दादाजी
घर भर में मानों भूचाल आ गया था I बचपन में चाचा चौधरी की कॉमिक्स में पढ़ा था कि जब साबू को गुस्सा आता है तो कहीं ज्वालामुखी फ़ट जाता है, वैसा ही हाल कुछ आजकल मेरे घर पर हो रहा था I वजह थी मेरे दादाजी ....
जब दादाजी को जरा सा जुखाम भी आ जाता था, तो वो चीख-चीख कर पूरे घर को सर पर उठा लेते थे,पर इस बार तो जैसे क़यामत ही आ गई थी I उन्हें पूरे सौ डिग्री बुख़ार आ गया था I आस पड़ोस से लेकर दूधवाले, दहीवाले , बिजलीवाले , पोस्टमैन , धोबी और उनके संपर्क में आने वाला शायद ही कोई व्यक्ति इस ख़बर से अनजान रहा होगा I
अब सबसे बड़ी जिम्मेदारी थी मेरी, क्योंकि दादाजी मुझे बहुत प्यार करते थे, इसलिए सर्दी की छुट्टियों में मेरी ही ड्यूटी अपने कमरे में लगवा ली I मैं मन ही मन बहुत कुनमुनाया कि दादाजी को भी मेरी छुट्टियों में ही बीमार पड़ना था I मैंने अपने दोस्तों के यहाँ जाने के लिए लाख बहाने किये पर दादाजी ने मुझे अपने पास बैठने की सख़्त हिदायत दी थी और जिसे काटने की हिम्मत जब पिताजी को भी नहीं थी तो मेरी क्या बिसात I अगली सुबह जब अखबार वाले ने अखबार फेंका तो दादाजी ने चौकन्ने हो कर पूछा -" अरे इस तिवारी को क्या तुमने मेरी तबीयत के बारे में नहीं बताया ?"
मैं कुनमुनाते हुए आधी नींद से जाग कर बोला-" दादा जी, कल तो बताया था I"
"तो फ़िर, उसकी इतनी हिम्मत कि वो बिना मेरा हाल चाल लिए ही अखबार बालकनी में फेंक कर चला जाए ?अरे आख़िर सुख-दुख में आदमी -आदमी के काम नहीं आएगा तो भला कौन आएगा ?"
दादाजी के ये क्राँतिकारी विचार सुनते ही मैं समझ गया कि अब दूसरे दिन बेचारे तिवारी अंकल की खैर नहीं है I
तभी मम्मी चाय का कप लेकर मुस्कुराते हुए आई और बोली -" आज दोपहर में मैंने आपके सभी दोस्तों को घर पर बुला लिया है I उनके साथ बैठकर बातें करने से आपका मन बदल जाएगा I"
यह सुनते ही दादाजी के चेहरे पर चमक आ गई और वह उठ बैठे, पर तभी अचानक उन्हें याद आ गया कि वो बीमार है इसलिए उदास स्वर में बोले -" हाँ, बिलकुल ठीक किया तुमने..वैसे भी इतने तेज बुखार में अकेले मेरा मन बहुत घबरा रहा है I"
मैंने चिढ़ते हुए पूछा -" आपने मुझे पल भर के लिए भी तो कमरे से बाहर जाने की इजाजत नहीं दी तो आप अकेले कहाँ से हैं "
"ओफ्फो, नादान बच्चा है तू , समझा कर, तेरी मम्मी के सामने यह सब कहना पड़ता है I" धीरे से कहते हुए दादाजी ने मुझे सीने से लगा लिया
उसके बाद तो दोपहर में उनके दोस्तों के आने पर घर में वो धमाचौकड़ी मची कि आधा मोहल्ला जान गया कि दादाजी बेचारे बहुत बीमार हैं I
कई बार तो मुझे लगता है कि दादा जी को अपने अलावा किसी की चिंता ही नहीं है I वह सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने बारे में सोचते है I पर यह बात मैं उनसे कभी कह नहीं पाया I
दादा जी के अलावा सब जानते थे कि उनका बुखार ठीक हो चुका है पर वो निन्यानबे को भी तेज बुखार माने हुए बैठे थे और बिस्तर पर आराम करते हुए दिन रात अपनी चिंता करते थे और हम सब से जबरदस्ती करवाते भी थी I
एक दिन हल्की बूँदाबाँदी हो रही थी कि अचानक दादा जी का मन उमड़ते काले बादल और ठंडी हवा देखकर गरमागरम समोसे खाने के लिए मचल उठा
मम्मी ने कहा -"मैं फटाफट आपके लिए गरमा गरम समोसे बना देती हूं I
पर दादा जी बोले -"नहीं,बिलकुल नहीं, तुम्हें वो सारी चीज़े पता ही नहीं है जो नुक्कड़ वाला हलवाई अपने समोसों में डालता है I"
मम्मी हँस दी और मुझसे बोली -"जल्दी से जाकर दादाजी के लिए समोसे ले आओ I"
दादा जी यह सुनकर बच्चों की तरह खुश हो गए और कहने लगे-" हाँ, जरा जल्दी लेकर आना I लगता है यह बुखार अब वो तीखी लाल मिर्च वाले समोसे खा कर ही ठीक होगा I"
मैं मुस्कुरा दिया और अपनी सायकिल के पास जा पहुँचा I पर सायकिल देखते ही मेरा मन वापस घर लौट्ने को हुआ क्योंकि उसका पिछला टायर पंचर था I पर तभी मैंने देखा कि दादाजी खिड़की से आधे बाहर लटके हुए मुझे देखकर हाथ हिला रहे है I मैं उनको देखकर मुस्कुरा दिया और पैदल ही हलवाई की दुकान की ओर बढ़ चला I हल्की बूंदाबांदी ने कुछ ही मिनटों बाद मुसलाधार बारिश का रूप ले लिया I मैं पूरी तरह से भीगा हुआ ठंड से कंपकपाते हुए हलवाई की दुकान पर पहुँचा और उसे पैसे देकर जैसे ही समोसे पकड़े , मैंने देखा दादा जी पूरे भीगे हुए हाथ में छाता पकड़े खड़े हैं I
मैंने कुछ गुस्से से कहा -"दादाजी, अभी आप का बुखार पूरी तरह ठीक भी नहीं हुआ और आप यहाँ इतनी बारिश में चले आए I"
दादाजी कुछ नहीं बोले बस उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखा और मेरे ऊपर छाता लगा दिया I मैं सारे रास्ते उन्हें कहता रहा कि उन्हें बारिश से बचाव करना चाहिए, पर मैं नहीं माने I घर पहुँचते ही मुझे छींकों के साथ ही हल्का बुखार आया और रात होते-होते मुझे तेज बुखार हो गया I
मम्मी ने तुरंत डॉक्टर अंकल को घर पर ही बुलवा लिया I कुछ दवाइयाँ खाने के बाद में सो गया I
सुबह जब मैं जागा तो मैंने देखा कि दादाजी मेरे बगल में ही बैठे हुए थे और उन के समोसे की प्लेट बिल्कुल अनछुई रखी थी I मैंने धीरे से पूछा -" दादा जी आपने समोसे नहीं खाए ?"
" नहीं, तू पहले अच्छा हो जा I " कहते हुए दादाजी का गला भर आया
" तेरे दादाजी ने समोसे तो क्या, कल से एक बूंद पानी तक नहीं पिया है I" मम्मी परेशान होती हुई बोली मेरे अच्छे दादा जी कहते हुए मैंने उनका हाथ पकड़ लिया I उनका हाथ गरम तवे सा जल रहा था I
जरा सी छींक आते ही जो चिल्ला -चिल्ला कर सारा घर सर पर उठा लेते थे, आज वह तेज बुखार में चुपचाप बिना कुछ बोले सारी रात से भूखे प्यासे मेरे बगल में बैठे थे I मेरी आँखों से आँसूं बह निकले और मैं दादा जी से लिपट कर रोने लगा I
"क्या हुआ ...क्या हुआ "कहते हुए दादाजी बार-बार मेरे सर पर हाथ फेर रहे थे I पर इसकी वजह शायद मैं उन्हें कभी नहीं बता पाऊंगा ...कभी नहीं.
डॉ. मंजरी शुक्ला