LO langh di maine meri maryada in Hindi Motivational Stories by Sonia chetan kanoongo books and stories PDF | लो लाँघ दी मैंने मेरी मर्यादा ,क्या सजा मुकम्मल है (आईपीएस धारा 497)

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लो लाँघ दी मैंने मेरी मर्यादा ,क्या सजा मुकम्मल है (आईपीएस धारा 497)

मुझे माफ़ करदो प्रिया, गलती हो गयी मुझसे, ग़लती नही गुनाह हो गया,तुमम मुझे जो सजा दोगी वो मुझे मंजूर होगी, पर तुम घर छोड़ कर मत जाओ, हमारे बच्चे उनसे ये हक़ मत छीनो, मैं जानता हूँ तुम मुझे क़भी माफ नहीं कर पाऊँगी,पता नही मुझे क्या हो गया था, मैं बहक गया था प्रिया।

हाथों में सूटकेस लिए प्रिया तैयार थी घर की दहलीज़ लांघने के लिए, क्योंकि आज सारी हदें पार हो गयी थी, आज विश्वास टूटा था जिसकी चुभन उन कांच के टूटे टुकड़ो की तरह दिल से लहू बहा रही थी, 

कैसे माफ करदू तुम्हे मैं राज ? बेइंतहा मोहब्बत करते हो तुम मुझसे यही कहते हो ना हमेशा, मैं इतनी सुंदर हूँ की कोई अप्सरा भी तुम्हारा मोह भंग नही कर सकती, एक अच्छी पत्नी एक अच्छी माँ ये सब तारीफे तुम किया करते थे ना, और आज एक पल में मेरी दुनियाँ उजाड़ दी, तुमने मेरे बच्चों को यतीम कर दिया, क्या बोलू में उनसे की तुम्हारे पिता बहक गए, किसी और कि बाहों में अपने होश खो बैठे,या कहुँ की तुम इसी इंतज़ार में थे कि कब में कुछ वक़्त के लिए जाऊ और तुम्हे मौका मिले की तुम, मेरे घर में मेरे बिस्तर पर,क्या कहूं जुबाँ जो शब्द कहते हुए लड़खड़ा रही है मेरी, वो तुम्हें करते हुए महसूस नही हुआ।

तुमने मुझे जीते जी मार दिया ,और गलती हो गयी तुमसे, नही वो तो मुझे पता चल गया पड़ोसियों से वरना अगर मुझे कुछ पता नही चलता तो तुम मुझे ताउम्र धोखे में रखते, मैं तुम्हे भगवान समझ कर पूजती ,बेइंतहा मोहब्बत करती और तुम मुझे इस्तेमाल करते।

आज फैसला होना है मैं ऐसे इंसान के साथ नही रह सकती, 

अगली सुंबह माँ बाऊजी आ रहे है और मेरे माँ बाप भी, अब वो इस तोड़ का हल निकालेंगे की मैं तुम्हारे साथ रहूँ या नही, 
(अगली सुबह दोनों के माता पिता सामने थे, शांति से घर ऐसे महसूस हो रहा था कि अभी अभी कोई शोक मना कर आया है, किसी की जुबां खुलने को तैयार ना थी, और राज इस तरह सर झुका कर खड़ा था जैसे कितनी मासूमियत से किसी ने उसे फुसलाया और वो बहक गया, पर प्रिया चुप रहने वालों में से नही थी, )

तो कहिए क्या फ़ैसला है आप सबका मेरे और मेरे बच्चों के लिए, प्रिया की सास बोली देखो बहु मैं समझ सकती हूँ कि तुम पर क्या बित रही है, ये मर्द जात तो होती ही ऐसी है हर जगह मुँह मारती फिरती है,पर हम औरत इस घर की लक्ष्मी है,अगर हम घर तोड़ने पर आई तो घर उजड़ जायेगे, जो हुआ सो हुआ भूल जाओ,माफ करदो, ऐसा फिर नही होगा मैं वचन देती हूं, घर की बात घर में रहे तो अच्छा है,

ये उम्मीद तो टूट गयी अब अपने माता पिता से थोड़ी उम्मीद बाक़ी थी ,
देखो बेटा जिंदगी आसान नही होती अकेली लड़की की उस पर बच्चो की जिम्मेदारी ,हर चील निगाह लगा के बैठा होता है अकेली औरत पर, प्रिया की माँ ने कहा, अब तुम्हे सिर्फ खुद के बारे में नही अपने बच्चों के बारे में भी सोचना होगा, ऐसी उच्च निच्च की घटनाओं से कमजोर पड़ जाओगी तो अपना और अपनों का भविष्य कैसे बना पाएगी,हर जगह बाप के नाम की जरूरत पड़ती है बच्चों को। जो हुआ वो भूल जाओ, गलती समझ के माफ करदो।

क्या कहती प्रिया साथ तो दूर किसी ने राज को गुनहगार भी नही कहा, जिंदगी की रफ्तार फिर चल पड़ी पर घाव हर दिन ताज़ा बना कर पेश करती जिंदगी जब जब राज का चेहरा सामने आता तो धोखा याद आता।

महीनो बीत गए पर अब ना दोनों के रिश्तों में पहले जैसी बात थी और प्यार तो बस दिखावे का रह गया था, राज की जिंदगी तो पटरी पर आ गयी इस तसल्ली से की अब प्रिया और बच्चे उसके साथ है, शरीर तो साथ था बेशक़ प्रिया का पर आत्मा तो मर चुकी थी विश्वास के साथ,
नेहा मुझे तुम्हारा साथ चाहिए क्या तुम और तुम्हारे पति मेरा साथ देंगे,
तेरे लिए तो जान भी हाज़िर है तू बोल क्या करना है,,
तू सुन,,,,

रात को 2 बज रहे थे, जब प्रिया का फ़ोन बजा, नही उठा पायी, तो मैसेज मिला,
*तुमने फोन क्यों नही उठाया , बहुत मन था तुमसे बात करने का, कल मिलो मुझे,
तुम्हारा निकिल,

हाँ नेहा को पता ना चले, 

अगली सुबह जब प्रिया चाय बना रही थी तो राज ने मोबाइल छुपकर चेक किया ओर मैसेज पड़कर आगबबूला हो गया पर वो प्रिया क्या कदम उठाएगी इसी इंतज़ार में था,क्या प्रिया अपनी चोखट लाँघ देगी, क्या उसे मेरी इज़्ज़त की कोई परवाह नही होगी,बहुत से सवाल जो मन ही मन राज की झकझोर रहे थे,
क्या हुआ आज ऑफिस नही जाना तुम्हें राज,
हाँ मन नही है आज छुट्टी ली है,क्यों तुम्हें कही जाना है ,
नही,हाँ वो कुछ काम था नेहा से तो थोड़ी देर में आ जाऊगी,

मन ही मन राज आग बबूला हो रहा था, 
जैसे ही प्रिया गयी तो उस वक़्त तो राज ने कुछ नही कहा, पर वो तैयार था घर में उसकी हालत खराब करने के लिए,
जैसे ही प्रिया घर लौटी वैसे ही सवालों की झड़ी लग गयी उसके सामने,
कहाँ से आ रही हो, मुझे पता है तुम निकिल से मिलने गयी थी, रात को जो फोन आया था तुम्हारे फोन पर तुम्हें लगा होगा मुझे नही पता, मैन मेसेज पड़ लिया था, शादीशुदा होकर दो बच्चों की माँ होकर तुम्हे शर्म नही आई ये सब गुल खिलाते हुए, यही संस्कार दिए है तुम्हारे माता पिता ने, 

मुझे माफ़ करदो राज मुझसे गलती हो गयीमैं बहुत शर्मिन्दा हूँ, मुझसे पाप हो गया, मुझे माफ़ करदो, ऐसा फिर कभी नही होगा,
उसकी नोबत तो मैआने ही नही दूँगा, तुम अब इस घर मे नही रुक सकती, तलाक के कागजात में तुम्हे भेझ दूँगा,और बच्चे मेरे पास रहेंगे,
ऐसा मत करो राज एक बार माता पिता को बुला लो,

कोई जरूरत नही है किसी को बुलाने की मेरा फैसला मैं खुद ले सकता हूँ,और ऐसी औरत के साथ मुझे एक पल भी गवारा नही,तुम अपना सामान पैक करो और निकलो यहाँ से, 

नही मैं कही नही जाऊगी ये मेरा भी घर है, सबको बुलाओ मैं माफी मांग लुंगी सबके सामने, 
अगले दिन सबको बुलाया पर कोई भी प्रिया के पक्ष नही था, सबकी नजरों में वो गलत थी गुनहगार थी,और जो सजा मुकम्मल की राज ने उसके लिए उसमे भी सबको कोई परेशानी नही थी,

तभी नेहा और निकिल वहाँ आ गए, कोई जरूरत नही है भाभी पर ये इल्जाम लगाने की भाभी ने औरर हमने मिलकर ये योजना बनाई थी, भाभी आज भी मेरे लिए उतनी सम्मानीय है जितनी पहले थी, और ये बात नेहा को भी पता है ,कल भाभी नेहा से मिलने आई थी हमारे घर और ये था उसका सबूत,

वो देखना चाहती थी यदि की जो परिस्थिति तुम्हारे सामने थी अगर वही परिस्थिति उनके सामने आए तो तुम और घरवाले क्या फैसला सुनाएंगे, और वही हुआ जब तुम्हारी गलती थी तब भी भाभी को मजबूर किया और जब भाभी ने वही किया तो भी उन्हें सजा दी गयी।

सब शर्मिन्दा थे पर प्रिया अंदर तक टूट गयी थी, की एक औरत कितनी असहाय हो जाती है सिर्फ और सिर्फ अपनो की वजह से।

तो यह बताता है हमारा कानून जो धारा अभी थोड़े दिन पहले हुई आईपीएस 497 जिसके तहत पुरूष का अपनी पत्नी पर मालिकाना हक होता था, वो अब इस धारा के रद्द होते ही रद्द हो गया,

व्यभिचार से संबंधित आईपीसी की धारा 497 में यह प्रावधान है कि अगर कोई पुरुष किसी विवाहिता स्त्री से, बिना पत्नी की सहमति से, यौन संबंध बनाता है तो उस पुरुष को पांच साल तक की कैद की सजा या आर्थिक दंड या दोनों की सजा हो सकती है,


अब 2017 में सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने फिर से इस व्यभिचार कानून को बहस के लिए देश के सामने पेश कर दिया है. इसलिए इस कानून पर अब नए सिरे से बहस छिड़ गई है. 


व्यभिचार अंग्रेजी के जिस शब्द एडल्टरी से आया है, उसका अर्थ ही मिलावट है. इस खास संदर्भ में यह खून में मिलावट का अर्थ ग्रहण करता है. इस कानून की भाषा इस तरह लिखी गई है, मानो महिला किसी पुरुष की संपत्ति है और जब कोई बाहरी पुरुष उस संपत्ति को ले जाता है या उसे ‘खराब” करता है, तो उसे दंडित किया जाएगा.



हमारे देश मे पत्नियां पति के व्यभिचार पर मुकदमा नही कर सकती,जबकि पति ऐसे हालातो में इसे आसानी से तलाक़ का आधार बना सकते है,जो महिलाओं के हित में नही है,

मुझे नही लगता कि ये धारा माननीय होनी चाहिए क्योंकि हम जिस समाज जिस देश मे रहते है वहा तो लड़कियों या औरतो की भेषभूषा ही उनके अपराध की वजह बन जाती है वहाँ अगर ऐसे कानून आ गए तो ना जाने कितने घर टूटेंगे, क्योंकि ऐसी सहनशीलता केवल नारियों में ही है कि उनके पति व्यभिचार करे और फिर भी वो उनकी ताउम्र गिरफ्त मंजूर करती है , परन्तु अगर ऐसा काम औरत करने लगेगी तो वही मर्द ऐसे कानून की धज्जियां उड़ाएगा, मानसिकता से कोई फर्क नही पड़ता पर रिश्तो के बंधन खुलने लगे तो न जाने कितने बच्चे यतीम हो जायेगे, ओर हमारा देश तो ऐसा है जहाँ शादी के बाद एक औरत को अपने खुद के पैरों पर खड़ा भी नही होने देता, तो इस परिस्थिति में क्या करेगा, 

बल्कि ऐसा कानून होना चाहिए जहाँ पति और पत्नी दोनों का व्यभिचार करना क़ानूनन अपराध हो, किसी एक को सारे हक़ ना दिया जाए, और किसी ऐसी वजह को तलाक़ का आधार ना बना पाए।

आप अपने विचार प्रकट कर सकते है इस विषय पर,

धन्यवाद
सोनिया चेतन कानूनगों।