Corporate Gadhe in Hindi Comedy stories by Ajay Amitabh Suman books and stories PDF | कॉर्पोरेट गधे

Featured Books
  • ખજાનો - 86

    " હા, તેને જોઈ શકાય છે. સામાન્ય રીતે રેડ કોલંબસ મંકી માનવ જા...

  • ફરે તે ફરફરે - 41

      "આજ ફિર જીનેકી તમન્ના હૈ ,આજ ફિર મરનેકા ઇરાદા હૈ "ખબર...

  • ભાગવત રહસ્ય - 119

    ભાગવત રહસ્ય-૧૧૯   વીરભદ્ર દક્ષના યજ્ઞ સ્થાને આવ્યો છે. મોટો...

  • પ્રેમ થાય કે કરાય? ભાગ - 21

    સગાઈ"મમ્મી હું મારા મિત્રો સાથે મોલમાં જાવ છું. તારે કંઈ લાવ...

  • ખજાનો - 85

    પોતાના ભાણેજ ઇબતિહાજના ખભે હાથ મૂકી તેને પ્રકૃતિ અને માનવ વચ...

Categories
Share

कॉर्पोरेट गधे

आज दिल्ली में गर्मी आपने उफान पे थी। अपनी गाड़ी की सर्विस कराने के लिए मै ओखला सर्विस सेंटर गया था। गाड़ी छोड़ने के बाद वहां से लौटने के लिए ऑटो रिक्शा ढूंढने लगा। थोड़ी ही देर में एक ऑटो रिक्शा वाला मिल गया।

मैंने उसे बदरपुर चलने को कहा।

उसने कहा ठीक है साब कितना दे दोगे ?

मैंने कहा: भाई मीटर पे ले चलो ,अब तो किराया भी बढ़ गया है ,अब क्या तकलीफ है?

उसने कहा :साहब महंगाई बढ़ गयी है इससे काम नहीं चलता।

मैं सोच रहा था अगर बेईमानी चरित्र में हो तो लाख बहाने बना लेती है। इसी बेईमानी के मुद्दे पे सरकार बदल गयी। मनमोहन सिंह चले गए ,मोदी जी आ गए पर आम आदमी में व्याप्त बेईमानी अभी भी जस के तस है।

मैंने रिक्शे वाले से कहा भाई एक कहावत है

"ते ते पांव पसरिए जे ते लंबी ठौर"

अपनी हैसियत के हिसाब से रहो ,महंगाई कभी कष्ठ नहीं देगी। आजकल कार में घूमता हूँ ,कभी बस में घूमता था । अगर इतना कष्ट है ,एग्जाम पास करो और सरकारी नौकरी पा लो , कौन रोका है तुम्हे ?

ऐसा लगा मैंने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया । उसने कहा इस आरक्षण के ज़माने में सरकारी नौकरी पाना रेगिस्तान में तेल निकालने के बराबर है।

संविधान बनाने वालों ने तो कुछ ही समय के लिए आरक्षण का प्रावधान रखा था पर आब तो आरक्षण की राजनीति चल पड़ी। पिछड़ों का भला हो ना हो, आरक्षण की राजनीति करने वालों का जरूर भला हो रहा है।

मैंने कहा उससे तो फिर प्राइवेट जॉब करने से तुम्हे कौन रोक रहा है।

वो हँसने लगा। साहब आपको लगता है प्राइवेट सेक्टर में मेरिट की क़द्र है ? जो जितना मेधावी है उसे नीचे करने में सारे लग जाते है । प्राइवेट सेक्टर में आगे बढ़ने के लिए चाटुकारिता बहुत जरुरी है ।

उसकी आगे की बातें मुझे अचंभित करने वाली थी । उसने कहा रामधारी सिंह दिनकर की वो बातें आपको याद है?

"यदि सारे गधे किसी व्यक्ति को मारना शुरू कर दे तो समझो वो व्यक्ति प्रतिभाशाली नहीं बल्कि महाप्रतिभाशाली है'

मैंने कहा भाई ये सब आपको कैसे पता है।

उसने कहा कविता कहानियां भी लिखता हूँ । पत्रिकाओं में पब्लिश होती रहती है । परिवार नहीं चलता उससे इस कारण आटो चलाना पड़ता है।

उसने आगे कहा कि प्राइवेट जॉब भी करके देख लिया। वहां पे आत्म स्वाभिमान की ऐसी तैसी हो जाती है। यदि आपमें थोडा सा भी आत्म स्वाभिमान है तो प्राइवेट जॉब करना भारी पड़ जायेगा।

बात चीत करते करते मेरा गंतव्य स्थल आ गया । जब मैंने उसे 80 रूपये दिए तो उसने मना कर दिया और सिर्फ 30 रूपये लिये ऑटो के सी न जी गैस के लिये ।

उसने कहा भाई आपने मेरी बातोँ को इतने ध्यान से सुना इससे दिल खुश है । मेरे आत्म स्वाभिमान को तुष्टि मिली है । प्राइवेट जॉब भी इसीलिए नहीं कर पाया क्योकि मैं प्रतिभाशाली गधा नहीं जो पैसे के लिए मालिक की हाँ में हाँ मिलाता रहे,अपनी दुम हिलाता रहे।

उतरने के बाद भी उसकी ये बातें मेरी जेहन में घूम रही थी।

सहना भी तो एक प्रतिभा है

मालिक की हाँ में हाँ मिलाना भी तो एक प्रतिभा है

दम हिलाना भी तो एक प्रतिभा है

गधे की तरह ही सही

एम्प्लोयी मालिक के सामने दुम हिलाता है

और मालिक क्लाइंट के आगे।

जो सही तरीके से अपनी दुम हिलाना जान गया समझो वो जीत गया।

प्रतिभाशाली गधे ही आगे बढ़ते है

ये बात शायद ऑटो वाला नहीं समझ पाया।



अजय अमिताभ सुमन
सर्वाधिकार सुरक्षित