लगती है और वो कांपता हुआ एक पिशाच बन जाता है और उस दिन से राज्य में एसी घटनाएँ दिन व दिन बढ़ ने लगी। पूरे राज्य में भय व्याप्त हो गया था राजा भी चिन्तित थे उन्होंने पूरे राज्य में सुरक्षा के पुख्ता इंतजार कर दिए। उधर रुपशी ने तमस को अपनी योजना बता दी कि कीर्ति गढ़ पर केसे पिशाचओ की हुकूमत करनी है और केसे अपने लक्ष्य में रुकावट आने वाले राजा को केसे मारना है। सुबह.. "पिताजी आपसे मुझे कुछ कहना है।" "निश्चिंत होकर कहो मेरे प्रिय पुत्र।" "पिताजी मैं चाहता हूं कि आप मेरे साथ शार्क आखेट पर चले।" "क्या? ये केसी कामना है आपकी मेरे प्रिय पुत्र ये बहुत ही खतरनाक और जानलेवा है इसे कोई भी आज तक नहीं जीत सका है इसे केवल हमारे पूर्वज ही खेला करते थे। "" चलिये ना पिताजी मेरे ही खातिर सही जब आप जेसा महावीर मेरे साथ है तो कैसा डर। "राजकुमार और राजा शार्क आखेट पर निकल पड़े थे। शार्क आखेट एक ऎसा खेल था जिसमें 100 मीटर के व्यास वाले गोल द्वीप मरकांडा पर खड़े होकर चारों तरफ़ से घिरे आदमखोर शार्क युक्त सागर से होने वाले हमलो को निष्क्रिय करके उन्हें खत्म करना होता था। दोनों अपने कुछ सैनिकों के साथ उस द्वीप पर पहुंच गए और उनके पहुंचते ही शर्को ने उनपे हमला बोल दिया दोनों लगातार शर्को को मुंहतोड़ जवाब दे रहे थे राजा दर्शन सिंह तमस की गजब की फुर्ती देखकर आश्चर्यचकित थे वो अकेला ही से कड़ों ? शर्को पर भारी पड़ रहा था। कुछ घंटों के भीतर दोनों ने मरकांडा द्वीप पर विजय हासिल कर ली थी। "पिताजी आपके गले में ये क्या है।" "ये बेटा पिशाच नाशक यंत्र है।" "अरे पिताजी में हूँ न आपके पास फिर इसकी क्या जरूरत हटाओ इसे।" इस तरह से तमस ने वो सुरक्षा कवच हटवा दिया जिससे राजा को मारना और आसान हो जाय। राजा के और उनके सैनिकों के शर्को के हमले से कई जगह घाव बन गये थे जिनसे खून रिस रहा था तमस की उन जगहों पर नजर गयी तो वह अपना आपा खो बेठा और उसने एक सैनिक पर हमला कर उसका खून पी लिया। "कौन हो तुम? तुम मेरे पुत्र नहीं हो सकते, तुम कोई पिशाचओ के गुप्टचर लगते हो, सच बता दो नहीं तो तुम्हें मौत के घाट उतार दूँगा।" राजा ने तमस के गले पर तलवार रखते हुए कहा।. "अरे! पिताजी मे आपका ही पुत्र हूँ परंतु में एक इंसान नहीं हूँ मैं तो बस एक पिशाच हूँ जो अपना बदला लेने के लिए आया हूँ।"" कैसा बदला? "" वही बदला जो 20 वर्ष पहले तुमने ही पिशाचओ को किर्ति गढ़ खदेड़ दिया था। अब मै आया हूँ अपने राज्य को वापस लेने के लिए इसके लिए तुम्हें मरना होगा। "और तभी तमस ने आकाश की ओर मुंह करके एक अवाज निकाली जिससे सागर में हलचल होने लगी और उनमें से कई सारे पिशाच निकले जिन्होंने राजा और सैनिकों पर हमला बोल दिया और देखते ही देखते सारा मरकांडा द्वीप शावो से पट गया और राजा भी घायल हो चुके थे। वो पिशाचओ से अभी तक लड़ रहे थे। तमस उन्हें नफरत की नजर से देखे जा रहा था। लहूलुहान राजा अपने बेटे को कातर नजरो से देख रहा था पिशाच उसे चीङ कर खा जाने के लिए आतुर हो रहे थे तभी राजा तमस को पुकारते हुए बेहोश हो गया मगर राजा की आवाज में एक याचना थी जो तमस के अंदर धड़क रहे इंसानी हृदय को छू गयी ये वही दिल ? था जो उसे राजा की वजह से ही मिला था। जो और पिशाच के पास नहीं था। तमस का ?हृदय ज़ोर से धड़कने लगता है और अचानक से वह राजा के पास पहुंच गया और उसने सभी पिशाचोंको राजा के ऊपर से उठा कर फेंक दिया तमस का ऎसा रूप देख कर सभी पिशाच वहां से भाग गए और तमस राजा को गले से लगा कर रो पड़ा वो तमस रूपी इंसान था जिसे संवेदनाएं राजा के द्वारा ही मिली थी,। वो राजा को अपनी वाहों में उठाकर सागर की लहरों पर दोडता हुआ उन्हें वैध के पास ले गया और वहां पर वो उपचार से बिलकुल ठीक हो गये राजा ने अपनी आँखों को खोला तो अपने हाथो को तमस के हांथों मे पाया। तमस ने राजा को ठीक देखकर उनके हांथों को अपने अधरों से चूम लिया और उन्हें अपने मस्तक पर रखकर बिलख़?? बिलख़ कर रोने लगा। "पिताजी मुझे माफ़? कर दीजिए आप जो चाहें सजा दे दीजिये मुझे हर सजा मंजूर है ये मेने जानबूझकर नहीं किया। मैं रक्त को देखकर ख़ुद से नियंत्रण ?खो देता हूं पिताजी फिर मुझे कुछ याद नहीं रहता मुझे जिसने इस कार्य के लिए विवश किया है वो कोई और नहीं मेरी ख़ुद...... ।"इतना कह कर वो चुप रह गया और उसके चेहरे पर विषाद की रेखाओं की जगह भय ने ले ली थी क्योंकि सामने उसकी माँ जो इंसानी भेष में ना हो कर पिशाच के रूप में थी जो शनै शनै राजा के अध भरे घावो की तरफ देखती हुई अपने दांतो की नुमाइश करती हुई आगे बडती जा रही थी। " माँ रुक जाइए आप ऎसा नहीं कर सकती, वो मेरे पिताजी और आपके पति हैं माँ। आपसे मेरी प्रार्थना है माँ मेरे लिए रुक जाइये" इतना कहकर तमस रुपसी के चरणों को पकड़ कर रोने लगा। परंतु रूपसी पर इसका कोई असर नहीं पड़ा था उसने अपना कार्य पूर्ण करने की तैयारी कर ली थी उसने अपने पेरो मे पड़ रहे रुकावट को एक जोरदार ठोकर मारी जिससे तमस दूर जा गिरा। जिससे उसे क्रोध आ गया उसकी आँखें लहू जेसी लाल हो गई। और उसने अपने पिताजी के लिबास से एक चांदी का खंजर निकाला जो राजा पिशाचओ के खात्मे के लिए प्रयोग करते थे चांदी के स्पर्श से तमस के हाथ भी जलने लगे थे तमस के हाथो में खंजर देख रूपसी डर गयी और बोली "पुत्र ये क्या कर रहे हो तुम मे तुम्हारी माँ हूँ क्या तुम अपनी माँ को इस दुश्मन के लिए मार डालोगे क्या?" "नहीं माँ ये दुश्मन नहीं ये मेरे पिता है और जिन्हें कोई भी अगर नुकसान पहुचाने की चेष्टा करता है तो मै उसे जीवित नहीं छोड़ूंगा चाहे वो आप ही क्यू ना हो। "तभी सहसा रूपसी ने तमस की गर्दन पकड़ ली और उसे दीवार पर दे मारा जिससे तमस मूर्छित हो गया और उसके सर से खून की धारा बह निकाली। " जा तू भी मेरा पुत्र नहीं कोई भी हो जो भी मेरे रास्ते में आएगा उसे केवल मृत्यु ही नसीब होगी। "रूपसी ने राजा के गले को अपने ? नाखूनों से छेद दिया जिनसे खून निकल आया उसने अपने दांत राजा की गर्दन की ओर बड़ाये तब तक तमस ने उसकी पीठ में चांदी का खंजर घोप दिया। रूपसी की चीख निकल गई। " बेटा मुझे बचा लो। "" माँ आपके स्वभाव में इतनी अच्छाई नहीं जिसमे बचाने की कोई ? गुंजाइश नहीं।" और तमस ने रूपसी को मरने के लिए छोड़ दिया। कुछ माह बाद राजा स्वस्थ होकर तमस को लेकर अपने शिवानंद के पास पहुंचे तो उन्होंने बताया कि तमस ना ही इंसान हैं और ना ही पिशाच ये केवल अर्ध पिशाच है। पिशाचओ के पास दिल ? नहीं होता है परंतु इसके पास दिल है वो भी सभी पैषाचिक शक्तियों के साथ। "इसकी माँ पिशाच होने के कारण ये शापित है ये शाप 21 वर्ष की आयु में इसके पिता के इंसान होने की वजह से खत्म हो जाएगा। अगर ये बालक शाप मुक्त हो जाता है तो तुम्हारे राज्य से भी पिशाचओ का साया हमेशा के लिए दूर हो जाएगा। उससे पहले तुम्हें सावधानी बरतनी होगी।" सूर्य ने अपनी रश्मियों को नीले स्वच्छ गगन में यूँ बिखेर दिया था जेसे मानो वो भी अपने राजकुमार तमस को शाप मुक्त देखने की लालसा रखता है और पशु पक्षी भी इस दिवस के आनंद का इजहार अपनी तरफ से विभिन्न प्रकार के क्रिया कलाप द्वारा कर रहे थे।राजमहल में भी काफी चहल पहल थी क्योंकि आज राजकुमार का,21 वाँ जन्मदिन था। राज्य के प्रांगण में स्थित शिवमंदिर को भी सजा दिया गया था क्योंकि आज शिव का भी अभिषेक किया जाना था। इस अवसर पर पिशाच भी कहा शांत बैठने वाले थे।सब तैयारियों होने के बाद जैसे ही पंडित जी से शिव जी का अभिषेक करने को कहा गया तो उन्होंने माना कर दिया तभी सेनापति ने उन्हें बल द्वारा उन्हें मजबूर किया तो उन्होंने कांपते हाथों से जेसे ही शिव के मस्तक को छुआ तो वह जलकर राख हो गये दरअसल वो कोई और नहीं पंडित के रूप में पिशाच था। एक योजना के अंतर्गत सभी पिशाच किसी ना किसी के रूप में राज्य में प्रवेश कर चुके थे और तभी कई नागरिक जो पहले साधारण दीख रहे थे वो अचानक पिशाच मे परवर्तित हो गये और सभी ने हमला बोल दिया। राजा ने पहले से ही सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम कर दिए थे। पिशाचओ के हमले से प्रजा में भागदौड़ मच गई! तमस, राजा और सैनिकों ने हमले का करारा जवाब दिया कई पिशाचओ को मौत के घाट उतार दिया गया था।कई सैनिक भी हताहत हुए तमस ने पिशाचओ के सरदार को मारकर हवन कुंड में फेंक दिया जिससे वह तुरंत मर गया।कुछ क्षण बाद तामस की शक्ति कमजोर होने लगी क्योकि वह पिशाच से इंसान में बदलने लगा था। पिशाच की भी संख्या दस बीस के लगभग थी। सभी प्रसन्नता से तमस को देखने लगे तभी पिशाचओ के एक समूह ने तमस पर हमला करके उसे हवन धक्का दे दिया जिससे तमस बुरी तरह से घायल हो गया था यह देख राजा ने सभी पिशाचओ को बुरी तरह से मार डाला और दौड़के तमस के पास पहुंचे। उन्होंने देखा कि तमस अपनी अंतिम सांसे गिन रहा था।राजा ने तमस के सर को अपनी गोद में रख लिया तमस कुछ कह नहीं पा रहा था केवल वो राजा की तरफ देखे जा रहा था उसकी आँखों से अश्रु धारा बही जा रही थी और कुछ क्षण बाद उसकी आँखे खुली रह गयी थी और सांसे हमेशा के लिए थम चुकी थी। हवन कुंड की राख उसके लिए पिशाच नाशक साबित हो गई थी क्यो कि वो पूर्ण रूप से इंसान नहीं बन पाया था। उसकी इंसान बनने की इच्छा चिर समय के लिए दूर होती चली गई थी। खुशी का माहौल अचानक विशाल शोक सागर में विलीन हो गया था।तमस ने अपने पिता के लिए खुद को न्योछावर कर दिया। ?समाप्त ?कहानी कैसी लगी बताना मत भूलना।?आपका सोनू समाधिया 'रसिक ?' ??जै श्री राधे ?? 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